Thursday 31 December 2015

डोडीताल ट्रैक् - भाग 1 - आयोजन और पहला दिन (दिल्ली से देहरादून)

इस यात्रा वृतान्त के अगले भाग को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.

दिल्ली से देहरादून

डोडीताल, पता नहीं क्यों ये नाम हमेशा ही मुझे अपनी ओर आकर्षित करता था। जनवरी में जब चोपता - तुंगनाथ का बर्फीला ट्रैक किया था तो बर्फ से त्रिप्ती सी हो गयी थी, तभी सोच लिया था कि अगली बार ऐसा ट्रैक् करना है, जहाँ बर्फ की बजाय प्राकृतिक सुन्दरता हो, जंगल हो, जानवर हों, पक्षी हों, जहाँ आराम से जमीन पर बैठ कर प्रकृति की सुन्दरता को निहार सकूँ, नर्म हरी घास पे लेट सकूँ, ये सब बर्फ वाले ट्रैक पर सम्भव नहीं था। डोडीताल बहुत समय से मन में था लेकिन कभी जाना नहीं हो पाया, ज्यादा दिमाग नहीं दौड़ाना पड़ा और डोडीताल फाइनल हो गया। अब छुट्टियां तलाशनी शुरू कर दी, मैं जब भी ट्रैक की प्लानिंग करता हूँ तो शुक्रवार रात को दिल्ली से निकलने की सोचता हूँ, जिससे शनिवार और रविवार का अच्छा उपयोग हो जाये, और किस्मत से अगर सोमवार या मंगलवार की कोई सरकारी छुट्टी भी हो तो फिर तो सोने पे सुहागा।



अपने कुछ दोस्तों से जिक्र किया तो सचिन शर्मा और देवा (धीरेन्द्र सिंह चौहान) साथ चलने को तैयार हो गये। तारीख तय हुई 23 अप्रैल की। निकलने से कुछ दिन पहले देवा की मनाही हो गई, फिर सचिन की शर्त थी कि दिल्ली से अपनी कार से चलना है, क्योंकि बस में उसे चक्कर आते हैं। हालांकि मुझे साधारण बसों से यात्राएं करना ज्यादा पसंद है, जो मजा पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आता है, वो मुझे कार से चलने में नहीं आता। ये हर एक की अपनी अपनी पसन्द की बात है, सचिन की समस्या को देखते हुए अपने दोस्त यशवंत की गाडी मांग ली। अब समस्या ये हो गयी कि दिल्ली से उत्तरकाशी तक लगातार ड्राइव अकेले सचिन को करनी पडती, मुझे अभी अच्छी तरह गाडी चलानी नहीं आती। ये दूरी करीब 450 कि.मी. की है, सचिन ने अपने एक मित्र हिमान्शु को पूछा, हिमांशु भाई साथ चलने को तैयार हो गए।

यात्रा के ठीक एक दिन पहले हिमान्शु भाई का भयंकर वाला पेट खराब हो गया, उनको ग्लूकोज भी चढ़ा, उनका चलना संभव नहीं हो पा रहा था, यहाँ हम दोनों सारी तैयारी कर चुके थे, आखिरी में डिसाईड हुआ कि चाहे जो भी हो मैं और सचिन चलेंगे, और बजाय सीधे उत्तरकाशी जाने के, एक रात का स्टे देहरादून में मेरे दोस्त भरत कठैत के घर पर करेंगें। यात्रा वाले दिन मैं मेट्रो से मयूर विहार सचिन के घर करीब दोपहर के 12 बजे पहुंच गया। तब तक सचिन ने ट्रैक में खाने पीने की जरूरत वाले सामान की शौपिंग कर ली थी। जैसे बिस्किट, नमकीन, नूडल्स, ड्राई फ्रूट, मोमबत्ती आदि, वैसे डोडीताल ट्रैक् पर खाने रहने की दिक्कत नहीं होती, लेकिन किसी भी ट्रैक् पर आपातकाल से निपटने के लिए रख लेने चाहिए। करीब 1.30 बजे हम दोनो मयूर विहार से देहरादून के लिए निकल पड़े।

