Wednesday 20 September 2017

पंवाली कांठा ट्रैक - भाग 4

पंवाली कांठा से घुत्तू
(दिनांक 15-4-2017)

समुद्र तल से 3350 मीटर की ऊंचाई पर आज आंख खुली तो याद आया कि मैं तो उत्तराखण्ड के सुंदरतम बुग्यालों में से एक पंवाली में हूं। तुरन्त टैण्ट से बाहर निकल आया। गुनगुनी धूप में बुग्यालों की सुबह कुछ अलग ही होती है, सुबह के समय अक्सर मौसम साफ मिलता है, चारों ओर हिमालय के शानदार नजारे और घास पर पड़ी चमकती ओस की बूंदे सिर्फ सुबह के ही वक्त देखने को मिलती हैं। चाय का गिलास हाथों में थामे हिमालय की खूबसूरती को निहारना भी एक अदभुत एहसास है, वो भी तब जब आपकी आंखों के सामने 180 डिग्री के कोण पर शानदार नजारे हों। यानी गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक की पर्वत श्रखंलाओं के शानदार नजारे। पंवाली से बर्फ से लदी हिमालय पर्वत श्रखंलाओं का जो विस्तृत नजारा दिखाई देता है ऐसा नजारा बहुत ही कम जगहों से देखने को मिलता है।
केदार डोम, चौखम्भा, मेरु, सुमेरु, त्रिशूल आदि कई मुख्य पर्वत श्रृंखलाओं के यहां से अभिभूत करते हुए नजारे आंखों के सामने होते हैं। सुबह की गुनगुनी धूप में आस-पास टहलने लगे। पास ही बुग्यालों से निकलता हुआ प्राकृतिक पानी का सोता बह रहा था। हाथ मुहं धुलने वहीं पहुंच गए। मन तो कर रहा था कि सोते के नीचे बैठकर स्नान कर लिया जाए लेकिन इस ऊंचाई पर साथ ही साथ चल रही बर्फीली हवा के डर से चुप रहने में ही भलाई समझी। शशि भाई तो नहाए भी।

 मैंने उत्तराखण्ड के लगभग सभी मुख्य बुग्याल क्षेत्र देखे हैं, इस आधार पर कह सकता हूँ कि पंवाली बुग्याल क्षेत्रफल के हिसाब से उत्तराखण्ड के सबसे बड़े बुग्याल क्षेत्रों में से एक है। ऐसे हर क्षेत्र की अपनी विशेषता है लेकिन पंवाली को बुग्यालों का राजा कहूंगा तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। जिस विराट रूप में यहां से हिमालय के दर्शन होते हैं वैसा इतनी ऊंचाई से तो कहीं से दिखाई नहीं देता।

कुछ देर टहलने के बाद गर्मागर्म नाश्ता तैयार था। बाहर खुले में ही मैट बिछाई और अपना डाइनिंग हाल तैयार कर लिया। गर्मागर्म सूजी का हलवा, मैगी, चाय और सामने हिमालय। बाकी क्या चाहिए, आनन्द आ गया। नाश्ता करने के बाद सामान समेटना शुरू कर दिया। ऐसे यहां से जाने का किसी का मन नहीं था। असल में पंवाली कांठा इतना बड़ा है कि यहां घूमने के लिए पूरा एक दिन चाहिए। हमें कार्यक्रम के हिसाब से आज घुत्तू पहुंचना था। पंवाली से घुत्तू की दूरी लगभग चौदह किलोमीटर है।

आज की ट्रैकिंग की खासियत यह थी कि सिर्फ डेड किलोमीटर की हल्की सी चढ़ाई है व बाकी बारह किलोमीटर उतराई ही उतराई है। पहाड़ों पर दो-चार किलोमीटर की उतराई तो अच्छी लगती है, लेकिन अगर लगातार दस से बारह किलोमीटर उतरते ही चले जाना हो तो घुटनों की बैंड बज जाती है। और ट्रैकिंग में अगर एक बार घुटनों में दर्द शुरू हो जाए तो उसके बाद जो हाल होता है यह वही समझ सकता है जिसने इसे झेला होगा।

