भदरवाह पात मेला, चण्डी देवी और गुप्त गंगा
भदरवाह में प्रवेश करते ही प्रकृति की खूबसूरती के सामने मन ही मन नतमस्तक हो गए। क्या कमाल की जगह है। घाटी में बसा ये शहर अपने अन्दर अदभुत खूबसूरती समाये हुए है। वासुकी नाग इस क्षेत्र के ईष्ट देव हैं, शहर में प्रवेश करते ही वासुकी नाग देवता का मन्दिर दिखा तो मन्दिर को देखने चले गए। इस क्षेत्र के पौराणिक मन्दिर लगभग एक ही शैली के बने हैं। पटनी टॉप स्थित नाग देवता का मन्दिर भी इसी शैली का बना देखा था। ये भी छोठा सा मन्दिर है, लेकिन इसके सूचना पट पर एक अजीब सी सूचना लिखी देखी कि "इस मन्दिर में स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है"। वहां पर कुछ महिलायें थी भी जो सीढ़ियों से ही अपने ईष्ट देव को नमन करके वापिस लौट रही थी। मालूम नहीं भागवान ने किसके कान में आ के ये कह दिया, कोई पुजारी भी मन्दिर में नहीं था, अन्यथा पूछता जरूर।
यहीं मन्दिर के बाहर एक बैनर लगा था जिस पर तीन दिवसीय पात मेले के बारे में लिखा था। कुछ स्थानीय लोगों से बातचीत कर रहे थे तो उन्होंने इस मेले को देखने के लिए कहा। आज अन्तिम दिन था और अगले एक घण्टे में मेला समाप्त भी होने वाला था। रमेश जी की इच्छा थी कि हम गाटा देखने भी जाएं, गाटा में पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु मानव निर्मित पार्क जैसा कुछ विकसित किया गया है। जिनमें मेरी तो कोई ख़ास रूचि होती नहीं है। फिर पात मेला साल में सिर्फ एक ही बार होता है, और ये हमारी किस्मत ही थी कि इस दौरान हम यहाँ पहुँच गए थे। मेला समाप्ति में एक घण्टा बचा था, इसलिए सभी ने निर्णय लिया कि गाटा फिर कभी देख लेंगे, पात मेला पहले देखा जाए।
तुरन्त भदरवाह के मुख्य बाजार "सीरी बाजार" की ओर निकल पड़े। सीरी बाजार में मेले की वजह से काफी चहल-पहल दिखी, बामुश्किल गाडी पार्क करने की जगह मिल पाई। सीरी बाजार में भी वासुकी नाग का मन्दिर है। जिसका आकर भी बाकी नाग मंदिरों जैसा ही है। मन्दिर प्रांगण में भारी भीड़ के बीच स्थानीय निवासी वासुकी नाग के प्रतीक चिन्ह को हाथों में पकड़ कर पारंपरिक ढाकू नृत्य करते हैं। नंदा देवी राज जात यात्रा में जैसी छतरी लेकर यात्री चलते हैं वैसी ही छतरियां यहाँ पात मेले में भी दिखी। उत्तराखण्ड के पाण्डव नृत्य में भी ऐसी ही भेषभूषा पहनी जाती है। बस पाण्डव नृत्य थोडा भिन्न होता है। पाँच पाण्डव हथियारों के साथ गोलाकार में नृत्य करते हैं। और पाण्डवों की वीरता के गीत गाए जाते हैं।
यहाँ के स्थानीय निवासियों में वासुकी नाग देवता के प्रति आस्था की झलक साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी। लोग हाथ जोड़े अपने ईष्ट देव को श्रद्धा भाव से देखे जा रहे थे। पूरे प्रांगण में पाँव रखने की जगह भी नहीं थी। कभी लोहे की ग्रिल पर खड़े होकर फ़ोटो खींची तो कभी एक लोहे के चूल्हे के ऊपर चढ़कर। लोहे का चूल्हा भी अमित भाई ने खड़े होने के लिए मालूम नहीं कहाँ से ढून्ढ निकाला। अन्यथा उस भीड़ में नरमुण्डों के सिवाय कोई फ़ोटो नहीं खींच पाता ना ही ढाकू नृत्य देख पाता। आधे घण्टे बाद वासुकी नाग देवता के प्रतीक को नृत्य करते-करते मन्दिर