हर की दून, उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में 3550 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गोविंद पशु अभ्यरयण क्षेत्र के अंतर्गत एक खूबसूरत घाटी है। जौंधार ग्लेशियर से अपने उदगम के बाद यमुना की सहायक सुपिन नदी इसी घाटी से बहती हुयी निकलती है। स्वर्गारोहिणी पर्वत के शानदार दर्शन यहाँ से होते हैं, और घाटी की खूबसूरती के तो कहने ही क्या। पिछले कुछ वर्षों से निर्धारित किया हुआ है, कि जब पूरा देश गणतन्त्र दिवस मना रहा होगा, तब मैं हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों पर हूँगा।
इस बार 26 जनवरी के समय हर-की-दून जाना है, ये भी पहले से ही तय था। इस ट्रैक को चुनने के दो मुख्य कारण थे। पहला मैं बर्फ में टेण्ट के अन्दर रात गुजारने से बचना चाहता था, और इस ट्रैक पर रहने-खाने की कोई समस्या नहीं होती। दूसरा उत्तराखण्ड के जौंसार क्षेत्र को ज्यादा अच्छे से देखना था। हम कुछ घुमन्तु प्राणियों का एक व्हाट्स एप्प ग्रुप है, "मुसफिरनामा दोस्तों का"। जब मैंने अपनी हर-की-दून यात्रा के बारे में ग्रुप में चर्चा की, तो कुछ साथी भी इस यात्रा पर साथ चलने के लिए तैयार हो गए। इनमें एक थे घुमक्कड मनु प्रकाश त्यागी। तय हो गया 25 जनवरी रात को दिल्ली से मनु भाई की कार से निकलेंगे, और 31 जनवरी तक वापिस आ जाएंगे।
तैयारियां मुझे कुछ खास करनी नहीं थी। सिर्फ एक ट्रैकिंग बैग लेना था, जो मैंने मोनेस्ट्री मार्किट से जाकर 1500 रुपये का खरीद लिया। यात्रा की तारीख आते-आते सिर्फ मनु प्रकाश त्यागी और मैं ही इस यात्रा पर जाने के लिए शेष बचे रह गए। बाकी साथियों ने किसी न किसी कारणवश जाने में असमर्थता जता दी। मनु प्रकाश त्यागी को वैसे तो मैं काफी समय से उनके ब्लॉग (www.travelufo.com) के माध्यम से जानता था। लेकिन मुलाकात कभी नहीं हुयी थी। यात्रा से एक दिन पहले मुझे ग्रुप के एक और साथी पवन दरमोरा ने फोन कर बताया कि उन्हें भी देहरादून तक चलना है। अगर आप लोगों की गाडी में जगह है, तो वो भी साथ चलना चाहेगा। जिससे मुलाकात भी हो जायेगी, और सफ़र के लिए साथ भी मिल जाएगा। मैंने पवन को अपना कार्यक्रम बता दिया, और नौ बजे आनंद विहार मेट्रो स्टेशन पर मिलने को कह दिया।