अक्सर ट्रैकिंग में जब घुटने दर्द करने शुरू कर देते हैं तो लोग तेज चलना शुरू कर देते हैं, सोचते हैं कि जल्दी ठिकाने पर पहुंच जाऊंगा तो दर्द से मुक्ति मिलेगी। और यही सबसे बड़ी गल्ती कर बैठते हैं। कभी भी ट्रैक के दौरान अगर घुटने में दर्द हो तो अपने चलने के स्टाइल में थोड़ा परिवर्तन कर देना चाहिए। जिस पाऊं में दर्द हो कोशिश करनी चाहिए उस पर अधिक दबाव न पड़े व जितना आराम से हो उतना धीरे चलना चाहिए। आराम से पंवाली से दिखते हिमालयी नजारों के साथ आज की ट्रैकिंग की शुरुआत कर दी। ठीक चोटी पर चढ़कर हमको भिलंगना घाटी में उतरना था। जैसे ही पंवाली के उच्चतम बिंदु पर पहुंचे वैसे ही पूरे बुग्याल क्षेत्र का विहंगम नजारा और ठीक सामने दिखता हिमालय। बस क्या चाहिए था, यहीं आसान जमा लिया।

खूब सारी जी भर कर फ़ोटो खींची, जैसे मन आया वैसे। भट्ट जी एक-एक कर चोटियों के नाम बताते जा रहे थे। कुछ पहचान में आयी कुछ नहीं। आज हमारी किस्मत भी मेहरबान थी जो मौसम बिल्कुल साफ था। करीब घण्टे भर तक सब कुछ भूल भाल कर यहीं जमे रहे। असल में इसके बाद उतराई शुरू थी व धार के दूसरी ओर चले जाना था। ऐसे में हिमालय का दिखना बन्द हो जाना था। जी भर कर हिमालयी चोटियों को देख लेने के बाद ही उतरना शुरू किया। टेहरी के इस क्षेत्र में एक अजीब सा प्रचलन है कि किसी के देहांत के बाद उसकी याद में एक छोटा सा मन्दिर रूपी ढांचा बना दिया जाता है। पंवाली के उच्चतम बिन्दु पर भी कुछ ऐसे ही ढांचे नजर आए। क्या जरूरत है ये सब दिखावे करने की, समझ नहीं आता। और ऐसा नहीं कि पूरे टेहरी में ऐसा करते हैं, ये सिर्फ इसी क्षेत्र में होता है। दूर नीचे गंगी गांव दिखाई दे रहा था व भिलंगना घाटी भी, आज की चढ़ाई बस इतनी ही थी अब लगातार उतरते चले जाना है। 

किसी भी ट्रैक पर जाने से पहले मैं वहां के बारे में जानकारी जुटाने के लिए पहले जा चुके ट्रैकरों के यात्रा वृतान्त पढ़ लेता हूँ जिससे वहां के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां पहले से ही मालूम हों। चूंकि पंवाली बहुत कम ही लोग आते हैं, इसलिए यहां की जानकारी हमारे पास कम ही थी जिसमें महत्वपूर्ण था पानी की उपलब्धता। ऐसे हमारा पोर्टर विक्रम यहां पहले आ चुका था तो उसके भरोसे ही हम आगे बढ़ रहे थे।

कुछ नीचे उतरने पर एक जगह पानी मिल गया, विक्रम ने बता दिया था कि अब पानी सीधा घुत्तू के नजदीक ही जाकर मिलेगा इसलिए छक कर पानी पी लिया व बोतल भर ली। घना जंगल भी शुरू हो चुका था व उतराई लगातार जारी रही। घने जंगल में शार्ट कट भी मारने शुरू कर दिए। एक जगह आराम करने बैठे तो भट्ट जी के फोन की घंटी बज गयी। सबके फोन बाहर निकल आए। भूख लगने लगी थी तो बिस्कुट वगैरह खाकर भूख को शान्त किया व आगे बढ़ चले।

