Thursday, 11 November 2021

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Sunday, 15 August 2021

Trekking Gears (जूते)

Trekking Gears Part - 4

जूते (Trekking Shoes)

किसी भी ट्रैक को सुरक्षित बनाने में उसमें हमारे ट्रैकिंग गियर जो हम यूज़ करते हैं उनका सर्वाधिक योगदान होता है। मेरी नजर में जूते किसी भी ट्रैक पर हमारे सबसे भरोसेमंद साथी होते हैं। चूंकि ट्रैकिंग का मतलब ही पैदल चलना है, और इसमें पांवो का कम्फर्ट और सुरक्षित होना ही सबसे महत्वपूर्ण है। अगर पांव में किसी भी प्रकार की चोट लग जाए या मोच आ जाए तो पूरे प्लान व ट्रैक का सत्यानाश होना निश्चित है। इसलिए ट्रैक पर निकलते हुए अपने सबसे भरोसेमंद साथी का साथ में होना अति आवश्यक है। 

आइए आज चर्चा करते हैं ट्रैकिंग शूज पर....

सर्वप्रथम हमें अपनी आवश्यकताओं का स्पष्ट रूप से ज्ञान होना आवश्यक है। सीधी सी बात है कि आवश्यकता के अनुरूप ही सामान होगा तो ही आसानी होगी। कुल मिलाकर इस वर्ग को तीन रूपों में बांटा जाता है। पहला हाइकिंग, दूसरा ट्रैकिंग, और माउंटेनियरिंग। हमें इन तीनों का अंतर भी साफ साफ मालूम होना चाहिए। सीधे लफ्जों में कहूँ तो हाईकर जहां से आगे जाना छोड़ देते हैं वहां से ट्रैकर चलना शुरू करते हैं और ट्रैकर जहां से लौट आते हैं वहां से माउंटेनियर चलना शुरू करते हैं।

एक बार किसी ने मुझे पर्यटक, घुमक्कड़ और ट्रैकर में अंतर पूछा था। मैंने हंसी में इसी तरह उनको अंतर समझाया था कि पर्यटक जहां जाते हैं, वहां घुमक्कड़ नहीं जाता और घुमक्कड़ जहां नहीं जाता, वहां ट्रैकर जाता है। इसीलिए मैं व्यक्तिगत रूप से ट्रैकिंग को घुमक्कड़ी नहीं मानता, ट्रैकिंग एक अलग ही जुनून है। हार्डकोर ट्रैकर मेरी इस बात को समझेंगे, बाकी असहमत होंगे ऐसा मुझे लगता भी है। 

चलिए काम की बात करते हैं और सीधे मुद्दे पर आते हैं....

तो जी यहां हम जो भी बात करेंगे वो सिर्फ ट्रैकिंग के लिए हैं, हाइकिंग और ट्रैकिंग के अंतर को कहूँ तो छोटी सी दूरी मसलन 4-5 किलोमीटर चलना और वापिस आ जाना इसको हाइकिंग कह सकते हैं। हाइकिंग में अक्सर अच्छी ट्रेल पर आप चलेंगे, रास्ता अच्छे से मार्क होगा आदि। जबकि ट्रैकिंग में विभिन्न प्रकार की और इससे विपरीत परिस्थितियों पर आपको चलना होगा। आपको बर्फ में भी चलना होगा, कीचड़ में भी, ठोस बोल्डर जोन में भी और फिसलन भरे रास्ते पर भी। कुल मिलाकर सभी प्रकार के रास्तों पर चलना है, इसलिए जूते भी वह हों जो सबमें फिट बैठ जाएं। जबकि हाइकिंग के लिए सामान्य स्पोर्ट्स शूज भी काम आ जाते हैं, कोई पर्टिकुलर हाइकिंग शूज न भी हों तो कोई परेशानी वाली बात नहीं होती।

जूते खरीदते हुए कुछ महत्वपुर्ण बिंदु हैं जिनपर मैं बात करूंगा। सबसे पहला पॉइंट है जूते का सोल। आमतौर पर  रबर सोल वाले जूते और उनकी ग्रिप सबसे अच्छी मानी जाती है। कैसे जानें कि सोल रबड़ का है या प्लास्टिक का ? इसके लिए जूता खरीदते हुए अगर आप सोल पर अंगुलियों से ठक-ठक मारेंगे तो उससे आने वाली आवाज से आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है। चूंकि प्लास्टिक सोल हार्ड होता है, उसकी आवाज थोड़ी तेज आएगी, जबकि रबर सोल नरम होने के कारण धीमी आवाज करेगा। 

दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु है सोल की ग्रिप कैसी है ? खरीदने से पहले जूते के तलुवे में बने डिजाइन को जरूर गौर से देखिए। जो भी डिजाइन बना हो उसकी और तलुवे की गहराई अच्छी होनी चाहिए, दुकान पर सामान्य स्पोर्ट्स शूज और ट्रैकिंग शूज में मिलान कर आसानी से अंतर को देखा जा सकता है। इसमें अगर तलुवों पर बने डिजाइन असामान्य आकार में हुए तो ग्रिप अच्छी मिलती है।

जूता सदैव हाई एंकल का ही खरीदना चाहिए। मतलब एड़ी से थोड़ा ऊपर तक आए। इसके लिए अपनी एड़ी से दो अंगुल ऊपर तक जूता आए वह परफेक्ट होता है। ट्रैकिंग में हाई एंकल जूता होने से आपके पांवो में मोच आने की संभावना बहुत कम हो जाती है।

जूता वाटर प्रूफ हो या कम से कम वाटर रजिस्टेंस तो होना ही चाहिए। कितने घंटे लगातार भीगने के बाद भी जूते के अंदर पानी नहीं जाएगा यह उसकी डिस्क्रिप्शन में लिखा मिल जाएगा, अन्यथा जूते के बाहरी हिस्से में चमड़े की मात्रा कितनी है, इससे उसकी वाटर प्रूफिंग का अंदाजा लगाया जा सकता है। जितना अधिक चमड़ा होगा उतना अधिक वाटर प्रूफ होगा।

जूता खरीदते समय यह अवश्य चेक कर लें कि उसका वजन कितना है। ज्यादा भारी जूता न खरीदें, भारी जूता ट्रैकिंग में आफत का सबब बन जाता है।

जूता जब भी खरीदें उसको चेक करते समय यह देखें कि यह आपके पांवो पर थोड़ा ढीला ही हो। अपने सामान्य नाप से एक नंबर बड़ा लीजिये, इसका फायदा यह होता है कि बर्फ में मोटी जुराबें व कई बार दो-दो भी पहननी पड़ती है, इससे जूता पांवो पर टाइट नहीं होता।

अंत में मुख्य बात यह है कि कभी भी ट्रैक पर बिल्कुल नए जूते के साथ न जाएं, जूता जब भी खरीदें उसे पहले घर पर 15-20 दिन सामान्य रूप से पहनें। नया जूता पांवो को काट सकता है। 

मैं पिछले लेखों में कह चुका हूँ कि यदि आप लगातार ट्रैक करने वाले हैं तभी प्रॉपर वाटरप्रूफ जूतों में इन्वेस्ट करें, एक बार खरीदें लेकिन अच्छा खरीदें। यदि आपने इक्का दुक्का ट्रैक छोटे ट्रैक करने हैं तो ट्रैकिंग शूज के सस्ते ऑप्शन को चुनें, बाजार में सस्ते जूते भी आसानी से उपलब्ध हैं।

ट्रैकिंग जूतों को प्रयोग करने व इनके लेसेज को बांधने के तरीके व यदि ट्रैकिंग के दौरान जूता पांव के किसी हिस्से को अधिक दबा रहा है तो उसको कैसे एडजस्ट करें, आदि विषय पर कभी एक वीडियो बनाकर डालूँगा, जिससे आपको काफी मदद मिलेगी, ऐसी उम्मीद करता हूँ। यही कुछ बिंदु हैं जो एक परफेक्ट ट्रैकिंग शूज खरीदने में आपकी मदद करेंगे। अगले भाग में किसी अन्य ट्रैकिंग गियर पर चर्चा करेंगे। आपके प्रश्नों व सुझावों का स्वागत है।

इस वर्ष हम अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, इसी उपलक्ष्य में आप सभी को बधाई व ढेरों शुभकामनाएं।

भविष्य में कुछ वीडियो ट्रैकिंग गियर पर बनाऊंगा, जो आपको Go Himalaya यूट्यूब चैनल पर मिल जाएंगी, नीचे दिए लिंक पर क्लिक कर चैनल को सब्सक्राइब कर लें :-

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To be continued......


