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डोडीताल और डोडीताल से दिल्ली वापसी
जैसे ही डोडीताल सामने दिखायी पड़ा बस अवाक् खड़ा ही रह गया।वाकई में कुदरत इतनी खूबसूरत जगह का भी निर्माण कर सकती है ये यकीन नहीं हो रहा था। लेकिन यथार्त तो आँखों के सामने था। एक घाटी में वृत्ताकार में फैला ताल और चारों और घना जंगल, रमणीक और शान्त, अप्रतिम सौंदर्यता अपने साथ समेटे हुए, बस एक अस्सी गंगा का ही शोर था जो सुनाई दे रहा था। सचिन भी पास आकर खड़ा हो गया, जिस डोडीताल के बारे में इतना पढ़ा और सुना था, आज आखिर वहीँ खड़ा अपनी आँखों से देख रहा था, पग पग पर इस जगह में प्रकृति ने सुन्दरता बिखेरी है। एक दुकान है जो बंद पड़ी थी,एक बर्फानी बाबा की कुटिया भी है वो भी बंद ही थी, वन विभाग के 2 लॉज बने हैं और गणेश जी का शानदार मंदिर।
डोडीताल को भगवान गणेश की जन्मस्थली के रूप में भी पूजा जाता है, पुराणों में इस सन्दर्भ में एक कहानी है, जिससे आप सभी विदित ही होंगे, माता पार्वती एक बार जब स्नान के लिए जा रही थी, तो उन्होंने बाल गणेश को पहरेदारी करने का आदेश दिया, साथ ही यह भी कह दिया कि किसी को अंदर ना आने दें। बाल गणेश जब पहरेदारी कर रहे थे तो भगवान शिव आ पहुंचे, और अंदर जाने लगे, बाल गणेश ने शिवजी को अंदर जाने से जब रोका तो भगवान शिव ने क्रोध में आकर बाल गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया, माता पार्वती ने जब यह देखा तो उन्होंने शिवजी को बताया कि ये तो आपका ही पुत्र है, और मेरी ही आज्ञा का पालन कर रहा था आप इसको वापिस जीवित कीजिये, फिर भगवान शिव ने हाथी के बच्चे का सर बाल गणेश के धड़ से जोड़ दिया, हिन्दू धर्म में गणेश जी को इसी रूप में पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार ये घटना डोडीताल में ही हुयी थी। गणेश जी का भव्य मंदिर यहाँ पर बना है, लेकिन अभी बंद था।
डोडीताल में प्रवेश करते ही एक छोटा सा गेट बना है, उस पर कुछ घंटिया लटक रही थी, घंटियों को बजाकर गणेश जी को आगाह कर दिया कि आपके दर पर आया हूँ, मंदिर बंद था तो बाहर से ही नमन किया और एकटक डोडीताल की खूबसूरती को ही देखता रहा। थकान तो हो रही थी, लेकिन एक नयी ऊर्जा का संचार भी हो गया था। रावत जी लोग पहले पहुँच चुके थे हमारे पहुँचते ही गर्मागर्म काली चाय पकड़ा दी, इतनी थकान के बाद गर्मागर्म चाय स्टील के गिलास में मिल जाए तो मजा आ जाता है। चाय पीकर गेस्ट हाउस में कुछ देर आराम करने चले गए, समय काफी था तो सोचा डोडीताल भ्रमण थोडा आराम करने के बाद ही करेंगे। गेस्ट हाउस में बैठे ही थे कि एक रूसी जोड़ा पहुँच गया, मैं बोल पड़ा ये कहाँ से आ टपके ? उनसे परिचय हुआ, फिर मालूम चला कि इनके पास ना तो रहने के लिए टेण्ट और ना खाने के लिए कुछ, और आ पहुंचे डोडीताल। जबकि डोडीताल में फारेस्ट गेस्ट हाउस के लिए पहले ही बुकिंग करनी होती है, जो इनके पास नहीं थी। रावत जी को कहकर इनको कमरा दिलवा दिया, इनके पास यहाँ पर पैसे भी पूरे नहीं थे, जो ये गेस्ट हाउस के किराये का भुगतान कर पाते, एक 500 रुपये का नोट और बाकी डॉलर थे, 200 रुपये कम पड रहे थे तो ये डॉलर देने लगे, रावत जी ने बोला इन डॉलर का मैं क्या करूँगा, फिर इनसे 2 डॉलर लेकर 200 रुपये मैंने रावत जी को भुगतान कर दिए, और कहा कि हमारे अतिथि हैं जो हमको खिलाओगे वही इनको भी खिला देना।
