पंवाली कांठा ट्रैक
आयोजन व पहला दिन
पंवाली ट्रैक काफी समय से मन में था, कई बार कोशिश भी की लेकिन हर बार कुछ न कुछ अड़ंगा लग ही जाता था। होली पर जब घूम कर वापिस आया तो आते ही अमित तिवारी भाई ने पंवाली ट्रैक की बाबत पूछ लिया। मैंने भी हामी भर दी व कह दिया कि अपनी छुट्टियां देख कर डेट फाइनल कर लो मैं साथ चलूँगा।
पंवाली जाने के लिए हम पांच दोस्तों का ग्रुप भी बन गया जिसमें अमित तिवारी (गुरुग्राम), शशि चड्डा (गजरौला, उ.प्र.), नटवर भार्गव (राजस्थान), रविन्द्र भट्ट (रांसी, उत्तराखण्ड) से साथ चलेंगे। चूंकि भट्ट जी उत्तराखण्ड में हैं व स्वयं भी शानदार ट्रैकर हैं तो ट्रैक के लिए जरूरी व्यवस्थाओं पोर्टर से लेकर राशन आदि की सारी जिम्मेदारी भट्ट जी को सौंप दी गयी। हम सभी लोग 12 अप्रैल रात को दिल्ली से चलकर 13 अप्रैल को सीधे सोनप्रयाग में मिलेंगे।
नटवर भाई ने अपनी ट्रैन की टिकिट इस हिसाब से बुक की थी कि वो 12 अप्रैल शाम तक दिल्ली पहुंच जाएगा व यहीं से हमारे साथ हो लेगा। शशि भाई पहले दिन शाम को ही हरिद्वार पहुंच जाएंगे व अगले दिन सुबह चार बजे हमें हरिद्वार बस अड्डे पर मिल लेंगे। भट्ट जी पोर्टर लोगों के साथ सीधे गुप्तकाशी या सोनप्रयाग में मिल लेंगे।
पंवाली ट्रैक का प्रचलित मार्ग है त्रियुगीनारायण से शुरू करके टेहरी के घुत्तू कस्बे में निकलने का। इस ट्रैक को घुत्तू से शुरू कर त्रियुगीनारायण में भी समाप्त किया जाता है। सावन के महीने में जब कांवड़ यात्रा शुरू होती है तो भोले भक्त गंगोत्री से गंगाजल लेकर इसी रास्ते से निकलते हैं व केदारनाथ में जल अर्पण करते हैं। असल में यह ट्रैक अभी तक जितना भी प्रचलित है सिर्फ कांवड़ियों के कारण ही है। अन्यथा बहुत ही कम ट्रैकर यहां जाते हैं। समझ नहीं आता इतना खूबसूरत ट्रैक अभी भी ट्रैकरों की पसन्द क्यों नहीं बन पाया है।
तय दिन 12 अप्रैल से पहली रात को घर से फोन आ गया कि कल सुबह छोटी बहिन को गंगाराम अस्पताल में भर्ती होने के लिए वहां के डॉक्टरों ने कहा है व आपरेशन के माध्यम से डिलीवरी होनी है। मेरी चिंताएं बढ़ गई व इस बाबत सभी मित्रों को बता भी दिया कि मेरा साथ चलना आखिरी वक्त पर ही तय हो पाएगा। सुबह मैं अपने ट्रैकिंग बैग के साथ सीधे करोल बाग के नजदीक गंगाराम अस्पताल जा पहुंचा। ईश्वर की कृपा से सब कुछ सही रहा व मैं एक प्यारी सी गुड़िया का मामा बना, घर में प्रसन्नता फैल गई व मुझे खुशी-खुशी ट्रैक पर जाने की इजाजत भी। पूरा दिन अस्पताल में बिताने के बाद शाम के समय मेट्रो से कश्मीरी गेट बस अड्डे जा पहुंचा। अमित भाई पहले से ही मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे व कुछ ही देर बाद नटवर भाई भी राजस्थान से यहां पहुंचने वाले थे।
रात के करीब दस बजे हम तीनो ने हरिद्वार के लिए बस ले ली। जिसने सुबह चार बजे हमें हरिद्वार उतार दिया। हरिद्वार पहुंचकर शशि भाई को फोन किया तो पंद्रह मिनट बाद शशि भाई भी बस अड्डे आ पहुँचे। हरिद्वार से सोनप्रयाग की पहली बस सुबह साढ़े पांच बजे चलनी थी उसी में हम सवार हो गए। देवप्रयाग पहुँच कर नाश्ता किया। रांसी से रविन्द्र भट्ट जी भी टीम के साथ निकल चुके थे व हमें गुप्तकाशी में मिल जाएंगे। दिन के 12 बजे के आस-पास गुप्तकाशी पहुंचे तो भट्ट जी इंतजारी करते हुए मिले। ट्रैक के लिए कुछ जरूरी सामान खरीदने के उपरान्त सोनप्रयाग के लिए निकल पड़े।
