तीसरा दिन (दिनांक:
11-12-2016)
सुबह छह बजे होटल मलिक ने चाय की प्याली
के साथ जगा दिया। सुमित को आज श्रीनगर वापिस जाना था तो उसने घर वापसी की तैयारी
शुरू कर दी। किसी भी यात्रा पर साथी का बीच से वापिस जाना कुछ देर के लिए दुखी
जरूर करता है। लेकिन क्या कर सकते हैं, घर-परिवार की जिम्मेदारियां भी महत्वपूर्ण
हैं। सुमित ने अपना बैग तैयार कर हम तीनों से विदा ले ली। आज दिन के लिए तय किया
था कुमाऊँ और गढ़वाल की ठीक सीमाओं से होकर जाती हुई सड़क से गुजरकर नैनीडांडा तक
पहुंचना। वहां से आगे रामनगर होकर कालागढ़ की ओर निकल जाएंगे। गूगल मैप की मदद ली
तो उसने दो रास्ते दिखाए, एक रास्ता रानीखेत होकर रामनगर जाता हुआ दिखाई दिया, और दूसरा
मार्ग ठेठ पहाड़ी और थोडा लम्बा था जो ठीक गढ़वाल और कुमाऊँ की सीमा से होकर
धुमाकोट/नैनीडांडा जा रहा था।
मैंने इसी दूसरे लम्बे रास्ते का चयन
किया, हालांकि रानीखेत का नाम सुनकर डोभाल के मुहं में पानी आने लगा था, उसे
तसल्ली दी कि रानीखेत वाले क्षेत्र को कभी भी खंगाल सकते हैं। इधर बार-बार आना नहीं
होगा तो इस बार यही क्षेत्र देख लेते हैं। नौ बजे तक नाश्ता आदि से निपटकर आगे की
यात्रा शुरू कर दी। पैट्रोल पम्प यहीं गैरसैण में मिलेगा इसके बाद जिस रास्ते पर
हम जा रहे हैं, उसका किसी भी स्थानीय निवासी को अंदाजा नहीं। बाइक की टंकी फुल
करवा दी और आगे बढ़ चले। कुछ आगे जाकर मेहलचोरी में पुल पार करने के बाद जैसे ही
दाहिनी ओर मुड़ने लगे वहां खड़े टैक्सी ड्राईवर हाथ देकर रुकने का इशारा करने लगे।
रुक कर कारण पूछा तो उन्होंने हमारे जाने की जगह पूछी। जब बताया कि धुमाकोट जा रहे
हैं तो बोले फिर ठीक है। अक्सर यहाँ से सभी बाहरी वाहन बांयी ओर रानीखेत की तरफ
मुड जाते हैं, हम दाहिनी ओर मुड़े तो उनको लगा कि हम गलत दिशा में मुड गए।
मेहलचोरी से नागचुलाखाल जाने वाली सड़क पर
आगे बढ़ गए, रास्ता बढ़िया बना है, ट्रैफिक नाम की कोई चीज यहाँ नजर नहीं आती। कुछ
आगे जाकर बीना गाँव पड़ता है, यहाँ चाय के छोठे-छोटे बागान नजर आए। धीरे-धीरे
उत्तराखण्ड अपने पारम्परिक खेती से हटकर व्यावसायिक खेती की ओर बढ़ रहा है, यह
देखकर अच्छा लगा। जिस खेती से कोई आमदनी ही नहीं होनी उसका कोई फायदा नहीं, वह ही की
जाए जिससे कुछ आर्थिक फायदा हो, कम से कम यहाँ के बंजर पड़े खेतों पर कुछ तो
हरियाली दिखाई दे। एक ओर हम चढ़ाई पर चढ़ते जा रहे थे दूसरी ओर त्रिशूल पर्वत के
शानदार दर्शन पूरे रास्ते होते जा रहे थे।
दिन के दो बजे के लगभग सराईखेत पहुंचे।
सराईखेत समतल स्थान पर बसा छोटा सा खूबसूरत बाजार है। इसकी भोगोलिक स्थिति देखकर
अंदाजा लग जाता है कि ये बाजार पौड़ी, चमोली और अल्मोड़ा के कुछ बड़े शहरों के मध्य
में स्थित है। सराईखेत से दाहिने मुड़ गए। अब जिस सड़क पर हम चल रहे थे यह कभी पौड़ी
जिले में घुस जाती तो कभी अल्मोड़ा जिले में। कुल मिलाकर मालूम ही नहीं पड़ता कि कब
हम गढ़वाल में चल रहे हैं और कब कुमाऊँ में घुस गए। आगे चलकर दिन के भोजन के लिए
किसी ठीक-ठाक ढाबे हेतु जानकारी ली तो मालूम पड़ा मानिला देवी मन्दिर से कुछ पहले गूलर
में खाना मिल जाएगा। लेकिन इसके लिए हमें अपने मार्ग से हटकर कुछ किलोमीटर
रानीखेत-रामनगर मार्ग की ओर जाना होगा।
अब मैं मानिला के नजदीक से गुजरूँ और इस
खूबसूरत जगह को ना देखूं ऐसा हो नहीं सकता। सोचना भी क्या था तुरन्त मानिला वाले
रास्ते पर ही चल पड़े। गूलर नामक छोटा सा बाजार पड़ता है। खाने के लिए कुछ एक होटल
