Friday, 14 July 2017

पंवाली कांठा ट्रैक भाग - 2


दूसरा दिन (दिनांक 13-4-2017)
त्रियुगीनारायण से मग्गू चट्टी


आज ट्रैक का पहला दिन था व तय किया था कि राज खर्क तक पहुंचकर कैम्प लगाएंगे। सुबह सभी जल्दी उठ गए। हमारे इस ट्रैक के लिए पोर्टर विक्रम व आशीष थे। इन दोनों ने सुबह जल्दी उठकर कमरे में ही चाय बनाई व हमको चाय के साथ जगाया। तैयार हो रहे थे तो देखा विक्रम व आशीष के पास सामान बहुत ज्यादा व भारी हो रहा है। जब भट्ट जी से राशन के बारे में पूछा तो मालूम पड़ा राशन अत्यधिक रख लिया गया है। कुछ राशन यहीं दुकान वालों को दे दिया, क्योंकि हमको बिना बात के पूरे ट्रैक पर ढोना पड़ता, बेहतर है उतना ही लेकर चलें जितने की खपत होनी है।

होटल में जल्दी परांठा बनाने व दिन के लिए पैक करने को कहा था, जो तैयार था। नाश्ता करने के पश्चात त्रियुगीनारायण के दर्शन करने चले गए। मान्यता है कि त्रियुगीनारायण में भगवान शिव व माता पार्वती ने विवाह किया था व जिस अग्नि के साथ उन्होंने फेरे लिए थे वह ज्वाला सतयुग से अभी तक निरंतर प्रज्वलित है। इस अग्नि की राख को विवाहित जोड़े दाम्पत्य जीवन में सुख का आशीर्वाद लेकर घर जाते हैं। एक बार कालीमठ में ज्वाला बुझ गयी थी तो उसको फिर से प्रज्वलित करने के लिए त्रियुगीनारायण से ही ज्वाला ले जायी गई थी।

मन्दिर के दर्शन करने के पश्चात ट्रैक के लिए चढ़ाई शुरू कर दी। कल गौरी गुफा देखने भी यहीं से गए थे। एक छोटा सा बच्चा अपनी दो गायों को हांक रहा था मुझे देखकर बोल पड़ा “अंकल जी नमस्ते, हम आपको बेवकूफ समझते”। मुझे जोर से हंसी आयी चूंकि बच्चे की उम्र पांच-छह साल की रही होगी तो निश्चित बात है उसे मालूम ही नहीं रहा होगा कि वह क्या कह रहा है। उसको एक टॉफी देकर मैं आगे बढ़ गया।

त्रियुगीनारायण से रास्ता चढ़ाई के साथ शुरू होता है, लेकिन रास्ता अच्छा बना है। सर्दियों में त्रियुगीनारायण में भी बर्फबारी होती है तो ऊपरी हिस्सों में भी होना लाजिमी है। हालांकि अभी स्थानीय लोगों ने बताया कि हमको मग्गू चट्टी के बाद कहीं थोड़ी बहुत बर्फ मिलेगी अन्यथा पूरा रास्ता साफ ही मिलेगा। कोई डेड किलोमीटर चलने के बाद एक छोटा सा बुग्याल आता है। कैम्पिंग के निशान भी यहां मिले, अच्छा कैम्पिंग पॉइण्ट लगा। यहां से ठीक हमारे पीछे हिमालय पर्वत श्रृंखला के शानदार नजारे भी दिख ही रहे थे।

दस मिनट नजारों का लुफ्त लेने के बाद आगे बढ़ गए। बांज बुरांश का जंगल तो त्रियुगीनारायण से ही शुरू हो जाता है। इस साल बुरांश के फूल समय से पहले खिल गए थे। अक्सर ये फूल मार्च-अप्रैल के महीने में खिलते हैं लेकिन इस बार फरवरी से ही बुरांश पहाड़ों में खिल गया था। यहां भी ताजे खिले फूल कम ही नजर आ रहे थे जबकि मुरझाए ज्यादा दिखे। जंगल में चलते हुए यहां का शान्त वातावरण व अलग-अलग पक्षियों की विभिन्न प्रकार की आवाज़ें बहुत ही आनंदमयी माहौल बना देती हैं। ऐसा लगता है कि ये पक्षी हमारा स्वागत कर रहे हों। नटवर भाई मेरे साथ-साथ चल रहा था, जबकि अमित भाई व शशि भाई काफी आगे निकल गए थे।

हां गांव की सरहद खत्म होते ही दो रास्ते कटते हैं। दाहिनी ओर जाने वाला रास्ता खड़ी चढ़ाई का है व सीधा जो रास्ता जा रहा है वह अपेक्षाकृत आसान व कुछ लंबा है। हम मुख्य रास्ते से ही आए लेकिन भट्ट जी, विक्रम व आशीष ने ये शार्ट कट ले लिया और एक जगह पर हमसे पहले पहुंचे बैठे मिले। मेरी सलाह नए ट्रेकिंग के शौकीन मित्रों के लिए यही होगी कि ट्रैक पर कभी भी मुख्य मार्ग को न छोड़ें। मुख्य मार्ग कहीं न कहीं आपको बस्ती तक पहुंचा ही देगा। शार्ट कट के चक्कर में न पड़ें। अक्सर शार्ट कट स्थानीय लोगों ने बनाए होते हैं। स्थानीय निवासियों की तुलना व अनुभव हमसे कई अधिक होता है। आराम से व मुख्य मार्ग को ही पकड़े रहने में भलाई है।