के अन्दर ले जाया गया। हमने भी वापसी की तैयारी कर दी। हमारे पास ही बड़े-बड़े पतीलों में प्रसाद बना के रखा था। मैंने ऐसे ही रमेश जी से पूछ लिया कि अब आगे क्या होगा, भाई जी ने मजाक में जबाब दिया कि होना क्या है, प्रसाद बंटेगा। हमारे ठीक पीछे मन्दिर समिति के लोग थे उन्होंने तुरन्त ही कहा कि सबसे पहले आप ही प्रसाद लीजिये और हमको एक-एक दोना हलवे का पकड़ा दिया। प्रसाद खाकर वापिस मुख्य बाजार में आ गए।
कोठारी जी को कब से चाय की तलब लगी हुई थी, पहले उनकी तलब मिठाई जाए यह सोचकर चाय की दुकान ढूंढने लगे। एक स्थानीय लड़का हमारी बातचीत सुन रहा था। हमारी बातचीत से उसे मालूम पड़ गया था कि ये सभी हिन्दू हैं। उसने तुरन्त दूर किसी दुकान की ओर इशारा किया कि वहां है चाय की दुकान। उसकी बात को अनसुना कर हम मुस्लिम युवक की चाय की दुकान पर चले गए और चाय आर्डर कर दी। चाय पीने के पश्चात रमेश जी ने बताया कि क्यों वो लड़का दूसरी चाय की दुकान में जाने को कह रहा था। इस अलगाववाद और आतंकवाद ने दो समुदायों के बीच गहरी खाई दिलों में बना ली है, इसी छोठी सी घटना से एहसास हो जाता है।
अँधेरा होने को था इसलिए सबसे पहले रात रुकने का ठिकाना ढून्ढ लिया जाए, यही सोचकर कोठारी जी और शशि भाई को होटल ढूंढने की जिम्मेदारी दे दी गई। भदरवाह का मुख्य बाजार छोठा सा और भीड़भाड़ वाला इलाका है। इसलिए यहाँ पर न रुक कर किसी शान्त जगह में रुकेंगे ये सोचकर सरकारी गेस्ट हॉउस की तलाश शुरू कर दी। आधा किलोमीटर दूर ही डाक बंगला मिल गया, खाली पड़ा था। वैसे भी ये क्षेत्र पर्यटन के मानचित्र पर अछूता ही है। मुझे नहीं लगता कि आज के दिन पर हम पाँच के सिवा पूरे भदरवाह में कोई बाहरी आदमी आया हुआ होगा। हालांकि अब इन सभी क्षेत्रों को पर्यटकों की नजर में लाने के लिए अच्छे स्तर पर सरकारी प्रयास शुरू किए गए हैं। हर क्षेत्र के लिए अलग से प्राधिकरण बना दिया गया है।
यहाँ डाक बंगले में कमरा लेते हुए भी एक अजीबोगरीब घटना हुई जिसका जिक्र क्या करना, लगभग वैसी ही जैसी चाय की दुकान पर हुई। पूरा डाक बंगला खाली होने के बावजूद भी हमको मना कर दिया गया था, फिर उन सज्जन के चले जाने के बाद डाक बंगले के केयर टेकर के कहने पर दो कमरे दे दिए गए। और वो सज्जन शायद केयर टेकर से नीचे की पोजीशन के थे। खैर....डाक बंगले में खाने की कोई व्यवस्था नहीं थी, इसलिए हमको पहले ही बता दिया गया था कि नौ बजे तक खाना खाकर वापिस आ जाना, उसके बाद स्थानीय पुलिस वाले सड़कों पर घूमने की अनुमति नहीं देते। कुछ देर आराम करने के पश्चात मुख्य बाजार में जाकर रात्रि भोजन किया और इसी होटल वाले को कल सुबह के नाश्ते और आगे कैलाश कुण्ड ट्रैक के लिए दिन का भोजन और रात के खाने को पैक करने की बाबत भी बात कर ली। नौ बजे तक गेस्ट हाउस में वापिस आ गए। कुछ देर बातचीत के पश्चात सोने की तैयारी करने लगे।
