Saturday 23 January 2016

रूपकुंड ट्रैक- (भाग 3)- बेदिनी से भगुवासा



चौथा दिन (बेदिनी से भगुवासा) 

 सुबह करीब 6 बजे हट से बाहर निकलने की हिम्मत हुयी, रात को तापमान शून्य से नीचे ही था, स्लीपिंग बैग के अंदर मुझे कभी भी अच्छी नींद नहीं आती। नीचे मैट्रेस भी बिछा रखी थी, और पूरे गर्म कपडे पहन के सोया था, फिर भी रात बस जैसे-तैसे ही कटी। मैं अकेला ही नहीं था, सभी की हालत एक जैसी ही थी, सूर्योदय होने में अभी समय था, ठण्ड से डुगड़ुगी सभी की बज रही थी। पूरे बेदिनी बुग्याल में रात की गिरी ओस के कारण बर्फ की हल्की सी चादर बिछी पड़ी थी, सुमित ने जैसे तैसे करके बाहर में एक छोटा सा चूल्हा बनाकर आग जला ली, थोडा सा मिट्टी का तेल साथ लेकर आये थे तो आग जल भी गयी, नहीं तो लकड़ियों पर भी बर्फ सी जमी हुयी थी, एक छोटा सा भगोना रख के पानी गर्म किया, ठन्डे पानी से मुहँ धुलना तो सोच भी नहीं सकते थे। 




Tuesday 19 January 2016

"AMS" (Acute Mountain Sickness) उच्च पर्वतीय बीमारी और इससे कैसे निपटें


चौखम्भा पर्वत बेदिनी बुग्याल से

"AMS" Acute Mountain Sickness

अक्सर मैंने ट्रैक पर देखा है कि काफी लोग दूर दूर से पहाड़ों पर घूमने आते हैं, लेकिन कुछ एक छोटी छोटी तैयारी नहीं करते, जिस वजह से या तो बीमार पड़ जाते हैं और बिना अपनी यात्रा पूरी किये ही उनको वापिस लौट जाना पड़ता है। इसमें एक मुख्य कारण है "उच्च पर्वतीय बीमारी" जिसे अमूमन AMS (Acute Mountain Sickness) कहते हैं। उत्तराखण्ड में ऐसे भी स्थान हैं जो पूज्यनीय हैं, लेकिन उनकी ऊँचाई समुद्र तल से काफी अधिक है, जैसे केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मदमहेश्वर, हेमकुंण्ड साहिब आदि। "AMS" क्या है ? थोडा इसकी जानकारी दें दूं..  

Saturday 16 January 2016

रूपकुंड ट्रैक-(भाग-२)-वाण से बेदिनी बुग्याल

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तीसरा दिन - वाण से बेदिनी बुग्याल 



 सुबह सात बजे जब आँख खुली तो कल के तीन बिछड़े साथी भी दिखे। पता नहीं रात को कब पहुंचे, कल उनकी एक बाइक की हेड लाइट थराली के आस पास ख़राब हो गयी, दूसरी बाइक को सीध में चलाकर, उसकी लाइट के सहारे वो यहाँ पहुंचे, अँधेरा हो चुका था इसलिये रास्ते में कोई मेकैनिक भी नहीं मिला, इस कारण लेट हो गए। आज करीब 12 कि.मी. का ट्रैक् करके बेदिनी पहुंचना है। वाण की समुद्र तल से ऊंचाई 2450 मीटर, और बेदिनी लगभग 3500 मीटर, याने 12 कि.मी. में 1000 मीटर ऊपर चढ़ना है, तो चढ़ाई अच्छी खासी मिलने वाली है। आठ बजे तक सभी तैयार हो गए और नीचे वाण गांव के होटल में नाश्ता करने चल पड़े। हमने अपने घोड़े वाले भाई को नीचे गांव में ही मिलने को कहा था, क्योंकि स्लीपिंग बैग, टेण्ट, मैट्रेस सब कार में रखा था। 

Thursday 14 January 2016

रूपकुंड ट्रैक- (भाग १) - आयोजन और दिल्ली से वाण गाँव

आयोजन और दिल्ली से वाण गाँव

  अप्रैल अंतिम सप्ताह में जब डोडीताल ट्रैक किया था तो एक महीने तक पहाड़ की याद नहीं आयी, ट्रैकिंग का कीड़ा बढ़िया से शांत ही रहा, बस हर पल डोडीताल की खूबसूरती ही मन में घूमती रही, फिर जैसे जैसे दिन बीतने लगे कीड़ा कुलबुलाने लगा तो दिमाग खुद ही दौड़ने लगा कि कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं, अभी बारिश का मौसम भी शुरू हो चूका था, अगस्त के आखिरी सप्ताह के बाद ही निकला जा सकता था, अचानक एक दिन ख्याल आया कि क्यों ना जी भर के बुग्याल देखें जाएँ, तभी इस बार बुग्याल देखने की ठान ली, वो भी बारिश के तुरंत बाद जब बुग्यालों की खूबसूरती अपने चरम पर होती है। खोजबीन शुरू की तो काफी जगह नजर गयी, पंवाली बुग्याल, दयारा बुग्याल, बेदिनी बुग्याल, गोरसों बुग्याल आदि। आखिरी जंग हुयी पंवाली बुग्याल और बेदिनी बुग्याल के बीच, इसमें बेदिनी बुग्याल जीत गया, इसका सबसे बड़ा कारण था इसके साथ आली बुग्याल का साथ में होना और रूपकुण्ड का इस ट्रैक से जुड़ा होना, जी हाँ वही रूपकुण्ड जो Mystrey Lake के नाम से जाना जाता है, और यहाँ बिखरे पड़े सदियों पुराने नर कंकालों के लिए विश्व प्रसिद्द है। रूपकुंड के बारे में विकिपीडिया से जानकारी लेने के लिए यहाँ क्लिक करें.


