कार्तिक स्वामी यात्रा
होली एकलौता ऐसा त्योहार है जिससे मैं दूर ही भागता हूँ। कोशिश करता हूँ होली के समय पहाड़ों में किसी न किसी ट्रैक पर रहूँ, क्योंकि दिल्ली में होता हूँ तो घर से बाहर निकलता नहीं हूं, और घर में पड़े रहने से तो बेहतर है कि पहाड़ों पर विचरण ही किया जाए।
इस वर्ष भी यह तय था कि मुझे होली पर कहीं न कहीं तो निकलना ही है। इसी बीच गो हिमालया का काम भी शुरू हो चुका था और मदमहेश्वर जाने के लिए एक ग्रुप की क्वेरी भी आई थी। चूंकि इस ग्रुप में सदस्यों की संख्या ज्यादा थी इसलिए मैं पहले स्वयं सुनिश्चित कर लेना चाहता था कि इतने लोगों की व्यवस्था कैसे व किस रूप में हमें करनी होगी। तभी अपनी ओर से हां कहूंगा। इसी को ध्यान में रखकर होली के समय मदमहेश्वर जाने का तय कर लिया।
इसी समय घर से फोन आ गया कि गांव में चाचा के लड़के का मुण्डन संस्कार कार्यक्रम है, जिसमें मुझे सम्मिलित होने जाना होगा, तो दिल्ली से पहले सीधे गांव होकर फिर आगे मदमहेश्वर के लिए निकलना तय कर लिया। दिल्ली से गांव पहुंचकर व दो दिन मुण्डन संस्कार कार्यक्रम में सम्मिलित होकर सीधे उखीमठ जा पहुंचा। चूंकि अभी मदमहेश्वर के कपाट खुले नहीं थे और स्थानीय निवासी इस समय किसी को भी आगे जाने की इजाजत नहीं देते, फिर भी सोचा कि जहां तक जाने देंगे जाऊंगा, और एक बार आगे जाने देने की विनती करूँगा अगर जाने दिया तो ठीक अन्यथा लौट आऊंगा।
मौसम भी खराब ही था लेकिन ऐसे में ही उखीमठ से रांसी होते हुए गोण्डार गांव तक जा पहुंचा, मदमहेश्वर की ओर बर्फ की चादर बिछी हुई थी। गोण्डार गांव में एक रात बिताने के बाद वापिस लौटना पड़ा क्योंकि आगे जाने की इजाजत मन्दिर समिति के लोगों ने नहीं दी।
पिछले दो दिनों से पहाड़ों पर हल्की-फुल्की बरसात भी हो रही थी, मैं बारिश में ही ट्रैक कर वापिस ऊखीमठ आया था। ऊखीमठ में नेटवर्क मिलने पर फेसबुक खोला तो देखा कि कुछ मित्र आज यहीं पहुंचने वाले हैं, और उनका आगे चोपता- तुंगनाथ जाने का कार्यक्रम है। ऐसे उनके कार्यक्रम का मुझे पहले से मालूम था, लेकिन सभी लोग खराब मौसम की वजह से चिंतित थे तो मैंने गोण्डार जाते हुए अपने फेसबुक पर स्टेटस अपडेट कर दिया कि चिन्ता वाली कोई बात नहीं जो भी मित्र यहां आ रहे हैं अपना कार्यक्रम विधिवत जारी रखें।
मैं सर्दियों में तुंगनाथ पहले भी जा चुका हूं, लेकिन बर्फ का आकर्षण ऐसा होता है कि इसको बार-बार देखने का मन करता है। मेरा कार्यक्रम पहले से ही यहां जाने का था और जब आज ही कुछ मित्र यहां पहुंच ही रहे हैं तो क्यों न उनके साथ ही आगे जाया जाए। उखीमठ बाजार से आधा किलोमीटर नीचे हनुमान मन्दिर के सामने आकर मैं मित्रों की प्रतीक्षा करने लगा। यहां से सीधी सड़क चोपता होते हुए गोपेश्वर की ओर तथा बाएं ऊखीमठ होते हुए रांसी की ओर निकल जाती है। करीब एक घण्टे बाद सचिन जांगड़ा अपनी बाइक से सबसे पहले पहुंचा, जांगड़ा को आवाज दी तो वो मुझे देखकर चौंक गया। बाकी मित्रों के बारे में पूछा तो मालूम पड़ा वो अभी पीछे हैं, पहुंचने में समय लगेगा।
