उत्तराखण्ड बाइक यात्रा (8 दिसम्बर से 15 दिसम्बर 2016)
2-तीसरा दिन (10-12016)
सुबह छह बजे सभी जग गए। जग क्या गए जगा दिए गए, रात को होटल में कह दिया था कि सुबह चाय मिल जायेगी तो मजा आ जाएगा। होटल मालिक ने हमारी इच्छा का पूरा ख्याल रखा और कमरे में ही चाय भिजवा दी। बाहर मौसम में ठंडक थी। जल्दी से तैयार होकर आज की घुमक्कड़ी के लिए कमर कस ली। होटल में नाश्ता बनाने को कह दिया इतने में हम 3 किलोमीटर पीछे “चांदपुर गढ़ी” घूमकर वापिस आ जाएंगे।
चांदपुर गढ़ी.
उत्तराखण्ड का यह दुर्भाग्य रहा है कि यह प्रदेश अपने इतिहास को संजोकर रखने में नाकाम रहा है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि यह प्रदेश अभी अपने शैशवकाल में है, शायद भविष्य में यहाँ का इतिहास और सलीके से पढने व जानने को मिल जाए। नेपाल से कत्यूरी उत्तराखण्ड में घुस आए थे। कत्यूरियों ने गढ़वाल पर भी अपना कब्ज़ा जमा लिया था। लेकिन गढ़वाल में वो अधिक समय तक शाशन नहीं कर पाए थे इसलिए उनको गढ़वाल को छोड़ कर जाना पड़ा। कत्यूरी जब गढ़वाल से कुमाऊँ के अल्मोडा की ओर चले गए तो मालवा से आए कनकपाल ने स्वयं को सोनपाल का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया व चांदपुर गढ़ी में अपनी राजधानी स्थापित कर दी।
888 ई० में कनकपाल ने पंवार वंश की स्थापना की। पंवार वंश गढ़वाल का सबसे शक्तिशाली राजवंश हुआ जिसके 37 राजाओं ने गढ़वाल पर राज किया। ऐसी मान्यता है कि राजा सोनपाल ने अपनी इकलोती पुत्री और उत्तराधिकारी का विवाह मालवा से आये कनकपाल से कर दिया। कनकपाल ने चांदपुर गढ़ी में अपनी राजधानी स्थापित कर पंवार वंश की स्थापना की। बाद में पंवार वंश के अंतिम व सबसे शक्तिशाली राजा अजयपाल ने पहले अपनी राजधानी को श्रीनगर के निकट देवलगढ़ व बाद में श्रीनगर स्थानांतरित कर दिया।
चांदपुर गढ़ी में किले को इस प्रकार से निर्मित किया गया था कि अगर दुश्मन सेना आक्रमण करे तो भ्रमित होकर रह जाए। कुछ चक्रब्यूह जैसे सरंचना का किले के बाहरी शेत्र में निर्माण किया लगता है, जिससे आसानी से किले को भेदा न जा सके। कुछ ओखलियां भी खुदाई में प्राप्त हुई हैं। किले के साथ ही एक कुआँ भी है। किले के बीचों बीच दक्षिण काली का मन्दिर है, हालांकि प्राचीन मूर्ति को चोर उडा ले गए उसके स्थान पर अब नई मूर्ति स्थापित कर दी गई है। नंदा देवी राज जात यात्रा के समय गढ़वाल के राजा की ओर से यहाँ पर राज जात का स्वागत और माँ नंदा की पूजा अर्चना की जाती है, जो आज भी विधिवत जारी है। चांदपुर गढ़ी को देखने के बाद वापिस आदि बद्री के लिए निकल पड़े।
आदि बद्री
पन्च बद्री में आदि बद्री धाम को प्रथम बद्री के रूप में जाना जाता है। बद्रीनाथ की स्थापना से पूर्व भगवान बद्री विशाल की पूजा आदि बद्री में ही होती थी। आदि बद्री धाम के कपाट वर्ष में सिर्फ एक महीने के लिए शीतकाल में बंद होते हैं व प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के दिन यहाँ कपाट खुल जाते हैं। साथ ही इसी दिन से 9 दिनों का महाभिषेक समारोह यहाँ पर होता आया है। आदि बद्री में प्रत्येक वर्ष गर्मियों में एक मेले का आयोजन भी होता है। गढ़वाली में इस मेले को “नोठा पुजे” के नाम से जाना जाता है। स्थानीय लोगों में इस मेले का बड़ा महत्व है। नोठा पुजे में “रोट” (चावल के आटे की मीठी रोटी) का भोग लगाया जाता है।
आदि बद्री में पूर्व में 16 मंदिरों का समूह था जो अब 14 का ही रह गया है। जब हम यहाँ पर पहुंचे तो पुजारी जी ने हमको अच्छी प्रकार से दर्शन करवाए। मुख्य मन्दिर भगवान् विष्णु का है, जो सभी मंदिरों के मध्य में व सबसे थोडा ऊंचाई पर बना है। अन्य मंदिरों में भगवान विष्णु की सवारी गरूड़, सत्यनारयण, लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, चक्रभान, कुबेर, राम-लक्ष्मण-सीता, काली, भगवान शिव, गौरी, शंकर एवं हनुमान को समर्पित हैं। आदि बद्री के ठीक सामने उत्तर वाहिनी गंगा बहती है जिसे स्थानीय लोग “आटा गाड“ के नाम से जानते हैं। इसी के जल से भगवान विष्णु का यहाँ पर जलाभिषेक किया जाता है। आदि बद्री के निकट ही “थापली” गाँव के थपलियाल इस मन्दिर के पुजारी हैं।
आदि बद्री दर्शन के बाद आगे निकलने की तैयारी शुरू कर दी, भूख भी लगने लगी थी तो पहले नाश्ता कर लिया जाए फिर आगे बढ़ेंगे। रात्रि विश्राम जिस होटल में किया था उन्ही को परांठे तैयार रखने को कहकर हम आगे चले गए थे। आलू के परांठे और दही खाकर तृप्ति हुई तो अब आगे बढ़ चले। यहीं आदि बद्री में आगे की जानकारी भी ले ली थी जिससे कि हमारा अगला पड़ाव तय हुआ “दूधातोली”। जो कि आदि बद्री से लगभग 20 किलोमीटर दूर देवालीखाल से भराड़ीसेण की ओर जाने पर पड़ता है, साथ ही यहाँ पहुँचने के लिए 12 किलोमीटर ट्रेक करके पहुंचा जाता है।
