चादर ट्रैक (14 Jan - 20 Jan 2018)
पिछले काफी समय से ब्लॉग की ओर ध्यान नहीं दे पा रहा था, कारण गो हिमालया अपने शुरुआती दौर से गुजर रहा है तो सारा समय उसी ओर ध्यान लगा रहता है। अभी ब्लॉग पर पंवाली ट्रैक के साथ की गई बाकी यात्रा को भी पूरा नहीं किया है, पन्वाली के बाद टिहरी के चमियाला के निकट "बूढ़ा केदार" घूम कर लंबगांव व सेम मुखेम की ओर निकले। इसके बाद नचिकेता ताल देखते हुए उत्तरकाशी से रैंथल गांव जा पहुंचे। रेंथल से एक ही दिन में दयारा बुग्याल ट्रैक कर वापिस उत्तरकाशी भी आ गए थे। समय मिलते ही उस यात्रा को भी आगे बढ़ा दिया जाएगा। इस ट्रैक के बाद भी कई ट्रैक किए लेकिन अभी हाल ही में किए चादर ट्रैक को ही लिखने का मन किया। बाकी ट्रैक ब्लाग पर भविष्य में आते रहेंगे।
पिछले कई वर्षों से मन में था कि लद्दाख स्थित जांस्कर नदी पर सर्दियों में जाकर ट्रैक करना है। असल में जांस्कर नदी जनवरी - फरवरी माह में भीषण सर्दी के चलते पूरी की पूरी जम जाती है। जमी हुई नदी के ऊपर लोग चलना शुरू कर देते हैं, इसी जमी हुई नदी को स्थानीय लोग चादर कहते हैं। धीरे - धीरे ये ट्रैक प्रचलित हुआ तो चादर ट्रैक के नाम से जाना जाने लगा।
अक्टूबर माह की बात है, मेरे मित्र अनुपम चक्रवर्ती ने मुझसे चादर ट्रैक करने की इच्छा जाहिर की, मैंने उन्हें कुछ ट्रैकिंग एजेंसियों के नाम सुझाए, लेकिन अनुपम दा ने सलाह दी कि क्यूं न गो हिमालया ही इस ट्रैक को आयोजित करे। इस बाबत मैंने अपने दोस्तों से बात की तो उन्होंने भी इस ट्रैक पर जाने की इच्छा व्यक्त कर दी। स्वयं मैं भी इस ट्रैक को करना चाहता था, तो अब पीछे मुड कर क्या देखना था,13 जनवरी से चादर ट्रैक की विधिवत शुरआत होगी यह तय कर लिया गया व इसकी तैयारियां शुरू कर दी गई।
तैयारियां
सर्दियों में जहां उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में ही तापमान शून्य तक को छू लेता है तो लद्दाख तो ठंड के लिए मशहूर है ही। भारतवर्ष में उपलब्ध ट्रैक में चादर इकलौता ऐसा ट्रैक है जिसमें आप माइनस तीस तक के तापमान को भी महसूस करते हैं। इस ट्रैक की इसी प्रकार की विविधताओं के चलते यह ट्रैक प्रचलित हुआ है। इसलिए चादर ट्रैक के लिए तैयारियां भी इसी अनुसार करनी होती हैं।
सबसे पहली बात जो ध्यान में रखनी होती है वह है इस तापमान को झेलने लायक कपड़े, जिसमें बेस लेयर से लेकर गर्म फ्लीस व जैकेट, वॉटरप्रूफ आउटर आदि महत्वपूर्ण हैं। चूंकि मेरे पास ट्रैकिंग के सारे कपड़े पहले से ही हैं इसलिए मुझे कुछ विशेष खरीदने की आवश्यकता नहीं थी। हां जैसे कि हर ट्रैक से पहले होता है कि जाने वाले सभी सदस्यों का एक वॉट्सएप ग्रुप बना दिया गया व वहां सभी को आवश्यक सलाह समय - समय पर देते रहे।
चादर ट्रैक के लिए कपड़ों के विषय में विशेष ध्यान रखना होता है। इस ट्रैक पर एक समय में तीन लोवर व चार से पांच अपर पहनने पड़ते हैं इसलिए कपड़े सोच समझकर ही लेने चाहिए। चूंकि यहां ट्रैकिंग जूतों की जगह गम बूट ही उपयुक्त होते हैं इसलिए जूते खरीदने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती, हां जुराबें कम से कम छह से सात जोड़ी जरूर चाहिए होती हैं। जैकेट भी अच्छी क्वालिटी की होनी आवशयक है।
