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हर की दून से साँकरी
लगभग दो बजे हर की दून से निकल पड़े। शाम को छह बजे अँधेरा हो जायेगा। चार घण्टे में चौदह किलोमीटर चलना है। रूपकुण्ड ट्रैक पर अँधेरे में की गयी भागमभाग में पाँव तुड़वा चुका था, यहाँ दुबारा नहीं तुड़वाना चाहता था। फिर भी जब तक उजाला है, जितनी तेज चल सकें उतना अच्छा। आधे घण्टे में उस जगह पहुँच गए जहाँ सीमा से आने वाला रास्ता, ओसला वाले रास्ते से मिलता है। भागमभाग के चक्कर में ओसला वाला रास्ता पता ही नहीं पड़ा कि कब पीछे छूट गया। वो तो सुपिन पर लकड़ी का पुल देखा फिर समझ आया कि गलत आ गए हैं।
हर की दून से साँकरी
लगभग दो बजे हर की दून से निकल पड़े। शाम को छह बजे अँधेरा हो जायेगा। चार घण्टे में चौदह किलोमीटर चलना है। रूपकुण्ड ट्रैक पर अँधेरे में की गयी भागमभाग में पाँव तुड़वा चुका था, यहाँ दुबारा नहीं तुड़वाना चाहता था। फिर भी जब तक उजाला है, जितनी तेज चल सकें उतना अच्छा। आधे घण्टे में उस जगह पहुँच गए जहाँ सीमा से आने वाला रास्ता, ओसला वाले रास्ते से मिलता है। भागमभाग के चक्कर में ओसला वाला रास्ता पता ही नहीं पड़ा कि कब पीछे छूट गया। वो तो सुपिन पर लकड़ी का पुल देखा फिर समझ आया कि गलत आ गए हैं।