आयोजन और दिल्ली से हेलंग
ऐसे तो उत्तराखण्ड में ऐसी कई जगह हैं, जहाँ साल के बारहों महीने घुमक्कडी की जा सकती है। लेकिन चार-धाम यात्रा के समय घुमक्कडी का अलग ही महत्त्व है। यात्रा के साथ-साथ अगर किसी धाम के दर्शन भी करने को मिल जाएं तो सोने पर सुहागा वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है। इसी कड़ी में इस वर्ष चार-धाम यात्रा के समय पंच केदार के चतुर्थ केदार रुद्रनाथ की ट्रैकिंग करने का निश्चय कर लिया। पहले मई प्रथम सप्ताह में कल्पेश्वर से रुद्रनाथ की यात्रा करने का निश्चित किया था लेकिन जब इस कार्यक्रम की चर्चा जब घुमक्कड मित्रों से की तो उनकी इच्छा थी कि अगर कार्यक्रम को कुछ दिन पीछे कर लिया जाए तो रुद्रनाथ के कपाट भी खुल जाएंगे और साथ ही रुद्रनाथ के दर्शन भी हो जाएंगे।
उत्तराखण्ड में पांच केदार हैं, जो पंच-केदार के नाम से विश्वविख्यात हैं। केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मदमहेश्वर, कल्पनाथ। शिव पुराण के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात पाण्डव जब स्व-गौत्र हत्या के पाप से मुक्त होना चाहते थे तो महर्षि वेद व्यास ने उन्हें तप करके शिवजी को प्रसन्न करने को कहा कि वो ही उनको इस पाप से मुक्ति दिलवा सकते हैं। पाण्डव शिवजी की तलाश में यहाँ तक आ पहुंचे, लेकिन शिवजी पाण्डवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। केदारनाथ में जब पाण्डव पहुंचे तो शिवजी ने महिष (बैल) का रूप धारण कर लिया और बाकी जानवरों के साथ चरने लगे। लेकिन पाण्डवों ने शिवजी को पहचान लिया। शिवजी धरती में अंतर्ध्यान होने लगे तो महाबली भीम ने शिवजी को पीछे से पकड़ लिया। लेकिन तब तक महिष का अगला भाग नेपाल के पशुपतिनाथ, मुख रुद्रनाथ, भुजाएं तुंगनाथ, जटाएं कल्पनाथ, नाभि मदमहेश्वर और पृष्ट भाग केदारनाथ में ही रुक गया। शिवजी ने पाण्डवों से प्रसन्न होकर उनको स्व-गोत्र हत्या के पाप से मुक्त कर दिया।
यात्रा किस तरह की जाए ये पूर्व से निर्धारित था कि दिल्ली से हरिद्वार ट्रेन से जाएंगे और आगे की यात्रा बस से की जाएगी। मेरी ट्रेन की टिकिट अमित तिवारी भाई को करवानी थी, महेश सेमवाल जी ने अपनी टिकिट करवा ली थी। यात्रा से कुछ दिन पहले अमित भाई को जब पूछा कि क्या हमारी टिकिट कन्फर्म हैं ? तो उन्हें याद आया कि टिकिट भी करवानी हैं। आनन्-फानन में वेटिंग की ही टिकिट करवा दी जो अन्तिम समय RAC में बदल गई। चलो बैठने को तो मिल जाएगा, अन्यथा मैं अख़बार बिछाकर यात्रा करने की तैयारी का पूरा मन बना चुका था। यात्रा से ठीक एक दिन पहले बनारस से सूरज मिश्रा का फोन आया कि वो भी इस यात्रा पर साथ चलना चाहते हैं। मिश्रा जी को यात्रा का पूरा कार्यक्रम बताकर, २१ मई सुबह चार बजे तक हरिद्वार पहुँचने को कह दिया। साथ ही एक गर्म जैकेट जरूर लाने को कह दिया, क्योंकि मिश्रा जी की यह पहली हिमालय यात्रा थी।
