लाखामंडल से सांकरी....
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लाखामंडल से आधा किलोमीटर नीचे पहुँचे ही थे कि सड़क पर भेड़ों ने कब्ज़ा किया हुआ था, गाडी रोकनी पड़ी। दो स्थानीय महिलाओं ने पूछा कि क्या बर्निगाड़ तक छोड़ दोगे ? आज २६ जनवरी है, तो मुझे लगा ये यहाँ स्कूल में अध्यापिकाएं होंगी। उनको बिठाकर आगे बढ़ चले, उनसे पुछा तो मालूम पड़ा दोनों महिलाएं यहाँ दो अलग-अलग गाँवों में आंगनबाड़ी में कार्यरत हैं। १५ किलोमीटर आगे नौगांव में कमरा किराये पर लेकर अपने बच्चों को वहीँ पढ़ा रही हैं, साथ ही नौकरी भी कर रही हैं। जब उन्होंने मुख्य सड़क से हमको अपनी कार्यस्थली दिखाई तो हम दोनों दंग रह गए।
पहले तो नौगांव से १५ किलोमीटर बस या जीप से बर्निगाड़ आओ, फिर लगभग आठ किलोमीटर खड़ी चढ़ाई करके नौकरी करने पहुँचो, और तनख्वाह ५५००/= रुपये। धन्य हो पहाड़ की नारी। दोनों महिलाओं को नौगांव तक जाना था, जब उनको छोड़ा तो बहुत खुश हुए, हमारा धन्यवाद किया कि आज घर जल्दी पहुँच गए। नौगांव भी छोटा सा पहाड़ी बाजार है। लेकिन खूबसूरत घाटी में बसा है। यहाँ से आगे बढे बायें हाथ पर एक शानदार घाटी नजर आयी, तुरन्त गाडी रोककर काफी देर तक फ़ोटो सेशन किया गया।
अभी तो ये घाटी इतनी हरी भरी नहीं थी, लेकिन बरसात के समय और उसके तुरन्त बाद तो निश्चित रूप से बहुत ही खूबसूरत लगती होगी। यहाँ से आगे चलकर पुरोला आता है, काफी बड़ा बाजार है। सुबह तीन बजे छुटमलपुर पर घर से लाये परांठे खाये थे और डामटा के नजदीक चाय पी थी। अब भूख भी लगने लगी थी, पुरोला में चार समोसे ले लिए। यहीं से मैने अपने पाँव के लिए क्नी कैप भी ली, रूपकुण्ड ट्रेक में पाँव तुड़वाने के बाद डॉक्टर ने अगले तीन माह तक ट्रेक ना करने की सलाह दी थी। और उसके बाद भी बगैर क्नी कैप के तो बिल्कुल भी नहीं। लापरवाही में दिल्ली से चला था, इसलिए वहाँ ले नहीं पाया था।
पुरोला से आगे बढे तो हल्की सी चढ़ाई है और चीड़ का जंगल शुरू हो जाता है। काफी ऊंचाई पर पहुंचकर एक जगह रुके, यहाँ से लगभग पूरा पुरोला ही दिख रहा था। गाडी रोककर आराम से धूप में बैठ गए और समोसों के साथ पुरोला के नजारों का आनन्द लेने लगे। नीचे यमुना घाटी में दोनों तरफ पानी के बहाव के कारण होने वाले कटाव को रोकने के लिए दीवार का निर्माण कार्य चल रहा है। आपदा के बाद से लगभग सभी नदियों के दोनों किनारों पर इस प्रकार की दीवार बनायी जा रही है। अब ये तो भविष्य ही बताएगा कि ये कितना कारगर सिद्ध होगा।
