Friday 27 January 2017

उत्तराखण्ड बाइक यात्रा (भाग 1) :- दिल्ली से आदि बद्री

उत्तराखण्ड बाइक यात्रा (8 दिसम्बर से 15 दिसम्बर 2016)

आयोजन और पहला दिन :-
दिल्ली से हरिद्वार (8 दिसम्बर 2016)


पिछले माह जब कार से उत्तराखण्ड की यात्रा की थी तो गढ़वाल के राठ क्षेत्र का एक हिस्सा देखा था। तभी मन बना लिया था कि इधर दुबारा जरूर आऊंगा और बाकी का हिस्सा भी खंगालूँगा। यात्रा से वापिस आने के बाद मन में यही पशोपेश चलता भी रहा। इधर ट्रैकिंग का कीड़ा भी दिन प्रतिदिन जवान होता जा रहा था। ट्रेक के नाम पर कैलाश कुण्ड के बाद कहीं नहीं गया था। “पंवाली कांठा” ट्रेक भी काफी समय से मन में है, सोचा इसी को कर आऊँ। इस ट्रेक को करने की तारीख भी तय कर ली थी और इसके बाबत फेसबुक पर भी लिख दिया था। एक दो फेसबुक मित्रों ने इस ट्रेक पर साथ चलने कि इच्छा भी जताई। लेकिन तभी इन्ही दिनों मोदी जी ने नोटबंदी बम फोड़ दिया। इस बम का ऐसा असर हुआ कि “पंवाली कांठा” ट्रेक खटाई में पड़ गया।

Wednesday 25 January 2017

कल्पेश्वर-रुद्रनाथ यात्रा (अन्तिम भाग)- पकड़ कमण्डल, उतर जा मण्डल

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पञ्चगंगा से मण्डल (पकड़ कमण्डल, उतर जा मण्डल)

सुबह सूर्योदय से पूर्व ही उठ गए। मौसम साफ़ लग रहा था, जल्दी से नित्यकर्म से निव्रत होकर बैग बाँध लिए। दूरी के हिसाब से आज भी अच्छी-खासी तय करनी थी। लेकिन आज की ट्रैकिंग की खासियत ये थी कि सिर्फ आधा किलोमीटर चढ़ाई और बाकी पूरी उतराई थी। चढ़ाई पर मुझे कोई ख़ास परेशानी नहीं होती। लेकिन उतराई में मेरी रफ़्तार बहुत कम हो जाती है। ढाबे से मैगी खाकर निकल पड़े। पञ्चगंगा समुद्र तल से ३६२० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ से हमको नौला पास (३७६० मीटर) तक चढ़कर मंडल (१५२० मीटर) उतरना था। दूरी लगभग सोलह किलोमीटर है।

Saturday 21 January 2017

कल्पेश्वर रुद्रनाथ यात्रा (चौथा दिन):- चलेंगे साथ-साथ, पहुंचेंगे रुद्रनाथ

पंचगंगा से रुद्रनाथ और वापसी पंचगंगा (चलेंगे साथ-साथ, पहुंचेंगे रुद्रनाथ)

बुग्यालों पर सूर्योदय जल्दी होने की वजह से सुबह भी जल्दी हो जाती है। दीवारों की छिद्रों से जब सूर्य की किरणें आँखों पर पड़ी तो समझ गया कि रात को हवा कहाँ से रही थी। सारा सामान बैग में ठूंस कर नीचे उतर गया, दुबारा रेंगकर यहाँ घुसने की हिम्मत नहीं थी। सभी ने ऐसा ही किया। मिश्रा जी का आधा किलो ग्लूकोज़ का डब्बा ऊपर ही छूट गया था, जिसका हमको तुरन्त मालूम भी पड़ गया था, लेकिन रेंगकर ऊपर घुसने के डर से किसी में हिम्मत नहीं हुई कि उसको ले आएं। 


Thursday 19 January 2017

कल्पेश्वर-रुद्रनाथ यात्रा (तीसरा दिन)- चल मेरे यार, चढ़ जा पनार

कल्पेश्वर-रुद्रनाथ यात्रा (तीसरा दिन)- दुमुक से पनार बुग्याल
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रात को थकान के कारण अच्छी नींद आयी। चढ़ाई के हिसाब से आज का दिन पूरे ट्रैक का कठिनतम दिन होने वाला था। करीब बारह किलोमीटर का ट्रैक है, जिसमें दस किलोमीटर चढ़ाई मिलने वाली है सुबह सभी जल्दी उठ कर तैयार हो गए। रात को ही नाश्ता और दिन के पैक्ड भोजन के लिए बात हो गयी थी। नाश्ता करके दुमुक गाँव के वजीर का मन्दिर देखने गए, छोठा सा मन्दि है, जिसका इस गाँव के सामजिक जीवन पर भरपूर असर है। 