२० मई को सुबह नौ बजे सूरज मिश्रा को बनारस से हरिद्वार की ट्रेन पकड़नी थी। लेकिन उनकी ट्रेन बनारस से ही तीन घण्टे देरी से चली, खैर जो होगा देखा जाएगा। हम तीन प्राणी तय समय पर दिल्ली के आनंद विहार मेट्रो स्टेशन पर रात्रि के नौ बजे मिले, हमारी ट्रेन रात्रि दस बजे की थी। कुछ देर गपशप के बाद ट्रेन चलने का समय हो गया तो महेश जी अलग हो गए, असल में उनकी सीट दूसरे डब्बे में थी।
नियत समय पर ट्रेन चल पड़ी, काफी देर तक अमित भाई और मैं बातें करते रहे। जब नींद आने लगी तो दोनों सिमटकर सोने की कोशिश करने लगे। सुबह साढ़े तीन बजे अचानक बहुत ही तीखी मधुर वाणी से आवाज खुली। एक माताजी कुछ नवयुवकों को शानदार प्रवचन दे रही थी। अमित भाई और मैं अर्धनिन्द्रा में आवाक होकर प्रवचन सुने जा रहे थे। खैर ज्वालापुर आ चुका था, कुछ ही देर में हरिद्वार भी पहुँच जाएंगे। माता जी के प्रवचनों के साथ चार बजे हरिद्वार पहुँच गए।
हरिद्वार उतर कर सीधे बस स्टेशन पहुँचे। आगे की यात्रा के लिये कोई साधन ढून्ढ लें, फिर मिश्रा जी को फोन करेंगे। हरिद्वार बस स्टेशन पहुंचे तो वहां का हाल देखकर हमारे होश ही उड़ गए। चार-धाम यात्रा के चलते सारी बस पहले से ही बुक हैं। कितने बजे कौन सी बस मिलेगी कुछ मालूम नहीं पड़ रहा था। यात्रियों में एक अफरा तफरी का सा माहौल बना हुआ था। हम भी आश्चर्यचकित से एक कोने पर खड़े हो गये। सोच ही रहे थे कि अब क्या किया जाए तभी एक छोठी प्राइवेट कार वाला चिल्लाया श्रीनगर-श्रीनगर। तुरन्त उसको हाथ से इशारा कर रोका। तीन हम थे, एक बन्धु और आ गए, २५०/= रुपये प्रति सवारी श्रीनगर छोड़ देगा। तुरन्त हाँ बोलकर गाडी में बैठ गए और आगे निकल पड़े। श्रीनगर से आगे जाने के लिये तो कुछ ना कुछ मिल ही जाएगा।
हरिद्वार से निकलते ही मिश्रा जी को फोन लगाकर हरिद्वार की स्थिति से अवगत करवा दिया, साथ ही उनको भी कह दिया कि कुछ भी साधन मिले, और जहाँ तक मिले बद्रीनाथ मार्ग पर आगे बढ़ते रहना। कहीं न कहीं आप हमको पकड़ ही लोगे। रास्ते में देवप्रयाग से कुछ पहले रूककर चाय पी और आगे बढ़ चले। पूरे रास्ते इस वर्ष जंगलों में लगी भयावह आग के निशान साफ़-साफ़ दिख रहे थे। कीर्तिनगर पहुँच कर मेरे मित्र सूर्य प्रकाश डोभाल का फोन आया कि कहाँ तक पहुंचे, उसको अपनी स्थिति बताई तो उसने श्रीनगर बस अड्डे पर रुकने को कह दिया, कि वो भी वहीँ पर पहुँच रहा है। सुबह के नौ बजे श्रीनगर पहुंचे, कुछ देर इंतजारी के बाद डोभाल भी पहुँच गया। फ्रेश होकर और नाश्ता करने के बाद ही आगे बढ़ेंगे। नित्यकर्म से निव्रत होकर दही, पराँठे खाए और वापिस आगे बढ़ने के लिए साधन ढूँढने लगे। श्रीनगर में भी हरिद्वार वाला ही हाल मिला। कोई भी बस-जीप आगे के लिए मिलनी दूभर सी ही प्रतीत हो रही थी। मिश्रा जी भी हरिद्वार में हैरान-परेशान होकर फोन पर फोन किये जा रहे थे।
