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तुंगनाथ से वापसी
साल के इस समय तुंगनाथ को देखना वाकई में एक अदभुत अनुभव था, मंदिर परिसर पूरी बर्फ की आगोश में समाया होता है, कुछ दुकाने और घर बने हैं, सभी पूरी तरह बर्फ में दबे हुये थे, सिर्फ ऊपरी हिस्सा ही नजर आ रहा था, पूरा क्षेत्र ही सुनसान पड़ा था सिर्फ हम ही थे जो पिछले 2 महीने में यहाँ पहुंचे थे। एक चील ने हमारे ऊपर मंडराना शूरू कर दिया था, उसको भी नीचे जमीन पर काफी समय बाद हलचल दिखी तो सोचा होगा शिकार मिल गया। करीब 30 मिनट तक हमारे ऊपर चारों और मंडराती रही। इस समय तुंगनाथ से आस पास के नज़ारे बहुत ही शानदार दिख रहे थे, ऊपर चंद्रशिला की और देखा तो ऐसा सा लग रहा था जैसे एक सफ़ेद गुम्बद हो। सभी फ़ोटो सेशन में ब्यस्त थे, मैंने मजाक में गोविन्द को कहा कि तू सबसे आगे-आगे चलता आया है, मैं भी ट्राय करता हूँ कि फ़ुटमार्क कैसे बनाते हैं ? थोडा सा अलग में एक खम्बा पकड़ के पांव डाला तो ये हाल हो गया.......
धूप काफी तेज हो गयी थी, ज्यादा इधर उधर जा नहीं सकते थे, क्योंकि बर्फ में धंसने का खतरा बना रहता है, करीब 30 मिनट के बाद वापिस चलने की तैयारी शुरू कर दी। क्योंकि जितनी धूप तेज होगी उससे बर्फ पिघलेगी फिर बर्फ पर चलना उतना ही मुश्किल हो जाएगा। नीचे उतरते हुए फिसलने का खतरा ज्यादा हो जाता है। फिर आज ही बर्फ से निजात भी पानी थी तो सीधे मक्कू पहुंचना था। वैसे भी सूखी धरती पर 4 कि.मी. और बर्फ का 1 की.मी. बराबर, तो समय भी ज्यादा लगना था। नीचे उतरते हुये ज्यादा सावधानी बरतनी पड़ती है, बजाय कि ऊपर चढ़ने के, हाँ स्पीड थोड़ी ज्यादा हो जाती है। तुंगनाथ को नमन किया कि आप दुबारा बुलाएँगे तो फिर से हाज़िर हो जाऊंगा, और नीचे की और चल पड़े।
करीब 2 कि.मी. नीचे उतरने के बाद लगा कि अब सभी खतरनाक ढलानें खत्म हो गयी हैं तो पोंछो राइडिंग की शुरुवात कर दी। पोंछो राइडिंग क्या होती है इसको समझाने का प्रयास करता हूँ.... जब भी सूखी जमीन पर हम पहाड़ से नीचे उतरते हैं तो रास्तों में शार्ट कट मार लेते हैं, बर्फ में पांव से तो शार्ट कट मार नहीं सकते, इसलिए एक पन्नी को नीचे बिछाओ और कूद पड़ो, लेटे लेटे सीधे 50 -100 मीटर नीचे। इसमें मजा भी बहुत आता है लेकिन खतरनाक भी है, क्योंकि जब आप लेटे लेटे बर्फ में फिसलते हैं तो बहुत तेजी से नीचे की और जाते हैं। आपको पता होना चाहिये कि नीचे कोई बड़ा सा नुकीला पत्थर ना हो, साथ ही अपनी नीचे उतरने की स्पीड कैसे कन्ट्रोल करनी है, कैसे रुकना है आदि। अगर कोई जानकार साथ में हों तो आजमाना चाहिये, मजा आता है। प्रकृति ने फ्री की लेटो स्कीइंग करने को मौका दिया है तो क्यों छोड़ना।
जैसे ही जंगली इलाका शुरू हुआ तो बर्फ में जानवरों के पांव के निशान मिलने लग गए।सुबह कड़ाके की ठण्ड थी तो वो भी दुबके रहे होंगे अब अच्छी खासी धूप है तो विचरने लगे, भालू मामा की याद आ गयी, कहीं रास्ते में गले मिलने ना आ जाएँ, सब फिर साथ हो लिए और गाना गाते हुए, आवाज़ें निकालते हुए चोपता पहुँच गए। चोपता में भोजन तैयार था, मेरे को फ़ोटो खींचनी थी, क्योंकि में किसी भी ट्रैक पर ऊपर जाते हुए कम और नीचे उतरते हुए ज्यादा फ़ोटो खींचता हूँ इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि एक बार जब तक ऊपर पहुंचा तो सारी बैटरी खत्म हो चुकी थी। इसलिए जल्दी जल्दी खाना खा कर भरत को कहा कि मैं निकल रहा हूँ, शिवम और होमेश भी साथ हो लिए।
