दूधातोली ट्रैक
“अगर मुझे एक
चन्द्र सिंह "गढ़वाली" और मिल जाता तो भारत कब का आजाद हो जाता” :- महात्मा गाँधी
बात 23 अप्रैल सन 1930 की है। गढ़वाल रायफल
की एक पलटन पेशावर में तैनात थी। पेशावर के किस्साखानी इलाके में आजादी के दीवाने
पठानों की एक सभा हो रही थी, गढ़वाल रायफल की पलटन को इस इलाके में जाकर विद्रोह को
कुचलने का निर्देश हुआ, इस पलटन की अगुवाई कप्तान रेकेट कर रहे थे। कप्तान रेकेट
ने जब इन निहत्थे लोगों पर गोली बरसाने के आदेश दिए तो हवलदार मेजर चन्द्र सिंह
भण्डारी ने अपनी पलटन को सीज फायर का आदेश दे दिया तथा निहत्थे लोगों पर
गोली बरसाने से इन्कार कर दिया। इसके बाद 72 गढ़वालियों की इस पलटन पर कोर्ट मार्शल
का आदेश हुआ जिसमे इनको सजाये मौत की सजा सुना दी गई। बैरिस्टर मुकुन्दीलाल ने इन
गढ़वाली सैनिकों का मुकदमा लड़ा और इनकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलवा दिया।
इन्ही हवलदार मेजर चन्द्र सिंह भण्डारी की जन्मभूमि क्षेत्र है चान्दपुर
गढ़ी।
वीर चन्द्र सिंह "गढ़वाली" का काफी समय तक
अंग्रेजो द्वारा गढ़वाल में प्रवेश निषेध था। अपने अन्तिम समय में वे जब अपनी
जन्मभूमि में आए तो उनकी इच्छा थी कि उनकी समाधि को किसी ऊंचे और खूबसूरत स्थान पर
बनाया जाए, जहाँ देवदार के वृक्ष हों। भारत के इसी वीर गढ़वाली सपूत का समाधि स्थल
दूधातोली में है।
यात्रा वृतान्त:-
जैसे ही हमने भराड़ीसैण में प्रवेश किया
समझते देर नहीं लगी कि क्यूँ यह स्थान प्रदेश की विधानसभा के लिए चयनित हुआ है।
गढ़वाली में “सैण” का मतलब होता है समतल स्थान। ऐसे भी पहाड़ों में समतल स्थान कम ही
मिलते हैं। भराड़ीसैण पहाड़ी धार पर समतल में बसा है। बेहद खूबसूरत !!! गेट पर ही चौकीदार से कुछ देर बातें की और दूधातोली जाने बावत पूछ लिया। उसने ठीक सामने पहाड़
की चोटी की ओर अंगुली उठा दी। साथ ही यह भी बता दिया कि कुछ आगे बाजार है, वहां तक
ही सड़क जाती है। बाजार की तरफ ही बढ़ चले। पहाड़ी बाजार की यहाँ के मैदानी बाजार से
तुलना करने की भूल न करना। पहाड़ों में 2 दुकानों वाली जगह को भी बाजार का नाम दे
दिया जाता है। यही स्थिति भराड़ीसैण बाजार की भी है। कुल जमा चार दुकानें हैं।
एक दुकान पर बाइक रोक कर आगे की जानकारी
ली तो दुकानदार भाई ने तुरन्त ही पूछ लिया कि दूधातोली के लिए गाइड चाहिए क्या ?