चूंकि शाम का समय हो चला था और सभी की ठहरने की व्यवस्था करनी थी तो जांगड़ा व मैं बाइक से आगे सारी गांव की ओर निकल पड़े। वहां जाकर सभी के लिए ठहरने आदि की व्यवस्था का जायजा ले सकें। हमने सारी गांव जाकर सभी की ठहरने की व्यवस्था कर भी दी थी लेकिन न जाने क्या सोचकर सभी लोग उखीमठ से 25 किलोमीटर दूर रांसी गांव के लिए निकल पड़े। जबकि अगर आपके कार्यक्रम में चोपता-तुंगनाथ जाना है तो रांसी कहीं भी सीन में नहीं आता। खैर, सचिन व मैंने सारी में रात बिताई व आगे का कार्यक्रम भी तय कर लिया। सुबह जल्दी उठकर बर्फ से लदालद देवरिया ताल को देखा। देवरिया ताल के पश्चात हमारा कार्यक्रम चोपता की ओर बढ़ने का था। तभी कल रात के बिछड़े मित्रों के फोन आने लगे तो उनको मक्कू बैंड पहुंचने की सलाह दी हम उनकी वहीं प्रतीक्षा करेंगे।
घूमने में ग्रुप बड़ा हो तो समय ज्यादा लगता ही है, वही यहां भी हुआ और हमारे तीन घण्टे प्रतीक्षा करने के बाद सभी लोग यहां पहुंचे। चूंकि मक्कू से आगे गाड़ियां जा नहीं पाएंगी तो यहां से चोपता पैदल ही जाना पड़ेगा। लेकिन बर्फ के आसार देखकर सभी मित्रों ने यहां से कुछ आगे तक जाकर वापिस लौटने का निश्चय कर लिया, जबकि मेरा मन आगे आज चोपता पहुंचने का था। लेकिन जब सभी मित्रों का निर्णय वापिस लौटने का था तो मुझे निराशा हुई। एक बार मैंने अकेले ही चोपता की ओर जाने की ठान ली थी लेकिन परम मित्र व बड़े भाई डॉ प्रदीप त्यागी के आग्रह पर मैं भी सभी के साथ वापिस ऊखीमठ आ गया।
असल में घुमक्कड़ दोस्तों के कुछ व्हाट्स एप्प ग्रुप हैं उन्ही में से एक है “घुमक्कड़ी दिल से”। ये सभी मित्र इस ग्रुप के ही सदस्य थे व यहाँ आने का कार्यक्रम भी इन सभी का इस ग्रुप के अंतर्गत ही बना था। हालांकि मैं इस ग्रुप का सदस्य नहीं हूं फिर भी घुमक्कड़ों की दुनिया में सभी लोगों से मेरा परिचय है, और इसी ग्रुप के एक अन्य कार्यक्रम जो कि मध्य प्रदेश के शानदार शहर ओरछा में हुआ था मैं उसमें भी सम्मिलित हुआ था। उखीमठ पहुंच कर रात को ग्रुप एडमिन संजय कौशिक भाई ने जब मुझसे मेरे कल आगे के कार्यक्रम के बारे में पूछा तो मैंने बता दिया कि सचिन जांगड़ा व मैं कल कार्तिक स्वामी होते हुए दिल्ली की ओर निकलेंगे।
संजय भाई ने जब जानकारी ली कि क्या कल कार्तिक स्वामी जाकर रात तक दिल्ली पहुंचा जा सकता है तो मैंने बता दिया कि सुबह अगर जल्दी निकलें तो आधी रात तक दिल्ली पहुँच जाएंगे। तभी तय हो गया कि सुबह छह बजे यहां से सभी लोग कार्तिक स्वामी के लिए कूच करेंगे।