हैं, यहीं दिन का भोजन कर लिया। भोजनोपरान्त मानिला घूमने चल पड़े। गुलर से कुछ ही
किलोमीटर आगे पहला मानिला देवी का मन्दिर पड़ता है। मानिला अपनी ख़ूबसूरती के लिए
प्रसिद्द है। शान्त पड़े इस शेत्र में बड़ी बड़ी कोठियों का निर्माण कार्य होते देखना
अचम्भित भी नहीं करता। जंगल में पेड़ों पर प्रॉपर्टी डीलर के फ़ोन नंबर लिखी
तख्तियां बता रही थी कि अगले कुछ वर्षों में यहाँ की शान्ति भंग करवाने की पूरी
व्यवस्था करवा दी गयी है।
मानिला में दो मन्दिर हैं, एक मानिला
तल्ला और दूसरा मानिला मल्ला। हम सिर्फ मानिला मल्ला को ही देखकर वापिस लौट आए।
सुन्दर, शान्त जगह है। चीड के जंगल के बीच में स्थित यह स्थान बड़ा ही रमणीक है।
सड़क से कुछ 100 मीटर ऊपर तक बाइक जा सकती थी। वहां तक बाइक ले गए, मन्दिर प्रांगण
सुनसान ही पड़ा था, एक चक्कर मन्दिर परिसर का काटकर कुछ फोटो खींची और वापिस लौट
आया। मन्दिर के आस-पास बन रही बड़ी-बड़ी कोठियों के निर्माण कार्य ने मुझे निराश
किया। शाम होने को चली थी अन्यथा तल्ला मानिला भी देखकर आता, लेकिन आज अभी बहुत
सफ़र तय कर धुमाकोट पहुंचना था तो वापिस गूलर की ओर चल पड़े।
गूलर से एक सीधा रास्ता रामनगर की ओर
निकलता है, यहाँ से रामनगर की दूरी मात्र 70 किलोमीटर है। डोभाल और शशि भाई का मन
सीधा रामनगर निकलने का था, जबकि मैं वही अपने पुराने रास्ते जो कि
धुमाकोट-नैनीडांडा की ओर जाना चाहता था। कारण फिर वही था कि इधर तो आम रास्ता है,
फिर कभी भी घूम लूँगा, लेकिन उस ओर आने के लिए फिर से पूरी तैयारी के साथ ही आना
होगा। खैर, यहाँ भी मेरी ही जिद चली और हम वापिस कुमाऊँ से गढ़वाल की ओर चल पड़े। पांच
किलोमीटर वापिस आने के बाद जंगल मार्ग शुरू हो जाता है। जंगल मार्ग से मतलब वन
विभाग के अन्तर्गत यह सड़क मार्ग है। क्यूंकि यह दीबा फारेस्ट रेंज के अधीन आता है।
उत्तराखण्ड में जो भी आपको कहे कि वन विभाग की सड़क से होकर चले जाओ तो 10 बार
सोचकर ही आगे बढ़ना और यदि कोई और विकल्प हो तो उस पर जरूर विचार कर लेना चाहिए।
चूँकि हमें तो करनी ही घुमक्कड़ी थी तो फिर
क्या सड़क और क्या सुविधा, घुमक्कड़ी में सुविधाओं के लिए कोई स्थान नहीं है। निकल
पड़े जंगल मार्ग से, सड़क की खस्ता हाल देख कर कई बार मन में यह ख्याल भी आ रहा था
कि भगवान न करे अगर एक भी बाइक पंचर हो गयी तो 2 दिन लग जाएंगे धक्के मारने में तब
जाकर किसी बाजार में पहुंचेंगे। खैर, ऐसा कुछ नहीं हुआ और हम शानदार जंगल के बीच से
चलते हुए सूर्यास्त के समय धुमाकोट पहुँच गए। धुमाकोट से कुछ पहले सड़क पर ही दीबा
देवी मन्दिर का गेट पड़ता है। मैं पिछले दो दिनों से दीबा देवी का नाम कई बार ले
चुका था, मुझे यह गेट दिखाई नहीं पड़ा। जबकि शशि भाई ने देख लिया था लेकिन वो जान
बूझकर चुप रहे। जानते थे कि अगर उन्होंने बता दिया तो मैं दीबा देवी का ट्रैक भी
अभी करने की जिद करूंगा। जो कि सड़क से लगभग चार किलोमीटर ऊपर है। और आज सुबह से
सबकी बाइक चला-चला कर हालत खस्ता हुई पड़ी थी।
धुमाकोट पहुंचे तो मेरा सबसे पहला प्रश्न
ही यही था कि यहाँ पहुँच गए तो दीबा देवी कहाँ है ? एक सज्जन अपनी महिला मित्र के
साथ जंगल में टहल रहे थे, मालूम नहीं यहाँ इस वीराने में क्या कर रहे थे। जब उनको
आवाज लगाकर पूछा तो मालूम पड़ा वो तो हम पीछे छोड़ आए। फिर शशि भाई के मुहं से भी
बोल फूट पड़े कि उन्होंने दीबा देवी का गेट देख लिया था लेकिन जान बूझकर नहीं बताया।
