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सोढ़ी गांव से देवरिया ताल
सुबह नौ बजे सोकर उठे। आज मुझे शाम तक देवरिया ताल पहुंचना था। भरत से सीधे वहीँ मुलाकात होनी थी। बाहर रिमझिम बारिश लगातार रात से ही हो रही थी। दूर चोपता तुंगनाथ की पहाड़ियों पर ताज़ी पड़ी बर्फ दिख रही थी। करीब ग्यारह बजे बारिश रुक गयी, लेकिन मौसम ख़राब ही बना हुआ था। ऊपर गांव में जाकर सभी से मुलाकात की, लंच भी छोटे साले साहब के घर पर ऊपर गांव में ही बना था। सबसे मिलकर और खाना खाकर करीब एक बजे विदा ले ली, और गुप्तकाशी जा रही बस में बैठ गया। मुझे उखीमठ जाना था इसलिए कुण्ड में उतर गया। कुण्ड से बायीं और गुप्तकाशी - केदारनाथ के लिए सड़क चली जाती है, और दाहिने हाथ वाली सड़क उखीमठ होते हुए गोपेश्वर के लिए जाती है। मुझे इसी पर जाना था। काफी देर तक कुण्ड में खड़ा रहा कोई बस या जीप नहीं मिली, तभी एक ट्रक ऊपर की और जाता दिखा, हाथ दिया तो रुक गया, पूछा उखीमठ छोड़ दोगे ? तो उसने बिठा लिया, कुण्ड से उखीमठ 6 कि.मी. दूर है। ट्रक की सवारी का भी अपना ही मजा है।
सोढ़ी गांव से देवरिया ताल
सुबह नौ बजे सोकर उठे। आज मुझे शाम तक देवरिया ताल पहुंचना था। भरत से सीधे वहीँ मुलाकात होनी थी। बाहर रिमझिम बारिश लगातार रात से ही हो रही थी। दूर चोपता तुंगनाथ की पहाड़ियों पर ताज़ी पड़ी बर्फ दिख रही थी। करीब ग्यारह बजे बारिश रुक गयी, लेकिन मौसम ख़राब ही बना हुआ था। ऊपर गांव में जाकर सभी से मुलाकात की, लंच भी छोटे साले साहब के घर पर ऊपर गांव में ही बना था। सबसे मिलकर और खाना खाकर करीब एक बजे विदा ले ली, और गुप्तकाशी जा रही बस में बैठ गया। मुझे उखीमठ जाना था इसलिए कुण्ड में उतर गया। कुण्ड से बायीं और गुप्तकाशी - केदारनाथ के लिए सड़क चली जाती है, और दाहिने हाथ वाली सड़क उखीमठ होते हुए गोपेश्वर के लिए जाती है। मुझे इसी पर जाना था। काफी देर तक कुण्ड में खड़ा रहा कोई बस या जीप नहीं मिली, तभी एक ट्रक ऊपर की और जाता दिखा, हाथ दिया तो रुक गया, पूछा उखीमठ छोड़ दोगे ? तो उसने बिठा लिया, कुण्ड से उखीमठ 6 कि.मी. दूर है। ट्रक की सवारी का भी अपना ही मजा है।
आधे घंटे में उखीमठ बाजार में था। यहाँ से सारी गांव के लिए जीप मिल जाती हैं। लेकिन आज कोई भी जीप खडी नहीं थी, एक दुकान पर पूछने गया तो उसने बताया कि सारी गांव में कोई शादी है, सभी जीप उसकी बुकिंग पर गयी हैं। आप बस की इंतजारी कर लो बस करीब पांच बजे आएगी उससे चले जाना। जबकि मेरे को तो आज ही सारी गांव से अकेले जंगल में ट्रैक करके शाम तक देवरिया ताल पहुंचना था। उखीमठ से सारी गांव लगभग 12 कि.मी. की दूरी पर है। उसको अपनी बात बताई तो उसने एक लोकल कार वाले से मिलवा दिया,।उसके पास मारुती 800 थी बोला 200 रुपये दो मैं छोड़ कर आता हूँ।
तुरंत बात मान ली और सारी गांव के लिए निकल पड़ा। उखीमठ मार्किट से सारी गांव जाने के लिए वापिस आधा कि.मी. आना पड़ता है, और गोपेश्वर जाने वाली सड़क पर आकर बायें मुड़ जाना होता है। चार बजे सारी गांव में कार वाले ने छोड़ दिया।
सारी गांव में ठहरने खाने की अच्छी व्यवस्था है। दो तीन होटल हैं वही रात को रुकने के लिए कमरे भी दे देते हैं। मेरे पहुँचते ही होटल वाले पूछने लगे, मैंने कहा मैं तो आज ही देवरिया ताल जा रहा हूँ आप मेरा एक बैग रख लो कल ले लूँगा। वहीँ चाय पी और आधे घंटे बाद देवरिया ताल के लिए निकल पड़ा। सारी गांव से देवरिया ताल के लिए तुरंत चढ़ाई शूरू हो जाती है जो लगभग ढाई कि.मी. ऊपर देवरिया ताल पर जाकर ही खत्म होती है। मौसम भी ख़राब ही बना था एक छोटा बैग पानी की बोतल, कैमरा लिया और इन्द्र देवता को बोला कि बस एक घंटे रुक जाओ, फिर पूरी रात ऊधम मचा लेना, तब कुछ नहीं मागूंगा, और निकल पड़ा।
सारी से कुछ ऊपर चढ़ते ही महादेव का मंदिर है, वहां कुछ पूजा चल रही थी, मंदिर से थोडा ऊपर चढ़ते ही बुरांश का जंगल शुरू हो जाता है। अकेले जंगल में चलने पर घबराहट भी होती है और मजा भी आता है। बिना रुके चढ़ता रहा, रास्ता अच्छा बना है, कहीं पूछने की जरूरत नहीं पड़ती, वेसे पूछेंगे भी तो किससे ? भालू से ? क्योंकि सारी और देवरिया ताल के बीच में जंगल के सिवाय कुछ नहीं है।