मैंने कहा नहीं, सिर्फ रास्ता समझाओ। उसने फिर कहा कि बिना गाइड के पहुँच ही नहीं
पाओगे। घना जंगल है भटक जाओगे। भाई को लगा कि ये होगा कोई बाहर से आया, लेकिन सलाह
उसकी गलत भी नहीं थी। फिर उसे समझाना पड़ा कि भाई मैं भी पहाड़ी ही हूँ और ये
जंगल-पहाड़ तो मेरे खून में उतना ही है जितना तेरे। तब भाई की समझ में आई और
पूरे रास्ते का नक्शा एक कागज़ पर बनाकर मुझे थमा दिया। साथ ही यह भी कह दिया कि
ऐसे तो सड़क यहीं पर समाप्त हो जाती है, फिर भी जितनी आगे तक बाइक ले जा सकते हो ले
जाना। उसके बाद वहीँ जंगल में खड़ी करके आगे बढ़ जाना।
बाइक से सामान उतारकर इसी दुकान पर रख
दिया। अभी सुबह के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, जब दुकानदार भाई से वापसी का अनुमानित
समय पूछा तो उसका कहना था कि शाम के पांच बजे तक आप लोग वापिस आ जाओगे। दिन के
खाने के लिए यहीं से चार पैकेट मैगी, प्याज, टमाटर सब रख लिए। पतीला अपने पास था
ही, पानी लकड़ी फ्री की मिल ही जाएंगी। दुकान पर यह कहकर आगे बढ़ चले कि अगर हमको
वापिस आने में कुछ देर भी हो जाए तो आप हमारी इन्तजारी कर लेना।
भराड़ीसैण बाजार से ही आगे के लिए कच्चा
रास्ता शुरू हो जाता है। रास्ता शुरू के दो किलोमीटर तक तो फिर भी ठीक ही है,
लेकिन उसके बाद तो भगवान ही मालिक हैं। फिर भी ठेल पीटकर शशि भाई व सुमित किसी तरह
लगभग 5 किलोमीटर कच्चे रास्ते पर बाइक ले ही गए। आखिरी में जब रास्ता नजर आना ही
बन्द हो गया तो घने जंगल में बाइक को छोड़कर ट्रैकिंग की शुरुआत कर दी। नक़्शे के
अनुसार कुछ देर सीधा चलने के बाद एक छोटा पहाड़ी नाला पड़ना था वहां से बायीं ओर
होकर सीधे दो किलोमीटर की चढ़ाई है। नाले के बाद नाक की सीध में ऊपर को रास्ता
दिखाई दिया तो उस पर आगे बढ़ने लगे। बहुत ही घने जंगल से होकर गुजरना पड़ता है।
जैसे-जैसे ऊपर चढ़ते जा रहे थे ठीक दूसरी
ओर त्रिशूल, नन्दा घुंटी पर्वत श्रृंखला के शानदार नज़ारे शुरू हो गए। डोभाल अपने
साथ दूरबीन लेकर आया था। दूरबीन से पर्वत श्रंखलाओं को करीब से देखने का अवसर भी
मिला। रास्ते में जंगली जानवरों के निशान भी मिल रहे थे। दिखेंगे क्यूँ नहीं,
चूँकि इस ट्रैक के बारे में अभी लोगों को ज्यादा मालूम नहीं है इसलिए आवाजाही
बिल्कुल भी नहीं है। एक घन्टे में जब चढ़ाई से निजात मिली तो जंगल भी समाप्त हो गया।
पूरी घाटी का अद्भुत नजारा यहाँ से दिखाई पड़ता है। त्रिशूल पर्वत तो ऐसा लगता है
कि इस पूरे क्षेत्र पर राज कर रहा हो। हर वक्त सीना ताने खड़ा रहता है।
"लोभा,चांदपुर,चोथान,चोपड़ा कोट और
डायजोली,
इन सबसे मिलकर बनता है दूधातोली"
यहाँ पर काफी देर तक फोटो सेशन का दौर चला।
क्यूंकि लोकेशन ही ऐसी थी कि तुम पहाड़ की चोटी पर बैठे हो और तुम्हारे ठीक पीछे
त्रिशूल पर्वत खड़ा हो तो कौन नहीं ललचाएगा। जी भर कर फोटो खींचने के बाद आगे बढ़ चले।
बुग्याल शुरू हो जाते हैं, छोटा सा बुग्याली मैदान पड़ता है और पांच-सात झोपड़ियाँ
बनी हैं। चूँकि सर्दियों का मौसम है इसलिए स्थानीय लोग अपनी भेड-बकरियों को नीचे
ले गए हैं, इसलिए खाली पड़ी हैं। कुछ एक झोपड़ियाँ आग के हवाले भी हो गई दिखाई दी।
शायद इस वर्ष उत्तराखण्ड के जंगलों में लगी आग से यह क्षेत्र भी बच न पाया। नक़्शे के
अनुसार इन झोपड़ियों के बाद बायीं ओर रास्ता जाता है जो सीधा समाधि स्थल तक हमको ले
जाएगा। लेकिन इधर छोटे-छोटे रास्ते चारों ओर जाते दिखाई दिए। समाधि स्थल ठीक चोटी
पर है यह मुझे मालूम था इसलिए नाक की सीध में यहाँ से भी आगे बढ़ते रहे।
आखिर में आधा किलोमीटर की चढ़ाई के बाद समाधि स्थल पर पहुँच ही गए। पहाड़ की ठीक चोटी पर छोटा सा समतल मैदान है यहीं पर
गढ़वाल का वीर सपूत चिर निंद्रा में सो रहा है। समाधि स्थल की हालत देखकर समझ आ
