सतोपन्थ और वहां बिताए पल
जैसे ही कोई भी मित्र झंडी के पास धार पर पहुँचता, ख़ुशी से चिल्लाने लगता। मुझे लगा कि कोई शानदार नजारा सामने दिख रहा होगा। मैंने भी एक जोर लगाया और ऊपर जा पहुंचा। जब इस धार पर पहुँचा तो सतोपन्थ ताल ठीक नजरों के सामने था। गहरे हरे रंग के पानी से बना त्रिकोण के आकार का ताल बेहद खूबसूरत लग रहा था।
बचपन से तमन्ना थी कि इस ताल को अपनी आँखों से कभी न कभी अवश्य देखूँगा। कुछ देर यहीं खड़े होकर एकटक इस ताल और इसकी खूबसूरती को निहारता रहा। धीरे-धीरे बाकी साथी भी पहुँचने लगे। ताल के किनारे आज काफी चहल-पहल थी। कुल मिलाकर लगभग पचास लोग आज यहाँ रुकने वाले थे। काफी टेण्ट लगे थे और कुछ लगाए जा रहे थे। नीचे उतरकर जहाँ गज्जू भाई ने टेण्ट बिछाये थे वहीँ अपना बैग रख दिया और धूप में बैठकर ताल की खूबसूरती का आनन्द लेने लगा।
समुद्र तल से ४३५० मीटर की ऊंचाई पर स्थित सतोपन्थ ताल का विशेष महत्व है। सतोपन्थ चोटी के ठीक नीचे गहरे हरे रंग के पानी का यह ताल त्रिभुज आकार में बेहद आकर्षक लगता है। हिन्दू धर्म में इस ताल की बहुत मान्यता है। कहते हैं एकादशी के दिन स्वयं त्रिदेव इस ताल में स्नान हेतु उतरते हैं। गंगा की प्रमुख सहायक नदी अलकनन्दा का उदगम् स्रोत भी इसी ताल को माना जाता है। अक्सर गहरे तालों में नीले रंग का पानी दिखाई प्रतीत होता है। लेकिन इस ताल का पानी गहरे हरे रंग का दिखाई देता है।
हिन्दू धर्म में मान्यता है कि इस पवित्र ताल के किनारे पूजा-पाठ और तर्पण देने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। हर वर्ष कई श्रद्धालु इस कठिन यात्रा को कर यहाँ पहुँचते हैं। हालांकि मेरा उद्देश्य सिर्फ हिमालय की खूबसूरती और वहां की पौराणिक मान्यताओं को देखना और जानना ही रहता है।
कुछ देर आराम करने के पश्चात अपने टेण्ट लगा लिए। सामान टेण्ट में रखकर वापिस धूप का आनन्द लेने लगे। हमारे पोर्टरों ने ताल के किनारे ही बने एक कमरे में किचन बना लिया था। पिछले तीन दिन से गुफा में ही हमारा किचन चल रहा था। कुछ देर पश्चात दिन के भोजन के लिए मैगी तैयार हो गई। गर्मागर्म मैगी का आनन्द लेकर, फिर से धूप में पसर गए।
हम सभी मित्र बातों में मशगूल थे तभी सुमित ने मेरे पास आकर कहा कि आपके कोई मित्र आपको बुला रहे हैं, वो भी अभी सतोपन्थ पहुँचे हैं। उसने उनकी ओर इशारा किया तो मैं भी पहचान नहीं पाया। उनके पास गया तो वो मेरा नाम लेकर हालचाल पूछने लगे। तब उन्होंने खुद ही बताया कि वो रविन्द्र भट्ट हैं। नाम सुनते ही बड़ी गर्मजोशी से भट्ट साहब से गले मिला। उनसे यहाँ ऐसे अचानक सतोपन्थ में मिलना भी बेहद खुशनुमा एहसास था। भट्ट साहब आभासी दुनिया के मित्र हैं, और "देवभूमि वांडरेर" के नाम से काफी मित्र उनको जानते भी होंगे। भट्ट साहब हमारे व्हाट्स एप्प ग्रुप "मुसफिरनामा" के सदस्य भी हैं। लेकिन उनसे मिलने का सौभाग्य आज पहली बार मिला। सभी मित्रों से भट्ट साहब को मिलवाया, और फिर से गप्पों का दौर शुरू हो गया।
