Saturday, 2 January 2016

डोडीताल ट्रैक (भाग २) - देहरादून से गंगोरी, उत्तरकाशी

इस यात्रा वृतान्त को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.

दूसरा दिन - देहरादून से गंगोरी (उत्तरकाशी) - 

सुबह ठीक 7 बजे देहरादून से निकल पडे, आज हमने उत्तरकाशी से 12 कि.मी. आगे संगम चट्टी तक कार से और फिर 6 कि.मी. ट्रैक करके अगोडा गांव तक पहुंचना तय किया था। भरत के पास रुकने का फायदा ये हुआ कि, डोडीताल ट्रैक के बारे में काफी जानकारी मिल गई, भरत एक अनुभवी ट्रैकिंग गाईड है, शायद ही उत्तराखंड का कोई ट्रैक हो, जो उसने ना किया हो। हिमाचल, लद्दाख, नार्थ ईस्ट, भूटान आदि में वो ट्रैक कर चुका है, लद्दाख में जान्सकर नदी पर ट्रैक, जो कि चाद्दर ट्रैक के नाम से भी प्रसिद्द है, और सबसे मुश्किल ट्रैक में से एक है, वो भी कर चुका है। यूं कहें कि वो ट्रैकिंग दुनिया का चलता फिरता इंसाइक्लोपीडिया है, तो अतिशयोक्ती नहीं होगी, मैं किसी भी ट्रैक पर जाने से पहले उसकी सलाह हमेशा लेता हूँ। ऐसे अनुभवी लोगों से हर वक्त कुछ ना कुछ सीखने को मिलता है। 





जल्दी जल्दी नित्यकर्म से निवृत होकर भरत से विदा ली, और निकल पड़े, देहरादून से निकले ही थे कि सचिन को भूख लग गयी, घण्टाघर पर नाश्ता करके राजपुर रोड की तरफ मुड़ कर मसूरी की और चल पडे, देहरादून से मसूरी की दूरी लगभग 30 कि.मी. है, जैसे जैसे मसूरी की पहाड़ियों पर चढ़ते गये, मौसम सुहावना होता गया। मसूरी से 2-3 कि.मी. पहले दाहिने हाथ की और एक रास्ता धनोल्टी - चम्बा के लिए निकलता है। हमको इसी पर जाना था, इस रास्ते पर करीब 15 कि.मी. आगे चलकर सुबाखोली आता है, सीधी सड़क चम्बा जा रही है और यदि यहाँ से बायें मुड जाओ तो, ऋषिकेश - उत्तरकाशी रोड पर यह सडक चिन्यालीसौड से थोडा पहले मिल जाती है। हमको इसी सड़क पर जाना था । ये नयी बनी सडक है और इसके बनने से देहरादून - उत्तरकाशी की दूरी करीब 70 कि.मी. कम हो गयी है, पहले देहरादून से जो 170 कि.मी. का फेर लगाना पड़ता था, वो अब मात्र 100 कि.मी. का रह गया।

20 कि.मी. उबड़ खाबड़ सड़क से सामना हुआ, बाकी शानदार सड़क है। सड़क को पक्का करने का काम चल रहा था, अब तक तो पूरी तरह से पक्की हो चुकी होगी। हाँ इस सड़क पर अगर अपनी कार से जा रहे हैं, तो ड्राइविंग सावधानी से करें, क्योंकि ठेठ पहाड़ी मार्ग है, किस मोड़ पर सामने से कब कोई गाडी आ जाए, मालूम नहीं चलता तो हॉर्न का प्रयोग तो अवश्य करना चाहिए। और रात के समय तो इसपर ड्राइविंग की सलाह कतई नहीं दूंगा। 

सुबाखोलि से अधिकतर रास्ता ढलान वाला है, शानदार नज़ारे देखने को मिलते हैं, अच्छा खासा बांज का जंगल भी है। चिन्यालीसौड़ पहुंचकर भागीरथी के किनारे किनारे बढ़ चले, डैम के रुके हुए पानी की वजह से भागीरथी का वो वेग नहीं दिखा, जिसके लिए ये प्रसिद्द है। चार धाम यात्रा शुरू हो चुकी थी, तो यात्रियों की गाड़ियां भी दिखने लगी। धरासू से सड़क का चौड़ीकरण का कम चल रहा था तो ट्रैफिक को रोका हुआ था। मुझे समझ नहीं आता कि चार धाम यात्रा के समय ही ये सड़कों का चौड़ीकरण क्यों होता है ? यात्रा के समय तो सड़कों को दुरस्त दिखना चाहिये, आखिर उत्तराखंड के एक बहुत बड़े तबके की रोजी रोटी, चार धाम यात्रा पर ही निर्भर है.

