उत्तराखण्ड बाइक यात्रा
(8 दिसम्बर से 15 दिसम्बर 2016)
आयोजन और पहला दिन :-
दिल्ली से हरिद्वार (8 दिसम्बर 2016)
पिछले माह जब कार से उत्तराखण्ड की यात्रा की थी तो गढ़वाल के राठ क्षेत्र का एक हिस्सा देखा था। तभी मन बना लिया था कि इधर दुबारा जरूर आऊंगा और बाकी का हिस्सा भी खंगालूँगा। यात्रा से वापिस आने के बाद मन में यही पशोपेश चलता भी रहा। इधर ट्रैकिंग का कीड़ा भी दिन प्रतिदिन जवान होता जा रहा था। ट्रेक के नाम पर कैलाश कुण्ड के बाद कहीं नहीं गया था। “पंवाली कांठा” ट्रेक भी काफी समय से मन में है, सोचा इसी को कर आऊँ। इस ट्रेक को करने की तारीख भी तय कर ली थी और इसके बाबत फेसबुक पर भी लिख दिया था। एक दो फेसबुक मित्रों ने इस ट्रेक पर साथ चलने कि इच्छा भी जताई। लेकिन तभी इन्ही दिनों मोदी जी ने नोटबंदी बम फोड़ दिया। इस बम का ऐसा असर हुआ कि “पंवाली कांठा” ट्रेक खटाई में पड़ गया।
कुछ दिन नोटबंदी के चक्कर में ATM की लाइनों में व्यस्त रहा लेकिन घुमक्कड़ी का कीड़ा गाहे बगाहे काट ही देता। फिर से मन राठ क्षेत्र की यात्रा की ओर होने लगा। रोजाना गूगल मैप खोलता और इस क्षेत्र को निहारता रहता। गूगल बाबा ने मुझे इस क्षेत्र में ट्रैकिंग की संभावनाएं जब दिखाई तो अब तो यहाँ जाने कि इच्छा और भी प्रबल हो गई। वेसे उत्तराखंड में किसी भी पहाड़ पर चढ़ जाओ तो वो अपने आप में ट्रेक हो ही जाता है। लेकिन कुछ जगहें ऐसी हैं कि जिनका विशेष स्थान है। यहीं दूधातोली भी ऐसी जगह है, जहाँ पेशावर काण्ड के महानायक “वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली” का स्मारक है। साथ ही एक और जगह पर नजर गयी “दीबा डांडा”। फिर तो ज्यादा सोचने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी और इस क्षेत्र में निकलने का मन बना डाला।
अब सबसे बड़ी मुश्किल थी कि इस बार यात्रा का माध्यम क्या रखा जाए। मैं अक्सर सार्वजनिक वाहनों से ही घूमता हूँ, जो मुझे पसंद भी है। लेकिन उत्तराखण्ड में अगर आप मुख्य मार्गों से हटकर यात्रा करना चाहते हैं तो स्थानीय वाहनों पर अधिक निर्भर रहना पड़ता है। और स्थानीय वाहनों से यात्रा करने पर सबसे बड़ी समस्या आती है समय की। बसें इक्का दुक्का चलती हैं और जीप वाले तब तक नहीं चलते जब तक उनकी सवारी पूरी ना भर जाएँ। इतना समय हमारे पास होता नहीं है। दिमाग दौड़ाया तो लगा कि इस यात्रा को बाइक से करना चाहिए। चूँकि मेरे पास खुद की बाइक नहीं है तो अपने बचपन के दोस्त सूर्य प्रकाश डोभाल से इस यात्रा पर साथ चलने हेतु पूछ लिया। डोभाल तुरन्त तैयार हो गया लेकिन शर्त भी ठोक डाली कि 9 दिसम्बर के बाद ही इस यात्रा पर चल पायेगा। मुझे छुट्टियों की कोई परेशानी नहीं होती तो मैंने भी 9 दिसम्बर से इस यात्रा पर निकलने की सहमती दे दी।
इसी बीच मेरे यात्रा कार्यक्रम की भनक गजरौला (उ.प्र.) के
घुमक्कड़ मित्र भाई शशि चड्ढा को लग गई। शशि भाई ने तुरन्त मेरा फोन घनघना दिया और
मेरे साथ यात्रा पर साथ चलने को कह दिया। शशि भाई की एक खासियत है कि उनको कोई
मतलब नहीं होता कि मैं किस क्षेत्र में किसलिए यात्रा पर निकल रहा हूँ। उनको बस
घूमने से मतलब होता है चाहे यात्रा का माध्यम कुछ भी हो। बाइक, बस, ट्रेन कुछ से