हम तीनों मस्ती में फ़ोटो सेशन करते करते नीचे उतरते जा रहे थे। ताज़ी गिरी बर्फ पर अगर कोई चिड़िया भी चल रही थी तो उसके पंजो के निशान भी मिल रहे थे। बनियाकुंट पहुँच कर थोडा आराम किया चाय पी और आगे बढ़ चले। दुगलबिट्टा में एक दो दिल्ली से आये पर्यटक मिले, पूछने लगे कि अभी चोपता जा के वापिस आ सकते हैं ? हम तीनों ने एक साथ उनके जूतों की तरफ देखकर ना बोला और आगे बढ़ चले। मक्कू मोड़ तक काफी पर्यटक मिले, कुछ परिवार सहित आये थे, बर्फ का आनंद ले रहे थे, और हम दुआ कर रहे थे कि कब सूखी जमीन नसीब हो। जब मक्कू मोड़ पहुंचे तो गाड़ियां हमारा इंतज़ार कर ही रही थी। आज हमको कुण्ड तक वापिस जाना था वहां पर भरत लोगों का कैंप बना है, रात्रि विश्राम आज बोन फायर के साथ होना था साथ में जश्न भी होना था तो होमेश भाई ने अपनी और से पार्टी की घोषणा कर दी।
हमारी वाली गाडी में सब उत्पाती प्रवृति के बैठ गए बाकी दूसरी गाडी में। मक्कू मोड़ से चले तो हँसते हंसाते चले जा रहे थे आगे चलकर जश्न के सामान को लेने के लिए उखीमठ बाजार की तरफ गाडी मुड़वा ली,शौपिंग होमेश ने ही की और आधे घण्टे में करीब 5 बजे कुण्ड पहुँच गए। कैंप में गर्मागर्म पकोड़ों और चाय से स्वागत हुआ। शानदार कैंप बिलकुल मन्दाकिनी के तट पर बना हुआ है।
भरत और मेरा कमरा एक साथ था, कमरा क्या 3 स्टार होटल का कमरा। रूम में जाकर बर्फ के परिधानों का त्याग किया कि अब अगले साल ही काम आओगे, और फ्रेश होकर ऊपर गार्डन एरिया में आ गया। थोड़ी देर में बोन फायर शुरू हो गया, सभी अपने अपने अनुभव बता रहे थे।
होमेश की पार्टी का रंग जब चढ़ने लगा तो धीरे धीरे सबके अंदर छुपा मोहम्मद रफ़ी बाहर आने लगा। काफी देर मजे किये, मुझे सुबह जल्दी निकल कर दिल्ली पहुंचना था तो खाना खाया और रूम में आराम करने चल पड़ा, जब मैं सबको गुड़ नाईट बोल रहा था उस समय भरत का हेमंत कुमार बाहर आ गया था। कुछ ऐसे............
करीब 2 कि.मी. नीचे उतरने के बाद लगा कि अब सभी खतरनाक ढलानें खत्म हो गयी हैं तो पोंछो राइडिंग की शुरुवात कर दी। पोंछो राइडिंग क्या होती है इसको समझाने का प्रयास करता हूँ.... जब भी सूखी जमीन पर हम पहाड़ से नीचे उतरते हैं तो रास्तों में शार्ट कट मार लेते हैं, बर्फ में पांव से तो शार्ट कट मार नहीं सकते, इसलिए एक पन्नी को नीचे बिछाओ और कूद पड़ो, लेटे लेटे सीधे 50 -100 मीटर नीचे। इसमें मजा भी बहुत आता है लेकिन खतरनाक भी है, क्योंकि जब आप लेटे लेटे बर्फ में फिसलते हैं तो बहुत तेजी से नीचे की और जाते हैं। आपको पता होना चाहिये कि नीचे कोई बड़ा सा नुकीला पत्थर ना हो, साथ ही अपनी नीचे उतरने की स्पीड कैसे कन्ट्रोल करनी है, कैसे रुकना है आदि। अगर कोई जानकार साथ में हों तो आजमाना चाहिये, मजा आता है। प्रकृति ने फ्री की लेटो स्कीइंग करने को मौका दिया है तो क्यों छोड़ना।
