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चोपता से तुंगनाथ
भरत ने रात को ही पूरे ग्रुप को बता दिया था कि सुबह जल्दी निकलना है। इसका कारण ये था कि जैसे जैसे धूप तेज होती जाती है, ताजी गिरी बर्फ पिघलना शुरू हो जाती है, जिससे बर्फ पर फिसलने का खतरा ज्यादा हो जाता है। असल में नीचे की पर्त तो जम जाती है, लेकिन ऊपर की पर्त और ताज़ी गिरी भुरभुरी बर्फ पिघलती है, जिससे ठोस बर्फ पर चलना बहुत मुश्क़िल हो जाता है। क्रेम्पोंन का प्रयोग करना पड़ता है, जो हमारे पास थे नहीं। सुबह 5 बजे अँधेरे में उठ गए, नित्यकर्म से निवृत होना भी बर्फ में एक जंग लड़ना ही है, जो करो बर्फ के पिघले पानी के साथ - साथ उसमें तैरते बर्फ के टुकड़ों के साथ करो। 6 बजे तक तैयार होकर निकलने की तैयारी शुरू कर दी। ग्रुप के 2 सदस्यों ने आगे जाने से मना कर दिया, वो होटल में ही रुक गए। धूप भी अभी नहीं निकली थी, ठण्ड से बुरा हाल था। एक बैग में करीब 10 गर्म पानी की बोतल रखवा ली, क्योंकि पानी अब कहीं नहीं मिलने वाला था। मैने अपनी एक बोतल जैकेट के अंदर वाली जेब में रख ली। हल्का सा नाश्ता किया और निकल पड़े। सभी को साथ चलने की सलाह मिली थी क्योंकि पौ फटने के समय जंगली जानवर अक्सर मिल जाते हैं।
हिमालय के ऊपरी चोटियों में रहने वाले जानवर बर्फ ज्यादा होने की वजह से इस समय निचले स्थानों पर आ जाते हैं। सबसे बड़ा खतरा तो भालू मामा का होता है। अगर चोपता तुंगनाथ गर्मियों में आया जाये तो साफ़ रास्ता बना है। कहीं भी भटक नहीं सकते, लेकिन इस समय पूरा क्षेत्र बर्फ की आगोश में समाया होता है। रास्तों का पता जानकार ही लगा सकता है। चोपता से आधा कि.मी. ऊपर तक तो रास्ता साफ़ मालूम चल जाता है, लेकिन उसके बाद रास्ते का कोई नामोनिशान नहीं मिलता, खुद से रास्ता बनाओ। सबसे आगे जो चलेगा वो फूटमार्क बनाएगा, और यही सबसे मुश्किल काम है। इसे ऐसा समझ सकते हैं कि भुरभुरी बर्फ में पांव रखते ही सीधा 1-1.5 फ़ीट अंदर पांव घुस जाता है। एक गड्डा सा बन जाता है। फिर दूसरा पांव आगे, जो सबसे आगे होगा जब वो पिछला पांव हटाएगा उसी गड्ढे में पीछे वाला पांव डालेगा, इस तरह से आगे बढ़ना पड़ता है। अगर सबसे आगे वाला रुका तो सबको रुकना पड़ता है। यही बर्फ में चलने का अ,आ, इ, ई या A, B, C, D है, जो इसको नहीं मानेगा उसका हाल कुछ ऐसा होगा।.............