असल में ये जोड़ा हमसे 1 दिन पहले से ही अगोडा में आकर रुका था। चूँकि डोडीताल में उस दिन कोई नहीं था, तो ये भी नहीं आये। अगले दिन जब हम लोग अगोडा पहुंचे तो इनको मालूम पड़ गया, और आज ये जब सुनिश्चित हो गए कि हम डोडीताल पहुँच रहे हैं, तो ये भी हमारे पीछे पीछे आ पहुंचे, इनको मालूम था कि आज रहने खाने की व्यवस्था हो ही जायेगी, असल घुमक्कड़ ऐसे ही होते हैं। काफी देर तक इनसे बात हुयी, ये भारत के कोने कोने घूम आये थे और अभी उत्तराखण्ड की सैर पर थे। कुछ देर आराम करने के बाद अब बारी थी डोडीताल को देखने की, पूरे ताल का एक चक्कर काटा, हिमालयन ट्राउट मछलियों की भरमार है, घने देवदार के पेड़ों का प्रतिबिम्ब ताल में पड़ता देखना अच्छा लग रहा था। ताल का चक्कर काट कर आया तो किनारे पर एक पत्थर पर बैठकर मछलियों को देखने लगा। छोटे रावत जी आटे की कुछ गोलियां बनाकर मछलियों को खिला रहे थे, उनको खाने पर झपटते देखने में बड़ा मजा आ रहा था। यहीं ताल से ही अस्सी गंगा का उदगम होता है.
अभी तो छोटी सी है लेकिन नीचे संगमचट्टी तक जवान हो जाती है। इस नदी की चंचलता इसके उदगम से अंत तक एक जैसी ही है कहीं पर भी धीर गंभीर नजर नहीं आई। हरियाली डोडीताल में चारों और फैली पड़ी है, थोड़ी बहुत बर्फ भी थी इसके बावजूद ठण्ड बहुत ज्यादा थी। सूर्य देव छुप चुके थे तो ठण्ड भी काफी लगने लगी गेस्ट हाउस में जाकर रजाई ओढ़ के बैठ गए कुछ देर बाद रुसी जोड़ा भी हमारे ही कमरे में आकर बैठ गया, सचिन ने अपना सोमरस बाहर निकाल ही लिया था रुसी जोड़े को भी ऑफर किया तो उन्होंने भी हां बोल दी, फिर क्या था 2 घूँट अंदर जाने के बाद तो यारी पक्की होनी ही थी। करीब 1 घंटे बाद रावत जी ने खाने के लिए आवाज दी तो किचन में खाना खाने चले गए। सचिन ने ठण्ड की आक्रामकता को देखते हुए खाना खाने से ही मना कर दिया, किचन में रुसी जोड़े के साथ मिलकर खाना खाया, स्वादिष्ठ सोयाबीन की सब्जी, रोटी और चावल बने थे, सचिन के लिए खाना रावत जी को बोलकर कमरे में ही भिजवा दिया, रूसी कन्या को चावल के लिए चम्मच चाहिए थी जो थी नहीं, उसको हाथों से हम पहाड़ी कैसे भात खाते हैं वो सिखाना पड़ा, भोजन के बाद काफी देर तक उनसे बातें करके सोने चला गया। सचिन कब का सो चुका था।
सुबह रावत जी ने चाय के साथ जल्दी उठा दिया, ठण्ड इतनी ज्यादा हो तो रजाई से बाहर निकलने का किसका मन करेगा फिर भी उठना पड़ा, आज ही वापसी करनी थी अपने प्रोग्राम के अनुसार एक दिन लेट हो ही चुके थे, पिछले तीन दिनों से बाहरी दुनिया से कटे हुए थे, क्योंकि मोबाइल काम नहीं कर रहे थे, वैसे इतनी खूबसूरत जगह से किसका मन करेगा जाने को, लेकिन जाना तो था। सुबह बाल्टी और ब्रश लेकर अस्सी गंगा के उदगम पर चला गया कि आज ताजे बहते पानी से कार्यक्रम किया जाये, जोश जोश में हाथ सीधे बहती नदी में डाल दिया, जितनी तेजी से हाथ पानी के अंदर डाला उससे दोगुनी रफ़्तार से बाहर निकाला, लगा अभी हाथ झड़ के गिर जाएगा, सब कुछ छोड़ छाड़कर सीधे किचन की तरफ भागा और सीधे चूल्हे के अंदर हाथ कर दिया, थोड़ी तपन मिली तो अंगुलियां भी हिलने लगी, यकीन हो गया कि हाथ सलामत है।
कुछ ही देर बाद रूसी जोड़ा भी बाहर आया, रूसी भाई ताल में डुबकी मारने के पूरे इरादे के साथ आया था, उसको अपनी भुक्तभोगी कथा सुना डाली तो हंसने लगा, बोल पड़ा कि मेरा जन्म वहां हुआ है जहाँ तापमान हमेशा माइनस में होता है, बहरहाल उसने फिर डुबकी नहीं मारी। नाश्ता किया और वापिस चलने की तैयारी शुरू कर दी। आज हमको 25 कि.मी. नीचे संगमचट्टी तक उतरकर हर हाल में उत्तरकाशी तो पहुंचना ही था। बड़े रावत जी अब डोडीताल ही रुकेंगे, छोटे रावत जी हमारे साथ वापिस चलेंगे, सचिन को छोटे रावत जी के साथ आने को कहकर मैं आगे निकल पड़ा क्योंकि सचिन की स्पीड कम है और मुझे नीचे उतरते हुए फ़ोटो भी खींचनी थी, रूसी जोड़ा भी मेरे ही साथ हो लिया.