Tuesday, 27 July 2021

Trekking Gears Part 3 (स्लीपिंग बैग)

Trekking Gears Part -3 

स्लीपिंग बैग


स्लीपिंग बैग का चुनाव हिमालयी ट्रैक के लिए बेहद अहम है। यह लाइफ सेविंग इक्विपमेंट तो है ही साथ में हिमालय के सिवा अन्य जगहों पर भी समय-समय पर काम आता ही रहता है। बाजार में सस्ते से लेकर अच्छी क्वालिटी दोनों प्रकार के स्लीपिंग बैग उपलब्ध हैं। कैसे जानें कि हमको किस प्रकार का स्लीपिंग बैग चाहिए, आइए चर्चा करते हैं.....

आकार के अनुसार स्लीपिंग बैग दो प्रकार के बाजार में उपलब्ध हैं। आयताकार शेप (Rectangular) और ममी शेप (Mummy) स्लीपिंग बैग। उच्च हिमालय व कम तापमान के लिए ममी शेप स्लीपिंग बैग ही चाहिए होता है, आयताकार शेप स्लीपिंग बैग साधारण कैम्पिंग व सामान्य तापमान के लिए प्रयोग किया जाता है। जिसका कारण यह है कि स्लीपिंग बैग के अंदर जितनी कम जगह होगी वह उतनी कम हवा होने के कारण उतना ही अच्छे से गर्म रहेगा। स्लीपिंग बैग कपड़ों के जैसे ही अलग-अलग साइज़ में मिल जाते हैं, लेकिन अपने साइज़ से अधिक बड़ा स्लीपिंग बैग न खरीदें, पहले ही बता चुका हूँ कि जितनी अंदर हवा कम रहेगी उतना ही स्लीपिंग बैग अधिक गर्म रहेगा।

शेप और साइज़ की बात हम कर चुके हैं, अब बात करते हैं क्वालिटी पर.... और सस्ती क्वालिटी को छोड़कर सीधे बात करते हैं अपने काम की, जो है कि हिमालय के लिए कैसे जानें कौन सा स्लीपिंग बैग सही है।

ट्रैकिंग के गर्म कपड़े खरीदते हुए एक शब्द अक्सर आपको सुनने को मिल जाएगा "डाउन फेदर (Down Feather)", ये डाउन फेदर क्या बला है, इसको सबसे पहले जान लेते हैं। अगर ये समझ लिया तो कोई भी गर्म कपड़ा जैसे जैकेट, स्लीपिंग बैग आदि खरीदने में आसानी हो जाएगी।

आप तौर पर ट्रैकिंग या एक्सपीडिशन की जैकेट, स्लीपिंग बैग डाउन फेदर की होती हैं। मतलब बाहर से नाइलोन का कपड़ा होगा तो उसके अंदर फेदर को भरा हुआ होगा। ये बेहद गर्म और वजन में बहुत ही हल्के होते हैं। विदेशों में हंस के पंख से स्लीपिंग बैग या जैकेट बनाई जाती हैं। चीनियों ने उनकी नकल की तो उन्होंने बतख के पंख इनके अंदर भरने शुरू कर दिए जो अपेक्षाकृत सस्ते पड़ते हैं। और जुगाड़ में हम भारतीयों का कोई सानी नहीं तो हमने एक कदम और आगे बढ़कर मुर्गी के पंख इनके अंदर भर-भरकर और सस्ते में या फिर डुप्लीकेट बनाकार बेचने शुरू कर दिए।

अब आपको कैसे मालूम पड़ेगा कि स्लीपिंग बैग या जैकेट के अंदर किस चीज के पंख भरे हैं ? दिखाई तो पड़ते नहीं, क्योंकि वो तो अंदर भरे हैं। यहीं पर एक्सपीरियंस काम आता है, इसके सिवा दूसरा कोई उपाय नहीं है। हंस के पंख बेहद मुलायम होते हैं, बतख के थोड़ा कम और मुर्गी के तो आप जानते ही होंगे। नहीं जानते तो अबकी खुद से हाथ लगाकर चेक कर लीजिएगा, स्लीपिंग बैग और जैकेट की खरीददारी में काम आएगा।

