चौथा दिन (बेदिनी से भगुवासा)
सुबह करीब 6 बजे हट से बाहर निकलने की हिम्मत हुयी, रात को तापमान शून्य से नीचे ही था, स्लीपिंग बैग के अंदर मुझे कभी भी अच्छी नींद नहीं आती। नीचे मैट्रेस भी बिछा रखी थी, और पूरे गर्म कपडे पहन के सोया था, फिर भी रात बस जैसे-तैसे ही कटी। मैं अकेला ही नहीं था, सभी की हालत एक जैसी ही थी, सूर्योदय होने में अभी समय था, ठण्ड से डुगड़ुगी सभी की बज रही थी। पूरे बेदिनी बुग्याल में रात की गिरी ओस के कारण बर्फ की हल्की सी चादर बिछी पड़ी थी, सुमित ने जैसे तैसे करके बाहर में एक छोटा सा चूल्हा बनाकर आग जला ली, थोडा सा मिट्टी का तेल साथ लेकर आये थे तो आग जल भी गयी, नहीं तो लकड़ियों पर भी बर्फ सी जमी हुयी थी, एक छोटा सा भगोना रख के पानी गर्म किया, ठन्डे पानी से मुहँ धुलना तो सोच भी नहीं सकते थे।
कुछ देर बाद सामने चौखम्बा पर्वत पर सूरज की पहली किरणे पड़ती देखना अदभुत अनुभव था, पहले हल्का सा लाल रंग कुछ देर बाद पीला, ऐसे लग रहा था चौखम्भा पल पल अपना रंग बदल रहा हो, हिमालय की ऊंची चोटियों पर सूर्योदय का नजारा अदभुत ही होता है। आठ बजे तक सभी तैयार होकर नाश्ता करने लगे, नाश्ता करते हुए यशवंत ने कहा, उसे उल्टी करने को मन कर रहा है इसलिए नाश्ता नहीं करूँगा, मैंने उससे कहा कि ये AMS (Altitude Mountain Sickness) के लक्षण हैं, मेरा भी हल्का सा लगातार सर में दर्द है, इसलिए खाना और पानी पीना बहुत जरूरी है। AMS के सन्दर्भ में विस्तार से मैं पिछली पोस्ट में लिख चुका हूँ।
आज हमारा अगला पड़ाव भगुवासा था, बेदिनी से भगुवासा की दूरी करीब पंद्रह किलोमीटर है, इस ट्रैक का ये सबसे चुनोतिपूर्ण दिन होता है, जहाँ बेदिनी 3500 मीटर की ऊंचाई पर है, भगुवासा की ऊंचाई लगभग 4800 मीटर है, और बीच में कालू विनायक पार करना होता है जो 4850 मीटर की ऊंचाई पर है। इस ट्रैक पर ये प्रसिद्द कहावत है कि जो कालू विनायक पार कर गया, वो रूपकुण्ड चढ़ गया, तो असली इम्तहान आज ही है।
बेदिनी से नाश्ता करके निकल पड़े, पहला पड़ाव था घोरा लौटाणी, हल्की सी चढ़ाई के साथ रास्ता शुरू होता है, थोडा ऊपर बढे ही थे कि बर्फीली हवा आँखों को चुभने लगी, धूप के चश्मे पहनने पड़ गए, डोभाल ने अपना बैग जैसे ही चेक किया तो उसके चश्मे के दो टुकड़े हाथ में आ गए, सीधा मेरे को बोल पड़ा कि तूने मेरा चश्मा तोड़ दिया, रात को मेरे बैग का तकिया बनाकर तू ही सोया था, मैं अनजान बन गया और साफ़ मुकर गया। बेदिनी से तीन किलोमीटर हल्की चढाई के बाद घोरा लौटाणी आता है, ठीक पहाड़ी की धार पर है, बस सिर्फ जगह का नाम है, यहाँ पर कुछ भी नहीं है, ना कोई ढाबा ना पानी, लेकिन यहाँ से नंदा घूंटी और त्रिशूल पर्वत शानदार दिखते हैं, मजा आ जाता है। सभी ने यहाँ पर काफी देर तक फ़ोटो सेशन किया, कुछ ड्राई फ्रूट्, बिस्कुट खाकर घास पर लेट गए।
काफी देर तक धूप में लेटे रहने के बाद आगे बढ़ चले, रास्ता आसान ही है, सीधा रास्ता पहाड़ी की धार के साथ साथ पातर नाचणी तक जाता है, बेदिनी से पातर नाचणी तक पूरा बुग्याल क्षेत्र है, काफी नीचे इंडिया हाइक के टेण्ट नजर आ रहे थे, करीब आधे किलोमीटर पहले से पातर नाचणी दिखने लगता है, आगे बढ़ने पर फारेस्ट फाइबर हट रास्ते के साथ में ही हैं, टेण्ट लगाने के लिए कैंपिंग ग्राउंड भी है, बेदिनी के बाद पानी की भी उपलब्धता यहीं पर है, एक दो मोबाइल नेटवर्क का फ़ोन सिग्नल भी कभी कभी मिल जाता है, शायद BSNL, वोडाफ़ोन और आईडिया का।