डोडीताल को विदा बोला ये कहकर कि दुबारा अवश्य आऊंगा चाहे अगली बार बर्फ के समय आऊं। तेजी से उतरते हुए कचेरु पहुंचा, रूसी भाई यहाँ पर स्नान करने के मूड में आ गया, मेरे को भी बोलने लगा कि तुम भी नहा लो, मैंने हाथ जोड़े कि भाई इस ठण्ड में इतनी भी आफत नहीं आयी है जो ग्लेशियर के पानी से नहाऊंगा। उनको वहीँ छोड़कर मैं आगे बढ़ चला, एक TTH का ग्रुप मिला सभी उम्रदराज लोग ही थे, उनसे बातचीत हुयी तो रास्तों की जानकारी दे दी, छतरी तक पहुँचते पहुँचते पांव के तलुवों में दर्द शुरू हो गया तो आराम करने लगा, एक दूसरा पूना के स्कूली बच्चों का ग्रुप मिला जो रात को बेब्रा में रुके थे, इनके गाइड से भी बातचीत हुयी, इनका सामान लेकर घोड़े जा रहे थे तो गाइड को बता दिया कि मांझी से आगे अभी घोड़े नहीं जा पाएंगे, बेहतर होगा कि आज मांझी रुक जाओ कल तक आगे का रास्ता बनवाओ, फिर आगे बढना, रास्ता बनवाना क्या था जो पेड़ जगह जगह गिरे पड़े थे उनको कटवाना था, उनको जानकारी देकर बेब्रा पहुँच गया, अब तो थकान के मारे बुरा हाल था, सोचा था बेब्रा में चाय मिल जायेगी लेकिन वो भी नहीं मिली, दुकान के बेंच पर जूते उतारकर धूप में लेट गया, थोड़ी देर में रूसी भी पहुँच गए वो भी लेट गए, सचिन दूर दूर तक दिख नहीं रहा था। सुबह से करीब 14 कि. मी. नीचे उतर चुका था, चढ़ाई में चढ़ते हुए तो चढ़ ही जाता हूँ, उतरते हुए ज्यादा परेशानी होती है, पूरा जोर घुटनों पर पड़ता है तो घुटने भी दर्द करते हैं।
करीब एक घंटे बाद सचिन और रावत जी भी पहुँच गये, रावत जी ये कहकर सीधे आगे निकल गये कि जल्दी पहुंचकर कुछ भोजन की ब्यवस्था करता हूँ, थोड़ी और देर आराम करने के बाद हम भी आगे बढे और ठीक 2 बजे अगोडा पहुँच गये। अगोडा पहुंचकर भोजन किया, रावत जी ने जल्दी जल्दी खिचड़ी बना ली थी, अपना सामान समेट रहे थे तो मालूम हुआ कि संगमचट्टी से 4 बजे बाद उत्तरकाशी के लिये जीप नहीं मिलेगी, या तो आज यहीं रुक जाओ या 4 बजे तक संगमचट्टी पहुँचो। अभी 2 बज रहे थे, हमारे पास 2 घण्टे थे तो संगमचट्टी की तरफ दौड़ लगा दी, सचिन मेरे को धीरे चलने को कहता तो मैं उसे 4 बजे का डर दिखा देता, पांवों का दर्द के मारे बुरा हाल हो रहा था, लेकिन सिवाय चलते रहने के कोई दूसरा विकल्प नहीं था, आखिरी का एक कि.मी. तो घिसट घिसट के ही चले और ठीक 4 बजे संगमचट्टी पहुँच गये।
आखिरी जीप उत्तरकाशी के लिए तैयार खड़ी थी, संगमचट्टी से थोडा आगे आये ही थे कि मोबाइल में जान आ गयी, लगातार मेसेज पर मेसेज आने शुरू हो गए, तुरंत सचिन के फोन पर मेरे घर से फ़ोन आ गया कि कहाँ हो ?.... अरे बता के तो गया था कि कहाँ जा रहा हूँ ? कि नहीं तुम लोग ठीक तो हो ना ?....हाँ हम ठीक हैं, बस अभी नेटवर्क में पहुंचे हैं, ये तो बताओ कि बात क्या हुयी ? कि नेपाल में बहुत बड़ा भूकंप आया है, और तुम लोगों का फ़ोन नहीं मिल रहा था। ओह्ह अब समझ आया। घर पर अपनी सकुशलता की सुचना दे दी, और बता दिया कि अभी बुरा हाल है रात को तसल्ली से फ़ोन करूँगा।
