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देवरिया ताल से चोपता
आधी रात से जो बर्फ गिरनी शुरू हुयी वो सुबह 4 बजे तक गिरती रही। ठण्ड से बुरा हाल था, स्लीपिंग बैग भी ठण्ड को रोक नहीं पाया, जिस करवट लेटो नीचे से ठण्ड, फिर दूसरी करवट हो जाओ, बस पूरी रात इसी प्रार्थना में कटी कि जल्दी सुबह हो जाए। सुबह जैसे ही हल्का सा उजाला हुआ तो टेण्ट से बाहर झाँका, बाहर का नजारा देख कर आश्चर्यचकित हो गया। कल रात को देवरिया ताल के कुछ ही हिस्से में बर्फ थी, लेकिन अब तो पूरा नजारा ही बदला हुआ था। ऐसा लग रहा था कि रात को किसी और जगह में सोए और सुबह उठे तो कहीं और पहुँच गए, रात की बर्फ़बारी से पूरा देवरिया ताल बर्फ की सफ़ेद चादर से ढक गया। सामने चौखम्भा पर बादल छाये थे तो चौखम्भा दिख नहीं रहा था, अन्यथा देवरिया ताल से चौखम्भा को देखना एक अदभुत अनुभव है।
देवरिया ताल से चोपता
आधी रात से जो बर्फ गिरनी शुरू हुयी वो सुबह 4 बजे तक गिरती रही। ठण्ड से बुरा हाल था, स्लीपिंग बैग भी ठण्ड को रोक नहीं पाया, जिस करवट लेटो नीचे से ठण्ड, फिर दूसरी करवट हो जाओ, बस पूरी रात इसी प्रार्थना में कटी कि जल्दी सुबह हो जाए। सुबह जैसे ही हल्का सा उजाला हुआ तो टेण्ट से बाहर झाँका, बाहर का नजारा देख कर आश्चर्यचकित हो गया। कल रात को देवरिया ताल के कुछ ही हिस्से में बर्फ थी, लेकिन अब तो पूरा नजारा ही बदला हुआ था। ऐसा लग रहा था कि रात को किसी और जगह में सोए और सुबह उठे तो कहीं और पहुँच गए, रात की बर्फ़बारी से पूरा देवरिया ताल बर्फ की सफ़ेद चादर से ढक गया। सामने चौखम्भा पर बादल छाये थे तो चौखम्भा दिख नहीं रहा था, अन्यथा देवरिया ताल से चौखम्भा को देखना एक अदभुत अनुभव है।
अमूमन जब मौसम साफ़ रहता है तो चौखम्भा का प्रतिबिम्ब ताल में पड़ता है, उस नज़ारे से मैं वंचित रह गया, वैसे मैंने ये नजारा अपनी पहले की यात्रा में देख रखा था। आज हमको चोपता पहुंचना था, और जब देवरिया ताल में ही इतनी बर्फ गिर गई तो निश्चित रूप से चोपता की तरफ इससे भी ज्यादा होगी। भरत के 14 लोगों के ग्रुप में अधिकतर लोग दक्षिण भारतीय थे सिर्फ 2 ही दिल्ली से थे शिवम गोयल और होमेश बवारी, दक्षिण भारतीय लोग अपनी भाषा में बात कर रहे थे जो शिवम और होमेश के पल्ले नहीं पड़ रही थी, जब भरत ने इन दोनों से मेरा परिचय करवाया तो इनकी जान में जान आई, कि कम से कम कोई तो मिला हिंदी भाषी, फिर तो पूरे ट्रैक पर हम तीनों साथ ही रहे। करीब 8 बजे हमने नीचे उतरना शुरू कर दिया, रास्ते में बर्फ की वजह से फिसलन हो गई थी। आराम से उतर कर सारी गांव पहुँच गए।
सारी में अपना कैमरा चार्जिंग पर लगा कर मैगी का आर्डर दे दिया, ना ही भरत ने नाश्ता किया था ना मैंने, क्योंकि अधिकतर लोग दक्षिण भारतीय थे तो नाश्ते में भी दक्षिण भारतीय रंग था, हम दोनों ठहरे पूरे पहाड़ी जब तक मिर्च मसाला ना खाएं लगता नहीं कुछ खाया हो। करीब आधे घण्टे बाद चोपता जाने की तैयारी शुरू कर दी, सारी से चोपता जाने के लिये वापिस 2 कि.मी. उखीमठ वाली सड़क की ओर आकर मस्तुरा गांव से बायें हाथ की ओर मुड़ जाना होता है, ये सड़क सीधे गोपेश्वर जाती है। हालांकि साल के लगभग 4 महीने बर्फ के कारण ये सड़क बंद रहती है। सारी में भरत लोगों की गाड़ियां खड़ी थी। हम लोग भी निकल पड़े चोपता की ओर।