कुछ देर आराम करने के बाद अब सोचा क्या किया जाए क्योंकि धूप अभी भी अच्छी-खासी थी और अभी दिन के दो भी नहीं बजे थे। सोचा ताल की परिक्रमा ही कर लेते हैं। नीचे उतरकर ताल के किनारे कुछ आगे तक गए ही थे कि यहीं किनारे पर बैठने का मन कर गया। पानी मुझे सदैव आकर्षित करता आया है। श्रीनगर में जब पढाई करता था तो अक्सर अलकनन्दा के किनारे पानी में पाँव डालकर घण्टो ऐसे ही बैठा रहा करता था। अभी भी जब भी समय मिलता है या ट्रैक पर कोई भी नदी मिल जाती है तो उसके पानी में अठखेलियां करने का मौका नहीं छोड़ता।
सुमित भी एक पत्थर पर साथ में ही लेट गया। कुछ देर पश्चात बाकी मित्र भी एक-एक कर परिक्रमा करने के लिए आ पहुँचे। जाट देवता, कैलाशी भाई और योगी भाई भी साथ हो लिए। ताल के एक कोने पर पानी की एक धारा ऊपर सतोपन्थ चोटी से आकर ताल में मिलती है। यहीं एक पत्थर पर बैठकर खूब फ़ोटो सेशन किया गया। कुछ देर पश्चात ताल का चक्कर ही लगा रहे थे कि अचानक से मौसम ने करवट ली और बारिश शुरू हो गई। पहले तो एक पत्थर की ओट में बारिश से बचने के लिए शरण ली, लेकिन जब यहाँ बचाव होता नहीं दिखा तो कुछ ऊपर एक गुफा पर नजर पड़ी। जाट देवता ने जाकर गुफा का जायजा लिया और बताया कि आसानी से हम सभी इसमें घुस कर बैठ सकते थे।
इस गुफा का मुहँ बड़ा ही संकरा था, सिर्फ लेटकर ही अन्दर घुसा जा सकता था। एक-एक कर सभी गुफा में घुस गए। गुफा किसी बाबा की लग रही थी क्योंकि इसके अन्दर किसी इंसान के लम्बे समय तक निवास करने के निशान साफ़-साफ़ देखे जा सकते थे। लगभग एक घण्टे तक गुफा में बैठे रहने के बाद बाहर बारिश कुछ कम हुई तो एक-एक कर वापिस बाहर निकल आए। हालाँकि हल्की रिमझिम फुहारें अभी भी बाहर पड़ रही थी।
इस बारिश ने सतोपन्थ का नजारा ही बदल दिया। बाहर बादलों ने तैरते हुए हमारे साथ पूरे ताल को अपने आगोश में भर लिया था। इस गुफा से कुछ दूरी पर एक और बाबा की गुफा है। जम्मू-कश्मीर के रहने वाले अमन बाबा इसमें रहते हैं। उनके लिए एक सन्देश मेरे पास आया था इसलिए उनसे मिलना भी जरुरी था। असल में हमारे पास अमन बाबा के लिए दो संदेशे आए थे। हमारे पोर्टर गज्जू भाई के पास उनके लिए चिट्ठी थी। दूसरा सन्देश उनके कोई जानकार मुझे तीन दिन पहले वसुधारा में मिले थे तो उन्होंने भिजवाया था।