यात्रा वाले दिन मुझे रात को 10 बजे तक मुरादनगर, मनु भाई के घर पहुँचना था। लेकिन ऐन वक़्त पर ऑफिस के काम की वजह से मैं लेट हो गया। आनन्द विहार पहुँचते-पहुँचते ही दस बज गए। आनंद विहार में पवन नौ बजे से मेरी प्रातीक्षा कर रहा था। उससे मुलाकात के बाद मुरादनगर के लिए बस ढूंढने लगे। काफी देर तक इंतजारी के बाद भी मुरादनगर की कोई सीधी बस नहीं मिली तो मोहन नगर चौक तक शेयर ऑटो ले लिया। मोहन नगर चौक पर उम्मीद थी कि देहरादून या कोटद्वार जाने वाली कोई बस रुक जायेगी, लेकिन कोई भी नहीं रुकी। मनु भाई का फोन आया तो उनको परेशानी बताई। उन्होंने कहा यहाँ से उनका घर मात्र बारह किलोमीटर है, वो हमको लेने आ रहे हैं।
थोड़ी देर बाद ही एक टैक्सी मिल गयी, जो बीस रुपये प्रति सवारी हमको मुरादनगर तक छोड़ देगी। मनु भाई को फोन करके बता दिया कि आप मत आओ लेकिन वो तब तक घर से निकल चुके थे। फिर उन्होंने एक जगह बतायी कि तुम लोग यहाँ उतर जाओ मैं यहीं इंतजारी कर रहा हूँ। बीस मिनट में मनु भाई भी मिल गए। इसके बाद उनके घर पर जाकर कॉफी पी, और आगे की यात्रा पर निकल पड़े।
जैसे ही मुरादनगर से आगे निकले भयंकर धुंध से सामना हो गया। दो मीटर से ज्यादा दूर तक कुछ दिखायी नहीं पड़ रहा था। फिर भी आराम से चलते गए। सुबह तीन बजे रुड़की से आगे छुटमलपुर पहुँच कर चाय पी, मनु भाई के लाये परांठे खाये और आगे देहरादून की तरफ बढ़ चले। छुटमलपुर से देहरादून का रास्ता शिवालिक की पहाड़ियों से होकर गुजरता है। वैसे तो बहुत अच्छा बना है, लेकिन इन दिनों इस पर जगह-जगह पुलिया निर्माण का कार्य चल रहा है। दिन में भयंकर जाम का सामना करना पड़ता होगा। हम लगभग सुबह के चार बजे यहाँ पहुंचे थे, इस समय ट्रैफिक ना मात्र का होता है, इसलिए जाम से बच गए। पांच बजे देहरादून पहुंचे, पवन को राजपुर रोड पर छोड़ना था, सोचा यहाँ से गाडी में पेट्रोल भी डलवा लेंगे। लेकिन देहरादून में कोई भी पेट्रोल पम्प सुबह के सात बजे से पहले नहीं खुलता। इंतजारी करने का कोई कारण नहीं था, क्योंकि 30 किलोमीटर आगे मसूरी में भी हमको पेट्रोल मिल जाएगा।
पवन से विदा लेकर हम दोनों मसूरी की ओर बढ़ चले। जैसे-जैसे मसूरी नजदीक आता गया, अँधेरे में चमचमाती मसूरी, और नीचे जगमगाती दून घाटी, दोनों का नजारा शानदार था। एक जगह रूककर दोनों तरफ की फ़ोटो ली, और आगे बढ़ चले। छह बजे जब मसूरी पहुंचे तो यहाँ भी कोई पेट्रोल पम्प खुला नहीं मिला। अब पेट्रोल सीधे पुरोला जाकर ही मिलना था, और वहां तक पहुँचने लायक पेट्रोल गाडी में था नहीं। मनु भाई ने ठीक पम्प के सामने गाडी लगायी, और हम दोनों गाडी में ही सीट लम्बी करके सो गए।