भी जाना हो वो हर चीज के लिए तैयार रहते हैं। शशि भाई को 8 तारीख को निकलने का
कहकर मैं अपने रोजमर्रा के कार्यों में व्यस्त हो गया। यात्रा का मोटा मोटा खाका मन में इस प्रकार था कि वाहन तो अपना है ही, टेन्ट, स्लीपिंग बैग भी खुद का लेकर
चलना है, जिससे रात्रि विश्राम के लिए होटल ढूँढने की प्रतिबन्धिता भी नहीं रहेगी। जहाँ मन किया वहीँ तम्बू गाढ लिया जाएगा। रही खाने की दिक्कत तो एक भगोना भी साथ
रख लेंगे, पानी, लकड़ी की उत्तराखण्ड में कोई कमी नहीं है, इमरजेंसी के लिए मैगी
जिन्दाबाद।
होते करते 8 दिसम्बर की तारीख आ गई। डोभाल को 9 तारीख सुबह
श्रीनगर में तैयार रहने को कहा था लेकिन इधर मैं खुद ही कुछ तैयारी नहीं कर पाया
था। सुबह-सुबह ही व्हाट्स अप्प में जब डोभाल ने गरियाना शुरू किया तो आनन् फानन
में बैग तैयार कर लिया और शशि भाई को भी निकलने को कह दिया। शशि भाई से मेरी
मुलाकात आज रात को ऋषिकेश में होनी तय हो गयी। ठीक एक बजे द्वारका से कश्मीरी गेट
बस अड्डे के लिए निकल पड़ा और वहां से दिन के दो बजे ऋषिकेश जाने वाली बस में बैठ
गया। उधर गजरोला से शशि भाई अपनी बाइक से निकल चुके थे। कश्मीरी गेट से ऋषिकेश छह
घन्टे में आसानी से पहुंच जाते हैं, लेकिन जिस रोडवेज की बस से मैं यात्रा कर रहा
था उसका ड्राइवर इससे पहले शायद बैलगाड़ी चालक रहा होगा। भाईसाहब ने वो रुलाते
रुलाते गाडी चलाई कि रात के नौ बजे तक हरिद्वार पहुंचना भी दूभर सा लगने लगा। शशि
भाई छह बजे हरिद्वार पहुँच चुके थे, जब उनको आपबीती सुनाई तो आज की रात हरिद्वार
ही रुकने का फैसला कर लिया। शशि भाई को बस अड्डे के नजदीक ही कोई सस्ता सा होटल
लेकर आराम करने को कह दिया, मैं तो घिसते पिटते पहुँच ही जाऊँगा। बस ने नौ बजे के
लगभग हरिद्वार उतार दिया। बस अड्डे से शशि भाई को फोन किया तो दो मिनट में हाज़िर
भी हो गए। यहीं साथ में ही एक होटल में भोजन कर डोभाल को आज की रात हरिद्वार रुकने
व कल सुबह-सुबह यहाँ से निकलने कि बात बता कर सो गए।
दूसरा दिन :- हरिद्वार से आदि बद्री (9 दिसम्बर 2016)
सुबह फोन की घन्टी घनघनाई तो आँख खुली, देखा डोभाल का फोन
था। समय देखा तो साढे आठ बज रहे हैं। पक्का गलियाँ पड़ेंगी, छूटते ही झूट बोल दिया
कि कीर्तिनगर पहुँच गया हूँ। डोभाल भी घाघ है, और बचपन का दोस्त जो ठहरा, समझ गया। फिर उसने वो प्रवचन सुनाए कि 9 बजे तक हम दोनों होटल से बाहर थे। सामान बांधते और
निकलते-निकलते समय लग गया। दस बजे हरिद्वार से निकल पड़े। हर की पौड़ी पर रुककर एक
दो फोटो खींचे और आगे बढ़ गए। सुबह बिना नाश्ता किए हरिद्वार से चल पड़े थे इसलिए
भूख भी लगने लगी। सोचा देवप्रयाग पहुंचकर ही छोले और परांठे खाएंगे।उधर डोभाल
श्रीनगर में नथुने फुला के बैठा ही था इसलिए जल्दी भी थी। देवप्रयाग
पहुँचते-पहुँचते 12 बज गए। परांठे-छोले का आर्डर दे दिया।
नाश्ता करते हुए ही
श्रीनगर से एक और मित्र और डोभाल के भांजे सुमित नौडियाल का फोन आ गया कि कहाँ
पहुंचे। सुमित को अपनी स्थिति की जानकारी देकर व श्रीनगर में मिलने के लिए कहकर
आगे बढ़ चले। दो बजे श्रीनगर पहुंचे तो डोभाल ने सीधे श्रीकोट में मिलने को कह