मेरे फ़ोन पर मेसेज उत्तरकाशी तक आते ही रहे। उत्तरकाशी में जीप से उतरकर वन विभाग के दफ्तर से अपनी कार लेनी थी, जो कि सड़क से कुछ ऊपर है, पाँव दर्द के मारे अकड़ गए थे, अब ऊपर कैसे जाया जाए ? तभी एक बाइक सवार बंधु ऊपर को जाता दिखा उसको हाथ देकर रोका और अपनी व्यथा सुना डाली वो हमारी हालात देखकर हंस पड़ा, सचिन को पीछे बिठाकर वो अपने साथ ले गया, अभी करीब शाम के 5 बज रहे थे तो सोचा कि बजाय उत्तरकाशी रुकने के अँधेरा होने तक जितना आगे निकल जाएँ निकल लेते हैं, कल दिल्ली पहुँचने में उतनी ही आसानी होगी। बिना रुके उत्तरकाशी पार कर लिया, धरासू बैंड तक सड़क का बुरा हाल था वो भी पार किया तो अँधेरा छाने लगा, चिन्यालीसौड़ तक काफी अँधेरा हो गया तो यहीं रुकने का फैसला कर दिया, एक होटल में गये उससे विनती की कि अगर कोई कमरा ग्राउंड फ्लोर पर है तो दे दो, वो हँसते हुए बोला कि दूसरी मंजिल पर है पहले देख लो, हमने भी हाथ जोड़े कि भाई देखना नहीं है, इतनी हिम्मत नहीं बची बस किराया बता, 400 रुपये, तुरन्त हाँ बोलकर कमरे में पहुँच गए। सबसे पहले तो स्नान किया, फिर लगा कि हाँ हम भी इसी दुनिया के इंसान हैं, खाना खाने बाहर जाना पड़ा, सुबह उसी होटल में जल्दी नाश्ता के लिए परांठों की बात करके आराम करने कमरे में वापिस आ गये।
अगले दिन सुबह जल्दी उठकर 7 बजे दिल्ली के लिए निकल पड़े, नया रास्ता अभी कुछ खस्ताहाल सा लगा तो चम्बा- नरेन्द्रनगर-ऋषिकेश वाला मार्ग पकड़ लिया, बिना रुके हरिद्वार पहुंचे, भूख लगने लगी तो पतंजलि योगपीठ में भोजन करने गाडी रोक दी, शुद्ध शाकाहारी भोजन किया, राजमा चावल और छांछ, बाद में जलेबी भी खायी। तृप्ति हो गयी तो दिल्ली के लिए निकल पड़े, शाम को 6 बजे दिल्ली पहुँच भी गए।
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डोडीताल |
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डोडीताल प्रवेश |
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अस्सी गंगा निकलती हुयी |
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फारेस्ट गेस्ट हाउस |
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फारेस्ट गेस्ट हाउस |
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सचिन के साथ |
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ट्राउट बाहुल्य ताल |
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देवदार के पेड़ों का प्रतिबिम्ब ताल में |
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अस्सी गंगा उदगम स्थल |
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गणेश मंदिर |
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गणेश मंदिर |
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गणेश मंदिर |
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दिल्ली वापसी |
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नरेंद्र नगर के पास |
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पहाड़ का बसंत |
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पतंजलि योगपीठ में |
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पतंजलि योगपीठ में लंच |
इस यात्रा के सभी वृतान्तो के लिंक इस प्रकार हैं:-
डोडीताल की यात्रा में प्रकृति की सुरम्य वादियों के बीच विचरण किये गए सम्पूर्ण सुखद, यादगार पलों को काफी सुन्दर तरीके से यात्रा वृत्तांत के रूप में पिरोया है..... चित्रों का चुनाव काफी अच्छा है। लिखते रहिये ..... !!! लेख बहुत अच्छे एवं उत्कृष्ट है.....!!!