चोपता से तुंगनाथ
भरत ने रात को ही पूरे ग्रुप को बता दिया था कि सुबह जल्दी निकलना है। इसका कारण ये था कि जैसे जैसे धूप तेज होती जाती है, ताजी गिरी बर्फ पिघलना शुरू हो जाती है, जिससे बर्फ पर फिसलने का खतरा ज्यादा हो जाता है। असल में नीचे की पर्त तो जम जाती है, लेकिन ऊपर की पर्त और ताज़ी गिरी भुरभुरी बर्फ पिघलती है, जिससे ठोस बर्फ पर चलना बहुत मुश्क़िल हो जाता है। क्रेम्पोंन का प्रयोग करना पड़ता है, जो हमारे पास थे नहीं। सुबह 5 बजे अँधेरे में उठ गए, नित्यकर्म से निवृत होना भी बर्फ में एक जंग लड़ना ही है, जो करो बर्फ के पिघले पानी के साथ - साथ उसमें तैरते बर्फ के टुकड़ों के साथ करो। 6 बजे तक तैयार होकर निकलने की तैयारी शुरू कर दी। ग्रुप के 2 सदस्यों ने आगे जाने से मना कर दिया, वो होटल में ही रुक गए। धूप भी अभी नहीं निकली थी, ठण्ड से बुरा हाल था। एक बैग में करीब 10 गर्म पानी की बोतल रखवा ली, क्योंकि पानी अब कहीं नहीं मिलने वाला था। मैने अपनी एक बोतल जैकेट के अंदर वाली जेब में रख ली। हल्का सा नाश्ता किया और निकल पड़े। सभी को साथ चलने की सलाह मिली थी क्योंकि पौ फटने के समय जंगली जानवर अक्सर मिल जाते हैं।
हिमालय के ऊपरी चोटियों में रहने वाले जानवर बर्फ ज्यादा होने की वजह से इस समय निचले स्थानों पर आ जाते हैं। सबसे बड़ा खतरा तो भालू मामा का होता है। अगर चोपता तुंगनाथ गर्मियों में आया जाये तो साफ़ रास्ता बना है। कहीं भी भटक नहीं सकते, लेकिन इस समय पूरा क्षेत्र बर्फ की आगोश में समाया होता है। रास्तों का पता जानकार ही लगा सकता है। चोपता से आधा कि.मी. ऊपर तक तो रास्ता साफ़ मालूम चल जाता है, लेकिन उसके बाद रास्ते का कोई नामोनिशान नहीं मिलता, खुद से रास्ता बनाओ। सबसे आगे जो चलेगा वो फूटमार्क बनाएगा, और यही सबसे मुश्किल काम है। इसे ऐसा समझ सकते हैं कि भुरभुरी बर्फ में पांव रखते ही सीधा 1-1.5 फ़ीट अंदर पांव घुस जाता है। एक गड्डा सा बन जाता है। फिर दूसरा पांव आगे, जो सबसे आगे होगा जब वो पिछला पांव हटाएगा उसी गड्ढे में पीछे वाला पांव डालेगा, इस तरह से आगे बढ़ना पड़ता है। अगर सबसे आगे वाला रुका तो सबको रुकना पड़ता है। यही बर्फ में चलने का अ,आ, इ, ई या A, B, C, D है, जो इसको नहीं मानेगा उसका हाल कुछ ऐसा होगा।.............
शिवम् और होमेश ने ट्रैक पर आने से पहले पता नहीं किससे सलाह ले ली जूतों के लिए। दोनों गम बूट पहन के चल रहे थे। कभी भी ऐसे ट्रैक के लिए गम बूट अच्छे नहीं होते। एक तो गर्म नहीं होते, ऊपर की तरफ से बर्फ इनके अंदर घुस जाती है। और इतने कम तापमान में जहाँ दस्तानो के अंदर ही अंगुलिया सुन्न हो रही हो, तो ऐसे में पैरों का क्या हाल हो रहा होगा। करीब 2 कि.मी. चल चुके थे तब सामने चौखम्बा पर सूरज की किरणे नजर आयी। रास्ता था नहीं, खुद ही अपनी मर्जी से बर्फ पर रास्ता बनाते बनाते चढ़े जा रहे थे। जो लोग गर्मियों में तुंगनाथ गए होंगे उनको पता होगा कि एक तरफ रास्तों में लोहे की रेलिंग लगी हुयी है। कई बार वो रेलिंग पांव के नीचे महसूस होती तो समझ आ जा रहा था कि सही रास्ते पर चल रहे हैं। एक छोटी सी दुकान दिखी, पूरी तरह बर्फ से दबी हुयी थी। जब मंदिर के कपाट खुले होते होंगे तो शायद चाय नाश्ते की दुकान होगी, फ़ोटो खींचने के लिए बार बार दस्ताने उतारने पड़ रहे थे, 2 मिनट में ही अंगुलिया सुन्न हो जा रही थी, वाकई में जब भी ऐसी जगहों की फ़ोटो देखता हूँ तो समझ सकता हूँ कि किन हालातों में वो फ़ोटो खींची गयी होगी।अब हल्की सी धूप निकल आयी थी ठण्ड से राहत मिलने लगी।