लगातार उतराई के बाद घुत्तू नजर आने लगता है, गायों को जंगल में चराते हुए स्थानीय लोग मिलने लगे। व सड़क भी दिखने लगी। लेकिन ताबड़तोड़ उतराई से पीछा छूटने का नाम नहीं ले रहा था। धन्य हो उन भोले भक्तों को जो गंगोत्री से जल लेकर इसी रास्ते चढ़ते हुए केदारनाथ जल अर्पण करने के लिए जाते हैं। ये भक्ति भाव व शिव के प्रति अथाह श्रद्धा ही है। अन्यथा कोई ऐसे यहां से पंवाली चढ़ने से पहले सौ बार सोचेगा।

घुत्तू से पहले गांव के बीच से गुजर रहे थे तो वहां के बच्चे हमें देख "बम भोले" का जयकारा लगाते। उन्हें लगा हम भी कांवड़ वाले ही हैं। जबकि बुजुर्ग हमें टकटकी लगाकर घूरते कि अभी तो सावन भी शुरू नहीं हुआ ये यहां क्या कर रहे। गांव के बीच से होते हुए सड़क तक आए, कुछ ने राहत की सांस ली, लेकिन उनके लिए ये राहत क्षणिक भर के लिए थी। घुत्तू बाजार अभी डेड किलोमीटर दूर था व वहां तक पैदल ही जाना था।

मरते क्या न करते जब और कोई चारा न हो तो बिना शिकायत किये आगे बढ़ो। और यही सबने किया। भिलंगना से भी पहली भेंट यहीं पर हुई व नदी साथ-साथ बह रही हो तो मन लगा रहता है। खूब पनचक्की (घराट) यहां अभी भी हैं। पहले उत्तराखण्ड में घराट अक्सर दिख जाया करते थे लेकिन अब सुदूर ग्रामीण अंचलों में ही दिखते हैं।

घुत्तू बाजार सामने था, जैसे ही बाजार में प्रवेश किया एक सज्जन मेरे पास आकर पूछने लगे "आर यू इंडियन" मैं चौंक गया चार दिन से शीशा भी नहीं देखा था, कहीं शक्ल चीनियों के जैसे तो नहीं हो गयी। मैंने तुरंत गढ़वाली में जबाब दिया "भैजी गढ़वाली छों"। वो सकपका गया लेकिन पीछे पड़ गया कि मेरा यहां होटल है, मेरे यहाँ रुको। उसको कई बार समझाया कि आप अपने होटल का नाम बता दीजिए अगर जरूरत हुई तो आ जाएंगे। लेकिन वो जोंक के माफिक हमसे चिपक गया।

बाजार में एक होटल में चाय व समोसे खाए, इतने में अमित भाई व भट्ट जी "गढ़वाल मंडल विकास निगम" के गेस्ट हाउस में मालूम कर आए। डोरमेट्री उपलब्ध थी व बस स्टैंड भी पास ही था। उन सज्जन को हाथ जोड़कर अपने से पीछा छुड़ाया व गेस्ट हाउस में आराम करने चले गए। 

मेरे व नटवर भाई को छोड़कर बाकी सभी साथी कल वापिस चले जायेंगे। हमारी यात्रा अभी जारी रहेगी। चूंकि टेहरी जिले का सिर्फ यही क्षेत्र अभी तक मेरे से छूटा था इसलिए इस बार सोचकर आया था कि सारा देखकर ही वापिस लौटूंगा। कल सभी साथियों को विदा कह कर हम घनसाली से बूढ़ा केदार की ओर निकलेंगे।

क्रमशः.........