सुबह ठीक सात बजे आँख खुली तो जिस पम्प पर हमने गाडी लगायी थी, वो अभी भी नहीं खुला था। तभी मनु भाई को याद आया कि थोडा आगे एक पम्प और है। उस पर जाकर देखा तो वो खुल चुका था। पेट्रोल लिया और कैम्पटी फॉल जाने वाली सड़क पर आगे बढ़ चले। थोडा आगे बढे थे कि साइकिल पर ट्रैक सूट पहने, और मुहँ पर मफलर बांधे कोई सामने से आता दिखा। मनु भाई ने गाडी धीमी करके उससे रास्ता पुछा कि "भाई साहब !!! कैम्पटी फाल यही सड़क जाती है ?" उसने हाँ में सर हिलाया, और उसकी शक्ल देखकर हम दोनों हंस पड़े। असल में वो साईकिल सवार भाई साहब नहीं बहिन जी थी। अब तक काफी उजाला हो चुका था, लेकिन जब हम 15 किलोमीटर नीचे कैम्पटी फाल पहुंचे तो पूरा सुनसान ही पड़ा मिला।
कैम्पटी फॉल हम दोनो ने पहले भी देखा हुआ था, इसलिए बिना रुके आगे बढ चले। हाँ आज 26 जनवरी थी, स्कूली बच्चे अपनी ड्रेस पर रिब्बन वाले फूल लगाकर स्कूल जाते हुए मिलने लगे। हमको भी तिरंगे वाली झंडी मिला करती थी। और कार्यक्रम के अन्त में एक लड्डू। उस लड्डू के लिए बड़ी देर इंतज़ार करना पड़ता था। शायद अब भी मिलता हो। यहाँ से नीचे यमुना घाटी और यमुना जी के दर्शन भी शुरू हो जाते हैं, शानदार नज़ारे हैं। साफ़ स्वच्छ यमुना का दिल्ली पहुँचते-पहुँचते क्या हाल कर दिया हमने। कई जगह रुक कर फ़ोटो खींचते और फिर आगे बढ़ जाते, चाय पीने की इच्छा जागृत होने लगी तो एक जगह बड़ा सा नाला झरने के रूप में सड़क पर बहता मिला। नीचे यमुना जी और सड़क किनारे एक चाय की दुकान खुली मिली। नजारा भी सुन्दर था, फिर सोचना क्या था, तुरंत गाडी रोककर चाय का आर्डर दे दिया।
बहता पानी सामने दिखा तो मेरा पहाड़ी रूप खुद ही बाहर आ गया। टूथ ब्रश लेकर झरने पर जा पहुंचा, हाथ मुहँ धुलकर फिर से तरोताजा हो गया था। इसी चाय की दुकान पर अंगीठी के ऊपर कढ़ाई में ताज़ी मछलियाँ पक रही थी। मैंने मनु भाई से पुछा, बताओ ये क्या पक रहा है ? अब बन्दे ने जिंदगी में खायी हो तो बता पाये ना। मैंने कहा ये नीचे यमुना जी से पकड़ी ताज़ी मछलियाँ हैं। फिर भी उनको यकीन नहीं हुआ। दुकान वाले को बोला कि इसके सर वाले हिस्से को दिखा। जब उसने करछी से पलट कर दिखाया तब उनको यकीन हुआ। मेरे मुहँ में तो लार टपक रही थी, लेकिन मनु भाई ठहरे शुद्ध शाकाहारी आदमी, और आगे हमको लाखामंडल में शिव मन्दिर भी जाना था, इसलिए मन को मना लिया। कोई और समय होता तो आज सुबह आठ बजे ही मेरा लंच हो जाता, ये निश्चित था। चाय पीकर आगे बढे, सड़क शानदार बनी है। कई जगह चौड़ीकरण हो रहा है, अगले कुछ सालों में तो और भी बढ़िया बन जायेगी।