सुबह साढे सात बजे तक सभी ने तैयार होकर डाक बंगला छोड़ दिया। नाश्ता करने मुख्य बाजार जाना था जबकि प्रसिद्द चिनोत चंडी माता मन्दिर पास में ही था। डाक बंगले से कोई दो सौ मीटर की ही दूरी पर ये मन्दिर स्थित है। शानदार गोलाकार आकर में निर्मित ये मन्दिर दूर से देखने पर ही आकर्षित करता है। हालाँकि पौराणिक मन्दिर नहीं है, लेकिन इस पूरे क्षेत्र में इस मन्दिर की बहुत मान्यता है। प्रत्येक वर्ष होने वाली प्रसिद्द मचैल यात्रा यहीं से शुरू होती है। सुबह की गुनगुनी धूप में मन्दिर की बाहरी बनावट में प्रयुक्त काँच सूर्य की किरणों को परावर्तित करके अपनी छठा बिखेर रहे थे। भदरवाह से कुछ ऊँचाई पर स्थित होने के कारण भदरवाह का दृश्य यहाँ से अदभुत दिखाई दे रहा था। मन्दिर में सुबह की आरती चल रही थी, अन्दर जाकर माता के दर्शन कर प्रांगण से भदरवाह की कुछ तस्वीरों को कैमरे में कैद कर आगे बढ़ चले।
मुख्य बाजार पहुँचकर नाश्ता किया और होटल वाले को दिन का भोजन व रात के लिए बीस पराँठे पैक करने को कह दिया। हम पास में ही स्थित गुप्त गंगा देख आते हैं, तब तक तुम ये सब पैक करके रखो यह कहकर हम गुप्त गंगा देखने चले गए। मुख्य बाजार से गुप्त गंगा भी लगभग तीन सौ मीटर की दुरी पर नीरू नदी के तट पर स्थित है।
पाण्डवों के अज्ञातवास से इस स्थान को जोड़कर देखा जाता है। एक छोठी सी पाण्डव गुफा है, मुश्किल से चार फ़ीट गहरी होगी। कहते हैं अपने अज्ञातवास में पाण्डव इसी गुफा से गए थे और कश्मीर निकले थे। बाद में ये गुफा ऊपर से पत्थरों के गिरने की वजह से बन्द हो गई। गुफा के साथ में ही शिव मन्दिर है, बहुत बड़ा शिवलिंग यहाँ पर स्थापित है। वैसे भी पहाड़ों पर अधिकतर शिव मन्दिर पाण्डवों की ही देन हैं। मेरी नजर में पाण्डवों से बड़ा ट्रैकर कोई नहीं हुआ आज तक, जिसके कि तमाम सुबूत मिलते हों। ना जाने कहाँ-कहाँ पाण्डवों ने जा-जा कर शिव मंदिरों को स्थापित किया है। यहीं पर एक जल धारा पहाड़ों से लगातार निकलती रहती है, मान्यता है कि यह जल धारा गंगा से ही निकलकर यहाँ आती है, इसीलिये इस स्थान का नाम गुप्त गंगा पड़ा।
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गुप्त गंगा |
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गुप्त गंगा |
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नीरू नदी |
इस यात्रा के सभी वृतान्तो के लिंक इस प्रकार हैं :-
बहुत सुंदर एवं विस्तृत जानकारी। प्रसाद वितरण का मजाक,भी बढ़िया रहा।
ReplyDeleteचित्र बहुत अच्छे आये है । ग्रेट,carry on।
धन्यवाद भाई जी।
Deleteभदरवाह व पात मेले की विस्तृत जानकारी अच्छी लगी। प्रसाद का अपन लोगों से वितरण शरू होना मुझे भी आश्चर्यजनक लगा था।
ReplyDeleteकैमरा बैग में लैंस, पर्स के अलावा मोबाइल भी था :)
धन्यवाद कोठारी सर।
Deleteबहुत शानदार यात्रा ! एक फोटो में सारे के सारे एक साथ फोटो लेने में लगे हैं जैसे कोई विचित्र चीज दिख गयी हो ? शायद ये भदरवाह की खूबसूरती है जो सबको आकर्षित करती है , बहुत ही शानदार फोटो लिए हैं आपने बीनू भाई
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई।
DeleteNice details and photos are also getting better. Photos in this trek are prettier than the ones from Har ki Doon trek.
ReplyDeleteधन्यवाद रागिनी जी। हर की दून के समय कैमरा आम डिजिटल कैमरा था। Sony Shybershot 8MP.
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