कुछ देर यहां पर आराम करने के उपरान्त आगे बढ़ चले, चढ़ाई लगातार बनी रहती है लेकिन आसान ही है। मेरी ट्रैक पर आदत है कि अत्यधिक फ़ोटो खींचता हूँ। इसलिए धीरे ही चलता हूँ जिससे कोई नजारा, पशु, पक्षी दिखने से छूट न जाए। नटवर भाई भी साथ ही लगा रहा बाकी सदस्य आगे निकल गए थे। हरियाली इस समय जंगलों में न के बराबर मिली क्योंकि पतझड़ का मौसम अपने चरम पर है। अगस्त-सितम्बर में यहां इतनी हरिवाली व कीट-पतंगे मिलेंगे कि आंखे चुंधिया जाएंगी।

दिन के भोजन के लिए हमने तय किया था कि त्रियुगीनारायण से छह किलोमीटर दूर मग्गू चट्टी में करेंगे। चूंकि वहां पर पानी की उपलब्धता भी है। पानी की इस पूरे ट्रैक पर भारी किल्लत है। सिर्फ तीन जगहों पर ही पानी मिलता है। पहला मग्गू चट्टी, दूसरा राज खर्क व तीसरा पंवाली में। इसलिए कैम्प सिर्फ इन्ही जगहों पर लगाया जा सकता है। हालांकि बर्फ पिघला कर पानी बनाया जा सकता है लेकिन वह सिर्फ तभी तक जब तक कि शत प्रतिशत गारंटी हो कि बर्फ मिलेगी।

जैसे-जैसे हम ऊपर चढ़ते जा रहे थे बर्फ कुछ-कुछ स्थानों पर मिलने लगी थी। चूंकि यह जमी हुई बर्फ थी। ताजी पड़ी बर्फ में जमी हुई बर्फ के अपेक्षाकृत चलना आसान होता है। ये बर्फ के पैच भी उस हिस्से में मिलते हैं जहां अक्सर धूप नहीं पड़ती जिससे यह जमकर ठोस हो जाती है। सावधानी से इनको पार करना होता है।

सर के ठीक ऊपर काले बादल भी अचानक से मंडराने लगे थे। चूंकि मग्गू चट्टी की ऊंचाई समुद्र तल से 2800 मीटर के लगभग है, इसलिए मौसम के मिजाज का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल ही था। वैसे आज के दिन मौसम विभाग ने बारिश की चेतावनी भी जारी की हुई थी। एक जगह पुलिया पर बैठकर बिस्कुट के पैकेट खा लिए गए व आगे की चढ़ाई जारी रखी। अनुमान लग रहा था कि पहाड़ की धार के आस-पास ही मग्गू चट्टी है। हमारा पोर्टर विक्रम पहले भी यहां आ चुका है, उसने भी बताया कि एक किलोमीटर के लगभग बचा है। वहां पहुंचकर भोजन करेंगे।

बारिश का खतरा देख कर अपनी चाल तेज करनी पड़ी। मुझे ट्रैक पर सिर्फ बारिश में भीगने से ही डर लगता है। क्योंकि जब-जब भीगा हूँ तुरन्त बुखार आ जाता है व भयंकर सर्दी जुखाम पकड़ लेता है। और बुखार में रहने पर ट्रैक का आनंद समाप्त हो जाता है। शरीर स्वस्थ रहे तो ही ट्रेकिंग का मजा है। आखिरी चढ़ाई बर्फ के जगह-जगह मिल रहे हिस्सों के साथ पार कर मग्गू चट्टी पहुंच गए। मग्गू व इससे आगे खूब बर्फ पूरे रास्ते मे राज खर्क तक पड़ी दिखाई दे रही थी। यानी इससे आगे का रास्ता मुश्किल भरा होने वाला था।

मग्गू चट्टी में एक झोपड़ी बनी है व पानी का एक सोता है जिसका पानी एक गड्ढे में इकट्ठा हो रहा है। यही झोपड़ी अक्सर यहां कैम्प करने वालों या कांवड़ लेकर आ रहे यात्रियों के काम आती है। झोपड़ी में दो कमरे बने हैं। विक्रम ने यहां चूल्हा जला कर चाय बना ली व दिन के भोजन के लिए लाए पैक परांठे खा लिए गए। ऊपर बादलों ने ठीक हमारे सर पर झुंड बना लिया था जिससे निश्चित था कि अगले आधे घण्टे में अच्छी-खासी बारिश शुरू हो जाएगी।

