चौखम्भा पर्वत बेदिनी बुग्याल से |
"AMS" Acute Mountain Sickness
अक्सर मैंने ट्रैक पर देखा है कि काफी लोग दूर दूर से पहाड़ों पर घूमने आते हैं, लेकिन कुछ एक छोटी छोटी तैयारी नहीं करते, जिस वजह से या तो बीमार पड़ जाते हैं और बिना अपनी यात्रा पूरी किये ही उनको वापिस लौट जाना पड़ता है। इसमें एक मुख्य कारण है "उच्च पर्वतीय बीमारी" जिसे अमूमन AMS (Acute Mountain Sickness) कहते हैं। उत्तराखण्ड में ऐसे भी स्थान हैं जो पूज्यनीय हैं, लेकिन उनकी ऊँचाई समुद्र तल से काफी अधिक है, जैसे केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मदमहेश्वर, हेमकुंण्ड साहिब आदि। "AMS" क्या है ? थोडा इसकी जानकारी दें दूं..
हिंदी में इसे उच्च पर्वतीय बीमारी कह लेते हैं, अमूमन हम ज्यादातर लोग जब भी ट्रेक करने जाते हैं तो कोई दिल्ली, महाराष्ट्र, कोलकाता या लगभग ऐसी जगहों से जाते हैं, जिनकी समुद्र तल से ऊंचाई बहुत कम है, जैसे दिल्ली लगभग तीन सौ मीटर, मुम्बई पांच से पचास मीटर, कोलकाता दस मीटर, की ऊंचाई पर स्तिथ हैं, और अधिकतर समय हम इन्ही जगहों पर रहते हैं, तो हमारा शरीर इसके अनुकूल अपने आप को ढाल लेता है।
समस्या तब आती है, जब इस सौ मीटर पर रहने के आदी शरीर को हम एक झटके में 3500 या 4500 मीटर ऊंची जगह पर ले जाते हैं। ऑक्सीज़न जैसे ही शरीर को कम मिलती है, दिक्कतें आनी शुरू हो जाती हैं। हल्का सा सर दर्द, जी मिचलाना आदि इसके प्राथमिक लक्षण हैं, और अगर इसने कुछ ज्यादा ही भयंकर रूप धारण कर लिया, तो इसके गंभीर परिणाम भी सम्भावित हैं।
इस बीमारी से निपटने के कई आसान तरीके हैं, अगर उन सब बातों को ध्यान में रखा जाए तो इससे आसानी से पार पाया जा सकता है। वैसे मैं कोई डॉक्टर या इसका स्पेशलिस्ट नहीं हूँ, हर एक शरीर की अपनी अपनी सीमितताएं हैं, लेकिन कुछ एक छोटे छोटे तरीके जो मैं स्वयं अपनाता हूँ वो आप सबके साथ शेयर कर देता हूँ।
1- अगर आप 4500 मीटर ऊंचाई वाला ट्रैक कर रहे हैं तो इसको तीन या चार हिस्सों में ऊँचाई के हिसाब से बाँट दें। पहली रात इस ट्रैक के बेस कैंप में अवश्य काटें, जिसकी ऊंचाई लगभग 2200 मीटर के आस पास हो, अगला दिन लगभग 3200 से 3500 मीटर, और अंत में 4500 मीटर, इससे शरीर को अनुकूलन के लिए समय मिल जाएगा, अगर आप पहले ही दिन 3500 मीटर चढ़ गए तो इससे शरीर अनुकूलित नहीं हो पायेगा और AMS की चपेट में आने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।
2 - एक दिन में 1000 मीटर तक की ऊंचाई ही चढ़नी है, इस बात को ध्यान में रख कर अपने रात्रि विश्राम की जगहों का चयन करें।
3 - पहाड़ों पर चढ़ते हुए पसीना काफी आता है जिससे शरीर में पानी की मात्रा कम हो जाती है, पानी जितना अधिक पियें उतना अच्छा।
4- भोजन एक महत्वपूर्ण चीज है जिस पर भी ध्यान देना आवश्यक है। तरल पदार्थ जितना अधिक लेंगे शरीर में पानी की मात्रा उतनी ही अधिक बनी रहेगी, पानी के साथ साथ सूप और अधिक से अधिक दाल भोजन में जरूर लें।
