सतोपन्थ, ये नाम प्रकृति प्रेमियों के साथ-साथ धार्मिक यात्रियों को बरबस अपनी ओर खींचता रहता है। समुद्र तल से ४३०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस पवित्र झील को देखने व् इसमें स्नान करने हेतु प्रति वर्ष कई ट्रैकर और श्रद्धालु यहाँ तक आ पहुँचते हैं। पुराणों के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात पाण्डव अपनी अन्तिम यात्रा पर इसी मार्ग से होकर गुजरे थे। एक-एक कर पाण्डव देह त्याग करते रहे। अन्त में धर्मराज युधिष्टिर ही स्वान के साथ पुष्पक विमान पर सवार होकर सशरीर स्वर्ग गए। इस ट्रैक पर आधारित T- Series की एक C.D. मार्किट में बहुत प्रचलित है।
सतोपन्थ के बारे में बचपन में कहीं पढ़ा था, तभी से सपना संजो लिया था कि इस ताल को देखने कभी न कभी अवश्य जाऊँगा। इसके पूरे रास्ते में पड़ने वाले पड़ाव और पाण्डवों से उनका सीधा संबन्ध होना ही मुझे सदैव इसकी ओर आकर्षित करता आया था। पिछले वर्ष ही तय कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो इस वर्ष रुद्रनाथ और सतोपंथ की यात्रा करनी है।
घुमक्कड मित्र भाई अमित तिवारी को जब इस बारे में बताया तो उन्होंने २० मई से २७ मई तक रुद्रनाथ का कार्यक्रम बना दिया, और सतोपन्थ जाना सितम्बर माह में तय कर लिया। लेकिन इसी बीच जब उर्गम घाटी के एक और ट्रैक मदमहेश्वर-नंदीकुंड-घिया विनायक के बारे में जानकारी ली तो इस ट्रैक पर जाने के लिए भी मन मचल गया। सतोपन्थ और नन्दीकुण्ड दोनों कठिन ट्रैक हैं, अतः एक ही माह में सम्पन्न करने थोड़े मुश्किल हो जाते। इसलिए तय किया कि जून माह में ही सतोपंथ ट्रैक कर लिया जाए। सितम्बर माह में नन्दीकुण्ड-घिया विनायक की ऊँचाई नापी जाएगी।
जून माह के अन्तिम सप्ताह से उत्तराखण्ड में बारिश शुरू हो जाएगी। इससे पहले सतोपन्थ हो आएं, इसलिए १० जून से १८ जून तक सतोपंथ जाने का तय कर लिया। अपने व्हाट्स एप्प ग्रुप - "मुसफिरनामा" में दोनों ट्रैक रूद्रनाथ और सतोपन्थ की सूचना दे दी गई। काफी मित्रों ने सतोपन्थ साथ चलने की इच्छा भी जाहिर कर दी। कुल मिलाकर ११ लोगों का अच्छा खासा ग्रुप बन गया।
रुद्रनाथ यात्रा से आने के १० दिन बाद ही सतोपन्थ के लिए निकलना था, जिससे पूर्ण आराम का समय नहीं मिल पाया। इधर मेरा बायां घुटना काफी समय से दर्द किये ही जा रहा था। एक बार तो मन में आया कि सतोपंथ जाना स्थगित कर देता हूँ। घुटने का उपचार करने के बाद ही जाऊँगा। लेकिन सतोपन्थ जाने के मोह के आगे दर्द को भूलना पड़ा और कार्यक्रम पर मुहर लगा दी। तैयारी मुझे कुछ ख़ास नहीं करनी थी, अभी रुद्रनाथ यात्रा से आया ही था, बैग खोलने की जरुरत भी नहीं पड़ी। बस कपड़ों को धुलवाकर वापिस बैग में रख दिए।
मैं जब भी किसी ट्रैक पर जाता हूँ, तो उसकी पूर्व सूचना फेसबुक पर जरूर दे देता हूँ। इस बार भी सूचना दी तो ग्वालियर के फेसबुक मित्र विकास नारायण श्रीवास्तव ने इस यात्रा पर साथ चलने की इच्छा जाहिर की। विकास को अपना पूरा कार्यक्रम बताकर, १० जून शाम छह बजे तक दिल्ली पहुँचने को कह दिया। कुल मिलाकर ११ लोग साथ चलेंगे, जिसमें सुशील भाई पटियाला से, रमेश शर्मा उधमपुर से, सुमित नौडियाल श्रीनगर (गढ़वाल) से, विकास ग्वालियर से और अमित तिवारी, जाट देवता, योगी सारस्वत, सचिन त्यागी, संजीव त्यागी, कमल कुमार सिंह और मैं दिल्ली से इस यात्रा पर निकलेंगे।