इस ट्रैक पर क्या कपड़े और कैसी तैयारी होनी चाहिए इसके संदर्भ में एक पोस्ट अलग से लिखूंगा, जिससे भविष्य में जाने के इच्छुक मित्रों को सुविधा होगी, फिलहाल यात्रा वृतांत को आगे बढ़ाते हैं।
दिल्ली से लेह
चादर ट्रैक की शुरुआत 14 जनवरी से होनी थी व सभी सदस्यों ने 13 जनवरी को लेह पहुंचना था इसलिए तैयारियों को अन्तिम रूप देने के लिए मुझे कुछ दिन पहले जाना जरूरी था। 10 जनवरी को लेह पहुंचना तय कर लिया। चूंकि सर्दियों में लेह सिर्फ हवाई मार्ग से ही जाया जा सकता है, इसलिए दस तारीख सुबह सात बजे गो एयर की फ्लाइट से टिकिट बुक हुई थी।
निश्चित दिन पर सुबह पांच बजे घर से निकल पड़ा। रात को ही मेरू कैब से टैक्सी बुक करवा ली थी, जो सुबह सही समय पर आ पहुंची। आधे घण्टे में टैक्सी ने एयर पोर्ट पर उतार दिया। यहां से इस ट्रैक के साथी अंकुश व ईशान ने भी साथ चलना था। अंकुश को फोन लगाया तो दोनों छतरपुर से निकल चुके थे। प्रतीक्षालय में कुछ देर इंतज़ार करने के बाद अंकुश व ईशान भी पहुंच गए। एयर पोर्ट पर अधिकतर लोग चादर ट्रैक के लिए लेह ही जाते दिखे, अन्यथा सर्दियों में वहां कम ही आवाजाही होती है।
सामान की सुरक्षा जांच करवाने के पश्चात अपना भी बोर्डिंग पास ले लिया व जहाज में जाकर बैठने की उद्घोषणा की इंतजार करने लगे। कुछ देर बाद उद्घोषणा हुई तो हम भी गंतव्य के लिए चल दिए। सही समय पर जहाज ने उड़ान भर ली।
सुबह ठीक नौ बजे लेह में उतर गए। जहाज के कप्तान ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि बाहर का तापमान माइनस चौदह डिग्री है। दो घण्टे पहले दिल्ली से चले थे तो वहां का तापमान दस डिग्री के लगभग था। एक दम से इतने कम तापमान को महसूस करने के रोमांच के साथ लेह के कुशोक बकुला रिंपोचेे एयरपोर्ट पर उतर गए। एयरपोर्ट पर बाहर निकलते ही कड़ाके की ठंड से सामना हुआ, हालांकि धूप अच्छी खासी निकली हुई थी इसलिए ठंड का प्रभाव विशेष कुछ मालूम नहीं पड़ा।
अपने सामान को लेकर बाहर आते ही हमारे लद्दाख के टूर ऑपरेटर जुमा भाई को फोन किया तो वो दस मिनट में पहुंच रहे हैं यह कहकर घर से हमें लेने निकल पड़े। कुछ देर बाद जुमा भाई पहुंचे तो हम उनके होम स्टे की ओर चल पड़े। एयर पोर्ट से घर तक पहुंचने में बमुश्किल पंद्रह मिनट लगे होंगे। जुमा भाई का घर लेह बाजार से एक किलोमीटर ऊपर स्थित है। अब यही अगले एक महीने के लिए हमारा निवास स्थान था।
ऐसे लेह पहुंचकर सबसे अच्छा तो यह होता है कि आप होटल पहुंचकर कुछ घंटो के लिए सो जाएं, चूंकि दो घंटे के अंतराल में तीन सौ मीटर की ऊंचाई से सीधे तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर जा पहुंचते हैं इसलिए शरीर को अनुकूलित करने के लिए यही सर्वोत्तम उपाय है कि आराम किया जाए। लेकिन लेह घूमने की चाह की वजह से नींद आंखो से कोसों दूर थी। बस जल्दी से जल्दी मैं यहां की दुनिया में रच बस जाना चाहता हूं, इसलिए नाश्ता करने के उपरांत हम लेह बाजार की ओर निकल पड़े। सर्दियों में सैलानियों के ना के बराबर होने के कारण यहां अधिकतर होटल बंद हो जाते हैं व बाजार में भी स्थानीय लोगों के अलावा चादर ट्रैक के लिए पहुंचे ट्रैकरों की ही उपस्थिति दिखाई देती है।