5- सोमरस का अधिक सेवन तो बिल्कुल भी ना करें, पहले ना ही करें तो बेहतर इससे शरीर में पानी की अत्यधिक कमी होती है, हम हिमालय में नशा करने नहीं गए हैं, 80% लोग इसी अज्ञानता की वजह से चपेटे में आते हैं। वैसे ठण्ड से बचने के लिए दवाई के तौर पर लेना मैं बुरा नहीं मानता, लेकिन इसकी भरपाई के लिए ज्यादा से ज्यादा पानी के साथ इसको लें तो अच्छा रहेगा। और अगले दिन अधिक से अधिक पानी जरूर पियें।
6 - अत्यधिक ऊंची जगहों पर ऐसा नहीं है कि हवा ही नहीं होती, हवा निश्चित रूप से होती है, लेकिन हवा में ऑक्सीज़न की मात्रा कम होती है, जिससे फेफड़ों को पर्याप्त ऑक्सीज़न नहीं मिल पाती, अमूमन हम निचली जगहों पर आराम से सांस लेते हैं, वही हम ऊंचाई वाली जगहों पर भी करते हैं, इसलिए समय समय पर नाक और मुहँ से जोर जोर से सांस अंदर बाहर करने से फेफड़ों तक पर्याप्त ऑक्सीज़न को पहुँचाया जा सकता है।
7 - भूखे शरीर के साथ ट्रैक नहीं करना चाहिए, कई बार कुछ भी खाने का मन नहीं करेगा, उल्टी करने जैसा मन होगा फिर भी जबरदस्ती खाओ चाहे उल्टी ही करने का मन कर रहा हो, चलते चलते बिस्कुट, नमकीन, चॉकलेट, टाफी कुछ ना कुछ समय समय पर खाते रहना चाहिए।
8- सुरक्षा के लिए एक छोटा ऑक्सीज़न सिलिंडर साथ रख लेना चाहिए, आजकल केमिस्ट के पास आसानी से मिल जाता है, कीमत 350 रुपये के आस पास, और वजन भी 250 ग्राम तक ही होता है।
9- अगर आपको लगातार सर में दर्द हो रहा हो, जी मिचला रहा हो या ब्यवहार में चिड़चिड़ापन हो रहा हो तो ये AMS के प्राथमिक लक्षण हैं, तुरंत उस ऊंचाई से अधिक ना बढ़ें, पहले शरीर को अनुकूलित होने दें. और आखिरी मुख्य बात अगर हालात काबू से बाहर लगने लगें तो बिना देरी किये नीचे की ओर प्रस्थान कर लेने में ही भलाई है, जीवन रहेगा तो हिमालय कहीं भाग कर नहीं जा रहा, फिर कभी देख सकते हैं, पहाड़ों से टक्कर लेने की कतई चेष्ठा ना करें, हिमालय के सामने हम एक तिनके के समान हैं इस बात को हमेशा याद रखें।
उम्मीद है ये पोस्ट आपके काम आएगी, मैं एक बार फिर दोहरा देता हूँ कि, ना तो मैं कोई इसका विशेषज्ञ हूँ ना ही कोई डॉक्टर, बस ये नुस्खे पहाड़ में बिताये पलों और मेरे अनुभव पर आधारित हैं। आप सभी के सुझाव और प्रश्नों का स्वागत है।
"खूब घुमक्कडी हो लेकिन सुरक्षित घुमक्कडी हो"
very informative post !
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी।
Deleteवैसे भी उत्तरांचल और हिमाचल को देव भूमि माना जाता है तो वहां सोमरस का पान धार्मिक दृष्टि से भी नहीं ही करना चाहिए
ReplyDeleteधार्मिक यात्रा के सन्दर्भ में तो बिलकुल सही लेकिन ट्रैक पर कभी कभी तरीके से लिया जाए तो कोई बुराई नहीं समझता।
Deleteभाई बीनू कईयों की आशाओं पे पानी फेर दिए ये कह के की "सोमरस का अधिक सेवन तो बिल्कुल भी ना करें, पहले ना ही करें तो बेहतर इससे शरीर में पानी की अत्यधिक कमी होती है, हम हिमालय में नशा करने नहीं गए हैं," ;)
ReplyDeleteबाकि सारी जानकारी सचमुच लाभदायक हैं....