इस समय उत्तराखण्ड में चार धाम यात्रा चल रही है। २०१३ में आयी केदार आपदा के बाद ये पहली बार है कि यात्री इतनी संख्या में उत्तराखण्ड का रुख कर रहे हैं। रुद्रनाथ जाते समय हमको इस बात का अंदाजा हो गया था। हरिद्वार-ऋषिकेश से आगे जाने के लिए एक दिन पूर्व बस में बुकिंग करवाकर ही आगे बढ़ा जा सकता है। और यही एक समस्या नजर आ रही थी। सुशील भाई ने इस समस्या का समाधान यह कहकर कर दिया कि वो दो दिन पूर्व ही हरिद्वार पहुँच जाएंगे। उनको परमार्थ आश्रम की आरती में शामिल होने का मन है।
उधमपुर से हमारे वरिष्ठ घुमक्कड मित्र रमेश शर्मा जी पहले लद्दाख बाइक पर जाने वाले थे। अन्तिम समय में उन्होंने अपने कार्यक्रम में तब्दीली करके सभी के साथ सतोपंथ जाना तय कर लिया। वो भी एक दिन पूर्व हरिद्वार पहुँच जाएंगे। रमेश भाई जी के जज्बे से मैं बहुत प्रभावित् हूँ। बिना किसी आरक्षण के वो हरिद्वार तक पहुँचने को तैयार थे।
यात्रा की तैयारियों के तहत सभी मित्र आपस में चर्चा भी कर रहे थे कि कैसे दिल्ली से हरिद्वार तक सफ़र किया जाए। अमित तिवारी भाई ने दिल्ली से साथ जाने वाले सभी मित्रों का ट्रेन में आरक्षण करवा दिया, जो कि अभी वेटिंग में था। यह भी चर्चा हुयी कि अगर वेटिंग टिकिट आरक्षित नहीं हो पाये तो कैसे जाएंगे। इस पर सभी की सहमति बन गई कि दिल्ली से हरिद्वार बस से सफ़र करेंगे। उधर ग्वालियर से विकास फोन पर मुझसे यात्रा की तैयारियों से संभन्दित जानकारी लेता रहा। उसने दवाइयों की बाबत पूछा तो मैंने कुछ जरुरी दवाइयों की लिस्ट थमा दी। विकास ने मेरे मना करने के बावजूद भी प्रचुर मात्रा में दवाइयाँ खरीद ली, यह कहकर कि सभी के काम आएँगी। मुझे लगा खुले दिल का लड़का है, पहली बार हिमालय में किसी ट्रैक पर जा रहा है, अति उत्साह में ले रहा है, लेने दो।
आपसी चर्चाओं के तहत यात्रा से एक दिन पूर्व मालूम पड़ा कि जाट देवता ने अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया है। सुशील भाई ने हरिद्वार पहुँचकर जब फोन कर पूछा कि बद्रीनाथ तक के लिए कितनी सीट बुक करवानी है ? उनको कुछ देर प्रतीक्षा करने को कहकर, जाट देवता को फोन लगाया। जाट देवता के पाँव में छोठी सी चोट लगी थी। उनकी बात को अनसुना कर यह कह दिया कि मेरे घुटने में भी दर्द है, जहाँ तक होगा चलेंगे नहीं तो दोनों वापिस लौट आएंगे। आपकी टिकिट बुक करवा रहा हूँ, साथ चलो। जाट देवता भी राजी हो गए।
सुशील भाई को फोन से बता दिया कि कुल दस सीट बुक करवा दीजिये। सुमित नौडियाल श्रीनगर से अपनी बाइक से बद्रीनाथ पहुँच जाएगा। यात्रा वाले दिन तक भी ट्रेन की टिकट वेटिंग ही रही तो सभी ने निर्णय लिया कि शाम को सात बजे कश्मीरी गेट बस अड्डे पर मिलेंगे और हर हाल में आठ बजे तक हरिद्वार के लिए निकल पड़ेंगे। हरिद्वार से सुबह ४.१५ की पहली बस से बद्रीनाथ तक के लिए हमारी १० सीट रिजर्व थी।
