Monday, 22 August 2016

सतोपन्थ ट्रैक (भाग ९)- सतोपन्थ से बद्रीनाथ वापसी

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सतोपन्थ से बद्रीनाथ वापसी
बुखार की वजह से पूरी रात अच्छे से सो नहीं पाया। कभी आँख लगती भी तो जोर से ग्लेशियरों के टूटने की आवाज आती। कभी ऊपर पहाड़ों से बर्फ के टूटकर गिरने की आवाज आती तो आँख खुल जाती। डर भी लग रहा था कि कहीं ये गिरकर हमारे ही ऊपर ना आ जाएँ। सुबह उजाला होते ही टेण्ट छोड़ दिया। मौसम अब भी साफ़ नहीं था। लग रहा था कभी भी बारिश हो सकती है।

सतोपन्थ से वापसी

आज का हमारा कार्यक्रम था कि सतोपन्थ से आगे जो भी जहाँ तक जाना चाहे हो आए, उसके बाद वापसी में आज लक्ष्मीवन रुकेंगे। कल भीगने से आए बुखार और आज सुबह फिर से मौसम ख़राब देखकर मन नहीं किया कि आगे सूर्यकुण्ड तक जाऊँ। नाश्ता तैयार था, मीठी दलिया बनी थी। कुछ साथी नाश्ता करके आगे बढ़ने लगे। एक दो साथी और सतोपन्थ में ही रुक गए कि आराम करेंगे। 

मुझे दो विकल्प सूझ रहे थे। पहला विकल्प था कि सतोपन्थ से कुछ आगे सूर्यकुण्ड देख आऊं, लेकिन मौसम ख़राब बना हुआ था बारिश कभी भी हो सकती थी। ऐसे में भीगना निश्चित था। हालाँकि रेन कोट था, लेकिन कल के बुखार के बाद थोड़े से भीगने पर ही हालत ख़राब होनी तय थी। दूसरा विकल्प था कि आज ही सीधे तीस किलोमीटर नीचे बद्रीनाथ उतर जाऊं। इससे रात को तसल्ली से बिस्तरों पर सोने को मिलेगा, और भरपूर आराम भी। 

मैंने कुछ साथियों से बात की लेकिन एक ही दिन में तीस किलोमीटर नीचे उतरने का हौसला कोई नहीं जुटा पाया। आखिर में सुमित ने मुझे पुछा कि क्या करना है ? मैंने सीधे कहा कि नीचे उतरते हैं। बिस्कुट हैं मेरे पास, दिन में भूख लगेगी तो इनको खा लेंगे। सुमित वापिस नीचे उतरने के लिए तैयार हो गया। अब जब मन बना ही लिया तो फिर सोचना क्या। जल्दी से अपना सामान पैक किया, और वापसी की तैयारी शुरू कर दी। 

बाकी साथी आज बीच में कहीं रुकेंगे, इसलिए उनसे विदा ले ली। अब या तो श्रीनगर में या फिर कभी किसी दूसरी यात्रा में ही मुलाकात होगी। कमल भाई सिर्फ मेरे कहने पर सतोपन्थ तक आ पहुँचे थे। मेरी वापसी से वो उदास से हो रहे थे। उनको समझाया कि आप पूरे ग्रुप के साथ वापिस आओ, मुझे अभी श्रीनगर में कुछ काम है, मैं वहां रुकूंगा, फिर साथ हो लेंगे। 

लगभग आठ बजे सुमित और मैंने सतोपन्थ को यह कहकर अलविदा कह दिया कि दुबारा अवश्य आऊंगा। क्योंकि इस ट्रैक से मेरा एक बार में मन भरने वाला नहीं है। मौसम ख़राब बना ही हुआ था, इसलिए पहला लक्ष्य रखा कि जल्दी से जल्दी चक्रतीर्थ पहुँचते हैं। अगर बारिश भी हुई तो उससे आगे सर छिपाने के लिए गुफा मिल ही जाती हैं।

कुछ आगे पहुँचकर पलट कर देखा तो स्वर्ग की सीढ़ियों पर से बादल हट चुके थे और सीढियां साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी। जल्दी से कुछ फ़ोटो खींचकर आगे बढ़ चले। चक्रतीर्थ धार तक पहुँचने में डेढ़ घण्टा लग गया। बादलों ने पूरी घाटी को अपने आगोश में लिया हुआ था। हालाँकि बारिश नहीं हो रही थी इसलिए बिना रुके आगे बढ़ चले।