अमित भाई ने महेश जी को मालूम नहीं क्या पाठ पढ़ाया कि हर-एक आगे जाने वाली बस-जीप वाले पे टूट पड़ते कि जोशीमठ जाओगे ? इसी बीच मन में ये भी आया कि यहाँ से आगे बाइक से चलते हैं। एक बाइक डोभाल की है दूसरी अपने मित्र सुमित नौडियाल की ले चलते हैं। सुमित को फोन लगाया तो सहर्ष अपनी बाइक देने को तैयार हो गया। इधर मैं डोभाल को भी साथ चलने को तैयार कर रहा था। काफी देर तक इंतजारी के बाद एक जीप मिल गई जो चमोली तक हमको छोड़ देगी। तुरंत सीटों पर कब्ज़ा कर लिया। अचानक डोभाल को भी जोश आ गया कि वो भी ट्रैक पर साथ चलेगा। डोभाल ये बोलकर घर चला गया कि दो किलोमीटर आगे श्रीकोट में घर के सामने इंतजारी करना, इतने में वो तैयार होकर आ जाएगा। श्रीनगर से आगे बढ़ चले, उधर मिश्रा जी को ऋषिकेश तक की बस मिल गयी थी, उनको टुकड़ों में आगे बढ़ने को कह भी दिया था। चार धाम यात्रा में सरकारी लापरवाही इस रूप में साफ़ देखी जा रही थी। हरिद्वार-ऋषिकेश से लेकर किसी भी यात्रा पथ पर सार्वजानिक वाहनों की भारी कमी नजर आती साफ़-साफ़ दिख रही थी। पूरे साल उत्तराखण्ड इसी चार धाम यात्रा का इंतज़ार करता रहता है, और सुविधाओं के नाम पर वही ढाक के तीन पाथ।
श्रीकोट में करीब बीस मिनट इंतजारी करने के बाद डोभाल भी साथ हो लिया। पहाड़ की यही खासियत है। गौरतलब है कि हम आम जीप से जा रहे थे जिसमे हमारे अलावा और भी सवारी बैठी थी। लेकिन बीस मिनट इंतजारी करने के लिए किसी ने भी नाराजगी नहीं दिखाई। दिल्ली में दो मिनट की भी इंतजारी करवा के देखिये, हाय-तौबा मचा देंगे। श्रीकोट से आगे बढे तो श्रीनगर डेम की झील में इकठ्ठा गन्दा पानी ऊपर चमोली में दो दिन पहले फटे बादल की कहानी बयां कर रहा था। बिना रुके रुद्रप्रयाग भी पार हो गए। हमारा गौचर से पहले एक महत्वपूर्ण ठिकाना है, I.T.B.P. गौचर। यहाँ भाई राकेश कुकरेती कार्यरत हैं। जब भी इधर से गुजरते हैं तो राकेश भाई को एक फोन करने की जरुरत होती है, हमारा फौजी सामान मुख्य गेट पर हमारे पहुँचने से पहले ही पहुंचा मिलता है। I.T.B.P. गेट से अपना सामान लेकर आगे बढ़ चले।कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग बिना रुके करीब तीन बजे चमोली पहुँच गए। पीछे-पीछे मिश्रा जी को जैसे-तैसे ऋषिकेश से श्रीनगर तक की बस मिल गयी थी, वो अभी देवप्रयाग के आस-पास पहुँच चुके थे।
चमोली पहुँचते ही इंद्र देव ने जोरदार स्वागत किया। झमाझम बारिश शुरू हुई तो याद आया कि मैं रेन कोट साथ में नहीं लाया हूँ, जो कि ट्रैक के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, और जल्दबाजी में डोभाल भी भूल गया। पूरे चमोली बाजार को छान मारा लेकिन बारिश से बचने और ओढ़ने के लिए कुछ नहीं मिला। अब जो होगा देखा जाएगा। कुछ ही देर बाद जोशीमठ के लिए जीप मिल गई। हमको बद्रीनाथ जाने वाले राजमार्ग पर हेलंग तक जाना था। हेलंग से उर्गम घाटी के लिए अलग रास्ता है, जो आगे दस किलोमीटर दूर ल्यारी गाँव तक जाता है। चमोली से हेलंग की दूरी लगभग चालीस किलोमीटर है। रास्ते में पीपलकोटी में डैम के निर्माण के लिए पहाड़ों को खूब छेदा जा रहा है, जगह-जगह सुरंगे बन रही हैं।