जैसे ही जंगली इलाका शुरू हुआ तो बर्फ में जानवरों के पांव के निशान मिलने लग गए।सुबह कड़ाके की ठण्ड थी तो वो भी दुबके रहे होंगे अब अच्छी खासी धूप है तो विचरने लगे, भालू मामा की याद आ गयी, कहीं रास्ते में गले मिलने ना आ जाएँ, सब फिर साथ हो लिए और गाना गाते हुए, आवाज़ें निकालते हुए चोपता पहुँच गए। चोपता में भोजन तैयार था, मेरे को फ़ोटो खींचनी थी, क्योंकि में किसी भी ट्रैक पर ऊपर जाते हुए कम और नीचे उतरते हुए ज्यादा फ़ोटो खींचता हूँ इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि एक बार जब तक ऊपर पहुंचा तो सारी बैटरी खत्म हो चुकी थी। इसलिए जल्दी जल्दी खाना खा कर भरत को कहा कि मैं निकल रहा हूँ, शिवम और होमेश भी साथ हो लिए।
हम तीनों मस्ती में फ़ोटो सेशन करते करते नीचे उतरते जा रहे थे। ताज़ी गिरी बर्फ पर अगर कोई चिड़िया भी चल रही थी तो उसके पंजो के निशान भी मिल रहे थे। बनियाकुंट पहुँच कर थोडा आराम किया चाय पी और आगे बढ़ चले। दुगलबिट्टा में एक दो दिल्ली से आये पर्यटक मिले, पूछने लगे कि अभी चोपता जा के वापिस आ सकते हैं ? हम तीनों ने एक साथ उनके जूतों की तरफ देखकर ना बोला और आगे बढ़ चले। मक्कू मोड़ तक काफी पर्यटक मिले, कुछ परिवार सहित आये थे, बर्फ का आनंद ले रहे थे, और हम दुआ कर रहे थे कि कब सूखी जमीन नसीब हो। जब मक्कू मोड़ पहुंचे तो गाड़ियां हमारा इंतज़ार कर ही रही थी। आज हमको कुण्ड तक वापिस जाना था वहां पर भरत लोगों का कैंप बना है, रात्रि विश्राम आज बोन फायर के साथ होना था साथ में जश्न भी होना था तो होमेश भाई ने अपनी और से पार्टी की घोषणा कर दी।
हमारी वाली गाडी में सब उत्पाती प्रवृति के बैठ गए बाकी दूसरी गाडी में। मक्कू मोड़ से चले तो हँसते हंसाते चले जा रहे थे आगे चलकर जश्न के सामान को लेने के लिए उखीमठ बाजार की तरफ गाडी मुड़वा ली,शौपिंग होमेश ने ही की और आधे घण्टे में करीब 5 बजे कुण्ड पहुँच गए। कैंप में गर्मागर्म पकोड़ों और चाय से स्वागत हुआ। शानदार कैंप बिलकुल मन्दाकिनी के तट पर बना हुआ है।
भरत और मेरा कमरा एक साथ था, कमरा क्या 3 स्टार होटल का कमरा। रूम में जाकर बर्फ के परिधानों का त्याग किया कि अब अगले साल ही काम आओगे, और फ्रेश होकर ऊपर गार्डन एरिया में आ गया। थोड़ी देर में बोन फायर शुरू हो गया, सभी अपने अपने अनुभव बता रहे थे।
होमेश की पार्टी का रंग जब चढ़ने लगा तो धीरे धीरे सबके अंदर छुपा मोहम्मद रफ़ी बाहर आने लगा। काफी देर मजे किये, मुझे सुबह जल्दी निकल कर दिल्ली पहुंचना था तो खाना खाया और रूम में आराम करने चल पड़ा, जब मैं सबको गुड़ नाईट बोल रहा था उस समय भरत का हेमंत कुमार बाहर आ गया था। कुछ ऐसे............
ये नयन डरे-डरे, ये जाम भरे-भरे
ज़रा पीने दो
कल की किसको खबर, इक रात हो के निडर
मुझे जीने दो
रात हसीं, ये चाँद हसीं
पर सबसे हसीं मेरे दिलबर
और तुझसे हसीं तेरा प्यार
तू जाने ना
ये नयन डरे डरे...
प्यार में है जीवन की खुशी
देती है खुशी कई गम भी
मै मान भी लूँ कभी हार
तू माने ना.... ये नयन डरे डरे......