जाता है कि सरकारी तौर पर इसकी कितनी घनघोर उपेक्षा हुई है। साथ में ही हैलीकॉप्टर उतरने के लिए हैलीपेड जैसे बनाए निशान दिखे। जरूर कोई नेताजी कभी यहाँ
माल्यार्पण के लिए पहुंचे होंगे। उसके बाद यहाँ का दुबारा रुख करना भूल ही गए
होंगे। समाधि पर पहुंचकर इस वीर सपूत को नमन किया और यहाँ से दिखने वाले नजारों का
आनन्द लेने लगे।
दूधातोली से 180 डिग्री के एंगल पर हिमालय
श्रृंखला का बेहद शानदार नजारा दिखाई देता है। गढ़वाल क्षेत्र में कुछ ही जगह ऐसी हैं
जहाँ से पर्वत श्रृंखलाओं का इतना खूबसूरत नजारा ठीक नजरों के सामने देखने को
मिलता है। दिन के साढे तीन बज चुके थे भूख भी लगने लगी थी बिस्कुट व केले लाए थे,
पहले इन पर पेट आजमाया गया। मैगी स्टेंड बाय के लिए रख दी। गुनगुनी धूप और ठण्डी
हवा के संजोग ने धूप में पसरने को मजबूर कर दिया।
“आटागाड गंगा और नयार का यहाँ उदगम,
चमोली, पौड़ी और अल्मोड़ा का यहाँ होता संगम”
दूधातोली की समुद्र तल से ऊंचाई 3100
मीटर के लगभग है। जबकि भराड़ीसैण की ऊंचाई लगभग 1800 मीटर है। कुल दूरी लगभग 12
किलोमीटर की है जिसमे 5 किलोमीटर हम खींच तान कर बाइक ले आए थे। कुल मिलाकर 12
किलोमीटर में 1000 मीटर चढ़ना होता है इससे अनुमान लग जाता है कि अच्छी-खासी चढ़ाई
है। बीच में घना जंगल ऊपर बुग्याल और ठीक सामने 180 डिग्री पर दिखता हिमालय। यहाँ
वो सब कुछ है जिसके लिए बार-बार आया जा सकता है। सर्दियों में बर्फ के पड़ने पर तो
यहाँ की सुन्दरता अपने आप में मिसाल होगी। बस इस जगह को जरुरत है थोड़े से प्रचार
की।
करीब एक घंटा दूधातोली में बिताने के बाद
वापसी की तैयारी कर ली। भूख भी लग रही थी, कुछ नीचे जाकर पानी है वहीँ पर मैगी
बनाई जाएगी। एक छोटी सी पानी की जलधारा बहती हुई दिखाई दी तो पत्थरों का चूल्हा
बना कर आग सुलगा ली और मैगी निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी। चूँकि बर्तन एक ही
था इसलिए पानी, मैगी, प्याज, टमाटर सब एक साथ डालकर उबालने रख दिए। चाक़ू था नहीं
तो हाथ या मुहं से जैसे भी प्याज टमाटर छील/काट सकते थे काट डाले। हरी मिर्च भी
थी, वो भी डाली जिससे स्वाद में कोई कमी न रहे। 2 मिनट में बनने वाली मैगी जब आधे
घन्टे में बनकर तैयार हुई तो खाकर तृप्त हो गए।
मैगी भोग में इतना समय लग गया कि अंधेरा
छाने लगा था। तुरन्त नीचे के लिए दौड़ लगा दी। अमूमन मैं टॉर्च लेकर चलता हूँ लेकिन
आज नीचे भराड़ीसैण में ही छोड़ आया था। एक टोर्च सुमित के पास थी कुछ देर में जब
रास्ता बिल्कुल ही दिखना बन्द हो गया तो टॉर्च व मोबाइल की लाईट से नीचे उतरते रहे।
एक दो जगह में शंका हुई कि कहीं गलत दिशा में तो नहीं जा रहे लेकिन पानी के छोटे
से नाले की आवाज ने सही दिशा का ज्ञान करा दिया। आराम से उतरते हुए बाइक जहाँ खडी
की थी वहां पहुँच गए। अँधेरे में ही इस खतरनाक रास्ते पर बाइक की सवारी कर
भराड़ीसैण वापिस पहुँच गए।
चिन्ता थी कि जिस दूकान में सामान छोड़ा था वो परेशान हो
रहा होगा। दुकान मालिक का घर वहीँ नजदीक ही था तो वो कब के दुकान बन्द कर घर चले
गए थे। जब उन्होंने दूर से बाइक की रोशनी देखी तो समझ गए कि हम पहुँचने वाले हैं। तुरन्त ऊपर सड़क पर आ गए,
उनसे सामान लेकर और उनका धन्यवाद कर हम गैरसेण के लिए निकल पड़े। ठण्ड का प्रकोप भी
बढ़ता जा रहा था। ऐसे तो टेन्ट भी हमारे पास थे। लेकिन 20 किलोमीटर दूर जब आराम से
होटल मिल जाएगा तो क्यूँ ठण्ड में मरना। आराम से चलते हुए रात को 10 बजे गैरसैण
पहुँच गए। यहीं बस अड्डे के सामने ही कमरा भी मिल गया। पास में ही एक होटल खुला
मिल गया। भोजन कर आराम करने लगे। कल सुमित को श्रीनगर वापसी करनी है, यहीं से एक
जीप सीधे श्रीनगर जाने के लिए मिल गई। जीप मलिक को एक सीट श्रीनगर तक के लिए
रिजर्व रखने को कहकर कमरे में सोने चले गए।
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उत्तराखण्ड विधान सभा |