चार धाम यात्रा के चलते वाहनों की अच्छी खासी तादात पूरे रास्ते मिलती रही। शाम के करीब पांच बजे जीप ने हेलंग उतार दिया। मिश्रा जी को फोन लगाया तो रुआनि सी आवाज में उनका उत्तर मिला कि बहुत थक गए हैं। पिछले चोबीस घण्टे से ज्यादा हो गए सफ़र करते-करते, अब हिम्मत जबाब देने लगी है। आज श्रीनगर ही रुकने का इरादा बना रहे हैं। उनकी हौसला अफ़ज़ाई की गई कि आज जितना हमारे नजदीक आ जाएंगे उतना कल के लिए आसान रहेगा। इसलिए आज तकलीफ झेल लो और आगे बढ़ते रहो। श्रीनगर से उनको रुद्रप्रयाग की बस भी मिल गई। हेलंग में हम सभी ने विचार-विमर्श किया कि आज यहीं रुककर मिश्रा जी की इंतजारी करते हैं, अगर हम आज यहाँ से आगे बढ़ जाएंगे तो मिश्रा जी किसी भी सूरत में हमको पूरे ट्रैक पर पकड़ नहीं पाएंगे। आज का जो भी समय का नुकसान होगा उसकी भरपाई कल की जाएगी। यही सोचकर हेलंग में ही रुकने का ठिकाना ढूंढा तो पांच सौ रुपये में पांच लोगों के लिए कमरा मिल गया। मिश्रा जी के लिये भी यही सोचकर साथ में कमरा ले लिया कि हो सकता है देरी से ही सही, शायद वो हेलंग पहुँच जाएँ।
होटल में सामान रखकर एक बार फिर मिश्रा जी को फोन लगाया तो उनको कर्णप्रयाग के लिए जीप मिल गई थी। मिश्रा जी को सारी स्थिति से अवगत करवाया कि आपकी इंतजारी में आज हम हेलंग ही रुक गये हैं। इसके बाद तो मिश्रा जी को भी हौसला मिल गया। फिर तो उनका कहना था कि वो किसी भी प्रकार आज हेलंग पहुँच जाएंगे, उनकी इंतजारी की जाए। कर्णप्रयाग से मिश्रा जी ने उसी जीप को हेलंग तक बुक कर लिया और रात्रि के १० बजे हेलंग आ पहुंचे। शुक्र है ये लुका-छिपि का खेल तो समाप्त हुआ। मिश्रा जी पहली बार सभी से मिल रहे थे। आते ही सबके पाँव छुए और मिलने की ख़ुशी मनायी गई। तुरंत ढाबे में भोजन किया गया। भोजन करते हुए मालूम पड़ा कि कल सुबह छह बजे एक छोटी जीप गाय को लेकर देवग्राम तक जाएगी। जीप का ड्राईवर ढाबे में ही मौजूद था। उससे बात तय कर ली कि गाय के साथ हम पांच प्राणियों को भी छोड़ देना। भोजनोपरांत विश्राम की तैयारी होने लगी, सभी काफी थके हुये थे, कल से उर्गम घाटी का भ्रमण जो शुरू होना था।
क्रमशः.....
इस यात्रा वृतान्त को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.
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श्रीनगर (गढ़वाल) |
श्रीनगर (गढ़वाल) |
हेलंग |
हेलंग |
उर्गम घाटी |
उर्गम घाटी की ओर जाता रास्ता |
उर्गम घाटी की ओर जाता रास्ता |
देवग्राम |
ध्यान बद्री |
कल्पेश्वर महादेव |
कलगोट |
Yaad taza ho gai 👍
ReplyDeleteबहुत खूब :)
Deleteजोरदार यात्रा ! पर फ़ोटू आगे की यात्रा के लगा दिये इससे तो अच्छा था वो फ़ोटू लगाते जिसके जरिये यात्रा की है। खेर, श्रीनगर और जोशीमठ तक तो यात्रा की है कभी आगे भी मौका मिला तो घूमेंगे
ReplyDeleteबुआ जब चलना हो बता देना मैं ले चलूंगा।
Deleteफोटू कम थे बुआ, इसलिए लगा दी :)
Deleteलम्बे इंतजार के बाद आ ही गयी आपकी पोस्ट ! वैसे ये यात्रा सूरज मिश्रा, सेमवाल जी से सुन चुके थे । पर आपके शब्दों में भी उत्सुकता जग रही है । अगले भाग की प्रतीक्षा...