हां लेह की एक बात जिसने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो है यहां का साफ सुथरा बाजार व गलियां।स्वच्छता के लिए नागरिकों का जागरूक होना जरूरी है, अगर नागरिक जागरूक हैं तो आधे से ज्यादा कूड़ा करकट ऐसे ही सड़कों व गलियों से हट जाएगा। पूरे लेह में पान व गुटके की दुकानें खुलेआम कहीं भी दिखाई नहीं देती, बीड़ी - सिगरेट की भी नहीं। स्थानीय निवासी किसी को भी खुले में सिगरेट पीते देखते ही कभी कभी टोक भी देते हैं। यहां के स्थानीय निवासी स्वयं ही सफाई के प्रति जागरूक हैं इसलिए बाहर से आने वाले सैलानी भी इस बात का सम्मान करते हैं।
आज व अगले तीन दिनों तक हमें लेह में ही रुक कर चादर ट्रैक की तैयारियों पर ध्यान देना है। इसमें मुख्य है कि कौन क्या कपड़े साथ लेकर आया है ? क्या वो कपड़े ट्रैक पर ले जाने लायक हैं भी या नहीं, अगर नहीं हैं तो सभी को लेह बाजार से ट्रैक के कपड़े व जूते आदि की खरीददारी करवाना है। लेह में सभी प्रकार के कपड़े बहुत ही अच्छे दामों पर आसानी से मिल भी जाते हैं। रही बात जूतों की तो, चादर ट्रैक पर सबसे उपयुक्त साधारण गम बूट ही होते हैं, वो भी यहां आसानी से मिल जाते हैं।
चूंकि गम बूट पहनना होता है वो भी इतने कम तापमान में तो निश्चित बात है एक समय में कम से कम तीन जोड़ी जुराबें भी पहननी पड़ेंगी, इसलिए जुराबें खूब सारी चाहिए होती हैं, ये भी लेह बाजार में सस्ते दामों पर आसानी से मिल जाती हैं। अगर चादर ट्रैक पर आओ और शॉपिंग नहीं की हो तो कोई बात नहीं, लेह में सब जरूरी सामान आसानी से उपलब्ध है।
ऐसे तो जिस किसी भी क्षेत्र में घूमने जाएं वहां की स्थानीय भाषा के कुछ शब्द जरूर सीख लेने चाहिए। ऐसे ही लेह पहुंचते ही कुछ स्थानीय भाषा मैंने भी सीख ली थी। "जुले" से तो आप सभी परिचित होंगे ही। अभिवादन के लिए "जुले" यहां प्रयुक्त किया जाता है। "आचु" - बड़ा भाई, "आचि" - बड़ी बहन, "चुशकुल" - गरम पानी आदि। चूंकि हम हर समय माइनस तापमान में हैं, मुंह से भाप सांसों के साथ ऊष्मा के रूप में बाहर निकलती रहती है, इससे शरीर में पानी का स्तर भी जल्दी कम होता है। इसलिए जरूरी है इसकी भरपाई होती रहे। इसलिए हर कुछ देर बाद गर्म पानी (चुश्कुल) पीते रहना आवश्यक है।
इन तीन दिनों में लेह व इसके आस - पास भी घूमा लेकिन यहां उन सबके बजाय चादर ट्रैक के बारे में ही लिखना चाहता हूं। हमारे ग्रुप के बाकी साथी निर्धारित दिन 13 जनवरी को लेह पहुंच गए, सभी को शॉपिंग व जरूरी सामान की खरीददारी भी करवा दी गई। सभी चादर को देखने व महसूस करने के लिए अति उत्साहित थे, स्वयं मैं भी था। 14 जनवरी को सुबह लेह से अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करते ही हमारे चादर ट्रैक की विधिवत शुरआत हो गई। अगली पोस्ट में चादर ट्रैक का पहला दिन, लेह से शिंगरा योकमा तक का सफर व चादर के प्रथम दर्शन।
To be continued.......