स्थानीय निवासियों ने सीजन के लिए ढाबा भी खोला हुआ था, भूख भी लगने लगी थी तो चाय पी और ब्रेड ऑमलेट खाकर आगे चलने की तैयारी शूरू कर दी। ढाबे वाले से पूछा आगे किधर जाना है, तो उसने ऊँगली सीधे ऊपर को उठा दी, सर उठा कर देखा तो ठीक तीन चार किलोमीटर ऊपर एक चोटी नजर आई, बोल पड़ा वहां चढ़ जाओ, और चढ़ गए तो इस बात की गारंटी मैं देता हूँ कि रूपकुंड तक आराम से चढ़ जाओगे। ये चोटी कालू विनायक की थी, सभी एक दूसरे का मुहँ ताकने लगे, यकीन के साथ कह सकता हूँ कि एक दो ने मेरे को मन ही मन कोसा भी होगा, कि ये कहाँ ले आया। पातर नाचणी जहाँ 3700 मीटर की ऊंचाई पर है कालू विनायक 4850 मीटर।
तीन किलोमीटर में सीधे 1000-1200 मीटर ऊपर चढ़ने को भयंकर वाली चढ़ाई का दर्ज़ा दे सकते हैं। पातर नाचणी से मस्ती में निकले ही थे कि ऊपर से स्ट्रेचर पर एक ट्रेकर को नीचे लाते लोग मिलने लगे। मूर्छितावस्था में था, छोटा सा ऑक्सीज़न सिलेण्डर लगा हुआ था, फिर थोडा और ऊपर चढ़े तो देखा एक और, फिर एक और कुल चार लोगों को भगुवासा से नीचे लाया गया, AMS यानि उच्च पर्वतीय बीमारी के कारण। अब हम सबकी भी डर से हालात ख़राब होनी जायज थी। खैर ये डर दस मिनट से ज्यादा नहीं रहा।
सबको तो वो कालू विनायक की चोटी ही नजर आ रही थी। हम आठ में धनेश पालीवाल भाई सबसे सीनियर थे, लेकिन पूरे ट्रैक में सबसे फिट भी वही थे, कभी भी उनके चेहरे पर थकावट नहीं दिखी। सुमित और पंकज भी जबरदस्त ट्रेकर हैं. जैसे तैसे कालू विनायक चढ़ ही गए, सोचा था तसल्ली से आराम करूँगा, बर्फीली हवा इतनी तेज चल रही थी कि भागना पड़ा, इससे पहले पहाड़ की ओट में होने के कारण हवा इतनी महसूस नहीं हो रही थी, लेकिन कालू विनायक पर बर्फीली हवाओं ने जबरदस्त तरीके से स्वागत किया, कालू विनायक को कलुवा विनायक भी कहते हैं, गणेश जी की काली मूर्ती है, छोटा सा मंदिर बना है, खूब सारी घण्टियाँ टंगी हुयी हैं।
यहाँ पर तक थकान और ऑक्सीज़न की कमी के कारण हालत ख़राब हो गयी थी, कालू विनायक के बाद दो किलोमीटर तक हल्की सी उतराई है, बुग्याल समाप्त हो जाते हैं और पठारी क्षेत्र शुरू हो जाता है, ब्रह्मकमल मिलने शुरू हो जाते हैं, ऐसा लग रहा था जैसे ब्रह्मकमल की खेती की गयी हो, आराम से चलते गए और भगुवासा पहुँच गए, यही हमारा आज का पड़ाव था। रूपकुंड ट्रैक की आज की रात हमको सबसे कम तापमान वाली जगह पर बितानी थी, ऑक्सीज़न लेवल तो कम था ही ठण्ड भी अपने चरम पर थी। तीन चार बजे दिन में तापमान शून्य के आस पास ही था।
कालू विनायक के बाद बुग्याल कम हो जाते हैं पवित्र ब्रह्मकमल दिखने शुरू हो जाते हैं, ऐसा लग रहा था की ब्रह्मकमल की प्राकृतिक खेती हो रखी हो. भगुवासा में भी वन विभाग की फाइबर हट हैं। हम लोग अपने अपने स्लीपिंग बैग बाहर निकाल ही रहे थे कि मेरे दिमाग में एक आईडिया आया, क्यों ना हट के अन्दर पहले टेण्ट लगाये जाएँ और टेण्ट के अन्दर सोया जाए, हवा को और ठण्ड को दो-दो अवरोध मिलेंगे तो कुछ तो ठण्ड कम लगेगी। और सुबह जब सब उठे तो किसी ने ठण्ड की शिकायत भी नहीं की। भगुवासा में पानी की बड़ी किल्लत है। करीब डेढ़ किलोमीटर दूर से ढाबे वाले पानी लाते हैं। इस ऊंचाई पर जहाँ चार पांच कदम चलने में सांस फूलती है तो डेढ़ किलोमीटर बहुत मायने रखता है। ऐसे में शाम को जब सबको फ्रेश होने जाना था तो क्या किया जाए बिना पानी के ?
