Saturday, 19 March 2016

हर की दून ट्रैक:- हर की दून से साँकरी

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हर की दून से साँकरी
लगभग दो बजे हर की दून से निकल पड़े। शाम को छह बजे अँधेरा हो जायेगा। चार घण्टे में चौदह किलोमीटर चलना है। रूपकुण्ड ट्रैक पर अँधेरे में की गयी भागमभाग में पाँव तुड़वा चुका था, यहाँ दुबारा नहीं तुड़वाना चाहता था। फिर भी जब तक उजाला है, जितनी तेज चल सकें उतना अच्छा। आधे घण्टे में उस जगह पहुँच गए जहाँ सीमा से आने वाला रास्ता, ओसला वाले रास्ते से मिलता है। भागमभाग के चक्कर में ओसला वाला रास्ता पता ही नहीं पड़ा कि कब पीछे छूट गया। वो तो सुपिन पर लकड़ी का पुल देखा फिर समझ आया कि गलत आ गए हैं।

Saturday, 12 March 2016

हर की दून ट्रैक:- हर की दून में बिताए पल

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हर की दून और वहां बिताये पल 

जैसे ही हर की दून के प्रथम दर्शन हुए बस निःशब्द निहारता गया। अपने ही अन्तर्मन् में ये चलने लगा कि क्या इतनी खूबसूरत जगह भी हो सकती है। अप्रतिम, रमणीक और ना जाने क्या-क्या शब्द चेतना में जागने लगे। शब्दों में लिखकर हर की दून की खूबसूरती को तो बयान किया ही नहीं जा सकता। जो कुछ भी आज तक हर की दून के बारे में पढ़ा या सुना था सब नगण्य लगने लगा। ब्रह्मदेव जब सृष्टि की रचना कर रहे होंगे तो उन्होंने इस घाटी पर विशेष कृपा दिखायी होगी। तभी तो भोलेनाथ ने यहाँ अपना डेरा जमा लिया। कण-कण में सुन्दरता बसी है। जो सुपिन नदी नीचे गंगाड में इतना शोर मचाती है, यहाँ शान्त कल-कल की मधुर ध्वनि से बहती है। आज पूरे हर की दून में सिर्फ हम दोनों थे। मनु भाई ने कहा "यार यहाँ तो एक रात गुजारनी चाहिये"।

Friday, 11 March 2016

हर की दून ट्रैक:- ओसला से हर की दून


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ओसला से हर की दून


सुबह पाँच बजे का अलार्म लगाकर सोये थे, लेकिन अलार्म की जरुरत ही नहीं पड़ी। उससे पहले ही नींद खुल गयी। बड़ी अच्छी नींद आई, लकड़ी के घर वाकई में ठण्ड को बढ़िया से रोकते हैं। बाहर अँधेरा था, फिर भी फ्रेश होकर कपडे पहन लिए। बलबीर जी ने चाय-नाश्ता और आठ पराठें दिन के भोजन के लिए कमरे में पहुंचा दिए। मनु भाई का मन था कि अँधेरे में ही निकल पड़ते हैं, लेकिन मैं पौ फटने के बाद ही निकलना चाहता था। 

Tuesday, 8 March 2016

हर की दून ट्रैक:- साँकरी से ओसला

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साँकरी से ओसला...

सुबह छह बजे सोकर उठे, होटल वाले को जगाकर मेन गेट खुलवाया, ढाबे वाले को आवाज दी कि दो चाय कमरे में ही भेज दो। मनु भाई का कल से ही नहाने का बहुत मन था।लेकिन हर बार एक गलती कर देते, मुझसे पूछ बैठते कि "बीनू भाई...नहाओगे क्या ?" मेरा जबाब सुनने के बाद उनका नहाने का जोश ही गायब हो जाता। हालाँकि गर्म पानी उपलब्ध था, लेकिन अपना तो ट्रेक पर नियम है कि "दिल्ली से नहाकर जाओ, और वापिस दिल्ली जा के नहाओ"। 

Wednesday, 2 March 2016

हर की दून ट्रैक:- लाखामंडल से साँकरी

लाखामंडल से सांकरी.... 
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लाखामंडल से आधा किलोमीटर नीचे पहुँचे ही थे कि सड़क पर भेड़ों ने कब्ज़ा किया हुआ था, गाडी रोकनी पड़ी। दो स्थानीय महिलाओं ने पूछा कि क्या बर्निगाड़ तक छोड़ दोगे ? आज २६ जनवरी है, तो मुझे लगा ये यहाँ स्कूल में अध्यापिकाएं होंगी। उनको बिठाकर आगे बढ़ चले, उनसे पुछा तो मालूम पड़ा दोनों महिलाएं यहाँ दो अलग-अलग गाँवों में आंगनबाड़ी में कार्यरत हैं। १५ किलोमीटर आगे नौगांव में कमरा किराये पर लेकर अपने बच्चों को वहीँ पढ़ा रही हैं, साथ ही नौकरी भी कर रही हैं। जब उन्होंने मुख्य सड़क से हमको अपनी कार्यस्थली दिखाई तो हम दोनों दंग रह गए।