अक्सर बड़े ग्रुप में लेट लतीफी हो जाती है लेकिन एक घुमक्कड़ सुबह जल्दी यात्रा शुरू करने का मतलब जानता है और ये तो था ही घुमक्कड़ों का ग्रुप तो सभी लोग सुबह छह बजे तैयार होकर आगे की यात्रा के लिए निकल पड़े।
आज होली का दिन था, पांच किलोमीटर नीचे कुण्ड पहुंचकर सड़क किनारे ही सुबह की चाय बनाई गई व होली भी यहीं खेल ली गयी। असल में ये खाने-पीने का सामान व खाना बनाने के लिए कारीगर भी दिल्ली से ही साथ में लेकर आए थे। एक घण्टा कुण्ड में मस्ती करने के बाद आगे बढ़ चले। भीरी से पहले एक सड़क बाएं हाथ की ओर मुड़ जाती है जो रुद्रप्रयाग व कर्णप्रयाग दोनों ओर निकलती है। इसी सड़क पर 40 किलोमीटर चलकर मोहनखाल आता है, यहां से दाहिनी ओर मुड़ जाओ तो पांच किलोमीटर आगे कनकचौरी आता है व बायीं ओर यह सड़क कर्णप्रयाग की ओर निकलती है। यहीं कनकचौरी से कार्तिक स्वामी का ट्रैक शुरू होता है। जो तीन किलोमीटर की चढ़ाई के बाद आता है। कनकचौरी की समुद्र तल से ऊंचाई 2400 मीटर के लगभग है वहीं कार्तिक स्वामी 3050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
चूंकि खाने का सामान आदि सभी पास में था तो यहां एक दुकान पर भोजन बनाने के लिए जगह चुनकर सभी लोग कार्तिक स्वामी के लिए निकल पड़े। जब तक हम वापिस आएंगे दिन का भोजन तैयार मिलेगा। अनिल दीक्षित व मैं अन्त में सभी ब्यवस्था कर आगे निकले। कनकचौरी से सीधी चढ़ाई के साथ रास्ता ऊपर की ओर जाता है। मार्च का महीना चल रहा है तो बुरांश के फूलों ने एक अलग ही समा बांधा हुआ है। कुछ दो-तीन सौ मीटर ऊपर चढ़ते ही रास्ते में बर्फ भी मिलने लगी। चूंकि रास्ता बहुत बढ़िया बना हुआ है इसलिए बर्फ से किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हुई।
बुरांश का यहां सघन जंगल है, फूल खिले हों व उन पर ताजी बर्फ भी गिरी हो तो नजारे अदभुत होने लाजिमी हैं। सभी लोग मस्ती में चढ़े जा रहे थे, कुछ मित्रों का यह बर्फ में चलने का पहला अनुभव था तो उनका उत्साह देखते ही बनता था। हमारे ग्रुप में उम्र के हिसाब से सबसे बड़े नौजवान जयपुर से आए घुमक्कड़ मित्र देवेंद्र कोठारी थे। कोठारी जी के साथ पहले मैंने जम्मू-कश्मीर राज्य के भदरवाह क्षेत्र में कैलाश कुण्ड ट्रैक किया हुआ था। उस ट्रैक ने सभी की हालत खराब कर दी थी व कोठारी जी ने भविष्य में ट्रैक न कर सिर्फ सड़क मार्ग से घूमने की सौगंध खा ली थी। लेकिन आज फिर वो ट्रैक कर रहे थे व पूरे रास्ते मुझे कहीं भी दिखाई नहीं दिए, सबसे आगे शायद वही चल रहे थे।