आदि बद्री से आगे भी शानदार पहाड़ी नज़ारे मिलते हैं, सड़क किनारे देवदार के नुकीले वृक्ष इस मार्ग की खूबसूरती में चार चाँद लगा देते हैं। सर्दियों के लिए जगह जगह ब्लैक आइस मिलने के चेतावनी भरे बोर्ड मिलते रहते हैं जो धीरे चलने पर मजबूर करते रहते हैं। गुनगुनी धूप हो और सर्दियों का मौसम हो तो बाइक की सवारी का मजा भी दोगुना हो जाता है। एक घन्टे में हम देवालीखाल पहुँच गए। यहाँ रूककर स्थानीय क्षेत्र की और जानकारी ली, साथ ही दूधातोली जाने के बारे में भी मालूम किया तो सभी ने हौसला दिया कि अच्छा रास्ता है।
देवालीखाल से दाहिनी ओर सड़क उत्तराखण्ड विधान सभा परिसर के लिए निकलती है, जो कि भराड़ीसेण में पड़ता है। जबकि सीधी सड़क गैरसेण के लिए निकल जाती है।उत्तराखण्ड की प्रस्तावित राजधानी यही है। अब प्रस्तावित राजधानी है तो निश्चित बात है कि सडक की तारीफ करना बेमानी होगा। जगह-जगह सजावट का कार्य सड़क के दोनों ओर किया गया है। देवालीखाल से भराड़ीसेण की दूरी पांच किलोमीटर है। शानदार नजारों का लुफ्त उठाते हुए उत्तराखण्ड विधानसभा परिसर के ठीक गेट के सामने बाइक रोक दी।
क्रमशः ......
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दुर्ग की ओर जाता रास्ता |
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दूर दूधातोली की ओर |
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तीन तिगडी |
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आदि बद्री की ओर |
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दक्षिण काली मन्दिर |
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जय माँ काली |
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चांदपुर दुर्ग |
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चांदपुर दुर्ग में मन्दिर |
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चांदपुर दुर्ग परिसर |
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दीवारों पर कलाकृति |
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चांदपुर दुर्ग |
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चांदपुर दुर्ग |
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चांदपुर दुर्ग |
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अवशेष |
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ओखलियां |
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खुदाई में मिला कुआँ |
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चांदपुर गढ़ी से वापसी |
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चांदपुर गढ़ी |
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चांदपुर गढ़ी |
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आदि बद्री मन्दिर समूह |
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आदि बद्री मन्दिर समूह |
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आदि बद्री मन्दिर समूह |
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आदि बद्री मन्दिर समूह में |
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आदि बद्री मन्दिर समूह |
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शशि चड्ढाआदि बद्री में |
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देवालीखाल |
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देवालीखाल |
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चेतावनी |
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विधान सभा गेट |
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उत्तराखंड विधान सभा परिसर |
majedar yatra..
ReplyDeleteधन्यवाद PS सर.
Deleteजानकारी से भरपूर पोस्ट .
ReplyDeleteधन्यवाद नरेश जी.
Deleteमजेदार व साथ में जानकारी से युक्त पोस्ट।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई.
Deleteमजेदार और बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी ! देवलगढ़ में भी कुछ है देखने लायक ? राजधानी रही है तो कुछ तो होना चाहिए !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई.
Deleteज्ञानवर्धक जानकारी
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी।
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