दिया। श्रीकोट पहुंचकर मालूम पड़ा कि सुमित भी हमारे साथ चल रहा है। श्रीकोट में
कुछ देर रुक कर जरूरी सामान की खरीददारी करके तीन बजे हम चारों आगे निकल पड़े। आज का
लक्ष्य कर्णप्रयाग तक पहुँचने का रखा था। श्रीनगर से कर्णप्रयाग की दूरी 70 किलोमीटर है। उम्मीद थी अँधेरा होने तक कर्णप्रयाग पहुँच ही जाएंगे। श्रीकोट से
कुछ ही दूरी पर कोटेश्वर डैम है, इससे थोडा आगे बड़ा भूस्खलित क्षेत्र “कल्यासौड़”
है। कई जानें और करोड़ों रुपये ये भूस्खालित क्षेत्र लील चुका है। जबकि यहाँ पर एक
पुल आसानी से बन सकता है। हर बरसात में यह अपना रौद्र रूप दिखा ही देता है। 8 किलोमीटर आगे माँ धारी देवी के मन्दिर पर बाइक रोक कर ऊपर गेट से ही नमन किया साथ
ही इस यात्रा की सकुशलता की प्रार्थना भी। धारी देवी से निकलकर बिना रुके
रुद्रप्रयाग पार हो गए।
रुद्रप्रयाग से कुछ आगे सड़क के दूसरी ओर कोटेश्वर महादेव का
मन्दिर है। अलकनंदा के बिल्कुल तट पर यह मन्दिर है। यहाँ पर अलकनंदा दो संकरी
पहाड़ियों के बीच से होकर गुजरती है। इस ओर से देखने पर शानदार नजारा दिखता है। कुछ
देर यहाँ पर रुककर फोटो खींचे और आगे बढ़ गए। चार धाम यात्रा के चलते सडक इस ओर
शानदार बनी है। कर्णप्रयाग से कुछ पहले गौचर में पांच मिनट के लिए रुकना पड़ा। यहाँ
से कुछ जरूरी सामान लेना था। गौचर पहुँचने तक अँधेरा भी छाने लगा था। कर्णप्रयाग
पहुँचते-पहुँचते अँधेरा भी हो गया। मैंने आज की रात यहीं रुकने के लिए कहा तो सबने
मेरी बात को अनसुनी कर दिया। एक बाइक को सुमित चला रहा था जिसपर डोभाल उसके साथ
बैठा था। इन दोनों की आपस में मालूम नहीं क्या गुटरगूं हुई इन्होने कर्णप्रयाग में
बाइक रोकी ही नहीं और सीधा आगे चल दिए। कर्णप्रयाग से बद्रीनाथ मार्ग को छोड़कर
पिंडारी नदी के साथ-साथ आगे बढ चले।
इस यात्रा का हमारा पहला पड़ाव था आदि बद्री। सिमली
तक पिंडारी नदी के साथ-साथ चलकर हमको दाहिने हाथ की ओर मुड जाना था जो कि गैरसेण के
लिए निकलता है। जबकि सीधा मार्ग आगे ग्वालदम होकर काठगोदाम के लिए निकल जाता है। सिमली में कुछ देर रुककर चाय पी तथा आदि बद्री में रुकने के लिए होटल आदि की
उपलब्धता की जानकारी ली। आदि बद्री में हमको रुकने के लिए आसानी से होटल मिल जाएगा
जब यह बात मालूम पड़ी तो सोचना भी क्या था। अँधेरे में ही आगे की यात्रा जारी रखी। हालांकि सड़क ठेठ पहाड़ी है लेकिन पक्की बनी हुई है। आठ बजे आदि बद्री पहुंचकर मुख्य
सड़क पर ही एक दुकान खुली दिखाई दी तो उनसे रुकने के लिए कमरे की बाबत पूछ लिया। उन्ही के यहाँ चार लोगों के रुकने के लिए 300 रुपये में कमरा मिल गया। खाना भी शुद्ध
शाकाहारी यहीं पर मिल जाएगा, इससे बेहतर घुमक्कड़ों को क्या चाहिए होता है।
यहाँ आदि बद्री में गढवाल मण्डल विकास निगम का गेस्ट हॉउस भी है। जब तक मैं और सुमित इस कमरे को देखकर किराये आदि की बातचीत करते डोभाल और शशि भाई
गढवाल मण्डल विकास निगम में कमरा पता करने चले गए थे। लेकिन वहां डोरमेट्री था
नहीं और कमरे का किराया इतना था कि दोनों चुपचाप वापिस लौट आए। मुझे समझ नहीं आती
कि गढ़वाल मण्डल विकास निगम वालों को कब अक्ल आएगी। किसी भी शहर में पर्यटकों के
पहुँचने का एक निश्चित समय होता है, जिसको आम भाषा में पीक सीजन कहते हैं। पीक