इस यात्रा वृतांत के अगले भाग को पढने के लिए यहाँ क्लिक करें.
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तोस्मो गोंपा, लेह |
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लेह |
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लद्दाख हाउस, हमारा ठिकाना |
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चंदू मार्किट, लेह |
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माल रोड, लेह |
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माल रोड, लेह |
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माल रोड, लेह |
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माल रोड, लेह |
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माल रोड, लेह |
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सर्दियों में सुनसान, लेह |
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सब कुछ जमा हुआ |
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सब कुछ जमा हुआ |
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लेह |
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लेह |
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शांति स्तूप, लेह |
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स्टॉक कांगड़ी पर सूर्योदय |
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स्टॉक कांगड़ी पर सूर्योदय |
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ग्रुप मेंबर का इंतजार करता अंकुश |
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ग्रुप मेंबर |
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लेह भ्रमण |
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चंदू मार्किट की चाय और गपशप |
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शॉपिंग से वापसी |
Wah Binu ji
ReplyDeleteBhadiya shuruaat
धन्यवाद
Deleteबढ़िया शुरुआत बीनू भाई, बहुत दिनों से आपने ब्लॉग पर कुछ लिखा नहीं था ! चादर ट्रेक की पहली किश्त पढ़कर लग रहा है ये यात्रा रोमांचक रहने वाली है ! फोटो शानदार आई है और लेह का माल रोड तो बहुत बढ़िया लग रहा है ! अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा !
ReplyDeleteधन्यवाद चौहान साहब
Deleteबढ़िया जानकारी ,शानदार पोस्ट .
ReplyDeleteधन्यवाद नरेश जी
Deleteशानदार लेख
ReplyDeleteआगे ओर
आनंद आएगा
धन्यवाद पालीवाल जी
Deleteपूरी जानकारी के साथ बढ़िया सुरवात
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद
Deleteबीनू भाई सर्वप्रथम चादर ट्रेक के सफलता पर हार्दिक बधाई।सुन्दर विवरण के साथ खुबसूरत चित्रण भी किया है आपने। बीनू भाई इस पोस्ट में एक जगह तारीख में सुधार की आवश्यकता है।आपकी ट्रैक 14जनवरी को शुरू हुई थी, गलती से पोस्ट में 14 अप्रैल लिखा गया है।
ReplyDeleteधन्यवाद वीरेंद्र भाई
Deleteबहुत बढ़िया, अगली पोस्ट जल्दी डाल।
ReplyDeleteधन्यवाद ललित सर
Deleteजानकारी के साथ बढ़िया शुरुवात अगली पोस्ट का इंतजार
ReplyDeleteधन्यवाद अशोक जी
Deleteरोचक एवं विविधता से भरा लेख
ReplyDeleteधन्यवाद अरविंद जी
Deleteरोचक एवं विविधता से भरा लेख
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी ओर फोटो भी लाजवाब
ReplyDeleteधन्यवाद पाटिल साहब
Deleteबढ़िया बीनू भाई !! शुरुआत अच्छी और रोमांचक है , आगे चलते हैं
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई
Deleteवाह सुंदर सफर पहले भाग का हुम भी आगे बढ़ते हैं फोटोज भी शानदार....... लिखते रहो
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