अब दूसरा पॉइंट है ये डाउन क्या है ? हंस, बतख या मुर्गी के पंखों के नीचे और उनके शरीर की त्वचा के बीच में एक बारीक और बेहद मुलायम बालों की लेयर होती है, इन्ही बालों की लेयर को डाउन कहते हैं। कुछ जैकेट या स्लीपिंग बैग सिर्फ "डाउन" होंगे। सबसे अधिक महंगे यही होते हैं। इससे अगला स्टेप है "डाउन फेदर" यानी अंदर कुछ डाउन की फिलिंग है और कुछ फेदर की। किस स्लीपिंग बैग या जैकेट में कितना डाउन है और कितना फेदर इसी के अनुसार इनके दाम तय होते हैं। कई बार प्रोडक्ट की डिस्क्रिप्शन में लिखा होगा कि 90-10 की फिलिंग है, यानी 90% फेदर है और 10% डाउन है। अब ये फिलिंग हंस की है, बतख की है या मुर्गी की है ये आपको ही चेक करना होगा।

अक्सर सबको यह गलतफहमी होती है कि स्लीपिंग बैग गर्मी देता है। जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। इनका काम आपके शरीर की गर्मी को अपने अंदर से बाहर आने से रोकना भर है। जितना अधिक डाउन होगा उतना ही गर्मी रोधक होगा। इसीलिए लेख के शुरू में मैंने कहा कि हर साइज के स्लीपिंग बैग आते हैं, कोशिश कीजिये उसे लें जो आपके शरीर पर फिट हो न कि ज्यादा ढीला हो।

स्लीपिंग बैग जब भी खरीदें उसी के साथ एक कॉटन का "लाईनर" भी खरीद लेना चाहिए। इसको कुछ यूं समझिए कि सर्दियों में हम रजाई के अंदर एक पतला कम्बल भी लपेटकर सोते हैं, जिससे अच्छी गर्मी मिलती है, लाइनर भी ठीक यही काम करता है। यदि आपका स्लीपिंग बैग 5 डिग्री वाला है और आपके पास लाइनर है तो यकीन मानिए यह -5 डिग्री तक काम कर लेगा। बेहद कम तापमान वाले ट्रैक पर लाइनर बहुत ही जरूरी हो जाता है। इससे आपके स्लीपिंग बैग की क्षमता बहुत अधिक बढ़ जाती है।

बाजार में मिलने वाले स्लीपिंग बैग के दाम भी उनके किस तापमान तक को झेल पाएंगे उसी अनुसार होते हैं। जितने कम तापमान का स्लीपिंग बैग उतना ही अधिक दाम, कुल मिलाकर यह "डाउन" और "फेदर" के रेशियो के अनुसार ही होता है।

उम्मीद करता हूँ इस लेख से आपकी शंकाओं का कुछ समाधान हुआ होगा। चलते-चलते बताता चलूं की -10 डिग्री तक का स्लीपिंग बैग हिमालय के लगभग सभी ट्रैक के लिए पर्याप्त होता है।

अगले भाग में अन्य किसी ट्रैकिंग इक्विपमेंट के बारे में चर्चा करेंगे। आपके सुझाव व प्रश्नों का स्वागत है।

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#trekking_gears

Sunday, 25 July 2021

Trekking Gears Part 2 (ट्रैकिंग टैन्ट)

(Trekking Gears Part 2)

ट्रैकिंग / हाइकिंग टैन्ट (Alpine Tent)

चलिए आज चर्चा करते हैं ट्रैकिंग टैन्ट के बारे में। 

मुझे लगता है सबसे ज्यादा लोग टैन्ट को लेकर ही कंफ्यूज रहते हैं, जबकि मेरी नजर में ये सबसे सीधा और सुलझा इक्विपमेंट है, जिसको खरीदने के एक दो बेसिक ही होने चाहिए, अगर उनपर खरा उतरे तो खरीद लेना चाहिए।

टैन्ट मतलब हिमालय में हमारा घर। दिन भर ऑफिस की थकान के बाद अगर घर पर आराम ना मिले और सही से नींद न आए तो हम अपने घर में ही परेशान हो जाते हैं, फिर ये तो हिमालय है। कैसे इसमें कोम्प्रोमाईज़ कर सकते हैं। इसलिए टैन्ट के चुनाव में कुछ महत्वपूर्ण पॉइंट हैं जिनका जिक्र मैं इस लेख में करना चाहूंगा, इसके बाद आपके विवेक और आवश्यकता पर छोड़ देते हैं, जो फिट बैठे वो लीजिये।