दिन के लगभग दो बजे बस ने सोनप्रयाग उतार दिया। भूख भी जोरों से लग रही थी तो एक होटल में दिन का भोजन कर लिया गया। अभी सोनप्रयाग सूना पड़ा हुआ मिला। कुछ दिन बाद चार-धाम यात्रा शुरू हो जाएगी तो केदारनाथ जाने वाले यात्रियों की यहां भीड़ उमड़ पड़ेगी व पांव रखने की जगह भी नसीब होना दूभर हो जाता है। चार-धाम यात्रा की तैयारियों को अन्तिम रूप दिया जाता हुआ दिखा। लेकिन लगा नहीं कि यात्रा शुरू होने तक सारी तैयारियां पूर्ण हो जाएंगी। जिले के कलेक्टर भी यहां दौरे पर पहुंचे दिखाई मिले।
भोजनोपरांत त्रियुगीनारायण जाने की तैयारी शुरू कर दी जो सड़क मार्ग से 12 किलोमीटर व पैदल मार्ग से 5 किलोमीटर दूर है। सोनप्रयाग से बाएं हाथ को त्रियुगीनारायण के लिए सड़क चली जाती है जबकि सीधा मार्ग आगे गौरीकुण्ड तक जाता है, केदारनाथ जाने वाले यात्रियों को यहीं से आगे की यात्रा पैदल ही पूर्ण करनी होती है। यहीं भट्ट जी का एक जानकार टैक्सी ड्राइवर मिल गया जो हमें त्रियुगीनारायण छोड़ देगा।
सोनप्रयाग से त्रियुगीनारायण के लिए सीधी चढ़ाई वाला मार्ग है, सड़क पक्की व शानदार बनी हुई है। आधे घण्टे में हम त्रियुगीनारायण पहुंच गए। त्रियुगीनारायण भगवान शिव व पार्वती का विवाह स्थल है, एक भव्य मन्दिर यहां पर बना है, जिसमें सदियों से ज्वाला जलती आ रही है। मन्दिर के दर्शन कल सुबह करेंगे पहले आज की रात गुजारने के लिए ठिकाने की तलाश कर ली जाए।
यहां पर मन्दिर में धर्मशाला भी है, लेकिन जब कमरे देखे तो रख रखाव का नितान्त अभाव दिखाई दिया। साफ-सफाई भी कमरों में दूर-दूर तक नजर नहीं आई। ऐसे हमारे पास खुद के टैण्ट, स्लीपिंग बैग, राशन आदि सब कुछ उपलब्ध था लेकिन कल से पूरे ट्रैक पर इन्ही सबका इस्तेमाल करना है इसलिए आज की रात जब मिल रहा है तो क्यों न आराम से गुजारी जाए इसलिए यहीं पर एक होटल में दो कमरे ले लिए। खाना भी इसी होटल में मिल जाएगा।
चूंकि अभी अंधेरा होने में काफी समय था इसलिए आस-पास भ्रमण कर लिया जाए तो जल्दी से कमरों में सामान रख गौरी गुफा देखने के लिए निकल पड़े जो गांव से डेढ़ किलोमीटर ऊपर है। गांव के बीच से होते हुए ठीक ऊपर की ओर रास्ता जाता है, स्थानीय लोग खेतों में काम करते हुए मिले जो कि मुझे सुखद एहसास दिलाता है। पूछते-पूछते गौरी गुफा तक जा पहुंचे। यहां पहुंचने के लिए अंतिम सौ मीटर तो रास्ता है ही नहीं, अगर आपको पहाड़ों का अनुभव है तो ही अकेले जाएं अन्यथा किसी स्थानीय को साथ जरूर ले जाएं।
पहाड़ की चट्टान पर दो छोटे-छोटे छेद बने हैं जिन तक पहुंचना भी हर किसी के बस की बात नहीं। थोड़ा बहुत रॉक क्लाइम्बिंग करके ही ऊपर चढ़ सकते हैं व मोगली बनने के चक्कर मे गल्ती से पैर फिसला तो एक दो हड्डी टूटनी तय हैं। खैर हम सभी एक-एक कर चढ़े व गुफा के दर्शन किए। मान्यता है कि इस गुफा का दूसरा सिरा नेपाल में निकलता है, लेकिन मुझे तो इसका पहला सिरा ही नजर नहीं आया।