सहस्रधारा तक आराम से उतरते रहे। दो दिन पहले साफ़ मौसम की वजह से सहस्रधारा शानदार दिख रहा था, जबकि आज पूरी तरह से बादलों ने इसकी खूबसूरती को ढक दिया।
सहस्रधारा पहुँचकर भूख लगने लगी तो एक पैकेट बिस्कुट का खा लिया। आज सहस्रधारा और ऊपर नीलकंठ चोटी पर भी बादलों का साम्राज्य फैला हुआ था। कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। 

यहाँ तक कि दस मीटर की दूरी पर भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। बिना रुके नीचे उतरते रहे। चलने के मामले में खुद की टक्कर का साथी हो तो ट्रैकिंग का मजा दो गुना हो जाता है। सुमित भी आला दर्जे का ट्रैकर है। अभी तक हम बारह किलोमीटर चल चुके थे और सिर्फ दो मिनट के लिए सहस्रधारा पर बिस्कुट निकालने के लिए रुके। बिस्कुट भी चलते-चलते ही खा लिए।

सहस्रधारा से लक्ष्मीवन तक लगातार उतराई है। आराम से उतरते हुए आ पहुँचे। लक्ष्मीवन से कुछ पहले से जब वसुधारा दिखना शुरू हो जाता है तो लगता है बद्रीनाथ पहुँच ही गए, लेकिन ये सिर्फ भ्रम ही रहता है। वसुधारा लगभग आठ किलोमीटर तक लगातार बायीं ओर दिखता रहता है। 

लक्ष्मीवन में जिस गुफा में हमने दो दिन पहले किचन बनाया था आज से उस गुफा में एक बाबा ने कब्ज़ा कर लिया। हल्की बूंदा बाँदी शुरू हो चुकी थी और बाबा फावड़े से गुफा की मिट्टी निकालकर वाटर प्रूफिंग कर रहे थे। बाबा ने हमको आवाज देकर अपने पास बुलाया और मिटटी निकालने में मदद करने के लिए कहा, लेकिन हमको अँधेरा होने से पहले बद्रीनाथ पहुँचना था इसलिए बाबा से माफ़ी मांगकर आगे बढ़ चले। चमतोली बुग्याल पहुँचे तो दो विदेशी ट्रैकर सतोपन्थ जाते हुए मिले। उन्होंने मौसम इत्यादि की जानकारी ली, उनको जानकारी देकर बद्रीनाथ की ओर कूच जारी रखा। 

चमतोली बुग्याल से आधा किलोमीटर आगे पहुँचे ही थे कि बारिश थोड़ी तेज हो गयी। रेन कोट डाल लिया और बारिश में ही चलना जारी रखा। भूख और थकान भी लगने लगी थी। सुबह से एक बिस्कुट का पैकेट खाकर बीस किलोमीटर चल चुके थे। अब कोई दुकान भी सीधे बद्रीनाथ पहुँचकर ही मिलेगी, चाय तक भी वहीँ नसीब होगी। संभलकर धानु ग्लेशियर क्षेत्र को पार करके आनंद वन की चढ़ाई चढ़ने लगे। एक बार इस चढ़ाई को चढ़ लें तो आबादी वाले क्षेत्र में प्रवेश कर जाएंगे। 

बारिश भी बन्द हो चुकी थी, समय देखा तो अभी दिन के साढ़े तीन ही बजे थे। अब तो आराम से दिन के उजाले में बद्रीनाथ पहुँच ही जाएंगे। मस्ती में चलने लगे। दूसरी ओर माना गाँव में कुछ मेले जैसा कार्यक्रम चल रहा था। कोई बड़ा गढ़वाली सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा था। लाउडस्पीकर की आवाज इधर भी सुनाई पड़ रही थी। माता मंदिर पर पहुँचकर विश्राम करने लगे साथ ही माणा में चल रहे गानों का आनन्द भी लेने लगे। कुछ देर विश्राम के बाद मस्ती में आगे बढ़ने लगे, फोन की घण्टी भी बज पड़ी, पूरे चार दिन बाद। कमल भाई ने अपनी माताजी का नंबर दिया था कि उनको कुशलता की सूचना दे देना। 

माताजी को कमल भाई की कुशल क्षेम चलते-चलते ही बता दी। बद्रीनाथ मन्दिर परिसर में सायंकालीन आरती के लिए भीड़ जुटनी शुरू हो चुकी थी। बिना रुके पुल पार कर अलकनन्दा के इस ओर आ गए। सीधे उसी बरेली वालों की धर्मशाला में पहुँच गए जहाँ चार दिन पहले रुके हुए थे। 