समोसे खाकर आगे बढे तो कुछ दूर बाद पहाड़ी के दुसरी और सड़क हो जाती है, पुरोला दिखना बंद हो जाता है। सड़क शानदार बनी है, एक जगह इतनी खूबसूरत थी कि वहां करीब आधे घण्टे तक फ़ोटो सेशन किया गया। सुन्दर, शान्त और रमणीक स्थान। मन कर रहा था कि अपने पास टेण्ट होता तो एक रात यहीं बिता लेते। फ़ोटो सेशन के बाद आगे बढ़ चले, अब उतराई शुरू हो गयी थी। सड़क पर ट्रैफिक भी बिल्कुल नहीं मिलता। वन विभाग के द्वारा जगह-जगह बांज के पेड़ लगाये जा रहे हैं। गौरतलब है कि चीड़ का पेड़ अपने आस-पास किसी और भी पौधे को उगने नहीं देता। लकड़ी भी इसकी इतनी मजबूत नहीं मानी जाती, सिर्फ तारकोल बनाने के लिए इसके लीसा का उपयोग किया जाता है।
लेकिन पहाड़ों में जो उपयोगिता बांज के पेड़ की है, इसके मुकाबले किसी और की नहीं। बांज पानी भी देता है और अपने आस-पास सभी पौधों को फलने फूलने का मौका भी। शुक्र है कहीं तो सरकारी प्रयास सही दिशा में होते प्रतीत हुए। यहाँ से मोरी तक लगातार उतराई है, और शानदार जंगल के साथ, शानदार सड़क। मोरी पहुँचते ही एक तिराहा आता है, सीधी सड़क हनोल, त्यूणी, चकराता होते हुए देहरादून और दाहिने मुड़ जाओ तो आगे नेटवाड़ होते हुए सांकरी। दाहिने मुड़कर मोरी बाज़ार आ जाता है, ये आखिरी बड़ा बाजार पड़ना था इसलिए यहाँ रूककर ट्रेक के लिए टॉफी, बिस्कुट, ग्लूकोज़ आदि रख लिए।
मोरी से आगे बढे तो टोंस नदी के साथ-साथ सड़क जाती है और असल में हर की दून घाटी की शुरुवात यहीं से हो जाती है। नेतवाड़ में रूपिन और सुपिन के संगम के बाद ये नदी टोंस कहलाती है, टोंस नदी यमुना की प्रमुख सहायक नदी है, आगे कालसी में यमुना में मिलकर इसका जीवनचक्र समाप्त हो जाता है। जहाँ रूपिन नदी का उदगम भराटसर-विराटसर झील से तो सुपिन नदी का उदगम जौंधार ग्लेशियर से होता है। अगले चार दिन तक हमको सुपिन नदी के साथ-साथ ही चलते रहना है। शानदार नज़ारे शुरू हो जाते हैं।
समायाअभाव के कारण नेटवाड़ में भी बिना रुके आगे बढ़ गए। जबकि नेटवाड़ में भगवान पोखुवीर का मंदिर है। शायद ये विश्व का एकलौता मंदिर होगा जहाँ मूर्ति की तरफ पीठ करके पूजा की जाती है। कुमाऊं के गोलू देवता को जैसे न्याय का देवता माना जाता है वैसे ही गढ़वाल के जौंसार बावर के इस क्षेत्र में भगवान पोखुवीर को न्याय का देवता माना जाता है। किंवदंती है कि किरमिर दानव ने जब इस क्षेत्र में अपना आतंक फैलाया तो महाराज दुर्योधन ने उससे युद्ध करके किरमिर का सर धड़ से अलग करके टोंस नदी में फेंक दिया। लेकिन किरमिर का सर बजाय नदी की धारा के, इसके विपरीत बहता हुआ टोंस नदी के उदगम स्थल पर पहुंचकर रुक गया। दुर्योधन ने सर को यहीं स्थापित कर एक मंदिर बना दिया। रूपिन और सुपिन नदी के संगम के बाद टोंस नदी बनती है, जो कि नेतवाड़ में है।