खैर... धरासू से उत्तरकाशी तक सड़क निर्माण कार्य की वजह से बुरी हालत में थी। 2 बजे उत्तरकाशी पहुंच गये, जब भी उत्तरकाशी आता हूँ तो सबसे पहली नजर वार्णवर्त पर्वत की तरफ ही पड़ती है, उत्तरकाशी वार्णवर्त पर्वत की ठीक गोद में बसा है, एक समय में इसने उत्तरकाशी निवासियों का जीना दूभर कर दिया था, हालांकि अभी काफी समय से शांत है। बाजार में रुके नहीं और सीधे वन विभाग के दफ्तर में पहुँच गए, जो बाजार से करीब 2 कि. मी. आगे पर स्तिथ है। 

हमारे पास टेण्ट, स्लीपिंग बैग कुछ भी नहीं था, इसलिए डोडीताल गेस्ट हाउस में रुकने के लिए बुकिंग करवानी थी। वन विभाग के दफ्तर पहुंचकर जब डोडीताल गेस्ट हाउस में रुकने के लिए बुकिग की जानकारी लेने लगे, तो ठेठ सरकारी मशीनरी से सामना हुआ, कभी कोई इस बाबू के पास भेजता कभी वो उसके पास। इस तरह जब पूरा 1 घंटा खराब हो गया तो मैंने अपने जीजा जी के बारे में पूछ लिया, मेरे जीजा जी उसी क्षेत्र के रेंजर हैं, उनका नाम सुनते ही सब बोलने लगे, कि अरे आप लोग खडे क्यूँ हैं ? पहले से क्यों नहीं बताया ? बैठिये, बस साहब अभी आने वाले हैं।

थोडी ही देर में जीजा जी भी आ गये, मुझे देखते ही समझ गये, कि ये कहीं ट्रैक पर जा रहा होगा, जब मैंने बताया कि डोडीताल जाने का जंगल परमिट और गेस्ट हॉउस की बुकिंग करने आया हूँ, तो हंसकर बोल पड़े कि, तेरे को कब से परमिट की जरुरत पड़ने लगी। वैसे जंगल पर्ची जो काटी जाती है वो उत्तराखंड निवासियों की नहीं काटी जाती। चूँकि अब मेरा वोटर कार्ड भी दिल्ली का है, तो एक रूप में अब मैं दिल्ली निवासी ही हो गया। जीजा जी ने तुरंत डोडीताल क्षेत्र के अधिकारी को फोन करके सूचना दे दी, कि मेरे साले साहब और उनके  मित्र आ रहे हैं, इनकी अगोडा और डोडीताल में रहने खाने की उचित ब्यवस्था की जाये। 

वैसे अगर मुझे कर्मचारी यहाँ वहाँ नहीं दौड़ाते तो मैं डोडीताल गेस्ट हाउस की बुकिंग करके, बिना जीजा जी से मिले निकल जाता, वापसी में फिर मिल लेता। खैर... जीजा जी ने अपने सरकारी निवास पर भेजकर हमको नाश्ता करवाया और हमारी गाडी को भी अपने गैरेज में खडी करवा कर यहाँ से आगे जीप से जाने की हिदायत दी, हम तो संगमचट्टी तक अपनी कार से ही जाना चाहते थे लेकिन जीजा जी ने साफ़ मना कर दिया। और ये हिदायत आगे हमारे बहुत काम आयी।