लाखामंडल पहले हमारी यात्रा सूची में शामिल नहीं था। हम यमुनोत्री जाने वाले राजमार्ग न. १२३ से गुजर रहे थे। जहाँ पर भी कुछ देर के लिए रुकते, स्थानीय निवासियों से पूछते कि इस क्षेत्र में आस-पास कुछ देखने लायक जगह है ? ऐसे में एक महानुभाव ने बताया कि इसी सड़क पर आगे जाकर बर्निगाड़ से अगर बाएं पुल पार कर पांच किलोमीटर जाओ तो लाखामंडल है। लाखामंडल के नजदीक से हम गुजरें और ना जाएँ, भला ऐसे कैसे हो सकता है। बड़कोट से बीस किलोमीटर पहले बर्निगाड़ से लाखामंडल के लिए सड़क बायें को कट जाती है। बड़ा सा लोहे का पुल यमुना पर बना है उसको पार करके ऊपर गाँव दिखता है। पुल के बाद कच्ची सड़क बनी है।
लाखामंडल से कुछ पहले सड़क किनारे ही पांडव गुफा दिखी। सोचा वापसी में इसको टटोल लेंगे, बिना रुके सीधे लाखामंडल पहुँच गए। छोटा सा गाँव है, मंदिर भी गाँव के बीचों बीच बना हुआ है। पुरातत्व विभाग ने इसको संरक्षित करने के साथ-साथ काफी सजावट का काम भी किया है। लाखामंडल में पांडवकालीन शिव मंदिर है। जिसका निर्माण ठीक केदारनाथ के आकार में किया गया है। यहाँ पर हमें मंदिर के पुजारी मिले, उन्होंने बताया कि ४७ साल पहले, गाँव के किसी ब्यक्ति को सपने में एक बाबा दिखायी दिये, उन्होंने कहा कि मैं गन्दगी और दलदल में फंसा हूँ, मुझे इससे बाहर निकालो।
जब उसने खुद ही मंदिर परिसर के आस-पास खुदाई शुरू की तो वाकई मैं शिवलिंग मिलने शुरू हो गए। बाद में पुरातत्व विभाग ने इस क्षेत्र को अपने अधीन ले लिया और इसके सौ मीटर के क्षेत्र में खुदाई पर प्रतिबन्ध लगा दिया। अब पुरातत्व विभाग इस क्षेत्र में कार्य कर रहा है। मंदिर परिसर में कई शिवलिंग रखे हैं जो कि खुदाई में मिले हैं। इस मंदिर के आस पास जमीन में कई और शिवलिंग दबे पड़े हैं। एक विशेष शिवलिंग खुले आसमान में रखा है, जिस पर जलाभिषेक के बाद खुद का साफ़ प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है। खुदाई में मिले और भी कई पत्थर और उन पत्थरों पर उकेरी गयी आकृतियां मंदिर परिसर में रखी हुयी हैं।
मंदिर के साथ में ही एक स्तूपाकार सी संरचना खुदाई में मिली है, शायद कोई मंदिर का आधार रहा हो। इस क्षेत्र में कुछ गुफाएं भी हैं, सभी का सम्बन्ध पांडवों के अज्ञातवास वाले समय से जुड़ा प्रतीत होता है। करीब एक घण्टा लाखामंडल में बिताने के बाद हम आगे बढ़ चले, अभी भी लम्बा सफ़र तय करके आज शाम तक सांकरी पहुँचना तय किया था।
क्रमशः......
इस यात्रा वृतान्त के अगले भाग के लिए यहाँ क्लिक करें.
क्रमशः......
इस यात्रा वृतान्त के अगले भाग के लिए यहाँ क्लिक करें.