सुबह 6 बजे उठकर जल्दी जल्दी नित्यकर्म से निवृत होकर, भरत से विदा ली बाकी सभी सो रहे थे। अब परिवार और बच्चों की याद भी आ रही थी तो जल्दी से जल्दी दिल्ली पहुंचना था। कुण्ड से रुद्रप्रयाग तक जीप मिल गई और फिर तो रुद्रप्रयाग से दिल्ली कौन सा दूर है। इसके साथ ही इस यात्रा का समापन हुआ। जल्दी ही मिलेंगे दूसरी यात्रा के साथ, आपके सुझाव, प्रश्नों का स्वागत है। गुड़ नाईट। ये नयन डरे डरे......मुझे जीने दो. :) bye.
तुंगनाथ में |
तुंगनाथ |
चील |
चौखम्भा |
तुंगनाथ के आस पास |
शिवम और होमेश के साथ |
चौखम्भा |
शिवम मस्ती में |
होमेश के साथ |
छोटे जानवर के निशान |
भरत के साथ |
पूरी टीम |
इस यात्रा के सभी वृतान्तो के लिंक इस प्रकार हैं:-
देवरिया ताल, चोपता - तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 1
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 2 - सोढ़ी गांव से देवरिया ताल
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 3 - देवरिया ताल से चोपता
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 4 - चोपता से तुंगनाथ
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 5 - तुंगनाथ से वापसी (अन्तिम भाग )
बेहतरीन
ReplyDeleteशुक्रिया ओम भाई।
Deleteबहुत ही रोमांचित कर देने वाला यात्रा वृतांन्त।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई।
Deletebahut hi badiya post. apni post mein ye bhi likh dalo ki baraf mein kese shoes pehnane chahiye yadi nahi hain tho kya jugad kiya ja saktha hai. pic kafi choti hain or pictures hi post ki jaan hothi hai.
ReplyDeleteसेमवाल जी x-large पे किया है फ़ोटो को। कोई और उपाय हो तो बताइयेगा। बहुत बहुत धन्यवाद सर।
Deleteबाप रे ! गजब ! बर्फ ने मुंह सील दिया और सर्दी से उँगलियाँ सुन्न है बीनू कॉमेंट लिखा नहीं जा रहा हा हा हा हा
ReplyDeleteअरे उस चिल को ठंडी नहीं लग रही थी क्या ? उसने तो बर्फ वाले कपड़े भी नहीं पहने थे ।
चील पूरी पहाड़ी थी बुआ। हम दिल्ली आ के आधे पहाड़ी बन गए। :)
Deleteमहोदय यात्रा वृतान्त वास्तव में उत्कृष्ट है।आपने कई स्थानों पर "मेरे को" का प्रयोग किया है।यदि आप इसके स्थान पर "मुझे" का प्रयोग करेंगे तो वाक्य अधिक शुद्ध होगा एवम् अच्छा भी लगेगा।ये मात्र मेरा सुझाव है।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद संजय जी गलतियों की और ध्यान दिलाने के लिए। भविष्य में जरूर सुधार करूँगा।
Deleteवाह फ़ोटो देखकर आनंद आ गया
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी। :)
Deleteबहुत बढ़िया यात्रा थी बीनू भाई मजा आ गया।
ReplyDeleteख़ुशी हुयी सुशील भाई कि आपको कुछ आनंद दे पाया। बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteअप्रतिम ।।।
ReplyDeleteआजकल यही सुन रहें हैं बिन्दुसार के मुँह से तो फोटो देखते ही अनायास ही यही निकला ।
धन्यवाद संजय जी।
Deleteशानदार यात्रा वर्णन !
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप भाई।
Deletebbenu ji pathakon ki knowledge ke liye apni post mein ye bhi likh dalo ki baraf mein kese shoes pehnane chahiye yadi nahi hain tho kya jugad kiya ja saktha hai.
ReplyDeleteसेमवाल जी इस विषय पर मैं एक पूरी पोस्ट लिख रहा हूँ। कल तक उम्मीद है की प्रकाशित हो जाएगा। धन्यवाद।
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ReplyDeleteटीम में हैं तो जोश और भी ज्यादा बना रहता है ! तो क्या तुंगनाथ में बीनू जी उस समय कोई नही रुकता ? बर्फ में आप सब लोग ऐसे लग रहे हैं जैसे एवेरेस्ट की चढ़ाई की तयारी है ! बहुत ही शानदार यात्रा वृतांत है ! फोटुओं ने जान डाल दी है पोस्ट में !!
धन्यवाद योगी भाई। इस समय तुंगनाथ क्या चोपता में भी कोई नहीं रहता।
ReplyDeleteलेख तो अच्छा है ही फोटो उससे अधिक जानदार ...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद रितेश भाई.
Deleteमज़ा आ गया बीनू भाई.....ज़बरदस्त रोमांच ।
ReplyDeleteधन्यवाद डॉ साहब। आपको ख़ुशी के कुछ पल दे पाया। आभार।
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