वन विभाग के दफ्तर से करीब 2 कि.मी. आगे गंगोरी तक पैदल आ गये, गंगोरी में पुल पार करने के बाद सीधा रास्ता गंगोत्री के लिए और बायीं तरफ संगमचट्टी के लिये अस्सी गंगा के साथ साथ सड़क चली जाती है। गंगोरी से संगमचट्टी करीब 10 कि.मी. की दूरी पर है। आज हमको संगमचट्टी से ट्रैक करके 6 कि.मी. उपर अगोडा गांव तक पहुँचना था। गंगोरी में पुल पार करने के बाद हम वन विभाग की चौकी पर खड़े होकर जीप की इंतजारी करने लगे। काफी देर तक जीप नहीं मिली,1-2 आयी भी तो रुकी नहीं, पहले से ही भरी हुयी थी। 4 बज चुके थे, दूर ऊंची चोटियों पर काले घने बादल दिख रहे थे। घने काले बादलों का मतलब बारिश मुहं बाये खड़ी है, और कभी भी शुरू हो सकती है, संगमचट्टी की तरफ भी यही हाल दिख रहा था, और कुछ ही देर बाद तो मूसलाधार बारिश ही शुरू हो गयी।

करीब 1 घंटे तक भी जब बारिश नहीं रुकी तो वन विभाग के जो कर्मचारी चौकी पर तैनात थे, उन्होंने आज आगे न जाने की सलाह दी। क्योंकि 5 बज चुके थे ऐसे में अँधेरे में ट्रैक करना पड़ता, जो कि कतई सही निर्णय नहीं होता। अगोडा में वन विभाग के क्षेत्र अधिकारी को फोन कर दिया कि कल पहुंचेंगे, वापिस पुल के इस तरफ एक होटल दिख रहा था, 400 रू का कमरा आसानी से मिल गया, होटल वाले से ही सुबह संगमचट्टी तक के लिये जीप बुक करवा दी, और कह दिया कि जीप वाले को सुबह 6.30 पर आने को कह दो। 500 रू में बात तय कर अपने कमरे में आराम करने आ गये, रिमझिम बारिश करीब 8 बजे तक होती रही, अप्रैल का महीना होने के बावजूद भी ठण्ड सी महसूस हो रही थी। 

भोजन नीचे जाकर ही करना पड़ा, कल की प्लानिंग करने लगे तो सचिन कल ही डोडीताल पहुँचने की जिद पकड़ के बैठ गया जो मुझे मुश्किल सा ही लग रहा था, फिर भी मैंने उससे कहा कि अब जो भी होगा कल ही देखेंगे। घर में अपनी सकुशलता की सूचना भी दे दी, साथ ही ये भी बता दिया कि कल से फ़ोन पर बात नहीं हो पाएगी, जैसे ही वापिस उत्तरकाशी पहुँचूँगा मैं फ़ोन कर लूंगा। यात्रा सीजन की वजह से शाम होते होते होटल में यात्रियों का आना जारी रहा, अच्छी खासी चहल पहल हो गयी, भरत को भी सूचित कर दिया अपनी स्तिथि के बारे में, साथ ही उससे आने वाले 3-4 दिन के मौसम का अनुमान भी ले लिया, बातें करते करते 10 बजे तक नींद भी आ गयी।

इस यात्रा वृतान्त के अगले भाग को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.



देहरादून में नाश्ता


दून वैली

रमता जोगी










सचिन 

गंगोरी होटल में  




21 comments:

  1. बहुत बढ़िया भाई।

    ReplyDelete
  2. Nice post. Good information. Pictures too are very good.

    ReplyDelete
  3. Enjoyed...beenu bhai dehradun se mussoorie ki distance muzhe kuch confuse kar raha hai ...kindly check.

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सेमवाल जी 30 की जगह 20 हो गया।

      Delete
    2. अब ठीक कर दिया है सर। धन्यवाद।

      Delete
  4. बढ़िया यात्रा।

    ReplyDelete
  5. शानदार यात्रा चल रही है ।चित्र भी मनमोहक है। मेरे मौसाजी भी रेंजर थे बचपन में कई जंगल नापे थे पर होश नहीं था बस इतना पता है की जीप में घूमते थे।

    ReplyDelete
  6. बढ़िया जानकारी बीनू भाई ! अगले लेख का इन्तजार रहेगा

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद प्रदीप भाई।

      Delete
  7. बहुत अच्छी लगी सैर ...
    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!

    ReplyDelete
  8. शानदार फोटो और उतना ही शानदार वृतांत लिखा है आपने ! फोटो के नीचे अगर आप उसके विषय में भी कुछ लिखेंगे तो और भी बेहतर होगा !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी योगी भाई। धन्यवाद।

      Delete