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बाजार की ओर
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गैरसेण की ओर |
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भराड़ीसैण |
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भराड़ीसैण और उत्तराखण्ड विधान सभा |
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जहाँ तक बाइक जा पाए
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चले चलो
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जोर लगाओ
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बाइक ने मना किया तो ठेल के ले जाएंगे
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बस कर भाई
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पगडण्डी भी समाप्त
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मस्ती में
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दूधातोली के रंग
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खडी चढ़ाई
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ऐसे ही थोड़ी फ़िदा हूँ हिमालय पर
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दूरबीन से कैद करो इस खूबसूरती को
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बुग्याल
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दूधातोली के रंग
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सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचना है
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त्रिशूल सीना ताने हुए
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त्रिशूल पर्वत
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नन्दा घुंटी
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झोपड़ियाँ मतलब हमारा रहने का जुगाड़
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दूधातोली
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निशब्द हूँ इस खूबसूरती पर
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चौखम्बा की ओर बादल हैं
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हैलीपेड, कभी नेताजी फरमाए होंगे |
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पहुँच गए
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उत्तराखण्ड के वीर सपूत को नमन
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खूबसूरत दूधातोली
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आराम के पल
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डोभाल जी वीर सपूत की शान में लिखते हुए
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शशि चड्ढा ख़ूबसूरती कोकैमरे में कैद करते हुए
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भारत माँ के लाल यहीं पर सोए हैं
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चौखम्भा
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कुछ खा लें
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स्वादिष्ट मैगी
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दूधातोली की शाम
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सूर्यास्त के समय चौखम्भा
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चौखम्भा और करीब से
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सूर्यदेव प्रस्थान |
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त्रिशूल पर सूर्यास्त
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और आखिर में दूधातोली का 180 डिग्री पैनोरमा |
वाह.......