घर से ४.४५ पर निकल पड़ा। कमल भाई भी नजदीक ही रहते हैं। उनको पाँच बजे द्वारका मोड़ मेट्रो स्टेशन पर मिलने को कह दिया था। तय समय पर कमल भाई मिले और हम दोनों द्वारका से कश्मीरी गेट के लिए मेट्रो से निकल पड़े। दिल्ली में रिमझिम बारिश ने हम सभी को विदा किया। कश्मीरी गेट में जाट देवता भी ठीक समय पर आ पहुँचे।
१२ नम्बर स्टेशन से हरिद्वार की गाडी मिलती है तो ठीक उसी के सामने डेरा डाल दिया गया। बारी-बारी से सभी लोग पहुँचते गए। संजीव त्यागी, अमित तिवारी और सचिन त्यागी भी पहुँच गए। विकास निज़ामुद्दीन पहुँच चूका था, उसको ऑटो लेकर सीधे कश्मीरी गेट आने को कह दिया। ठीक आठ बजे चलने वाली एक बस आयी तो उसमें सीट घेर ली गयी।
यहीं कश्मीरी गेट पर कमल भाई के दो मित्र भाई यशवंत और राहुल पाण्डेय जी भी आ पहुँचे। वो भी घूमने निकले हैं। अभी तो हरिद्वार तक जा रहे हैं। अगर मन किया तो आगे बद्रीनाथ भी साथ चल पड़ेंगे। कुछ देर बाद विकास भी पहुँच गया। ठीक आठ बजे सभी बारह घुमक्कड हरिद्वार के लिए निकल पड़े।
क्रमशः....
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बहुत बढ़िया आगाज बीनू भाई यात्रा का। अगले भाग का इंतज़ार रहेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद सुशील भाई।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद सोहन।
Deleteबढिया शुरूआत बीनू भाई। याद ताजा हो गई
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई।
Deleteसुन्दर शुरुआत ....जिज्ञासा बनी है ।
ReplyDeleteधन्यवाद मुकेश जी।
Deleteये शुरुआत ही इतनी बढ़िया है की मन मैं बेचैनी होने लगी है अगले एपिसोड की
ReplyDeleteबहुत खूब बीनू भाई जी आपसे कभी भविष्य मैं मिलने का इंतजार रहेगा
जरूर उमेश भाई। धन्यवाद।
Deleteबढ़िया बीनू भाई। अगले पार्ट का इंतजार रहेगा ।
ReplyDeleteधन्यवाद नरेश जी।
Deleteआगाज इतना सुंदर है तो अंजाम तो और भी बढ़िया रहेगा भतीजे ...सारे भतीजो को बुआ की तरफ से हैप्पी जर्नी ...
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ।
Deleteसबसे पहले पढाने के लिये धन्यवाद
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल भाई।
Deleteबीनू भाई बहुत शानदार शुरुवात ! अभी हरिद्वार पहुंचे हैं , अागे मजा अाने वाला है ! वैसे मैं गाजियाबाद से हूँ !
ReplyDeleteजी योगी भाई, पहले आप भी साथ में ट्रेन से ही जाने वाले थे।
Deleteबढ़िया,विस्तृत विवरण
ReplyDeleteधन्यवाद भाई जी।
Deleteआगाज एसा है तो अंजाम केसा होगा ...बहुत खूब !
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी।
Deleteबहुत बढिया, सब इकट्ठे हो लिए यही सफर की पहली सफलता है।
ReplyDeleteजी ललित सर, सत्य वचन।
Deleteअरे आपने तो बढ़िया ब्लाग बनाया है.. इस यात्रा को पूरा पढ़ कर कमैट दूंगा
ReplyDeleteधन्यवाद P.S Sir.
DeleteKaafi bada group ban gaya aap logon ka...Satopanth ke baare mein pehli baar FB pe hi padha tha. The Pandava connection is really interesting.
ReplyDeleteजी पाण्डवों की अन्तिम यात्रा इसी रास्ते से हुई थी। धन्यवाद रागिनी जी।
Deleteबहुत ही सुंदर यात्रा वीरतान्त
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