जैसे कि हर ग्रुप में होता है कि जो सबसे ज्यादा मस्तीखोर होते हैं वो सबसे पीछे रहते हैं। वैसे ही यहां भी हुआ और मैं मस्तीखोरों के ग्रुप का हिस्सा बन गया। मुरादाबाद से आए योगेश शर्मा, संभल (उ.प्र.) से डॉ प्रदीप त्यागी व दिल्ली से कमल कुमार सिंह इन सबके साथ मस्ती करते-करते कब तीन किलोमीटर चढ़ गए मालूम ही नहीं पड़ा। कार्तिक स्वामी मन्दिर से कुछ नीचे पुजारी जी का भवन बना है, दो मिनट रुक कर फ़ोटो खींची। कुछ एक श्रद्धालु भी यहां पर पहले से बैठे मिले। यहां से मन्दिर के लिए सीधी सौ मीटर की चढ़ाई है। मन्दिर पहाड़ की ठीक नुकीली चोटी पर बना है। जैसे-जैसे ऊपर बढ़ते जा रहे थे मध्य गढ़वाल व हिमालय की पर्वत श्रखंलाओं के शानदार नजारे यहां से दिखने शुरू हो जाते हैं।
जैसे ही मन्दिर प्रांगण में पहुंचा तो चारों ओर दिखने वाला नजारा अभिभूत करने वाला मिला। जिधर भी नजर जाती शानदार हिमालयी नजारे आंखों को सुकून देते हुए मिले। मध्य गढ़वाल में ऐसी कुछ ही जगह हैं जहां से ऐसे नजारे आंखों के सामने होते हैं। कार्तिक स्वामी का इसी वजह से काफी नाम सुना था लेकिन यहां आने का कभी संजोग नहीं बन पाया था। केदार श्रृंखला से चौखम्बा, त्रिशूल व सभी मुख्य पर्वत श्रखंलाओं के यहां से शानदार नजारे देखने को मिलते हैं। कुल मिलाकर यहां से आप 360 डिग्री पर नजारों का आनन्द ले सकते हैं। काफी देर तक फ़ोटो सेशन का दौर चला, आज ही दिल्ली वापिस पहुंचना था तो मन मारकर नीचे उतरने की तैयारी शुरू कर दी। आराम से गप्पें लड़ाते हुए वापिस कनकचौरी आ पहुंचे।
कनकचौरी में स्थानीय युवक नशे में धुत होकर होली का हुड़दंग करते हुए मिले। मैं इसी हुड़दंग की वजह से होली पर दिल्ली से दूर पहाड़ों पर भागता हूँ। अब यहां भी वही सब देखकर निराशा हुई व बहुत गुस्सा भी आया। हमारा दिन का भोजन तैयार था। पंडित जी जिनको दिल्ली से विशेष रूप से दोस्त भोजन बनाने हेतु अपने साथ ले गए थे उन्होंने बड़े ही स्वादिष्ट दाल व चावल बनाए थे। भोजनोपरांत वापसी रुद्रप्रयाग की ओर निकल पड़े। एक घण्टे में रुद्रप्रयाग पहुंचकर देवेंद्र कोठारी जी व मुम्बई से आए प्रतीक गांधी से विदा ली। उन्हें अपनी यात्रा जारी रखकर कर्णप्रयाग होते हुए कुमाऊं की ओर निकलना था। मुरादाबाद व संभल से आए योगेश भाई व डॉ प्रदीप त्यागी ने भी यहीं से विदा ले ली। ये दोनों लोग श्रीनगर से पौड़ी-कोटद्वार होकर निकल जाएंगे। ऋषिकेश पहुँचते-पहुँचते रात के आठ बज चुके थे। कुछ मित्रों को यहीं रुकना था जिनमें मुम्बई से आई अल्पा दागली, मनोज धारसे, कमलेश गुले व अपना राजस्थानी दोस्त नटवर भार्गव थे। ये लोग यहीं आस-पास अपनी घुमक्कड़ी जारी रखकर घर जाएंगे।
हमारे रथ (कार) के सारथी रूपेश शर्मा भाई थे, उनके बच्चे आजकल छुट्टियों में मेरठ के नजदीक उनके पैतृक गांव आए थे तो मुझे व कमल भाई को खतौली में दिल्ली की बस में बिठाकर रूपेश भाई ने भी विदा ले ली। सुबह चार बजे दिल्ली में कश्मीरी गेट पहुंचे तो घर पहुंचने के लिए कुछ साधन नहीं मिला। कमल भाई व मैंने बस अड्डे पर ही चादर बिछा कर सोने का फैसला किया। सुबह सात बजे आंख खुली तो मेट्रो पकड़ कर घर भी पहुंच गए।