जितना ऊपर चढ़ते जा रहे थे बर्फ उतनी ज्यादा मिलने लगी, एक जगह में पत्थरों से आराम करने के लिए छोटा सा शेड बना हुआ मिला यहाँ पर इसके अंदर बर्फ नहीं थी तो बैठ सकते थे, ऊंचाई पर भी था, तुंगनाथ यहाँ से सिर्फ आधा कि.मी. दूर था, लेकिन बर्फ की मात्रा को देखते हुये एक बार तो सोचा कि वापिस हो लेते हैं, क्योंकि यहाँ से आगे 3-4 फ़ीट से ज्यादा बर्फ थी। इस साल इतनी बर्फ में हम पहले थे जो इतना ऊपर तक पहुँच गए थे। नहीं तो सभी लोग चोपता से 2-3 कि.मी. आगे जाकर वापिस हो जा रहे थे।
भरत के साथ जो टीम थी उसमें गोविन्द सबसे आगे चल रहा था जो सबसे मुश्किल था। यहाँ पर भी गोविन्द ने कहा कि भाई जी अभी तक इस साल कोई इस सीजन में तुंगनाथ नहीं पहुँच पाया हम जरूर पहुंचेंगे। यहाँ पर काफी देर तक फ़ोटो सेशन किया, सामने चौखम्भा ऐसा लग रहा था कि ठीक हमारी सीध में है। करीब 15 मिनट आराम करने के बाद सभी आगे बढ़ने लगे। गोविन्द सबसे आगे ही था, होमेश के गम बूट क़े अंदर बर्फ चली गयी थी तो पांव सुन्न हो रहे थे। एक बार तो उसने असमर्थता जता दी। मैंने भी कहा कि अगर तू साथ ऊपर चलेगा तो ही मैं भी जाऊंगा, यही शिवम् का भी कहना था। हम 3 वहीँ पर रुके थे बाकी लोग आगे निकल चुके थे।
करीब 10 मिनट बाद भरत ने दूर से आवाज लगायी कि आ जाओ कुछ नहीं होता, फिर क्या था हम तीनों उठे और चल पड़े, करीब 100 मीटर के बाद एक हल्का सा मोड़ था जिसमें लोहे की रेलिंग पर पांव रखकर अनुमान से आगे बढ़ना था, यहाँ पर फूटमार्क भी नहीं बने नीचे की और देखते तो दिल बुरी तरह घबरा जाता, अगर फिसले तो सीधा 1 कि.मी. नीचे तक बर्फ में लुढकते हुए पहुँच जाएंगे।
शिवम् ने मुझसे कहा भाई आप मेरे पीछे रहो, बस जैसे तैसे पार किया और मोड़ के बाद सामने तुंगनाथ दिखने लगे। जैसे ही तुंगनाथ के पहले दर्शन हुए अपने आप ही हौसला बढ़ गया, जोश कुलांचे मारने लगा तो खुद ब खुद नयी ऊर्जा का संचार हो गया। शिवम् को बोला तू चल अब में तसल्ली से फ़ोटो खींचते हुए चढूंगा। क्या नजारा था इसको शब्दों में बयान किया ही नहीं जा सकता। ना ही तस्वीरों से उस नज़ारे को सही में दिखाया जा सकता है।
बस जिधर भी नजरेँ डालो अदभुत समां था। तुंगनाथ में कुछ मकान बने हैं, सब बर्फ से दबे पड़े थे, बस थोडा सा ऊपरी हिस्सा दिख रहा था। मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक बड़ा सा घण्टा लटका है, आम समय में इसको बजाने के लिए लोग उछलते होंगे आज इससे सर बचा कर प्रवेश करना पड़ा। तुंगनाथ में बिताये पल और वापसी अगली पोस्ट में......
क्रमशः....
जितना ऊपर चढ़ते जा रहे थे बर्फ उतनी ज्यादा मिलने लगी, एक जगह में पत्थरों से आराम करने के लिए छोटा सा शेड बना हुआ मिला यहाँ पर इसके अंदर बर्फ नहीं थी तो बैठ सकते थे, ऊंचाई पर भी था, तुंगनाथ यहाँ से सिर्फ आधा कि.मी. दूर था, लेकिन बर्फ की मात्रा को देखते हुये एक बार तो सोचा कि वापिस हो लेते हैं, क्योंकि यहाँ से आगे 3-4 फ़ीट से ज्यादा बर्फ थी। इस साल इतनी बर्फ में हम पहले थे जो इतना ऊपर तक पहुँच गए थे। नहीं तो सभी लोग चोपता से 2-3 कि.मी. आगे जाकर वापिस हो जा रहे थे।
भरत के साथ जो टीम थी उसमें गोविन्द सबसे आगे चल रहा था जो सबसे मुश्किल था। यहाँ पर भी गोविन्द ने कहा कि भाई जी अभी तक इस साल कोई इस सीजन में तुंगनाथ नहीं पहुँच पाया हम जरूर पहुंचेंगे। यहाँ पर काफी देर तक फ़ोटो सेशन किया, सामने चौखम्भा ऐसा लग रहा था कि ठीक हमारी सीध में है। करीब 15 मिनट आराम करने के बाद सभी आगे बढ़ने लगे। गोविन्द सबसे आगे ही था, होमेश के गम बूट क़े अंदर बर्फ चली गयी थी तो पांव सुन्न हो रहे थे। एक बार तो उसने असमर्थता जता दी। मैंने भी कहा कि अगर तू साथ ऊपर चलेगा तो ही मैं भी जाऊंगा, यही शिवम् का भी कहना था। हम 3 वहीँ पर रुके थे बाकी लोग आगे निकल चुके थे।