मेरे को इसका अंदाज़ा पहले से था तो में अपने साथ टॉयलेट पेपर का रोल लेकर गया था, थोडा थोडा सबको पकड़ा दिया इससे काम चलाओ जब तक पानी वाले क्षेत्र में नहीं पहुँचते। मैं ट्रैक पर शुद्ध अशुद्ध कुछ नहीं मानता, समय और मौसम के हिसाब से शरीर को ढाल लेना चाहिए। रात को ठण्ड इतनी भयंकर थी कि ढाबे तक खाना खाने जाने की हिम्मत भी नहीं हुयी। धनेश भाई ने वहीँ कुछ भिजवा दिया था तो टेण्ट में ही खा लिया नहीं तो इस ठन्ड में बाहर कौन निकले।
क्रमशः.....
इस यात्रा वृतान्त के अगले भाग को पढने के लिए यहाँ क्लिक करें.
|
बेदिनी से बुग्याल के बीच रास्ता |
|
बुग्याल का साम्राज्य |
|
बेदिनी से निकलते हुए |
|
फुरसत के पल |
|
रास्ता अच्छा बना है |
|
पहाड़ी की धार के साथ रास्ता |
|
घोरा लौटाणी |
|
फारेस्ट फाइबर हट |
|
पातर नाचणी |
|
पातर नाचणी में इंडिया हाइक के टेण्ट |
|
चार अदभुत ट्रैकर |
|
पातर नाचणी से कालू विनायक
|
|
कालू विनायक |
|
कालू विनायक |
|
ब्रह्मकमल |
|
ब्रह्मकमल |
इस यात्रा के सभी वृतान्तो के लिंक निम्न हैं:-
बहुत सुन्दर !गजब ! इतनी परेशानी भोगकर रूपकुंड जाना अपने आप में लाजवाब है ।
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ।
Deleteबादलो के देश में...अद्भुत...अकल्पनीय...
ReplyDeleteजी... धन्यवाद।
Deleteअति सुंदर बीनू भाई साहब ,कमाल की सुन्दरता ऐसा लग रहा है की हम भी साथ हैं आपके |इतने लोग साथ है तो मस्ती भी हुई होगी मन भी लगा होगा |ये सब सोचकर ही रोमांच हो रहा है |
ReplyDeleteजी रूपेश भाई, मस्ती करते करते चढ़ाई का पता नहीं चलता, कि कब चढ़ गए।
Deleteरोमांच आ गया इस लेख को पढ़कर ...और फोटो देखकर
ReplyDeleteबड़े अजीब नाम सुनने को मिले ....बेदिनी बुग्याल, कालू विनायक....
अच्छे फोटो
धन्यवाद रितेश भाई।
Deleteबीनू जी ट्रैकिंग यात्रा हमेशा अच्छी लगती है मुझे, बहुत कुछ सिखने को मिलता है, नई नई जगह देखने को मिलती है,
ReplyDeleteशानदार पोस्ट के लिए बधाई।
धन्यवाद सचिन भाई।
Deleteबीनू भाई सच में पढ कर मजा आ गया ।आपकी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी ।चित्र भी बहुत अच्छे आये हैं ।
ReplyDeleteधन्यवाद नरेश जी।
Deleteबीनू भाई आपके ट्रैकिंग के किस्से सच में मजेदार और बहुत रोमांचक होते हैं ! शानदार वृतांत
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई।
Deleteखूबसूरत...परंतु बहुत मजबूत ईच्छा शक्ति चाहिए जआने के लिए
ReplyDeleteजी डॉ साहब प्रकृति की यही खूबसूरती मेरी इच्छाशक्ति बन जाती है। धन्यवाद।
Deleteलाजवाब
ReplyDelete