सबसे पहले आप अपनी यात्रा के प्रकार को डिसाइड कीजिये, मसलन आप अकेले ट्रैक करते हैं, या एक मित्र कोई और साथ होता है या फिर चार-पांच के ग्रुप में आप यात्रा करते हैं। यह सर्वप्रथम बिंदु है, टैन्ट के चुनाव के लिए। 

आज के समय में बाजार में हर प्रकार के टैन्ट उपलब्ध हैं। क्वालिटी के अनुसार भी और जितने लोगों के लायक चाहिए उसके अनुसार भी। यानी एक आदमी का टैन्ट, दो आदमी का टैन्ट, तीन का या उससे अधिक का, सब उपलब्ध हैं। हिमालय में छोटे टैन्ट ही चाहिए होते हैं, बड़े टैन्ट विदेशों में ज्यादा प्रचलित हैं, क्योंकि वहां वीकेंड पिकनिक इत्यादि पर लोग निकलते रहते हैं।

टैन्ट के चुनाव में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है, टैन्ट के वजन, साइज़, टैन्ट विंड प्रूफिंग और वाटरप्रूफिंग।  टैन्ट का वजन महत्वपूर्ण इसलिए है कि यदि आप सोलो ट्रैक कर रहे हैं तो आपने अपना सामान स्वयं ही ढोना है। ट्रैक पर एक-एक ग्राम सामान भी सोच समझकर लेकर जाना चाहिए, वहां आप सर्वाइवल मोड में हैं न कि पिकिनिक मोड में। चाहे बैग में रखा सामान हो टैन्ट हो या स्लीपिंग बैग कुछ भी हो, बैग जितना हल्का होगा उतनी आपको ही सुविधा रहेगी। साथ ही यह भी ध्यान रखना है कि टैन्ट हल्का तो हो ही लेकिन उसका मजबूत होना भी उतना ही आवश्यक है। 

अब बात करते हैं टैन्ट की मजबूती का, ट्रैकिंग टैन्ट को खड़ा करने के लिए उसके साथ कुछ रॉड दी जाती हैं। यही रॉड आपके इस घर के पिल्लर हैं। हवा, बारिश, बर्फ सबमें यही रॉड आपके टैन्ट को खड़ा रखेंगी। अगर बीच का एक भी पिल्लर तूफान या बारिश में ढह गया तो समझिए पूरा घर ढह गया। इसलिए यह चेक कर लें कि रॉड किस क्वालिटी की टैन्ट के साथ मिल रही हैं। ट्रैकिंग पर टैन्ट की रॉड कभी कभार टूट भी जाया करती हैं, क्या रॉड का सेट दुबारा एक स्पेयर पार्ट के जैसे खरीदें तो वह उपलब्ध होगा या नहीं, अगर नहीं तो एक रॉड क्या टूटी आपका टैन्ट किसी काम का नहीं रहा। हिमालय में अक्सर पूरी-पूरी रात बर्फबारी होती है, बर्फ के वजन से टैन्ट की रॉड टूट जाया करती हैं। मेरे कई ट्रैक में पूरी-पूरी रात बर्फ गिरती रही, हर आधे एक घण्टे में उठ-उठ कर और टैन्ट को हिलाकर बर्फ गिरानी पड़ी थी, जिससे टैन्ट ढहे नहीं।

दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है टैन्ट में प्रयोग हुआ कपड़ा किस क्वालिटी का है। अधिकतर कंपनियां टैन्ट के साथ उसकी डिस्क्रिप्शन भी देती हैं। मसलन टैन्ट को बनाने के बाद किन-किन परिस्थितियों में टेस्ट किया गया है। यानी टैन्ट तूफान में न उड़े उसके लिए कितने किलोमीटर प्रति घण्टे के तूफान में इसको परखा गया है। अमूमन 40 किलोमीटर प्रति घण्टे पर टैन्ट की टेस्टिंग होती है। टैन्ट को कितनी बारिश में और कितनी देर तक टेस्ट किया गया है, यह जान लेना भी आवश्यक है। 