ऊपरी पहाड़ों पर बारिश का कोई भरोसा नहीं होता, होने को दस मिनट में भी बन्द हो जाए व तुरन्त मौसम साफ भी हो जाए और न होने को पूरी रात भी पानी बरसता रहे। मौसम का हाल देखकर हम सभी ने आज यहीं रुकने का फैसला कर लिया। क्योंकि राज खर्क बिल्कुल पहाड़ की चोटी पर है, फिर वहां टैण्ट लगाएंगे तो इस मौसम में हवा जबरदस्त चलेगी। खाना आदि बनाने में भी दिक्कत आएगी। यहां कम से कम झोपड़ी के अन्दर तो रहेंगे। एक कमरे को साफ करके किचन बना लिया गया व दूसरे में अन्दर ही टैण्ट लगा दिए। हवा को दो-दो अवरोधक मिलेंगे तो टैण्ट के अन्दर ठंड भी नहीं लगेगी।

असल में पंवाली कांठा ट्रैक पर पानी की दिक्कत के चलते सीमित जगहों पर ही कैम्प लगा सकते हैं। फिर मग्गू चट्टी से पंवाली की दूरी लगभग सोलह किलोमीटर है। आज अगर हम राज खर्क तक पहुंचते तो कल के लिए हमें दो किलोमीटर कम चलना पड़ता। लेकिन मौसम के हालात देखकर ट्रैक में परिवर्तन करना अच्छी ही बात है। चूंकि अभी दिन बहुत था तो बाहर में ही आग जला ली, लेकिन आग जलाते ही बारिश शुरू हो गयी। विक्रम व आशीष दो टिन की चद्दर ढूँढ़ लाये व आगे सेकने के लिए हमने झोपड़ी के बाहर काम चलाऊ छत बना ली। गप्पें भी मारते रहेंगे जिससे समय भी अच्छा व्यतीत होगा। शाम को जल्दी भोजन कर टैण्ट के अन्दर घुस गए। बाहर बारिश व आंधी ने जोर पकड़ लिया था। रात को कुछ जानवर भी आस-पास मंडराते रहे। मैं भी भगवान से प्रार्थना कर सो गया कि आज पूरी रात पानी बरसा लो लेकिन कल सुबह मौसम साफ कर देना। अब तो कल ही असली परीक्षा होगी।


त्रियुगीनारायण से आगे

अच्छा रास्ता

बुग्यालों की शुरूआत

बुग्याल





शार्ट कट से पहुंच गए






बर्फ शुरू






मग्गू चट्टी


कुकरमुत्ता क्यों हुता ?

और कर ट्रैक

मग्गू से आगे

टाइम पास का बढ़िया जुगाड़

18 comments:

  1. बढ़िया विवरण .शानदार फ़ोटो . दोबारा जाओ तो पहले बताना मैं भी जाना चाहूँगा .

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  2. शानदार और कठिनतम यात्रा विवरण अगले भाग का इंतज़ार रहेगा

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    1. धन्यवाद लोकेंद्र भाई।

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  3. वाह बीनू भाई मैंने यह यात्रा घुत्तू साइड से त्रियुगीनारायण की ओर की थी और आप उल्टा कर रहे हो यदि आप इस ग्रुप पर पवांली से ही वापसी आओगे तो आप बहुत कुछ मिस कर आये।

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    1. जी भाई, आपका वृतान्त पढ़ा है मैंने।

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  4. में भी ट्राई कर सकूं हूँ क्या भाई जी..

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    1. निश्चित रूप से डॉ साहब।

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  5. बढ़िया यात्रा और उतना ही बढ़िया वृतांत बीनू भाई..👍

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  6. बुग्याल देखकर मन प्रसन्न हो जाता है और रास्ते की जितनी थकान होती है , सब उतर जाती है ! मार्च -अप्रैल में भी मग्गू चट्टी में बर्फ मिल जाती है , अजीब लेकिन प्रसन्नता की बात है !! बढ़िया यात्रा वृतांत बीनू भाई

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    1. जी उस साइड धूप कम ही पड़ती है।

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  7. बहुत बढ़िया बीनू भाई..... यात्रा में पूरा मजा आ रहा है। ..अगले भाग का इंतज़ार रहेगा

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  8. आज से लगभग ४६ वर्ष पूर्व मेने गौरीकुंड से बाबा केदारनाथ और वापसी में सोनप्रयाग से त्रियुगीनारायण होते हुए पंवाली बूढ़ाकेदार और वहां से बेलक भटवारी गंगवानी गंगोत्री गोमुख तक की यात्रा की थी। तब ये यात्रा मेने अकेले ही पूरी की थी। और मेरी आयु तब केवल १८ वर्ष थी। साधन के नाम पर जोड़ी कपडे १स्वेटर और १ कम्बल और भोजन के लिए कुछ भुने हुए चने और गुड़। आपकी यात्रा का वर्णन पढ़कर मुझे मेरी यात्रा की यादें तजा करा दी

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