कार्तिक स्वामी मन्दिर भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को समर्पित है। जब भगवान गणेश व कार्तिकेय में यह शर्त लगी कि कौन ब्रह्मांड के तीन चक्कर काट कर पहले पहुंचता है तो गणेश जी ने माता-पिता के तीन चक्कर काट लिए थे। माता-पिता के प्रति अपनी श्रद्धा को सिद्ध करने हेतु कार्तिकेय ने अपने शरीर का मांस माता व हड्डियों को पिता को समर्पित कर दिया था। इन्ही हड्डियों की यहां पूजा की जाती है।
घुमक्कड़ों के लिए यह स्थान किसी स्वर्ग से कम नहीं है। कनकचौरी से यहां तक पड़ने वाले घने जंगल में विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी व सघन बुरांश का जंगल आकर्षक लगता है साथ ही यहां से दिखाई देती हिमालयी पर्वत श्रृंखला के नजारे अदभुत हैं। कार्तिक स्वामी से सूर्यास्त व सूर्योदय का नजारा भी अदभुत दिखाई देता होगा इसके लिए मुझे एक बार फिर यहां आना ही होगा। रुकने के लिए मन्दिर से कुछ नीचे पुजारी जी की कुटिया में आसानी से व्यवस्था हो जाती है, या फिर अपना टैण्ट आदि लेकर आएं तो भी आराम से यहां रात्रि निवास किया जा सकता है। हां पानी की यहां किल्लत है इसलिए कनकचौरी से ही पानी लेकर पहुँचे तो सुविधाजनक रहेगा।
घुमक्कड़ों के लिए यह स्थान किसी स्वर्ग से कम नहीं है। कनकचौरी से यहां तक पड़ने वाले घने जंगल में विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी व सघन बुरांश का जंगल आकर्षक लगता है साथ ही यहां से दिखाई देती हिमालयी पर्वत श्रृंखला के नजारे अदभुत हैं। कार्तिक स्वामी से सूर्यास्त व सूर्योदय का नजारा भी अदभुत दिखाई देता होगा इसके लिए मुझे एक बार फिर यहां आना ही होगा। रुकने के लिए मन्दिर से कुछ नीचे पुजारी जी की कुटिया में आसानी से व्यवस्था हो जाती है, या फिर अपना टैण्ट आदि लेकर आएं तो भी आराम से यहां रात्रि निवास किया जा सकता है। हां पानी की यहां किल्लत है इसलिए कनकचौरी से ही पानी लेकर पहुँचे तो सुविधाजनक रहेगा।
देवरिया ताल |
बुरांश |
देवरिया ताल पर, फ़ोटो-सचिन जांगड़ा |
मक्कू मोड़, फ़ोटो-योगेश शर्मा |
कुंड में होली रंग पुताई |
चोटी पर कार्तिक स्वामी, फ़ोटो-योगेश शर्मा |
सचिन जांगड़ा, योगेश शर्मा, डॉ प्रदीप त्यागी |
योगेश शर्मा, कमल कुमार सिंह |
बुरांश की चादर |
कार्तिक स्वामी |
कार्तिक स्वामी |
ग्रुप |
फ़ोटो के लिए धन्यवाद कोठारी जी |
बहुत बढिया लेखन बीनू जी
ReplyDeleteडॉ पवन राज्याण
धन्यवाद डॉ साहब।
Deleteबेहद खूब लेखन।
ReplyDeleteधन्यवाद शर्मा जी।
Deleteबढ़िया यात्रा विवरण बीनू भाई ....