यहाँ से गोविन्द पशु अभ्यरण् क्षेत्र शुरू हो जाता है और हर की दून जाने वालों का परमिट बनता है। अधिकारी ने बताया कि अभी हर की दून का परमिट किसी को भी नहीं दिया जा रहा, या तो जिला मुख्यालय से लाओ, यहाँ से आपको सिर्फ तालुका तक जाने का परमिट मिलेगा। ५० रुपये प्रति व्यक्ति, प्रति दिन के हिसाब से हम दो लोगों का तीन सौ रुपये, और कार का अलग से २५०/= रुपये। हालांकि मैं जन्म जात उत्तराखण्डी हूँ, लेकिन अब दिल्ली निवासी हो गया हूँ तो मुझे भी हर जगह ये भुगतान करना पड़ता है। उत्तराखंड निवासियों को कोई शुल्क नहीं देना होता है।
परमिट लेकर आगे बढे सड़क कुछ ही आगे तक पक्की बनी है, उसके बाद कच्ची सड़क शुरू हो जाती है। हालांकि इस पर सुबह शाम बस चलती है, और स्थानीय जीप पूरे दिन चलती रहती हैं। घाटी के शानदार नज़ारे लगातार बने रहते हैं, आराम से चलते गए । काफी दूर से ही सांकरी दिखना शुरू हो जाता है। शाम के लगभग पांच बजे सांकरी पहुँच गये। सांकरी से तालुका तक भी सड़क बनी है। हम मोरी से ही जानकारी लेते हुए आ रहे थे कि क्या हम अपनी कार से तालुका पहुँच सकते हैं ? अभी तक किसी ने भी हां नहीं कहा था, सभी कह रहे थे कि बाइक और सिर्फ जीप ही आगे इस रास्ते पर जा पाएगी। मनु भाई ने कहा कि एक बार आगे चलकर सड़क का जायजा लेकर आते हैं, हो सकता है कि स्थानीय जीप वाले अपनी कमाई के चक्कर में गलत जानकारी दे रहे हों।
हालांकि मैं कोई जोखिम नहीं लेना चाहता था फिर भी मैंने हाँ बोल दी। हम सांकरी में बिना रुके ही आगे बढ़ गए। कुछ ही आगे आये थे कि दो ट्रैकर और उनके साथ उनका गाइड सड़क किनारे बैठे मिले। उनसे जानकारी ली तो वो अभी केदारकांठा से उतर कर पहुंचे ही थे। उनके गाइड ने भी हमें अपनी कार आगे ना ले जाने की ही सलाह दी, फिर भी हम आगे बढ़ गए। लगभग दो किलोमीटर तक आराम से आ गए। अचानक से खतरनाक उतराई शुरू हो गयी और सड़क पर छोठे-छोठे पत्थरों के साथ भुरभुरी मिटटी से सामना हो गया। टायर अपनी पकड़ सड़क पर नहीं बना पा रहे थे, ऐसे में कार के ब्रेक भी काम नहीं कर पाते।
तुरन्त यहीं से वापिस मुड़ने का निर्णय ले लिया। जैसे तैसे गाडी मोड़कर वापिस सांकरी आ गए। ट्रेक पर जाने से पहले मैंने अपने बचपन के मित्र से सांकरी के बारे में जानकारी मांगी तो उसने एक होटल के बारे में बता दिया था और एक गाइड का मोबाइल नम्बर भी मुझे दे दिया था। मेरी इस गाइड से दिल्ली से फोन पर बात हुयी थी, उसे अपना कार्यक्रम मैं पहले बता चुका था। सांकरी वापिस आते ही मैंने इसी गाइड का नाम लिया तो ये मिलने आ पहुंचे।
हालांकि अभी तक मैंने इससे कुछ भी तय नहीं किया था। जिस होटल के बारे में मेरे मित्र ने मुझे जानकारी दी वहीँ गाडी रोककर सबसे पहले होटल का कमरा देखा। ७००/= रुपये में कमरा मिला, सभी सुविधाएं कमरे में उपलब्ध थी। मुझे महंगा लगा, मनु भाई से कहा कि एक बार आप भी कमरा देख लीजिये, लेकिन उन्होंने कहा जो आपको पसंद हो वो उनको भी पसंद होगा। यहाँ से अगले चार दिन तक हमको बिजली नहीं मिलनी थी, कैमरा आदि चार्ज करना था, और पिछले ३६ घण्टे से अच्छे से नींद भी नहीं ली थी।