टैन्ट के दो पार्ट होते हैं, इनर और आउटर। इनर में टैन्ट के बेस को छोड़ दें तो बाकी मैटीरियल वाटरप्रूफ नहीं होता, उसका कारण है वेंटिलेशन। अगर सब कुछ वाटरप्रूफ कर दिया जाएगा तो हवा न तो अन्दर आएगी न बाहर जाएगी। हिमालय में पहले ही ऑक्सीजन की कमी है, इसलिए टैन्ट के अंदर हवा पर्याप्त रहे यह भी जरूरी है, इसीलिए इनर पार्ट में हल्का कपड़ा और एक खिड़की दे दी जाती है। सिर्फ टैन्ट का आउटर ही वाटरप्रूफ होता है, इसलिए यह जांच कर लेनी चाहिए कि टैन्ट कितनी बारिश में और कितने घंटो के लिए टेस्ट किया गया है। 

ये ही कुछ प्रमुख टेक्निकल बिंदु थे जिनका ध्यान रखकर ही टैन्ट का चुनाव करना चाहिए, अब आप कहेंगे कि इतनी कहानी सुनाने के बजाय सीधे यह क्यों नहीं बता देते कि कौन सी कंपनी का और कौन सा टैन्ट खरीदें। चूंकि ब्रांड प्रमोशन नहीं कर सकता इसलिए अपने दो अनुभव शेयर करता हूँ, जिससे आपको थोड़ा आईडिया मिल जाएगा।

एक बार मैं जम्मू-कश्मीर में अपने मित्रों के साथ ट्रैक कर रहा था, जिसमें अपना सामान हमको स्वयं ही ढोना था। मेरे एक परममित्र हैं वो जो टैन्ट साथ लाए थे उसका वजन कोई पांच किलो था। तीन लोगों वाला टैन्ट था, पूरे ट्रैक पर अपने बैग के साथ उस टैन्ट को मुझे ढोना पड़ा था, और ट्रैक समाप्त होने तक टैन्ट को ढोने की वजह से मेरी बैंड बज गई थी। जबकि उसी टैन्ट की जगह उसी कंपनी का कम वजन और इतने ही स्पेस का टैन्ट उपलब्ध है। मैंने जब उनसे पूछा कि आपने ये क्यों खरीदा तो उनका उत्तर था कि डिस्काउंट में मिल रहा था इसलिए खरीद लिया। और मुझे नहीं लगता कि उसके बाद उन्होंने उस टैन्ट को फिर कभी प्रयोग किया भी होगा।

दूसरा अनुभव एक उत्तराखंड के ट्रैक का है, कठिन ट्रैक था तो एक मित्र पिकनिक वाला टैन्ट साथ ले आए। पहले दिन ही जब टैन्ट पिच करने लगे तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। उस टैन्ट में ओस भी गिरे तो अंदर तक सब कुछ गीला हो जाए। उनसे पूछा कि ये टैन्ट क्यों खरीदा तो उनका उत्तर था कि ऑन लाइन चेक कर रहे थे सस्ता मिल रहा था तो ले लिया।

कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि ट्रेकिंग इक्विपमेंट को खरीदते हुए यह मन में स्पष्ट होना चाहिए कि आपको क्या चाहिए, न कि सस्ता देखते ही मन डोल जाए और आप वो खरीद लें जिसकी जरूरत कभी पड़े ही नहीं।

चलते चलते बता दूं कि 3 Men टैन्ट मल्टीपर्पज होता है। अगले भाग में स्लीपिंग बैग, जैकेट, जूते और कपड़ों इत्यादि पर चर्चा करेंगे। आप सबके प्रश्नों और सुझावों का सदैव स्वागत है।

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Saturday, 24 July 2021

ट्रैकिंग बैग या रकसैक (Rucksack)

(Trekking Gears Part 1)

दोस्तों यात्रा एक बहुत बड़ा विषय है, यात्राएं कई प्रकार से की जा सकती हैं। हर इंसान की रुचि अलग - अलग होती है, इसलिए हर एक का यात्रा करने का ढंग भी उसकी रुचि के अनुसार ही होता है। किसी को बाइक से लंबी यात्रा करनी है, किसी को परिवार के साथ, किसी को अकेले कहीं भी निकलना है तो किसी को पहाड़ चढ़ने हैं। चूंकि मेरी रुचि मानवनिर्मित स्थलों में कभी नहीं रही, इसीलिए दिल्ली में 25 वर्षों से अधिक समय से रहने के बाद भी न तो आज तक कुतुबमीनार देखा है, न लाल किला, और न ही आगरे का ताजमहल देखने गया हूँ। मुझे प्राकृतिक चीजें ही आकर्षित करती हैं इसलिए मेरे लिए यात्रा का अर्थ सिर्फ और सिर्फ हिमालय ही है।