ReplyDeleteबीनू भाई मस्त जगह से रूबरू कराने का शुक्रिया ...
आपके फोटुओं से पता चलता है के कितने शानदार व्यू मिले होंगे देखने को .....हिमालय श्रृंखला के सारे फोटो ज़बरदस्त है...👌
धन्यवाद डॉ साहब.
Deleteवाह बीनू भाई . जबरदस्त .चित्रों में तो निशब्द ही कर दिया .
ReplyDeleteधन्यवाद नरेश जी.
Deleteदूधातोली के बारे में आप के लेख के अलावा यूटयूब पर एक विडियो देखा था, लेकिन यहां की सुंदरता के बारे में आप के लेख से ही जाना। बहुत सुंदर फोटो, मजा आया पढकर
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई.
Deleteमजा आ गया ! बहुत ही सुन्दर जगह है और बहुत ही शानदार वृतांत लिखा है बीनू भाई ! शानदार नज़ारे और खूबसूरती गज़ब ढा रही है !
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई.
Deleteगज़ब बीनू भाई, मन ललचाये रहा ना जाये, पर जाएँ तो जाएँ कहाँ कहाँ जाएँ ।
ReplyDeleteपर चलो एक और स्थान की लालसा जग गई आपके लेख और गज़ब फोटू देखकर ।
धन्यवाद संजय भाई.
Deleteगजब बीनू भाई
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल
Delete.... बहुत ही शानदार
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी
Deleteगज़ब नज़ारे ,गज़ब यात्रा |बस ,इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा ,पर एक बार आपके साथ इस जगह जरूर चलूंगा|
ReplyDeleteअवश्य चलेंगे रूपेश भाई
Deleteबहुत खूबसूरत तस्वीरे
ReplyDeleteव आअपकी लेखनी
धन्यवाद पालीवाल जी
Deleteबीनू भाई, जाने की हसरत थी, तुमने सब दिखा दिया।
ReplyDeleteमौका लगे तो जरूर जायेगा माहर साहब। जाना बनता है।
Deleteवाह! बहुत ही रोचक सफर का खूबसूरती से वर्णन किया है रमता भाइी अौर तस्वीरों का तो क्या कहना लाजवाब हैं
ReplyDeleteHi! Really nice blog and amazing pictures. Bas ek point thoda galat hai. Apne jis pahaad ka naam Nanda-ghunti likha hai, wo actual me 'Dunagiri' hai. Nanda-ghunti Trishul ke just left wali choti hai. Aur aapne paanch pattiyon ka naam likha hai jinhe milakar Dudhatoli banta hai, zyadatar area to inhi ka hai but Kandarsyun patti ka bhi thoda sa hissa isme aata hai.
ReplyDeleteअति सुंदर sir ji बचपन की याद ताजा कर दिया आपने दादा जी के साथ जाया करते थे कभी बचपन में
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर
धन्यवाद आपका बीनू भाई
रणविजय सिंह (रवि)