आज की रात आराम से गुजार लें, इसलिए यही कमरा ले लिया। कमरे में सामान रख कर जैसे ही बाहर आये सामने ढाबे पर चाय पीने चले गए। मनु भाई ने मुझसे कहा कि "बीनू भाई, आप घुमक्कड़ से पर्यटक कबसे बन गए ?" मैंने तुरन्त उनको कहा कि भाई, मैं ठहरा संकोची स्वभाव का आदमी, ये मोल भाव मेरे बस की बात नहीं होती, होटल लेते वक़्त भी इसीलिये आपको ही भेज रहा था। अब आगे से जो भी तय करोगे आप करोगे, और यकीन मानिये आपका जो निर्णय होगा, वही मेरा भी होगा।
थोड़ी ही देर बाद हमारा कथित गाइड भी ढाबे में हमारे साथ में ही आकर बैठ गया। मनु भाई ने तुरन्त अपनी ड्यूटी संभाल ली और आगे के लिए गाइड, जीप आदि की ब्यवस्था और इस पर होने वाले खर्चे पर उससे बातचीत करने लग गए। जब तक हमारी चाय समाप्त होती, तब तक मनु भाई इनकी नस-नस से वाकिफ हो चुके थे।
मैं चुपचाप, शान्त होकर सब देख सुनता रहा। कथित गाइड के अनुसार जीप ८००/= रुपये में हमको तालुका तक छोड़ेगी, वो भी अभी बुक करवागे और सुबह आठ बजे से पहले यहाँ से नहीं चलेगी। गाइड १०००/= रुपये प्रतिदिन लेगा। चार दिन का ४०००/= रुपये, साथ ही रहने-खाने की सारी व्यवस्था हमको करनी होगी। चलिए ठीक है। लेकिन हम सोच रहे हैं कि हम इस ट्रैक को तीन दिन में ही कर लें, और वापिस आकर केदारकांठा का ट्रेक भी करें। गाइड साहब ने उत्तर दिया "चाहे आप दो दिन में कीजिये, चार दिन का पैसा हर की दून का लगेगा,और चार दिन का केदारकांठा का"। आपको ८०००/= रुपये तो देने ही पड़ेंगे। फिर मनु भाई ने कहा कि ठीक है हमको गाइड नहीं, पोर्टर दे दो। पहले तो भाई साहब आना-कानी करने लगे, फिर बोले पोर्टर का ७००/= रुपये प्रति दिन, चार दिन के २८००/=। मनु भाई ने मुझसे पुछा, क्या करना है ? मैंने कहा भाई मैं ठहरा पहाड़ी आदमी, फिर मेरे बैग का वजन दस किलो से ज्यादा होता नहीं, वो मैं खुद उठा लूंगा, मेरे को तो नहीं चाहिए पोर्टर। आपका ही रकसेक भारी है, आपको चाहिए तो देख लो।
एकदम से दोनों के अंदर का घुमक्कड़ जाग गया। गाइड, पोर्टर, टैक्सी सबके लिए मना कर दिया, और कथित गाइड को भी यहीं पर से नमस्ते कर दी। चाय पीने के बाद सुबह आगे जाने की जानकारी लेने लगे, जो जीप पहले गाइड साहब ८००/= में करवा रहे थे, वो जीप वाला ६००/= में ख़ुशी-ख़ुशी मान गया। २००/= गाइड साहब का कमीसन था, जीप वाले को ६००/= ही मिलने थे। फिर भी उसको हाँ नहीं बोली, जो होगा सुबह देखेंगे। अगर कोई शेयर जीप मिल जायेगी तो क्यों ६००/= रुपये ख़र्च करें ?