चोपता जाने वाली सड़क पर दोनों ओर जंगल है। 2-3 कि.मी. आगे ही पहुंचे थे कि सड़क पर बर्फ मिलनी शूरू हो गयी, आगे मक्कू मोड़ तक तो करीब 1 फ़ीट बर्फ थी, और अब इससे आगे गाडी से नहीं जाया जा सकता था, आज हमको यहीं से ट्रैक करके चोपता तक जाना था। मक्कू मोड़ पर एक दो ढाबे हैं। यहाँ से अब आगे बर्फ में चलने की तैयारी शुरू कर दी, बर्फ के ट्रेक में कुछ जरूरी सावधानियां रखनी पड़ती हैं, जो सबसे जरूरी है वो है वाटरप्रूफ जूते अच्छी ग्रिप वाले, गैटर्स, और अगर लोअर भी वाटर प्रूफ हो तो ज्यादा अच्छा है। अब पैदल चलना था तो सभी ने गैटर्स पहन लिए और चोपता के लिये निकल पड़े।
यहाँ से अगर सड़क के रास्ते जाते हैं तो करीब 12 कि.मी. पर चोपता है, चारों और घना जंगल है बर्फ का साम्राज्य शुरू हो गया था, कुछ टूरिस्ट बर्फ का आनंद लेते हुये मिले, चूँकि टूरिस्ट और ट्रेकर में थोडा फर्क होता है, टूरिस्ट जहाँ रुक जाता है वहां से आगे ट्रेकर चलते हैं और ट्रेकर जहाँ रुक जाता है पर्वतारोही वहां से आगे चलते हैं। जो टूरिस्ट थे वो मक्कू से करीब 1 कि.मी. आगे तक जा के वापिस हो जा रहे थे। जैसे जैसे आगे बढ़ते जा रहे सड़क पर करीब 2 फ़ीट बर्फ मिलने लगी, देखकर यकीन नहीं हो रहा था कि 2-3 महीने बाद इस सड़क पर गाड़ियां दौड़ेंगी। करीब 1 बजे दुगलबिट्टा पहुंचे, यहाँ पर गढ़वाल मंडल विकास निगम का गेस्ट हाउस भी है चारों तरफ बर्फ ही बर्फ दो ढाबे खुले थे, हमारे पास पैक्ड लंच था सभी ने खाना खाया, चाय पी और आगे बढ़ चले।दुगलबिट्टा से करीब आधे की.मी. आगे चलकर अब सड़क छोड़कर दायें को पैदल रास्ता जाता है, अगर इस पैदल मार्ग से न जायें तो सड़क मार्ग से 4 की.मी. घूम के आना पड़ता है।
करीब 2 कि.मी. की हल्की सी चढाई के बाद बनियकुंट आता है कुछ घर बने हैं लेकिन सभी बर्फ से लगभग दबे हुए, एक ढाबा था चाय पी और फिर सड़क छोड़ कर दायें शार्ट कट से चल पड़े करीब 1 कि.मी. चलने के बाद सामने चोपता दिखाई देने लगा, जमीन तो कहीं दिख ही नहीं रही थी, जिधर देखो बर्फ ही बर्फ वो भी 2-3 फ़ीट, सर्दियों में इस पूरे क्षेत्र से स्थानीय निवासी भी नीचे आ जाते हैं, सिर्फ हम ही हम और बर्फ आज यहाँ थी। आराम से चलते चलते करीब 4 बजे चोपता पहुँच गए।
चोपता का नजारा देख के हिंदी फिल्मों में दिखाई देने वाले स्विट्ज़रलैंड की याद आ गयी, क्या ये किसी से कम है ? कतई नहीं। भरत ने यहाँ पर एक पूरा होटल ही बुक किया था, होटल वाले सिर्फ इस ग्रुप के लिए ही ऊपर आये थे नहीं तो पूरा चोपता वीरान पड़ा रहता है। थकान भी काफी हो रही थी, तापमान का तो कहना ही क्या माशा अल्लाह था।
होटल वाले ने बाहर में चूल्हा जल कर उसके ऊपर एक बड़ा पतीला रखा था, फावड़े से उसमें बर्फ डाल डाल कर पानी बनाया जा रहा था, मैं भी उसी चूल्हे के पास बैठ गया। करीब 7 बजे तक खाना खाकर सोने भी चले गए, शुक्र था आज स्लीपिंग बैग और टेण्ट में नहीं सोना था, लाइट थी नहीं होटल वालों ने सोलर सिस्टम लगाया है लेकिन सर्दियों में वो भी ज्यादा चार्ज नहीं हो पा रहा था। करीब 8 बजे तक नींद भी आ गयी।
क्रमशः.....