आराम से ऊपर चढ़ते हुए अमन बाबा की गुफा के पास पहुँचे तो एक बीस-इक्कीस साल के नौजवान बाहर में बर्तन धुलते दिखे। उनसे पूछा कि अमन बाबा से मिलना है। उन्होंने बड़े प्यार से कहा कि वो ही अमन हैं। उनको संदेशा देकर कुछ देर बातचीत की। अमन बाबा छह महीने सतोपन्थ में और छह महीने नर्मदा के तट पर ध्यान लगाते हैं। आध्यत्म की बातें मेरे पल्ले पड़ती नहीं, क्योंकि मेरा मानना है कि ध्यान आदि मेरे मानसिक स्तर से कहीं अधिक बड़ी बातें हैं। इसलिए अमन बाबा से विदा लेकर वापिस अपने टेण्ट की ओर चल दिया।
बारिश वापिस शुरू हो चुकी थी और मुझे भीगने से सख्त नफरत है। क्योंकि भीगते ही मुझे तुरन्त बुखार चढ़ जाता है। लेकिन जब तक टेण्ट में घुसता थोडा बहुत भीग भी चुका था। जल्दी-जल्दी कपडे बदलकर स्लीपिंग बैग में घुस गया। लेकिन जिसका डर था वही हुआ और बुखार चढ़ गया। बाहर लगातार बारिश हो रही थी, मैंने एक बुखार की गोली ली और आराम करने स्लीपिंग बैग में घुसा रहा। रात को भोजन के लिए पुछा तो मेरा बिल्कुल भी मन नहीं किया। पोर्टर को बोल दिया कि अगर चाय बना सकते हो तो एक कप चाय और बिस्कुट खा लूँगा। बुखार भी उतर नहीं रहा था। चाय पीकर फिर से एक गोली ली और सोने की चेष्ठा करने लगा। अब जो होगा सुबह देखा जाएगा।
स्वर्गारोहिणी |
स्वर्गारोहिणी |
फुर्सत के पल |
मैगी का आनंद |
गुफा में शरण |
पल पल बदलता मौसम |
देवतासन |
इस यात्रा के सभी वृतान्तो के लिंक इस प्रकार
हैं :-
जब जब सतो पंथ की पोस्ट पढ़ता हूँ , तुम्हारे साथ न जा पाने का दुःख होता है . दोबारा कोई साथी मिले न मिले .... अमरनाथ के रस्ते में पड़ने वाली शेषनाग झील का रंग भी बिलकुल ऐसा ही है ..हाँ और आज भी कुछ फोटो धुंधली आई है , कैमरे की दिक्कत या कैमरे वाले की .. कुल मिलकर अच्छी पोस्ट . साँझा करने के लिए धन्यवाद .
ReplyDeleteमैं खुद दुबारा भी अवश्य जाऊंगा नरेश जी फिर साथ चल पड़ेंगे।
Deleteहरे रंग का तालाब ,शायद ग्रीनरी की वजय से हो । क्योकि नीला पानी भी आकाश के कारण नीला दीखता है वरना पानी तो रंग वहिन है।
ReplyDeleteशानदार यात्रा तुम्हारे साथ हमने भो कर ली ।वैसे बीनू तुमने एकादशी का दिन क्यों नहीं चुना , लगे हाथो त्रिदेव के भी दर्शन हो जाते ...:)
बुआ अगली बार एकादशी को ही जाऊंगा।
Deleteआध्यत्म का अर्थ है खुद को जानना। घुमक्कड़ी भी आध्यत्म है पर इसमें व्यक्ति खुद के साथ दुनिया को भी जानने का प्रयास करता है। फिर तुम तो स्वयं भू परमहंस हो, फिर क्या जरुरत बाबाओं से जानने की। जय जय।
ReplyDeleteअहम ब्रह्मास्मि अनुभव हो गया लगता है।
Deleteधन्यवाद ललित सर।
Deleteबढ़िया लिखी गई पोस्ट परन्तु कुछ छोटी अवश्य है। यात्रा रोमाँचक है और लेखन भी मंझा हुआ।
ReplyDeleteफोटोज की क्वालिटी के लिए नरेश जी से सहमत... ऐसा लगा कि resize करके इन्हें बहुत छोटा कर दिया गया है, जिससे क्वालिटी पर फर्क पड़ा है।
All in all, a good post and waiting for the next 💐