Monday 11 January 2016

डोडीताल ट्रैक (भाग ५) - डोडीताल और डोडीताल से वापसी।

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डोडीताल और डोडीताल से दिल्ली वापसी

जैसे ही डोडीताल सामने दिखायी पड़ा बस अवाक् खड़ा ही रह गया।वाकई में कुदरत इतनी खूबसूरत जगह का भी निर्माण कर सकती है ये यकीन नहीं हो रहा था। लेकिन यथार्त तो आँखों के सामने था। एक घाटी में वृत्ताकार में फैला ताल और चारों और घना जंगल, रमणीक और शान्त, अप्रतिम सौंदर्यता अपने साथ समेटे हुए, बस एक अस्सी गंगा का ही शोर था जो सुनाई दे रहा था। सचिन भी पास आकर खड़ा हो गया, जिस डोडीताल के बारे में इतना पढ़ा और सुना था, आज आखिर वहीँ खड़ा अपनी आँखों से देख रहा था, पग पग पर इस जगह में प्रकृति ने सुन्दरता बिखेरी है। एक दुकान है जो बंद पड़ी थी,एक बर्फानी बाबा की कुटिया भी है वो भी बंद ही थी, वन विभाग के 2 लॉज बने हैं और गणेश जी का शानदार मंदिर। 



Friday 8 January 2016

डोडीताल ट्रैक (भाग ४) - अगोडा से डोडीताल

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अगोडा से डोडीताल

अगोडा में कल दो रावत जी लोगों से मुलाकात हुयी थी, बड़े रावत जी डोडीताल गेस्ट हाउस के केयर टेकर और छोटे रावत जी अगोडा गेस्ट हाउस के, बड़े रावत जी का सेवा निवृत होना कागार पर था, 30 जून को वे वन विभाग से सेवा निवृत हो जाएंगे। सुबह 5.30 पर बड़े रावत जी ने चाय के साथ हमको बड़े प्यार से जगाया, और जब चाय बिना मांगे ही सुबह सुबह कमरे में ही आ जाये तो कहना ही क्या, पहाड़ का यही सेवा भाव दिल को छू जाता है। अगोडा समुद्र तल से  लगभग 2100 मीटर की ऊंचाई पर बसा है, और डोडीताल 3100 मीटर। दूरी 16 कि.मी. के आसपास है, और बीच में पूरा घना बुरांश का जंगल। 




Tuesday 5 January 2016

डोडीताल ट्रेक (भाग ३) - गंगोरी से अगोडा

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गंगोरी से अगोडा

सुबह ठीक 6.30 पर जीप हमें संगमचट्टी तक ले जाने के लिऐ आ गई, तब तक हम दोनो भी नहाकर तैयार हो गये थे। ट्रैक पर जब भी होता हूँ, तो जहाँ गरम पानी नहाने को मिल जाये नहा लेता हूँ, ऊपर मिले ना मिले, और फिर पता नहीं कब नहाना नसीब हो। बाहर मौसम ख़राब ही बना हुआ था, हालांकि बारिश नहीं हो रही थी। जल्दबाजी में होटल से बिना नाश्ता किये ही निकल पडे, सोचा 10 कि.मी. आगे संगमचट्टी में कर लेंगे, गंगोरी से थोडा आगे निकले तो एक दुकान खुली मिली, वहां पर से ग्लूकोज़ का पैकेट और 2-3 बिस्कुट के पैकेट रख लिये, आपातकालीन परिस्थितियों के लिये। ग्लूकोज़ भी ट्रैक पर बहुत काम आता है, पानी में मिलाकर पीते रहो, वैसे भी अब तो कई फ्लेवर में आने लगा है। करीब 1 कि.मी. के बाद सड़क अस्सी गंगा के किनारे किनारे आगे बढ़ती है, अस्सी गंगा का उदगम डोडीताल से ही होता है, ये नदी ज्यादा लंबा सफ़र तय नहीं करती डोडीताल से निकलकर उत्तरकाशी में भागीरथी के साथ इसका संगम हो जाता है।




Saturday 2 January 2016

डोडीताल ट्रैक (भाग २) - देहरादून से गंगोरी, उत्तरकाशी

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दूसरा दिन - देहरादून से गंगोरी (उत्तरकाशी) - 

सुबह ठीक 7 बजे देहरादून से निकल पडे, आज हमने उत्तरकाशी से 12 कि.मी. आगे संगम चट्टी तक कार से और फिर 6 कि.मी. ट्रैक करके अगोडा गांव तक पहुंचना तय किया था। भरत के पास रुकने का फायदा ये हुआ कि, डोडीताल ट्रैक के बारे में काफी जानकारी मिल गई, भरत एक अनुभवी ट्रैकिंग गाईड है, शायद ही उत्तराखंड का कोई ट्रैक हो, जो उसने ना किया हो। हिमाचल, लद्दाख, नार्थ ईस्ट, भूटान आदि में वो ट्रैक कर चुका है, लद्दाख में जान्सकर नदी पर ट्रैक, जो कि चाद्दर ट्रैक के नाम से भी प्रसिद्द है, और सबसे मुश्किल ट्रैक में से एक है, वो भी कर चुका है। यूं कहें कि वो ट्रैकिंग दुनिया का चलता फिरता इंसाइक्लोपीडिया है, तो अतिशयोक्ती नहीं होगी, मैं किसी भी ट्रैक पर जाने से पहले उसकी सलाह हमेशा लेता हूँ। ऐसे अनुभवी लोगों से हर वक्त कुछ ना कुछ सीखने को मिलता है।