व्यवस्थापक जी ने तुरन्त वही कमरा खुलवा दिया जिसमे पहले रुके हुए थे। कुछ तीर्थयात्री उनके कक्ष में बैठे हुए थे। उनको उन्होंने बड़े गर्व से बताया कि ये लड़के सतोपन्थ से आ रहे हैं। सभी लोग बड़े श्रद्धा भाव् से हमारी ओर देखने लगे। मुझे अजीब सा लगा तो तुरन्त अपने कमरे की ओर चल दिया।

कमरे में पहुँचकर बैग को एक कोने में पटककर बिस्तर पर फ़ैल गया। सुमित को आज फिर तप्त कुण्ड में स्नान करने का भूत सवार हो गया था। उसको कह दिया कि तुझे नहाना है नहा मैं एक बार नहा चुका नहीं तो ट्रैक पर मैं दिल्ली से दिल्ली वाला फार्मूला अपनाता हूँ। हाँ उसको थोडा प्रसाद खरीदकर लाने को कह दिया, अन्यथा घर पहुँचकर मैडम को क्या जबाब देता कि बद्रीनाथ गया था और प्रसाद तक नहीं लाया। रात को धर्मशाला में भोजन भी अपने ही कमरे में मँगवा लिया भोजनोपरांत कब नींद आ गयी मालूम ही नहीं पड़ा।

बद्रीनाथ के बाद श्रीनगर, अष्ठावक्र महादेव, स्व. श्री हेमवती नंदन बहुगुणा का पैत्रिक निवास- बुघाणी, गढ़वाल के बावन गढों में से एक गढ़- देवलगढ़, खिर्सू, जामनाखाल और कलढुंग की यात्रा भी की थी। लेकिन वो बचपन के मित्र सूर्य प्रकाश डोभाल के साथ बाइक यात्रा थी। ट्रैकिंग के सिवाय कोई यात्रा लेख लिखने का मन नहीं करता, मन करेगा तो लिख डालूँगा अन्यथा सतोपन्थ यात्रा का यह अन्तिम भाग है। 


सतोपन्थ ताल
































21 comments:

  1. शानदार यात्रा की शानदार वापसी ....

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  2. यादगार यात्रा फोटो भी सुंदर हैं।
    जिस तेजी से नीचे उतरे उसी स्पीड से पोस्ट कर दिया।��

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  3. 30 kms ek din mei ..... salute to u

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    1. आसान है, आप भी कर सकते हैं।

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  4. हमें आपकी कमी महसूस हो रही थी जब हम लोग वापस आ रहे थे , हालाँकि जाट देवता ने पूरा साथ दिया ! एक दिन में 30 किलोमीटर आप और सुमित के बस की बात थी , अपनी तो नही ! एक शानदार यात्रा का समापन बेहतरीन तरीके से हुआ ! आशा है भगवान ने चाहा तो फिर से ऐसी ही कोई यात्रा साथ में हो ! शुभकामनाएं बीनू भाई

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    1. बात 30 किलोमीटर की नहीं है, पहाड़ी दिमाग की है, 30 क्या 40 भी होता तो उतरते हम दोनों।

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  5. नरेश सहगल23 August 2016 at 12:35

    शानदार यात्रा .यादगार यात्रा. फोटो भी सुंदर हैं।

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  6. बहुत शानदार यात्रा बीनू भाई जी , आज ही शुरू से लेकर आखिर तक पढ़ डाली :)

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  7. वाह , मज़ा आ गया पढ़कर । शानदार यात्रा । खूबसूरत चित्र , स्वरारोहिनी के । गजब नजारा ।

    एक दिन में 30 किमी हमारे बस की बात नही ।

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    1. मेरी तो 3किलो मीटर की भी औकात नहीं है है है है

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    2. हा हा हा। हेमकुण्ड साहिब तो किया ही है बुआ आपने।

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  8. सतोपंथ से सीधा बद्रीनाथ लगातार उतरना वाकई एक बेहतरीन ट्रेकर ही कर सकता है।
    बहुत बढिया बीनू भाई।

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  9. Nice wrap up post. Just a query - ye swarg ki seedhiyaan kise kehte hain?

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    1. ऊपर से चोथी, पांचवी और छठी फोटो स्वर्गारोहिणी की हैं. जो सीढी के आकार की दिखती हैं.

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  10. Bhai bahot accha likha apne. Hume bhi jana hai to Porter aur permission kahase milegi aur kitna kharcha aayega ..thanks

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