खाने के लिए ढाबे में बोलकर कमरे में वापिस आ गए। मनु भाई अपने साथ बड़ा वाला रकसेक, स्लीपिंग बैग, बड़ी कम्बल, और ढेर सारे कपडे लेकर आये थे। सबसे पहले उनके बैग को हल्का करने का काम किया गया। मेरे ना-ना करते भी स्लीपिंग बैग भी साथ में ही ले जाने के लिए रख ही लिया, हालांकि मेरे कहने पर काफी सामान उन्होंने कम कर दिया इसके बावजूद भी उनके बैग का वजन १५ किलो के करीब बना रहा। जबकि मैं सिर्फ जरुरी कपडे और सामान ही साथ रखता हूँ, इसलिए मेरा बैग ८ किलो से ज्यादा वजनी नहीं था। अब जो होगा सुबह देखेंगे, आठ बजे तक ढाबे में जाकर भोजन भी कर आये, कैमरा आदि चार्जिंग पर लगाकर सो गए।
क्रमशः.....
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यमुना घाटी |
पुरोला की ओर |
यमुना घाटी |
नौगांव |
पुरोला के नजदीक |
शानदार नज़ारे |
टोंस नदी |
साँकरी |
हमारा होटल |
खूबसूरत साँकरी |
हर की दून घाटी साँकरी |
सांकरी बहुत खूबसूरत गांव है , आपकी कैमरे से इसमें और भी चार चाँद लगा दिए हैं ! जिला मुख्यालय से अनुमति लेनी पड़ती है क्या ऐसे मौैसम में ? ये एकदम गलत बात है ! अगर कोई हर की दून जाने का प्रोग्राम बनाकर आया है तो उसे वहीँ अनुमति प्रमाण पत्र मिल जाना चाहिए , क्या वो वापस जिला मुख्यालय जाएगा !! हर की दून यात्रा में आपके साथ चलता रहूँगा !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई। आपदा के बाद नियम कुछ कड़े कर दिये हैं राज्य सरकार ने।
Deleteबहुत सुन्दर वर्णन बीनू भाई .ऐसा लगा जैसे आपके साथ ही चल रहा हूँ . एक तस्वीर बांज के पेड़ की भी लगा देते . हम भी इसे पहचान लेते
ReplyDeleteबहुत बढ़िया... मज़ा आ गया बीनू भाई । एक बार फिर हर की दून आपके साथ..मस्त सफ़र ।
ReplyDeleteधन्यवाद डॉ साहब।
Deleteलाखामंडल से सांकरी का सुन्दर यात्रा वृतांत ...फोटो में खूबसूरती देखते ही बनती हैं .. लगता है पहाड़ जैसे बुला रहे हों ..
ReplyDelete..सैर करने के लिए धन्यवाद!
बहुत बहुत धन्यवाद कविता जी।
Deleteएक कमेंट 2-3 दिन पहले भी डाला था .आज गायब मिला .खैर ..पोस्ट बहुत अच्छी लिखी है आपने और तस्वीरों ने तो इसमें चार चाँद लगा दिए हैं !
ReplyDeleteजी नरेश जी, भाग १ में आपका कॉमेंट मिल गया था। बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत जोवांत वर्णन ।कभी कभी दूसरो की भी सुन लेनी चाहिए।
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ। जी सही कहा आपने।
Deletelage raho beenu bhai maza aa raha hai aap ki yatra padne mein
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी।
Deleteमजा आ गया बीनू भाई....सजीव यात्रा चित्रण ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
धन्यवाद रितेश भाई।
DeleteNice narration. Ye baanj ke ped ko english mein kya kehte hain? A reference photo would be helpful. Also surprised to read about the guide rates.
ReplyDeleteOak कहते हैं रागिनी जी,पहाड़ों पर अक्सर जहाँ बांज (Oak) के जंगल होंगे वहां आपको, पानी, हरियाली, लेंड स्लाइड का न होना, पक्षी, जानवर सब कुछ मिलेंगे। फ़ोटो जल्दी ही इस पोस्ट में ही अपलोड कर दूंगा। बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteThanks for the details, Beenu ji.
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