हिमालय में यात्राएं करनी हैं तो पैदल चलना ही होगा, अन्यथा हिमालय की असल खूबसूरती से आप कभी भी परिचित नहीं हो पाएंगे। और हिमालयी यात्राएं आसान हों ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। दुर्गम पहाड़ों को लांघना, बुग्यालों में भटकना, स्वछंद विचरते हुए पशु पक्षियों को देखना, ग्लेशियरों के पार की निराली दुनिया का आकर्षण और असमान्य वातावरण में जीना ही हिमालय की यात्रा है। चूंकि हिमालय में हमारे पास जो कुछ है वह या तो प्राकृतिक है या वह है जो हम कंधे पर ढोकर साथ ले चल रहे हैं, इसी सब के भरोसे यात्रा पूर्ण करनी होती है। इसीलिए हमारे पास जो भी सामान हो वह जांचा परखा हो यह बहुत जरूरी हो जाता है। वहां इसके सिवा दूसरा कोई ऑप्शन ढूंढने से भी नहीं मिलता। तो आइए एक-एक कर चर्चा करते हैं उन सब जरूरी सामानों की जो ट्रैकिंग अर्थात हिमालयी यात्रा के लिए जरूरी हैं।


ट्रैकिंग के सामान से संबंधित एक महत्वपूर्ण बात मैं आपको बताना चाहूंगा कि अगर आपने लगातार यात्राएं करनी हैं तो ही इनमें इन्वेस्ट करें। अगर आपने सिर्फ एक या दो ट्रैक करने हैं तो आजकल किराए पर भी सामान आसानी से उपलब्ध हो जाता है। एक दो बार की यात्रा के लिए किराए पर लेना फायदेमंद रहता है, और जिनको लगातार हिमालय में ट्रैक करने हैं उनके लिए सलाह है कि वो धीरे-धीरे और एक-एक कर सामान को खरीदें, और जो भी खरीदें वह ब्रांडेड और अच्छी क्वालिटी का ही हो।


सबसे पहला नाम जो मन में आता है वो है ट्रैकिंग बैग। ऐसे तो आज के समय ट्रैकिंग गियर इतने सरल और सुलभ हो चुके हैं कि आसानी से हर छोटे बड़े शहरों में लगभग सारे उपकरण आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, अगर आपके शहर में नहीं मिलते तो ऑन लाइन हैं ही। लेकिन कुछ भी खरीदने से पहले अगर सही जानकारी के साथ यह मालूम हो कि असल मे आवश्यकता किस चीज की है तो मन मे संशय नहीं रहता। इस लेख में जो भी जानकारी दी जाएगी यह ट्रैकिंग से संबंधित ही होगी न कि किसी अन्य प्रकार की यात्रा के लिए। 


दोस्तों आज के समय में हिमालय में खूबसूरत ट्रैकों की भरमार है। हर ट्रैक के अलग अलग चैलेंज हैं, समय भी सबमें अलग-अलग लगता है। कोई ट्रैक चार दिन में पूरा हो जाएगा तो किसी को पूरा करने के लिए आठ दिन भी लगते हैं। अब चार दिन के ट्रैक और आठ दिन के ट्रैक के लिए सामान तो एक जैसा लेकर नहीं जाएंगे, इसलिए ट्रैकिंग बैग कुछ इस प्रकार का हो कि जो मल्टीपर्पज हो तो ज्यादा सही रहेगा।


आम तौर पर ट्रैकिंग बैग लीटर में आते हैं, मैं स्वंय के अनुभव से कह सकता हूँ कि 50-60 Ltr. का ट्रैकिंग बैग आठ से दस दिन के ट्रैक के लिए पर्याप्त रहता है। मैं स्वयं 50 Ltr. का ट्रैकिंग बैग प्रयोग करता हूँ। 