कोई नहीं शशि भाई, दुबारा आऊँगा और फिर
आपको ही पकड़कर लाऊँगा, मन में यह निश्चय कर आगे बढ़ चले। धुमाकोट से दो किलोमीटर
आगे जडाऊखान्द एक छोटा सा बाजार पड़ता है। चाय पीने के लिए यहाँ पर रुक गए। सूर्यास्त
भी हो चुका था, अगले एक घंटे में अँधेरा भी छा जाएगा। फिर भी अभी डोभाल और शशि भाई
का संकल्प था कि आज ही रामनगर पहुंचना है, जो कि यहाँ से 70 किलोमीटर दूर है। चाय
पीते-पीते जब चाय की दुकान के ठीक सामने स्थित मदिरालय पर नजर पड़ी तो आज ही रामनगर
पहुँचने का संकल्प ध्वस्त होने में जरा सा भी समय नहीं लगा और दोनों चाय वाले से
यहीं रुकने के लिए कमरे की जानकारी लेने लगे।
इन्ही चाय की दुकान वालों का यहाँ जडाऊखान्द
में रात्रि निवास के लिए होटल भी है। तीन सौ रुपये में कमरा मिल गया। पहाड़ों में
शाम ढलते ही कढाई में मुर्गा और गिलास में सोमरस दो चीजें न हों तो समझो आप पहाड़
में हो ही नहीं। फिर क्या था आराम से आज की रात गढ़वाल के राठ शेत्र में गुजार कर
कल सुबह ही आगे बढ़ेंगे।
क्रमश:........
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मेहलचौरी की ओर |
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गैरसैण में नाश्ता |
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मेहलचौरी की ओर |
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मेहलचौरी से दूरियां |
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नाचुलाखाल की ओर |
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चाय की खेती |
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पीछे दिखता त्रिशूल पर्वत |
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सराईखेत की ओर |
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सराइखेत से दूरियां |
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सराइखेत |
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मानीला देवी |
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मानीला देवी |
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जंगल का रास्ता |
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धुमाकोट |
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धुमाकोट |
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धुमाकोट से दूरियां |
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जडाऊखान्द |
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21 गाँवों का बाजार है जडाऊखान्द |
Anchhua nature beauty. No tourist no litter very good shandaar ghumakkari in peacefull area.
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteNice post. Specially... all the pictures are sharp and beautiful.
ReplyDeleteधन्यवाद नरेश जी
Deleteक्या बात है.. इनमे से किसी जगह का नाम भी नही सुना... फोटू बहुत बढ़िया
ReplyDeleteजी कुछ हद तक अनछुआ क्षेत्र है।
Deleteबीनू भाई जबरदस्त घुमकड़ी चल रही है ! प्रसिद्द स्थान खोजिये तो हजार पोस्ट मिल जाएंगी लेकिन अनजाने से लेकिन बेहद खूबसूरत जगहों से परिचित कराया है आपने ! मेरा बहुत मन है ऐसी जगहों को कुरेदने का , एक एक पग एक इ कदम महसूस करने का ! शानदार पोस्ट ! आगे लिखो भाई
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई।
Deleteसूंदर यात्रआ वृतांत
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