खैर, हमें यहां कुछ न कुछ तो घूमना ही था व कल से ट्रैक शुरू करना है तो थोड़ा अभ्यास भी हो गया। गप्पें लड़ाते-लड़ाते वापिस त्रियुगीनारायण होटल में आ गए। गौरी गुफा जाते हुए होटल मालिक ने रात के खाने की बाबत पूछा था तो हमने ठेठ स्थानीय खाने के लिए कहा था। हमारे पोर्टर भी आस-पास घूमने गए तो “लिंगोड़े” तोड़ लाए जिसकी सब्जी बनेगी। लिंगोड़े पहाड़ों पर मिलने वाली प्रसिद्ध जंगली सब्जी है। बेहद पौष्टिक व आयरन से भरपूर यह सब्जी पहाड़ों पर गर्मियों व बरसात के समय आसानी से मिल जाती है। खाने में इसका स्वाद ठीक किसी भी हरे पत्तों वाली सब्जी के जैसा होता है। बनाने की विधा भी सामान्य ही है बस जंगलों में उगती है तो साफ-सफाई का विशेष ध्यान देना होता है। बाकी जैसा राई, चोलाई आदि के पत्तों की सब्जी बनती है वैसे ही इसको भी बनाते हैं।
लिंगोड़े की सब्जी के साथ स्थानीय राजमा का स्वाद लिया गया। सुबह नाश्ते में परांठे बनाने व दिन के भोजन के लिए भी परांठे पैक करने को कहकर आराम करने कमरों में आ गए। कल से बहुप्रतीक्षित पंवाली की चढ़ाई नापने की तैयारी जो करनी थी।
त्रियुगीनारायण |
त्रियुगीनारायण |
त्रियुगीनारायण |
त्रियुगीनारायण |
गौरी गुफा |
गुफा का रास्ता |
दो शूरवीर |
चढ़ जा |
केदार बाबा |
त्रियुगी गांव |
सुबह का नाश्ता |
रात का ठिकाना |
त्रियुगीनारायण प्रवेश द्वार |
त्रियुगीनारायण मन्दिर |
लिंगोड़े |
सर्वप्रथम तो आपको जन्मदिन की बधाई।
ReplyDeleteआपकी इस यात्रा का बहुत दिन से इंतजार था लेकिन जानता हूँ की कार्य व लैपटाप की वजह से यह आगे खिंच गई। चलिए अब चल पडे है इस यात्रा पर हम भी आपके संग। बहुत सुंदर फोटो व आगे की किस्त का इंतजार रहेगा।
वैसे मन्दिर में जो अग्नि जल रही है उसके पीछे भी कोई कहानी है?
धन्यवाद सचिन भाई, जी ये वही ज्वाला है जिसके सात फेरे लेकर शिव-पार्वती का विवाह हुआ था ऐसी मान्यता है।
Deleteबढ़िया बीनू भाई....बहुत बढ़िया..👍
ReplyDeleteअगले भाग की प्रतीक्षा.....कृपया शीघ्रता करें..
धन्यवाद डॉ साहब।
Deleteबहुत बढ़िया..
ReplyDeleteअगले भाग की प्रतीक्षा.....
धन्यवाद सिन्हा साहब।
Deleteलिंगोड़े तो नेपाल भूटान मे खूब मिलते है। पर साख नहीं खाया।
ReplyDeleteजी पहाड़ों में लगभग हर क्षेत्र में ये मिलता है।
Deleteफोटो में रंग ज्यादा गाढा दिख रहा है या मेरा लेपटॉप ही खराब है।
ReplyDeleteकैमरे का कमाल हैं सब .. :p
Deleteकैमरे की सेटिंग है भाई।
Deleteबहुत बढिया भाई जी
ReplyDeleteमैं भी हो आऊंगा गौरी गुफा
बहुत खूब।
Deleteशानदार .. फोटो कंहा से मिल गये ?
ReplyDeleteकैमरे के कार्ड में बचे थे।
Deleteलिंगोड़े बड़ी अजीब अजीब शक्ल बनाते दीखते हैं पहाड़ों में ! त्रियुगी नारायण भगवान के सुन्दर दर्शन हो गए ! बहुत बढ़िया बीनू भाई , लेकिन एक सलाह है , सलाह क्या अनुरोध है ! आप जब पोस्ट फाइनल कर दिया करें तो एक बार खुद भी पढ़ लिया कीजिये क्योंकि आप कहीं कहीं टाइपिंग की गलतियां कर जाते हैं जिससे रिदम टूट जाती है !!
ReplyDeleteजरूर भाई, जो भी गलतियां होंगी सुधार कर दूंगा।
Deleteशानदार फोटो के साथ शानदार यात्रा की शुरुआत...
ReplyDeleteधन्यवाद गौरव भाई।
Deleteलिंगोड़े की फोटो देखि कन गिच्ची माँ पानी ए ग्या दादा। २०१२ माँ जब गौं आया छाय तभी खाये छे बीजाम
ReplyDeleteदीपक नैथानी
बढ़िया भुला।
DeleteI haven’t any word to appreciate this post. Really i am impressed from this post.
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