धन्यवाद संजय भाई।
Deleteबहुत अच्छी जानकारी बीनू भाई....ख़ासकर वो बॉडी को ऊँचाई के हिसाब से अनुकूल करने वाली बात....
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप भाई।
Deleteट्रैकिंग करने वालों के लिए शानदार जानकारी बीनू भाई। लेकिन इस तरह की समस्या प्रचलित हिल स्टेशनों जैसे की शिमला या दार्जिलिंग जैसे जगहों पर हो सकती है क्या? उस स्तिथि में क्या करना चाहिए?
ReplyDeleteये सब हिल स्टेशन इतनी ऊंचाई पर वैसे तो हैं नहीं, जो AMS की दिक्कत आये, फिर भी आये तो इन सब जगहों पर चिकित्सा आसानी से मिल सकती है।
Deleteबहुत बढ़िया जानकारी दी आपने .. बहुत लोग है ज्वाइन छोटी छोटी बातों पर ध्यान दे अपना ट्रेक सुखद बना सकते हैं
ReplyDeleteधन्यवाद पंकज भाई।
Delete"खूब घुमक्कडी हो लेकिन सुरक्षित घुमक्कडी हो" एकदम सार्थक और उपयोगी पोस्ट लिखी है बीनू भाई आपने ! अमूल्य जानकारी
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई।
Deleteधन्यवाद रोमेश जी।
ReplyDeleteविशेषज्ञ की बात नहीं है ,आदमी अनुभव से ही सीखता है |इतनी ज्ञानवर्धक जानकारी को हमें अमल में लाना चाहिए |बहुत बढ़िया बीनू भाई |
ReplyDeleteधन्यवाद रूपेश भाई।
DeleteThank you sir
ReplyDeleteधन्यवाद भाई।
Deleteबहुत सही जानकारी पहले से तैयार हो कर जाने में ही भलाई है।
ReplyDeleteजी बिल्कुल
Deleteमहत्वपूर्ण बातें
ReplyDeleteधन्यवाद भाई।
Deleteबहुत अच्छी जानकारी
ReplyDeleteधन्यवाद भाई।
Deleteभाई उम्दा जानकारी
ReplyDeleteधन्यवाद भाई।
Deleteआज मेरे पूर्व प्रश्न का जबाब मिल गया ।धन्यवाद
ReplyDeleteनीरज भाई आपको तभी बोल दिया था कि इस पोस्ट को पढ़ लीजिये, जबाब मिल जाएगा।
Deleteबहुत सही पोस्ट है बीनू , नए ट्रेकिंग करने वालो के लिए । लेकिन मैँ जब हेमकुंड साहेब गई थी तो हम एक दिन श्रीनगर रुके थे फिर दूसरे दिन गोविन्द धाम फिर तीसरे दिन गोविन्द घाट रात गुजारी फिर चोथे दिन मैँ हेमकुंड चढ़ी थी ।घोड़े पर ही थी भूखी भी थी और 11 बजे हलवा खाते ही जो प्राब्लम शुरू हुई तो निचे आकर ही ख़त्म हुई , मुझे साँस में तकलीफ थी , क्या ये AMS था ? और तीन दिन हम रुकते हुए चढ़े फिर मुझे क्यों परेशानी हुई ।
ReplyDeleteश्रीनगर की ऊंचाई 650 मीटर, गोविंदघाट 1700-1800 मीटर, हेमकुंड साहिब सीधे 4000 मीटर से ज्यादा। 1800 से 4000 मीटर...2000 मीटर एक झटके में गए आप इसलिए दिक्कत हुई। बीच में एक या दो दिन 3000 मीटर के आस-पास रुकना था। बिल्कुल ये AMS ही था बुआ। अगर वापिस नीचे नहीं आते तो जान भी जा सकती थी।
Deleteबहुत बढ़िया बीनू भाई जी 👏👏
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल भाई।
Deleteवैसे ठंड में अत्यधिक दारू सेवन हानिकारक है, एकाध पैग लिया जा सकता है। :)
ReplyDeleteसटीक जानकारी वाह ऐसी ही महत्व पूर्ण जानकारी देते रहो
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