सीजन में मनचाहा किराया होटल वाले वसूलते भी हैं। लेकिन जब होटल खाली पड़े रहते हैं
तो आधे से कम दाम में भी कमरे मिल जाते हैं। यह व्यावसायिकता गढ़वाल मण्डल विकास
निगम को सीखने की जरूरत है।
बाइक से सामान आदि उतारकर कमरे में आराम करने चल दिए। आज
आदि बद्री में हमारे सिवाय कोई भी घुमक्कड़ और पर्यटक नहीं था। ऐसे भी इस क्षेत्र की
अभी इतनी प्रसिद्धि नहीं हुई है। आदि बद्री से पांच किलोमीटर पहले “चांदपुर गढ़ी” पड़ता
है। आजादी से पहले जब गढ़वाल में राजशाही थी तो गढ़वाल 52 अलग-अलग गढ़ क्षेत्रों में
बंटा हुआ था। 888 ई० में परमार वंश के राजा कनकपाल ने यहाँ पर राजधानी स्थापित की
थी जिसे बाद में राजा अजयपाल ने श्रीनगर के नजदीक देवलगढ़ स्थानांतरित कर दिया था। कल
सुबह चांदपुर गढ़ी और आदि बद्री के दर्शनों के बाद आगे निकल पड़ेंगे। कुछ देर पश्चात
भोजन तैयार था। बाहर ठण्ड भी काफी हो चुकी थी, जल्दी से भोजन कर कमरे में आराम
करने चल दिए।
क्रमशः.....
बीनू भाई बढ़िया लिखा है .फ़ोटो भी शानदार है .थोड़ा फॉण्ट साइज़ बड़ा कर लो पढ़ने में आसानी रहती है और नंबर इंग्लिश वाले ही लिखो ताकि सबको समझ आ जाएँ .
ReplyDeleteधन्यवाद नरेश जी, फॉण्ट सेट नहीं हो रहे, मालूम नहीं क्या दिक्कत आ रही.
Deleteबहुत अच्छा यात्रा वर्णन। आज के पोस्ट में कई जगह मात्रा की गलती है बीनू भाई।
ReplyDeleteधन्यवाद चंद्रेश भाई. गूगल बाबा की देन है, वैसे कर दी गलतियाँ ठीक.
Deleteबीनू भाई शानदार यात्रा वर्णन रही बात आप के झूठ बोलने की वो तो कोही भी पकड़ लेता है आप को किऊ की आप को सही प्रकार से झूठ बोलना आता ही ना है वेसे छोड़ो पढ़ के मजा आया
ReplyDeleteधन्यवाद.
Deleteबहुत बढिया लिखा है भाई जी।आप हरिद्वार से आगे की यात्रा ही लिखा करो।
ReplyDeleteह्म्म्म....
Deleteबहुत बढ़िया बीनू भाई फोटो कमाल के है
ReplyDeleteबढ़िया बीनू भाई एक दम मस्त लेख
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद.
DeleteBadhiya lekh beenu bhai...pahaado ki aapki yaatraon ki lekhan shailly kaafi alag hai isliye padhkar maja aata hai...
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप भाई
Deletegreat .. ek aur shandar yatra shuru.. jaldi -2 chhapte rehna
ReplyDeleteधन्यवाद PS सर
Deleteबहुत बढ़िया ! रुद्रप्रयाग तो दिल में बसा हुआ है एक पूरा दिन गुजारा है वहां ! मस्त फोटो
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई.
Deleteबीनू भाई आपके यात्रा वृतांत पढने मे बहुत मजा आता है क्योंकि आप पहाडो पर ट्रैकिंग के लेख ही लिखते है जो मुझे पंसद आते है ।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई.
Deleteबहुत खूब लिखा आपने
ReplyDeleteकमियां क्या बताऊँ?
बस पढ़ते रहूँ👌👍
धन्यवाद पालीवाल जी।
Deleteगज़ब बीनू भैया
ReplyDeleteधन्यवाद मिश्रा जी।
Deleteबहुत बढ़िया लेखन और फ़ोटो
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसरल व आडंबर रहित लेखन!इतना सुंदर यात्रा विवरण शेयर करने के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद
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