Saturday, 13 February 2016

अदवाणी यात्रा :- दिल्ली से अदवाणी (पौड़ी गढ़वाल)

दिल्ली से अदवाणी

ऐसे तो अभी तक बहुत सी यात्रा और ट्रैकिंग कर चूका हूँ लेकिन जब ब्लॉग लिखना शुरू किया था तो पहले से ही निश्चय कर लिया था कि 2015 के बाद की ही यात्राओं को लिखूंगा और वो भी सिर्फ ट्रैकिंग से संभन्दित। अदवाणी यात्रा भी पिछले वर्ष 2015 में ही की थी परन्तु ये ट्रैकिंग नहीं थी। असल में हम पांच बचपन के दोस्त हैं, जो अपनी कॉलेज की पढाई पूरी होने के बाद अपनी अपनी जिंदगियों में ब्यस्त हो गए, लेकिन एक दुसरे के लिए वही निश्चल प्यार जो कॉलेज के दिनों में होता था, सभी के दिल में आज भी बरकरार है।




 कॉलेज के दिनों की गयी मौज मस्ती हर किसी के दिल में एक अलग ही स्थान बनाये रखती है। शायद ही कोई हो जो अपने कॉलेज के दिनों को भूलता हो। पिछले कुछ वर्षों से हम पाँचों दोस्तों का एक नियम है, कि साल में दो दिनों के लिए सभी एक बार तो अवश्य मिलेंगे, किसी ऐसी जगह पर जो शहर की भीड भाड से दूर होकर एकांत स्थान होगी, प्राकृतिक खूबसूरती तो वैसे भी पहाड़ों में हर जगह है ही वो तो मिलेगी ही। इसी को लेकर हम अलकनंदा के किनारे भी मिले हैं, गाँव में भी मिले और एक बार तो घने जंगल में एक मंदिर की धर्मशाला में ही जा पहुंचे। 

बस ऐसी जगह होनी चाहिए होती है, जिसमें हम आपस में खूब सारी गप्पें मारेंगे और उस समय को पूरा एन्जॉय करेंगे, राशन भी खुद का ले जाकर, खाना भी खुद ही लकड़ियां जलाकर बनाते हैं। 2015 का हमारा सालाना मेल मिलाप हुआ पौड़ी के एक बेहद ही खूबसूरत स्थान अदवाणी में। अब अदवाणी के बारे में बता दूँ, ये जगह पौड़ी से 20 किलोमीटर की दूरी पर बेहद ही खूबसूरत जगह है। समझ नहीं आता इतनी खूबसूरत जगह पर्यटकों से अभी तक अछूती क्यों है। 

चारों और बेहद घना बांज और बुरांश का जंगल, एक से बढ़कर एक पक्षी, बेहद शांत वातावरण और चारों और खूबसूरत पहाड़। इतना घना जंगल पूरे पौड़ी जिले में चुनिंदा ही मिलेंगे। प्रसिद्द डांडा नागराजा का मंदिर भी यहाँ से मात्र 20 किलोमीटर दूर है। अगर आप कोटद्वार से जाएँ तो सतपुली से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर है, लेकिन सतपुली से आपको मुख्य मार्ग को छोड़कर बायें हाथ को बांघाट-कांसखेत-देवप्रयाग मार्ग पर चले जाना होगा। बांघाट से थोडा आगे दाहिने हाथ को मुड़ जाओ तो ये रास्ता भी पौड़ी जाता है, लेकिन राज मार्ग न होने के कारण इस पर केवल वहीँ के स्थानीय लोग ही चलते हैं। 

इस बार की मीटिंग के लिए जगह चुनने की जिम्मेदारी हम सभी ने भरत कठैत को दे रखी थी। चूँकि भरत टूरिस्ट गाइड है, तो भला उससे बढ़कर इस बारे में जानकारी किसको होगी ऐसी जगहों की। भरत ने सभी को इस बार अदवाणी में मिलने को कहा। मैं और यशवंत दिल्ली से जाएंगे, डोभाल श्रीनगर से, भरत देहरादून से और विनोद बिष्ट ऋषिकेश से आएगा। यात्रा वाले दिन की पहली रात को मैं यशवंत के घर पर चला गया, जहाँ से सुबह चार बजे हमारा निकलना तय हुआ था। 