सुबह तीन बजे भोजन |
हाईवे पर धुंध |
रात में मसूरी |
कैम्पटी फॉल |
यमुना घाटी |
मछलियाँ पक्ति हुयी |
लाखामंडल |
लाखामंडल शिव मंदिर |
लाखामंडल शिव मंदिर |
प्राचीन अवशेष |
प्राचीन अवशेष |
शिवलिंग पर प्रतिबिम्ब |
इस यात्रा के सभी वृतान्तो के लिंक इस प्रकार हैं :-
हर की दून ट्रैक - हर की दून से साँकरी
बहुत सुंदर लेख वैसे मनु भाई की यात्रा भी पढी लेकिन फिर भी पढने मैं मजा आया, आगे की पोस्ट का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई।
Deleteबढ़िया । हर किसी का अपना नजरिया होता है । एक ही ट्रैक को लोखो लोग हर साल करते हैं पर सबका अनुभव अलग होता है । मुझे भी मज़ा आया
ReplyDeleteधन्यवाद मनु भाई।
Deleteबहुत बढ़िया जी,पढ़कर आनन्द आ गया।ऐसा लग रहा है कि जैसे हम भी आपके साथ हों। हर हर महादेव।
ReplyDeleteहर हर महादेव। धन्यवाद रूपेश भाई।
Deleteमुझे ज्यादा आनन्द आया बीनू क्योकि ये यात्रा मैंने मनु के ब्लॉग पर नहीं पढ़ी। तो ये लाखा मण्डल किस चीज के लिए फेमस है ये तो तुमने बताया नहीं ।।मछली की खुशबु तो यहाँ तक आ रही है बीनू:):)
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ। लाखामंडल में हाल ही में प्राचीन अवशेष मिले हैं।
Deleteबीनू जी ग्रुप की पहली साझा ट्रैकिंग के लिये बढ़ाईंयां।लाखामंडल के शिव लिंग की तस्वीर तो गजब की है, और आप तो पीके ही बन गए जो छोरा छोरी में फर्क नहीं कर पाएं
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी। मैंने तो फर्क कर लिया था, मनु भाई नहीं कर पाये थे। :)
Deleteहा हा हा हा हर्षा सही पकड़ा
Deleteसुन्दर चित्रण बीनू भाई । आपकी इस यात्रा का विवरण मनु भाई की लेखनी द्वारा पहले भी पढ़ चूका हूँ पर जैसा मनु भाई ने कहा के सबका नज़रिया अलग होता है वैसे ही लेखन भी अलग अलग होता है । चित्र भी खूबसूरत हैं ।
ReplyDeleteधन्यवाद डॉ साहब।
Deleteबहुत ही शानदार यात्रा वर्णन बीनू भाई ! लाखा मंडल के चित्र बहुत आकर्षित कर रहे हैं ! एक बात पूछना चाहूंगा कि चलो आप तो अपनी कार से गए लेकिन अगर कोई केम्पटी फॉल और लाखा मंडल बस से जाए तो क्या देहरादून से ही मिल जायेगी दोनों जगह के लिए ?
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई। जी देहरादून से पुरोला वाली बस से आराम से बर्निगाड़ तक जाया जा सकता है। वहां से लोकल जीप या फिर पैदल। सड़क मार्ग ५ किलोमीटर का है, निश्चित रूप से पैदल मार्ग कम ही होगा।
Deleteबहुत बढ़िया बीनू भाई, मैं 2009 में गया था इस मंदिर में...
ReplyDeleteबढ़िया। धन्यवाद प्रदीप भाई।
Deleteबीनू भाई , बहुत बढ़िया लिखा है . उसी दिन यानि 26 जनवरी को हम इसी मार्ग से नागतिब्बा से वापिस आये थे पर थोडा समय अलग था वरना आपसे मिलने की इच्छा उसी दिन पूरी हो जाती .
ReplyDeleteधन्यवाद नरेश जी। आपसे मुलाकात उस दिन हुयी होती तो हर की दून भी ले चलते आपको। :)
DeleteShruwat acchi hai , aage aage padne mein or maza ayega .....Lakhamandal ka entry gate change ho gaya hai .
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी। A.S.I. वाले सजावट का काम कर रहे हैं।
Deleteवाह, इस स्थान पर प्राचीन मंदिरों का समूह था, जिनके कई आमलक दिखाई दे रहे हैं। जो शिवलिंग के साथ चौकोर संरचनाएं हैं उन्हें चतुष्टिका कहते हैं। बढिया पोस्ट।
ReplyDeleteधन्यवाद ललित सर इस जानकारी के लिए।
ReplyDeleteInteresting post. Lakhamandal Mandir to kaafi khoobsurat hai.
ReplyDeleteधन्यवाद, जी मन्दिर परिसर को पुरातत्व विभाग ने काफी खूबसूरती से संवार दिया है।
Delete