ReplyDeleteधन्यवाद मुकेश जी.
Deleteविस्तृत रूप से लिखा आपका यह यात्रा वृतांत बहुत अच्छा लगा । जानकारी भी भरपूर दी है आपने । अब पता चला की सूरज जी की ये पहली पहाड़ी यात्रा है और वो सफलता पूर्वक आप तक हेलंग भी पहुच गये ।
ReplyDeleteचित्र तो शानदार लगे ।
धन्यवाद रितेश भाई.
Deleteउत्तराखंड मे पब्लिक ट्रांस्पोर्ट यात्रा सीजन मे बहुत खराब हो जाता है।मैं जब इस ट्रैक पर गया था तब अपनी गाड़ी ले गया था।हम रात को चले और अगले दिन डेढ बजे उर्गम पहुंच गये। वहां से हम ट्रैक के लिए निकल लिए और छोटे भाई और उसके दोस्त को सगर भेज दिया।
ReplyDeleteरूद्रनाथ तक के फोटो अभी क्यों लगा दिये।
ये अपुन का स्टाइल है :)
Deletebahut badhiya vivaran
ReplyDeleteधन्यवाद तिवारी सर.
Deleteबहुत ही खूबसूरत तस्वीरें और यात्रा -वृतांत भी बहुत अच्छा.
ReplyDeleteधन्यवाद अल्पना जी.
Deleteबहुत बढ़िया यात्रा वर्णन। मिश्र जी ने भी बहुत हिम्मत दिखाई।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई.
Deleteआखिर कार छाप ही दी आप ने। पञ्च केदार के बारे में जानकर बहुत बढ़िया लगा। मैं ऋषिकेश में प्राइवेट बस वालो से बोलता की भाई खडे हो के चला जाऊंगा आप बस ले कर चलो,वे शालीनता पूर्वक मना कर देते, बुरा भी लगता मन ही मन श्राप भी देता ।अब हंसी आती है कि कैसे जाता खडे होके 200 km उपर से मोशन सिकनेस। कर्ण प्रयाग से हेलंग के लिए वो ड्राइवर बहुत बढ़िया मिल गया , ऐसे लोग दुबारा नहीं मिलते पर जीवन भर याद रहते है।
ReplyDeleteसत्य वचन मिश्रा जी.
Deleteमनभावन लेखन है
ReplyDeleteधन्यवाद त्यागी जी.
Deleteबहुत रोचक और बहुत सूचनाप्रद लेख ! लेकिन बीनू भाई , वृतांत में तो आप अभी हेलंग पहुंचे हैं फोटो आगे तक के आ गए ? लेकिन एक से एक जानदार और शानदार फोटो हैं ! अच्छा लगेगा यहां जाना
ReplyDeleteमन किया लगा दिए फ़ोटो योगी भाई :)
Deleteआज इस यात्रा को पढना शुरू किया हूँ. बीनू भाई आप बहुत शानदार लिखते है.घुमक्कड़ हर परेशानियों को हस कर झेल लेता है जो टूरिस्ट नहीं कर पाते. लगे रहिये.
ReplyDeleteधन्यवाद चंद्रेश भाई.
Deleteशानदार वृत्तांत। फूलों की घाटी जाते समय हेलंग में रुके थे चाय पानी के लिए। लगता है अब आपके वृत्तांत को पढ़ने के बाद इस ट्रेक पे जाना होगा। अभी अगली कड़ी की तरफ चलता हूँ। उसी के टिपण्णी बक्से में मिलूँगा। (duibaat.blogspot.com)
ReplyDeleteधन्यवाद विकास भाई
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ReplyDeleteपढ़ के बहुत अच्छा लगा। आप अच्छा समझाते है इसे भी देखें उत्तराखंड में पंच केदार