Monday 16 January 2017

कल्पेश्वर-रुद्रनाथ यात्रा (दूसरा दिन) - ठुमुक-ठुमुक के चल दुमुक

हेलंग-कल्पेश्वर-दुमुक(ठुमुक-ठुमुक के चल दुमुक)

सुबह पांच बजे का अलार्म लगाकर सोये थे लेकिन उसकी जरुरत ही नहीं पड़ी, पहले ही नींद खुल गयी और साथ ही सभी को जगा दिया छह बजे तक सभी तैयार होकर जीप वाले की प्रतीक्षा करने लगे, जीप वाले की क्या गाय की प्रतीक्षा करने लगे। असल में गाय के मालिक ने ऊपर किसी गाँव से गाय को लेकर आना था और उसे देवग्राम तक छोड़ना था। काफी देर प्रतीक्षा करने के बाद भी जब गाय नहीं पहुंची तो जीप मालिक ने गाय मालिक को फोन लगाया, मालुम पड़ा गाय आज नहीं जायेगी। फिर से जीप मालिक को तैयार किया कि कोई बात नहीं एक जन्तु ही तो कम हुआ, पांच तो चल ही रहे हैं, इन पांच को तो छोड़ आओ। जीप मालिक ७००/= रुपये में चलने को तैयार हो गया। अमित भाई और डोभाल ने आगे ड्राईवर के साथ वाली सीट पर कब्ज़ा कर लिया। मैं, महेश जी और मिश्रा जी पीछे खुले वाले स्थान पर खड़े होकर यात्रा करेंगे। इस तरह खुले ट्रक में यात्रा करने का भी अलग ही आनंद है।

Friday 13 January 2017

कल्पेश्वर-रुद्रनाथ यात्रा (पहला दिन) - दिल्ली से हेलंग

आयोजन और दिल्ली से हेलंग

ऐसे तो उत्तराखण्ड  में ऐसी कई जगह हैं, जहाँ साल के बारहों महीने घुमक्कडी की जा सकती है। लेकिन चार-धाम यात्रा के समय घुमक्कडी का अलग ही महत्त्व है। यात्रा के साथ-साथ अगर किसी धाम के दर्शन भी करने को मिल जाएं तो सोने पर सुहागा वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है। इसी कड़ी में इस वर्ष चार-धाम यात्रा के समय पंच केदार के चतुर्थ केदार रुद्रनाथ की ट्रैकिंग करने का निश्चय कर लिया। पहले मई प्रथम सप्ताह में कल्पेश्वर से रुद्रनाथ की यात्रा करने का निश्चित किया था लेकिन जब इस कार्यक्रम की चर्चा जब घुमक्कड मित्रों से की तो उनकी इच्छा थी कि अगर कार्यक्रम को कुछ दिन पीछे कर लिया जाए तो रुद्रनाथ के कपाट भी खुल जाएंगे और साथ ही रुद्रनाथ के दर्शन भी हो जाएंगे।

Sunday 8 January 2017

उत्तराखण्ड यात्रा:- थलीसैण से श्रीनगर, टेहरी और दिल्ली वापसी

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थलीसैण से श्रीनगर, टेहरी और वापसी
थलीसैण से जब आगे बढे तो दिन के तीन बज चुके थे। गढ़वाली में इस क्षेत्र को "राठ" के नाम से जाना जाता है। और यहाँ के निवासियों को "राठी"। आजादी के बाद से यह क्षेत्र विकास की दृष्टि से सदैव उपेक्षित ही रहा था, स्कूल, कॉलेज, सड़क, अस्पताल कुछ वर्षों तक इस क्षेत्र में बामुश्किल ही थे। मुझे याद है कि जब मैं श्रीनगर (गढ़वाल) में छात्रावास में पढता था तो मेरा एक सहपाठी इस क्षेत्र से ही था। छुट्टियों में जब हम अपने-अपने घर जाते थे तो लगभग सभी दोस्त सुबह चलकर शाम तक अपने घर पहुँच जाते थे। जबकि इस मित्र को पहुँचने में दो दिन लगते थे। उसको अपने अन्तिम बाजार, जहाँ तक सड़क थी उसके बाद भी 24 किलोमीटर पैदल चलकर अपने गाँव पहुँचना होता था। खैर...ये तब की बात थी। अभी इस क्षेत्र में अच्छी-खासी सड़कें बन गई हैं। और जब सड़कें बन गई हैं तो विकास खुद ब खुद हो ही जाता है। घूमने के लिहाज़ से यह क्षेत्र अभी भी अछूता ही है। इसके लिए मुझे यहाँ दुबारा आना ही होगा।