अब ट्रैकिंग बैग किस प्रकार का होना चाहिए :-

सबसे पहले तो मेरी सलाह यह होगी कि अगर आप पहली बार ट्रैकिंग के लिए सामान खरीद रहे हैं तो ऑन लाइन बिल्कुल भी न खरीदें। दुकान या शो रूम में जाकर अच्छे से जांचने के बाद ही सामान खरीदें। बैग का सबसे मुख्य बिंदु है कि आपके कंधे व पीठ पर पूरे लोड के साथ आप कितने कम्फर्ट हैं।


अच्छे और ब्रांडेड बैग के साथ ऐसे तो ज्यादा कुछ चेक करने की आवश्यकता नहीं होती फिर भी जानकारी के लिए बता दूं कि ट्रैकिंग बैग में चेस्ट बेल्ट और वेस्ट बेल्ट (कमर वाली बेल्ट) का होना बहुत ही जरूरी है। इसका फायदा यह होता है कि ये बैग के लोड को तीन भागों में बांट देता है। आपके कंधों पर, चेस्ट पर और कमर पर। दिन में आठ से दस घंटे तक बैग का पूरा वजन अगर सिर्फ कंधों पर रहेगा तो एक ही दिन में कंधे दर्द करने लगते हैं। 


अगर आप  ब्रांडेड कंपनी का बैग लेते हैं तो उसमें ट्रेकिंग गियर को रखने, फिट करने या लटकाने का सब जुगाड़ पहले से दिया रहता है। जैसे टैंट के लिए, मैट्रेस के लिए, पानी की बोतल के लिए, बर्फ में चल रहे तो आइस एक्स के लिए आदि आदि। 


बैग के साथ ही बैग का रेन कवर का होना भी अति आवश्यक है, इसलिए जब भी बैग खरीदें उसी के साथ उसके ही नाप का रेन कवर भी खरीद लेना चाहिए। बारिश, बर्फबारी, धूल इत्यादि से रेन कवर अच्छा बचाव करता है, इसलिए यह भी बैग के साथ जरूर होना चाहिए।


ट्रैकिंग बैग के साथ - साथ एक डे पैक भी खरीद लेना चाहिए, अमूमन डे पैक 15 Ltr. का काफी रहता है। ट्रैक पर हर वक्त आप अपना बैग नहीं खोल सकते, इसलिए ट्रैकिंग के दौरान की आवश्यक चीजों को ड़े पैक में रखकर सामने से लटका लेते हैं। जिसमे कैमरे के लेंस, चॉकलेट, दवाइयां, और जरूरी सामान रखकर चल सकते हैं। ट्रैक पर अक्सर लोग पोर्टर हायर कर लेते हैं या घोड़े पर भी अपना बैग रख लेते हैं। ऐसे में डे पैक में वो जरूरी सामान अपने पास रख सकते हैं।


स्वयं मेरे पास तीन ट्रैकिंग बैग हैं, एक 75 Ltr. एक 50 Ltr. और एक डे पैक है। मैं इन बैग्स को सिर्फ ट्रैक के लिए ही प्रयोग करता हूँ, सड़क मार्ग से की जाने वाली यात्राओं के लिए सामान्य बैग ही यूज़ करता हूँ। 


उम्मीद है आपकी शंकाओं का कुछ समाधान इस लेख के माध्यम से करने में सफलता मिली होगी, आपके कोई भी प्रश्न या सुझाव हों तो उसका स्वागत है।

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Friday, 12 April 2019

गौमुख तपोवन ट्रैक (भाग-1)

दिल्ली से देहरादून
(2/10/2018, मंगलवार)
अनुपम चक्रवर्ती दादा काफी समय से मुझसे उत्तराखंड में किसी ट्रैक को करने को कह रहे थे। मैंने उन्हें दो तीन ट्रैक सुझाए थे लेकिन अंत में गोमुख - तपोवन जाना ही फाइनल हुआ। पहले जून माह में सतोपंथ जाने का कार्यक्रम भी बना था लेकिन पिछले वर्ष जून में लगातार बारिश के चलते सतोपंथ स्थगित कर दिया। उस समय अनुपम दा ने मेरे कहने पर गुवाहाटी से देहरादून की अपनी सारी एयर टिकिट आदि बुक करवा रखी थी, लेकिन मौसम की मार ऐसी पड़ी कि अंतिम समय में सारी टिकिट कैंसिल करनी पड़ गई।