फ़ोटो अपलोडिंग हमेशा झंझट वाला काम लगता है मुझे पा जी। जी हाँ रीसाइज की हैं। समय मिलते ही ओरिजिनल साइज की डाल दूंगा। धन्यवाद।
Deleteफोटू ओरिजनल लगाने से कई बार खुलते नहीं है इसलिए मैं भी रीसाइज़ कर देती हूँ ।
Deleteअम्न बाबा की फोटो नही लगाई
ReplyDeleteउनकी फ़ोटो ली भी नहीं। वो दीन दुनिया से दूर वहां ध्यान मग्न हैं। ऐसे में मुझे सही नहीं लगा।
Deleteसंतोपंन्थ यात्रा करने से पहले आपने त्रिदेव के साथ साथ अप्सराओ की भी बात की थी, सारा यात्रा वृतांत (बदरीनाथ से संतोपंन्थ ) पढ पढ कर लगभग याद सा हो गया है परन्तु अप्सराओ से आपके मिलने की उतकन्ठा और उसका सचित्र वर्णन की आस मे आपके पोस्ट की बेसब्री से इन्तजार रहता है,शायद घर वाली अप्सरा लिखने का वक्त नहीं दे पा रही हो, फोटो वास्तव में लेखन के हिसाब से मेल नहीं खाती,लेखन तो बचपन मे हमने सुधरवा लिया था पर फोटो के लिए कुछ कहा नहीं जा सकता
ReplyDeleteजरूर सर जी। भविष्य में ध्यान रखूँगा।
Deleteबहुत खूब... हमने भी आपके साथ सतोपंथ की यात्रा कर ली।
ReplyDeleteधन्यवाद कोठारी सर।
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteधन्यवाद जावेद भाई।
Deleteइस ताल की जितनी प्रशंसा करो कम है, मुझे तो इस ताल का एक कोना भारत के नक्शे का निचला भाग सा प्रतित होता है।
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट व फोटो तो श्रेष्ठ है ही।
धन्यवाद सचिन भाई।
Deleteशानदार पोस्ट,ज़बरदस्त फ़ोटो,घुमक्कड़ी ज़िंदाबाद।
ReplyDeleteधन्यवाद नरेश भाई।
Deleteबहुत खूब।ये भीगने का क्या मामला है
ReplyDeleteमुझे बचपन से निमोनिया की शिकायत है भाई। थोडा सा भी भीगता हूँ तो बुखार आ जाता है। इसलिए ट्रैक पर भीगने से बचता हूँ।
Deleteबीनू भाई फिर से वो यादें ताज़ा हो गयीं ! गुफा में कैसे कैसे घुस पाये थे ये बड़ा मुश्किल था ! बढ़िया वृतांत !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई। जाट देवता की स्टाइल से घुसना पड़ा था।
Deleteशानदार बीनू भाई....अंततः दर्शन हो ही गये सतोपंथ झील के आपके माध्यम से.....रोचक वर्णन ...
ReplyDeleteधन्यवाद डॉ साहब।
Deleteअमन बाबा की एक फोटो तो होनी थी भाई
ReplyDeleteमोह माया से दूर हैं भाई वो। ना ही मैंने कोशिश की उनकी फ़ोटो लेने की।
Deletewaah waah waah ,superb pics,thanks
ReplyDeleteधन्यवाद सर।
DeleteWow! Would love to do this trek someday, God willing. Filhaal to virtual trekking ho gayi aapke posts ke through. Thanks for the detailed travelogue.
ReplyDeleteधन्यवाद रागिनी जी.
Deleteअविस्मरणीय यात्रा वृतांत बीनू भाई
ReplyDeleteसादर वन्दन इस साहस को..."जय बद्री विशाल"
धन्यवाद पालीवाल जी।
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