ReplyDeleteधन्यवाद शैलेन्द्र भाई जी... आपका प्रोत्साहन बस इसी तरह मिलता रहे।
Deleteवाह बीनू उस्ताद
ReplyDeleteआपका कॉमेंट हमेशा ही नयी ऊर्जा भर देता है कोठारी सर। धन्यवाद।
Deleteशब्दों की धार चमकने लगी है। सुन्दर वर्णन । आगामी यात्रा की शुभकामनाएं । रुसी जोङे की फोटो की कमी लगी शेष वैरी गुड है :-)
ReplyDeleteजी कुलवन्त भाई, संकोची स्वाभाव का होने के कारण व्यक्तिगत फ़ोटो खींचना मेरे को थोडा अजीब सा लगता है, ना ही उन्होंने मेरी कोई फ़ोटो खींची ना मैंने।
Deleteवाह वाह, वाह वाह। अति सुन्दर।
ReplyDeleteअब भाई के कॉमेंट पर क्या बोलूं ? आह आह आह. :)
Deleteबढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद मनु भाई।
Deleteबहुत ही मनोरम वृत्तांत । पहली चित्र जो ताल किनारे मकान दिख रहे है वो क्या है ? कोई गाव अथवा कुछ और ।
ReplyDeleteकपिल जी यहाँ 25 कि.मी. आगे पीछे कोई गाँव नहीं है। ये जो दिख रहा है वो मंदिर क्षेत्र है और वन विभाग का किचन।
DeleteNice post Beenu bhai. Pls increase the size of pictures. They are very small.
ReplyDeleteX-large पे किया है नरेश जी। धन्यवाद
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ! फोटुओं ने तो जान डाल दी है !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई।
Deleteडोडीताल भगवान गणेश की जन्मस्थली के रूप में भी पूजा जाता है यह पहली बार पढ़ने को मिला ..
ReplyDeleteआखिर रुसी जोड़े को दाल भात सपोडना सिखा ही दिया आप लोगों ने ....
डोडीताल, अस्सी गंगा निकलती हुयी, देवदार के पेड़ों का प्रतिबिम्ब ताल में , अस्सी गंगा उदगम स्थल, गणेश मंदिर के साथ अपने "पहाड़ का बसंत" फोटो देख मन पहाड़ों की वादियों की सैर करने को मचला उठा है ...
बिल्कुल कविता जी 2 दिन हमारे साथ और रुकते तो झुंगरु, बाड़ी और फाणु के साथ साथ पल्यो सपोड़ना भी सिखा के भेजते। :)
Deleteदमदार यात्रा ,दमदार फोटो |
ReplyDeleteधन्यवाद रूपेश जी।
Deleteबहुत अच्छा यात्रा वृतांत पढने को मिला ।रमता जोगी जी ,,,,धन्यवाद
ReplyDeleteआपका भी धन्यवाद।
Deleteभाई यात्रा में बहुत ही मज़ा आया।बहुत ही अच्छा लिखा है ।क्या बात क्या बात क्या बात।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई।
DeleteDudital series ka aanth is umeed ke sath ki jaldi aap hame kahin or le chalenge apni agali post ke dawara ...
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी।
Deleteबहुत सुन्दर यात्रा विवरण । बहुत मनोरम स्थल है ।
ReplyDeleteजी, मेरी पसंदीदा जगहों में से एक।
Deleteबहुत अच्छा विजय ।बहुत रोचक विवरण।
ReplyDeleteधन्यवाद दोस्त।
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