ReplyDeleteइस यात्रा के बारे में जानने को इच्छुक था सो ये कमी आपके लेख से पूरी ही गयी...
सुन्दर चित्र ... दिल से ♥
धन्यवाद रितेश भाई।
Deleteआपने यादे ताजा कर दी बीनू भाई
ReplyDeleteरांसी में आपकी व सचिन जांगड़ा की कमी रही |
बहुत सुंदर वर्णन भाई जी |
धन्यवाद योगेश भाई।
Deleteकौन से कैमरे के फोटो है बीनू भाई, शानदार रंग दिख रहे है।
ReplyDeleteसोनी वाले के तो हरगिज नहीं होंगे। उसके तो कुछ समझदार लोग बेकार बताते है, बेकार कैमरा इतने शानदार फोटो नहीं ले सकता है, नया कैमरा ले लिया भाई,
अरे कैमरे के चक्कर में यह बात तो रह गयी कि जून के शुरू में आप किसी ग्रुप को ले जाते हमें मिले थे ना, तभी वापसी में हम भी यहाँ स्वामी जी मंदिर दर्शन कर आये थे।
कुछ सोनी के ही हैं भाई,कुछ दोस्तों के कैमरे की हैं।
Deleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद सिन्हा साहब।
Deleteबढ़िया वर्णन जोगी भाई ��
ReplyDeleteधन्यवाद पा जी।
Deleteबहुत सुंदर वर्णन वैसे अन्य लोग रांसी क्यो रूके? उखीमठ्ठ रूकना चाहिए था जिससे वह भी देवरिया ताल ट्रेक कर आते। चलो कोई नही बढिया यात्रा रही
ReplyDeleteवैसे रांसी भी खूबसूरत जगह है, लेकिन चोपता-तुंगनाथ रास्ते से हटकर है। धन्यवाद सचिन भाई।
Deleteभाई जी मेरा फोटो क्यूं नही लगाया
ReplyDeleteफ़ोटो खो गई सारी।
Deleteरोचक यात्रा वर्णन बीनू भाई और फोटो भी बहुत खूबसूरत है !
ReplyDeleteधन्यवाद गौरव भाई।
Deleteआपके और आपके जैसे घुमक्कड़ो के ब्लाग विशेषकर पढता रहता हूँ, जिसमें अनेको बढ़िया ज्ञानवर्धक जानकारिया भी छिपी रहती है, जो बड़े काम की होती है..... ऐसे रोचक वर्णन पढ़ने के बाद, ऐसा लगता है जैसे हम भी साथ साथ यात्रा कर रहे है और उसका आनंद ले रहे है .... इस प्रकार घुमक्कड़ी करने का मौका ही नहीं मिल पा रहा है.... जितना प्रयास करते है, उतना ही उलझ जाते है.... बड़ी मुश्किल से केदारनाथ जाने का प्लान बना लेकिन ऐन वक्त पर कैंसिल हो गया .... बड़ी छटपटाहट सी होती है. बीनू जी आप जैसे लोग इतने व्यस्त जीवन से घूमने का मौका कैसे निकल लेते है.... जबकि समय और पैसा दोनों कि अत्यंत आवश्यकता होती है... इस प्रकार घुमक्कड़ी में..... यह गुरुमंत्र हमें भी प्रदान करे..
ReplyDeleteआपसे एक बार मिलना तो बनता है... मैं दिल्ली में ही रहता हूँ ... आप बताओ समय कब मिलना है
आपके शब्दों के लिए धन्यवाद कपिल भाई, जरूर मिलेंगे शीघ्र ही।
Deleteधन्यवाद, बीनू जी
Deleteसुन्दर वर्णन तथा बेहतरीन छाया चित्रों का प्रकाशन...!!!
ReplyDeleteधन्यवाद शैलेन्द्र भाई जी।
ReplyDeleteMja aa gya padhkar.... jabardast
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर वर्णन बीनू भाई,और उससे भी अच्छा देवरिया ताल का फ़ोटो।
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