करीब 10 मिनट बाद भरत ने दूर से आवाज लगायी कि आ जाओ कुछ नहीं होता, फिर क्या था हम तीनों उठे और चल पड़े, करीब 100 मीटर के बाद एक हल्का सा मोड़ था जिसमें लोहे की रेलिंग पर पांव रखकर अनुमान से आगे बढ़ना था, यहाँ पर फूटमार्क भी नहीं बने नीचे की और देखते तो दिल बुरी तरह घबरा जाता, अगर फिसले तो सीधा 1 कि.मी. नीचे तक बर्फ में लुढकते हुए पहुँच जाएंगे।
शिवम् ने मुझसे कहा भाई आप मेरे पीछे रहो, बस जैसे तैसे पार किया और मोड़ के बाद सामने तुंगनाथ दिखने लगे। जैसे ही तुंगनाथ के पहले दर्शन हुए अपने आप ही हौसला बढ़ गया, जोश कुलांचे मारने लगा तो खुद ब खुद नयी ऊर्जा का संचार हो गया। शिवम् को बोला तू चल अब में तसल्ली से फ़ोटो खींचते हुए चढूंगा। क्या नजारा था इसको शब्दों में बयान किया ही नहीं जा सकता। ना ही तस्वीरों से उस नज़ारे को सही में दिखाया जा सकता है।
बस जिधर भी नजरेँ डालो अदभुत समां था। तुंगनाथ में कुछ मकान बने हैं, सब बर्फ से दबे पड़े थे, बस थोडा सा ऊपरी हिस्सा दिख रहा था। मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक बड़ा सा घण्टा लटका है, आम समय में इसको बजाने के लिए लोग उछलते होंगे आज इससे सर बचा कर प्रवेश करना पड़ा। तुंगनाथ में बिताये पल और वापसी अगली पोस्ट में......
क्रमशः....
चले चलो |
तापमान शून्य के आस पास था |
भरत |
चौखम्बा |
बर्फ मैं दबे आस पास के घर |
प्रवेश द्धार |
तुंगनाथ |
पढ़ते देखते मेरे तो छुरछूरी छूट गयी।
ReplyDeleteऐसी ट्रेकिंग आप पहाड़ी लोगों के बस की ही है।
राम-राम...
हा हा हा...धन्यवाद कोठारी सर.
Deletemast post hai. pictures ka size bada karo, pictures atma hoti hai article ki
ReplyDeleteकर दिए हैं सर, पोस्ट डिलीट हो गयी थी तो बैकअप की वजह से गड़बड़ हो गयी थी.
Deleteबहुत नहुत धन्यबाद.
DeletePhoto bahut sundar lag rahe hain
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी.
Deleteबहुत बढ़िया पोस्ट और बहुत ख़ूबसूरत फ़ोटो। इतनी बर्फ में ट्रैक करना बड़ी हिम्मत का काम है वाकई। मज़ा आ रहा है बीनू भाई आपको पढ़ने में। लगे रहिये।
ReplyDeleteधन्यवाद ओम भाई.
Deletegajab post! barf hi barf!
ReplyDeleteधन्यवाद प्रजापति जी।
Deleteये सही है कि ठंड में फ़ोटो लेना बहुत तकलीफ़ देह होता है। बढिया फ़ोटो के साथ उम्दा पोस्ट।
ReplyDeleteधन्यवाद ललित सर।
DeleteWonderful post.Beautiful pictures. Indeed its very difficult to track in such conditions. Salutes to you.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद नरेश जी। :)
Deleteहैं भगवान ! इतनी बर्फ में जानेका तुम लोग सोच भी कैसे लेते हो ।जय हो बीनू महाराज की -^-
ReplyDeleteक्या करें बुआ ये ट्रैकिंग का कीड़ा जब काटना शूरू करता है तो इसका दर्द असहनीय होता है और इस मर्ज की दवा ऐसी जगहों पर मिलती है।:)
Deleteबीनू भाई बहुत ही सुन्दर वर्णन और फोटो हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद सुशील भाई।
DeleteWow. Indeed it was a daring journey. Hats off to you. Pictures are simply out of the world..nareshsehgal
ReplyDeleteधन्यवाद नरेश जी।
ReplyDeleteअभी तुंगनाथ की दो पोस्ट पढ़ी हैं ! एक आपकी और एक नीरज की ! दोनों में अंतर देखना चाह रहा था ! क्या शानदार जगह है ! बर्फ की दुनिया , खतरनाक लेकिन स्वर्ग के जैसी सुन्दर ! और आपने जिस तरह से वर्णन किया है बहुत रोचक है !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई।
Deleteवाह भाई गज़ब
ReplyDeleteधन्यवाद जावेद भाई.
ReplyDeleteजबरदस्त ।
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