हम निकले ही थे कि हिमांशु भाई का फोन आ गया कि मैं अब ठीक हूं साथ चलूंगा। हमने हिमान्शु भाई को वैशाली मेट्रो स्टेशन पहुँचने को कहा। वैशाली मेट्रो के सामने कार खड़ी करके हम हिमांशु भाई की इंतजारी करने लग गये। करीब 3.30 पे हिमान्शु भाई प्रकट हुऐ, एक हाथ में पन्नी उसमें कुछ कपडे और दुसरे हाथों में जूते लेकर, मैं आँखे फाड़ फाड़कर देखता रहा, फिर सचिन से पूछ ही डाला कि भाई ये ऐसे ही चलेंगे क्या ट्रैक् पर ? तो पता चला कि हिमान्शु बाबू घर पर ये बोल के आये हैं कि दोस्तों के साथ घूमने चंडीगढ़ जा रहे हैं। मैं इस बात के सख्त खिलाफ हूँ, खासकर जब आप साहसिक यात्राएं कर रहे होते हैं तो, कभी भी पहाड़ को हल्के में लेने की गलती नहीं करनी चाहिए, घर पर स्पष्ट रूप से बता देना चाहिए, जिससे आपातकालीन स्थिति अगर कोई सामने आयी तो परिवार वाले मदद कर सकें।

खैर अब चलो भाई जो होगा देखा जायेगा। वैशाली से चलकर गाजियाबाद पार किया ही था कि हिमान्शु भाई के घर से फोन आ गया कि उनके चाचा जी का पंजाब में आकस्मिक देहांत हो गया, और अभी पूरा परिवार पंजाब के लिए निकल रहा है, तुम भी चंडीगढ़ जा रहे हो तो उसी रास्ते पे होओगे, वहीं उतर जाओ, हम लोग पहुंच रहे हैं। अब हम चंडीगढ़ जा रहे हों तो होंगें ना उस रास्ते पर, ये खबर सुनकर सारा मूड खराब हो गया, हिमान्शु भाई चाहे कैसे भी आये थे, एक दिन पहले ही बीमार थे, फिर भी आखिरी वक्त पर साथ हो लिए थे।    ये घुमक्कडी का ही कीड़ा था उनके अन्दर जो वो आ गये थे। खैर दुखी मन से गाजियाबाद से हिमान्शु भाई को वापिस भेज दिया। सचिन और मैं आगे बढ चले और रात को 10 बजे भरत के घर पहुंच गये।

क्रमशः.....

(नोट:- इस पोस्ट में फोटो नहीं हैं, क्यूंकि दिल्ली से देहरादून तक मैं इतनी बार यात्रा कर चूका हूँ कि फोटो खींचने का अब मन नहीं करता.)



इस यात्रा के सभी वृतान्तो के लिंक इस प्रकार हैं:-
डोडीताल ट्रैक् - भाग 1 - आयोजन और पहला दिन (दिल्ली से देहरादून)
डोडीताल ट्रैक (भाग २) - देहरादून से गंगोरी, उत्तरकाशी
डोडीताल ट्रेक (भाग ३) - गंगोरी से अगोडा
डोडीताल ट्रैक (भाग ४) - अगोडा से डोडीताल
डोडीताल ट्रैक (भाग ५) - डोडीताल और डोडीताल से वापसी।

12 comments:

  1. एक दो फोटो तो डाल ही देते ,और अच्छा लगता |हम तो अभी तक देहरादून रूट पर गए ही नहीं |अगले भाग के इंतज़ार में |

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  2. रूपेश जी भविष्य में जो भी यात्रा करूँगा, निश्चित रूप से फ़ोटो मिलेंगी आपको। :)

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  3. अगली post ka इंतज़ार रहेगा

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    1. जल्दी ही पोस्ट होगी सचिन भाई।

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  4. Happy new year binu bhai,next part kab aa reha hai.

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    1. धन्यवाद सचिन भाई। आपको भी नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं। कोशिस करूँगा अगले भाग के लिए आपको ज्यादा इंतज़ार ना करना पड़े।

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  5. तुम घुमे होंगे बीनू पर मैँ आजतक देहरादून नहीं गई कम से कम फोटू तो लगाना था ।

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  6. बुआ आगे से जो भी यात्रा करूँगा निश्चित रूप से दिल्ली से निकलते ही फ़ोटो खींचूँगा। अगले भाग में आपको देहरादून की कुछ फ़ोटो नजर आएँगी।

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  7. ​​शुरुआत अच्छी लग रही है ! आगे इंतज़ार है

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  8. फ़ोटो के बिना सब सूना है

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    1. आप तो समझो मेरी दिक्कत कम से कम। :)

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