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देवरिया ताल |
देवरिया ताल |
देवरिया ताल से वापसी |
चोपता की ओर |
उखीमठ गोपेश्वर सड़क |
बनियाकुंट |
सड़क पर बर्फ |
सुंदरता बिखरी पड़ी है |
White Beauty |
मिनी स्विट्ज़रलैंड |
बर्फ से दबे घर |
चोपता |
चोपता |
चोपता |
वीरान पड़ा चोपता |
चोपता |
शानदार नज़ारे |
इस यात्रा के सभी वृतान्तो के लिंक इस प्रकार हैं:-
देवरिया ताल, चोपता - तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 1
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 2 - सोढ़ी गांव से देवरिया ताल
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 3 - देवरिया ताल से चोपता
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 4 - चोपता से तुंगनाथ
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 5 - तुंगनाथ से वापसी (अन्तिम भाग )
Bahut shandar post. Keep travelling, keep sharing.
ReplyDeleteजरूर सेमवाल जी। शुक्रिया।
Deleteआपकी तीनों पोस्ट पढ़ी,बीनू भाई। बहुत शानदार लिखी हैं और फ़ोटोज़ तो कमाल के है। मज़ा आ गया। लाजवाब पोस्ट।
ReplyDeleteधन्यवाद ओम भाई।
Deleteइस पोस्ट ने तो ठंड ओर बढ़ा दी बीनू :)
ReplyDeleteहा हा हा..... कोठारी सर फिर तो तैयार रहिये, अगली पोस्ट में बर्फ़बारी झेलने के लिए।
Deleteबीनू भाई जबरदस्त बर्फबारी देखने को मिल रही है, बढ़िया पोस्ट लगे रहो।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई।
Deleteखूबसूरत नजारे चारो तरफ बर्फ की सफेद चादर मजा आ गया बीनू भाई....
ReplyDeleteजी भाई इस समय वहां के नज़ारे वाकई में जबरदस्त होते हैं। धन्यवाद।
Deleteघर की छतें मजबूत बनाते हैं, वरना इतनी बर्फ़ में धराशायी हो जाए और दो चार को ले मरे और भारत ही दुनिया एक मात्र देश है जहाँ छ: ॠतुएं होते हैं और एक ही ॠतु में काश्मीर से पांडीचेरी तक सारे मौसम देखने मिल जाते हैं।
ReplyDeleteजी ललित सर, बिल्कुल सही कहा आपने।
ReplyDeleteएक बात से बिलकुल सहमत हूँ , नए खिलाडी को तो यहां पहली बार में ही सर्दियों में नही जाना चाहिए ! रास्ता भटक गया तो दिक्कत हो जायेगी ! स्वर्ग है भाई जी ! स्विट्ज़रलैंड कभी नही देखा लेकिन इससे अलग वहां और क्या होगा ? गज़ब की सुंदरता दी है भगवान ने इस जगह को और इस जगह को तो बहुत ही बड़ा आशीर्वाद प्रदान किया है ! एक से बेहतर एक पिक्चर ! दिल खुश हो गया बीनू भाई !!
ReplyDeleteअगर कुछ बेसिक बातों का ध्यान रखा जाए और सावधानी बरती जाए तो हो सकता है लेकिन अकेले तो कतई नहीं। धन्यवाद योगी भाई।
ReplyDeleteओ माय गॉड !!! इतनी बर्फ ! मैं तो देखकर ही मर गई .... लेकिन क्या सुन्दर नजारा है स्वर्ग भी क्या होगा जो इस जमीं पर है
ReplyDeleteजी बुआ जी। वाकई में बहुत खूबसूरत नज़ारे देखने को मिलते हैं चोपता में।
Deleteसच में मजा आ गया बिनु भाई। फोटो तो कमाल की हैं।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सुशील भाई। :)
Deleteमैं तो अभी 10 अक्टूबर 2015 को गया, चारों तरफ बादलों की धुंध-ही-धुंध थी, कुछ नही दिखाई पड़ा न तो बर्फ की चोटियाँ न ही चोपता के सुन्दर मनोहारी बुग्याल... फिर से जाना ही पड़ेगा मुझे...!!! आप के द्वारा खींचे छायाचित्र काफी सुन्दर है तथा यात्रा लेख भी स्मरणीय है...!!!
ReplyDeleteधन्यवाद शैलेन्द्र भाई।
DeleteCongratulation Beenu dear! For such a great adventure & tracking. My village is very near to chopta peak But unfortunately never have been in snow. Wish to b with u guys in next trip.. Jayvir bisht
ReplyDeleteMost welcome Jayvir Ji....thanks.
Deleteशानदार बीनू भाई....फोटो तो ज़बरदस्त हैं ।
ReplyDeleteधन्यवाद डॉ साहब।
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