ठीक चार बजे अपनी गाडी से हम दोनों अदवाणी के लिए निकल पड़े, दिल्ली से मेरठ कब पहुँच गए मालूम ही नहीं चला। सुबह सड़कें पूरी तरह से खाली मिली। मेरठ से बिजनोर और ठीक आठ बजे कोटद्वार भी पहुँच गए। कोटद्वार से कार में पेट्रोल डलवाकर आगे निकल पड़े, दुगड्डा से थोडा पहले जंगल में एक ढाबा दिखा तो गाडी रोक कर नाश्ता किया। बढ़िया आलू के परांठे खाकर आगे बढ़ चले। बीच बीच में सभी दोस्तों से बात हो ही रही थी कि कौन कहाँ तक पहुंचा। दुगड्डा से आराम से चलकर ग्यारह बजे सतपुली पहुंचे। यहाँ से मुख्य मार्ग को छोड़कर बाएं नयार नदी के साथ साथ आगे बढ़ गए। ये सड़क सीधे देवप्रयाग भी निकलती है। व्यासचट्टी होकर ऋषिकेश-बद्रीनाथ मार्ग पर मिल जाती है। 

करीब पांच किलोमीटर आगे एक पुल आता है और छोठा सा बाजार बांघाट आता है। बांघाट से एक किलोमीटर आगे बिलखेत गाँव से हमको दाहिने हाथ को मुड़ना था। सीधे हाथ को देवप्रयाग और दाहिने हाथ वाली सड़क पौड़ी निकलती है। ठेठ पहाड़ी मार्ग है, लेकिन सड़क पक्की बनी है। बिलखेत से चढ़ाई वाला मार्ग शुरू हो जाता है। इस सड़क पर ट्रैफिक बिल्कुल नहीं होता, हम दोनों मस्ती में बातें करते करते आगे बढे जा रहे थे, बीच में छोटे-छोटे गढ़वाली बाजार पड़ते जा रहे थे। 

ढाढुखाल, बनेख, घंडियाल आदि को बिना रुके पार हो गये। डोभाल ने फोन पर कहा था कि तुमने बनेख होकर आना है, वहां की नमकीन बहुत फेमस है लेते आना। याद तब आया जब बनेख भी पीछे छूट गया। आगे कांसखेत बाजार आया तो यहाँ गाडी रोक ली, भरत को फोन किया कि राशन क्या-क्या लेकर आना है। चावल, दाल, हल्दी मिर्च, प्याज, टमाटर जो भी उसने बताये दो समय के भोजन के लिए रख लिए। यहाँ पर बनेख की नमकीन के बारे में पुछा तो मालूम पड़ा यहाँ भी मिल जायेगी, एक किलो नमकीन भी रखवा ली। 

कांसखेत से अदवाणी सिर्फ चार किलोमीटर दूर है। कांसखेत भी एक खूबसूरत पहाड़ी बाजार है। बांज और चीड़ के पेड़ों का जंगल यहाँ से शुरू हो जाता है। कांसखेत से आगे बढे, मौसम शानदार बना हुआ था बीस मिनट में अदवाणी पहुँच गए। भरत और लम्बू (विनोद बिष्ट) पहले ही पहुंच चुके थे, डोभाल अभी रास्ते में था वो बाइक पर श्रीनगर से आ रहा था।

क्रमशः.....




यशवंत
यशवंत


दुगड्डा के नजदीक 

नाश्ता

दुगड्डा

दुगड्डा से गुमखाल

यशवंत

सतपुली और नयार नदी 





देसी मुर्गी



अदवाणी

अदवाणी फारेस्ट गेस्ट हाउस






15 comments:

  1. बढ़िया जगह है

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  2. बहुत ही मन मोहक है दृश्य और लेख ।

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  3. बीनू, आडवाणी पहुँचते ही आगे का जंगल साफ़ ☺☺☺
    लगता है अपने आडवाणी साहेब यहॉ के है।

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    1. नहीं बुआ अदवानी में तो बहुत ही घना जंगल है।और आडवाणी जी यहाँ से नहीं हैं। :)

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  4. डोभाल नाम पढ़ते ही दिमाग एकदम से अजीत डोभाल तरफ मुड गया लेकिन ये तो कोई और डोभाल साब हैं !! बहुत ही सुन्दर और अनछुई जगह दिखा दी बीनू भाई आपने !!

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  5. बीनू भाई बढिया, अदवानी की सुंदरता देखने की बडी इक्षा हो रही है

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    1. ब्लॉग के माध्यम से तो यहाँ हो जाएंगे सचिन भाई। लेकिन घुमक्कडों के लिए सुन्दर जगह है। जाना बनता है।

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  6. बुआ जी का मतलब है अदवानी पहुँचते ही दाढ़ी साफ़। ...... वैसे लेख सुन्दर है फोटो भी अच्छी है

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    1. धन्यवाद शैलेन्द्र भाई। बाकी बुआ के तो कहने ही क्या :)

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  7. बहुत सुंदर लेख बीनू भाई ,अदवानी के लिए उत्सुकता जगा दी प्रभु |

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