पंवाली कांठा

पंवाली कांठा
पंवाली कांठा


हमारा कल रात का ठिकाना


ठंडा ठंडा कूल कूल
शानदार डाइनिंग हाल में नाश्ता




खानाबदोश - सामान समेटो और आगे बढ़ो
मेरु पर्वत
पंवाली से आगे




नटवर भार्गव मस्ती में
रविन्द्र भट्ट चोटियां गिनते हुए
हिमालय देखकर पागलपन का दौरा
शानदार पंवाली कांठा
जंगल में आराम

वेलकम टू माई एरिया

शानदार भिलंगना घाटी
घुत्तू के नजारे


11 comments:

  1. इस भयंकर उतराई को कैसे भूल सकता हूँ .. लास्ट में जब सड़क दिखी तो लगा अब तो पहुच गये लेकिन फिर बहुत चलना पड़ा था अब आ गये अब आ गये .. घुटनों की बैंड बज गयी.. फिर से याद दिला दिए शानदार बुग्याल और वहां से दिखता हिमालय ... सितम्बर में कभी जायेंगे फिर से

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  2. सन 2009 में गौमुख से केदारनाथ पद यात्रा में यहाँ एक रात रुके थे।
    अगले दिन गौरीकुंड ठहरे थे। एक बार यह यात्रा दोहरायी जायेगी।

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  3. पवाँली बुग्याल का उम्दा छायांकन और शानदार लेखन...!!!

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    1. धन्यवाद शैलेन्द्र भाई

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  4. Shaandaar Yaad diladi Bhai Panwali ki

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  5. संदीप जी आप लिखते बड़ा अच्छा हो। मेने १९७२ में त्रियुगीनारायण से चलकर घुटु होते हुए प्वालीकंथा बूढ़ाकेदार और फिर मग्गूचट्टी बेलक भटवारी गंगवानी और फिर गंगोत्री गोमुख तक की यात्रा अकेले ही की थी तब मेरी आयु १७ वर्ष थी। इसके अलावा भी हिमालय के बहुत से क्षेत्रों में पैदल यात्रा कर चूका हूँ। राजस्थान के थार रेगिस्तान से लगाकर अरब के रेगिस्तान और थाईलैंड मलेशिया के वर्षा वनो और दलदल की यात्रा भी की है। साथ ही नेपाल के दूरदराज हिमालय क्षेत में भी यात्रा करता रहा हूँ। पर अब आयु अधिक हो गई है पर मन है की मानता नहीं। पहले तो सभी यात्रायें अकेले ही करता रहा हूँ पर अब मन है किसी ग्रुप के साथ पेडल यात्रा पर जाऊं। आप अच्छा कार्य कर रहे है। इससे लोगों के मन में घूमने फिरने की इच्छा जागेगी और लोग यात्रा पर जायेंगे।

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  6. Me, Purushottam Uniyal, Panwali Kantha ke Yarta Plan kar raha hun,apne kuchh cousins and friends ke sath. Tentative Dates hain April 20 to 25, 2019.

    Wasie me Nailchami Bhatwari, Tehri se hun, per filhal Pune me rahta hun.

    Sandeep ji ne bahut accha lekh likha hai, jo ki logo ko yahan aane ke liye preyriti karta rahega.

    Baki logo k anubhav be bahut he shaandar lagta hai.

    Agar aap mera ye comment pad pa rahe hain to please mujhe is trek ke liye guide karein. Agar aap me se koie fir se interested hai ya mujhe guide karna chahte hai to mere mobile number -7030490367 pe WhatsApp bhi kar sakte hain.

    Regards,
    Purushottam Uniyal

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  7. Maine 5 saal ki Umar see 18 small take yahi gujare
    Panwali is my life

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  8. आपने यात्रा का वर्णन अति उत्तम किया है ,आभार .मैंने १९७२ में त्रियुगीनारायण से यात्रा प्रारंभ करके बुधाकेदार तक एक दिन में यात्रा समाप्त की थी ,दुरी लगभग ५५ किलोमीटर ,किन्तु तब मेरी आयु मात्र १७ वर्ष की थी ,पंवानी गुग्यल में दोपहर १ बजे भोजन किया था ,खीर और मावा का ,उस स्थान को तब गोपाल चट्टी बोलते थे ,फिर से एक बार इस यात्रा पर जाना चाहता हूँ ,अब आयु ७० वर्ष है ,होसला और हिम्मत में कोई कमी नहीं है ,कोई ग्रुप जाने वाला हों तो सूचित करें ,आभार

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