जैसे जैसे ऊपर चढ़ते जाओ तो ठीक पीछे चंद्रशिला चोटी और चोपता की तरफ खूब सारी बर्फ दिखने लगी कल हमको चोपता ही जाना था। एक बंगाली जोड़ा नीचे उतरते मिला, उनके साथ चार साल का बच्चा भी था, बड़ी ख़ुशी हुयी ये देखकर। वाकई में अगर किसी को सपरिवार टेण्ट में रुकना है और प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेना है, या यूँ कहें कि वीक एन्ड पर कैम्पिंग करनी है, तो देवरिया ताल में आपको दो दिन में सभी कुछ मिल जाएगा।
आराम से चढ़ता गया, जैसे जैसे और ऊपर चढ़ता गया रास्ते में बर्फ भी मिलने लगी, इंद्र देव को पटाया था तो सही में पट गए, जैसे ही देवरिया ताल करीब साढे पांच बजे पहुंचा बर्फ गिरनी शूरू हो गयी। देवरिया ताल समुद्र तल से 2438 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। घने बुरांश के जंगल से घिरे इस ताल से चौखम्भा पर्वत के शानदार दर्शन होते हैं। यहाँ पर दो तीन ढाबे हैं वही टेण्ट, स्लीपिंग बैग, खाना सब कुछ दे देते हैं। साफ़ मौसम में चौखम्भा का ताल में प्रतिबिम्ब देखना एक अदभुत अहसास है।
देवरिया ताल पहुँच कर भरत को मिला, उसके साथ पंद्रह लोगों का ग्रुप था। ज्यादातर दक्षिण भारतीय थे। सारा ग्रुप बर्फ में खेलने में मस्त था, बर्फ़बारी रुक गयी थी, करीब दस बजे तक खाना खाकर हम भी अपने टेंट में घुसे, तापमान काफी नीचे गिर चूका था, रात बारह बजे से बर्फ़बारी फिर शुरू हो गयी, जैसे तैसे करके सोने की चेष्ठा की क्योंकि कल से बर्फ के साथ असली जंग शूरू करनी थी।
क्रमशः.....
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कुण्ड में डैम का निर्माण कार्य |
ट्रक की सवारी |
चोपता की और |
देवरिया ताल की ओर |
रास्ता बढ़िया बना है |
देवरिया ताल |
हल्की बर्फ़बारी |
बर्फ़बारी के बाद |
भरत के साथ |
इस यात्रा के सभी वृतान्तो के लिंक इस प्रकार हैं:-
देवरिया ताल, चोपता - तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 1
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 2 - सोढ़ी गांव से देवरिया ताल
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 3 - देवरिया ताल से चोपता
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 4 - चोपता से तुंगनाथ
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 5 - तुंगनाथ से वापसी (अन्तिम भाग )
बढ़िया यात्रा लेख चित्रों के साथ..
ReplyDeleteसलाह :
1. फोटो का साइज़ 640x480 का रखिये जिससे एकरूपता और कुछ बड़े नजर आये|
2. ब्लॉग चौड़ाई (width)थोड़ी जायदा कीजिये.. जिससे स्क्रीन पर फिट हो सके |
3. चित्रों पर केप्शन जरुर डालिए |
4. लेख को थोडा और लम्बा करने की कोशिश कीजिए ...
धन्यवाद
www.safarhaisuhana.com
आपकी सलाह सर आँखों पर रितेश भाई। आपके कहे अनुसार कुछ तकनीकी सुधार कर लिये हैं। भविष्य में भी अवगत कराते रहियेगा। बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
ReplyDeleteबीनू भाई अच्छा लेख, फोटो ओर ज्यादा लगा सकते हो।
ReplyDeleteसचिन भाई मौसम ख़राब था, जल्दी जल्दी देवरिया ताल पहुंचना था, बर्फ़बारी के डर से। इसलिए फ़ोटो कम ही खींची। आगे भरपूर मिलेंगी।
ReplyDeleteबहुत अच्छा यात्रा विवरण बीनू भाई...
ReplyDeleteधन्यबाद त्यागी जी।
Deleteबहुत बढिया पोस्ट, जय जय।
ReplyDeleteआपसे तारीफ मिलना बहुत बड़ी बात है मेरे लिए सर। बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteअसली ट्रैकिंग , असली घुमक्कडी ये है ! प्रकृति की गोद में कुछ पल गुजार कर जो आनंद मिलता है वो शायद कहीं नही ! अत्यंत खूबसूरत चित्र बीनू जी !! और वर्णन बहुत ही सरल और काम का है !! थोड़ा सा अगर अपने लिखे हुए को अलाइन करेंगे तो और भी बेहतरीन होगा !!
ReplyDeleteसही ! धन्यवाद
Deleteयोगी भाई एलाइन करने की कोशिस की है। अगर फिर भी नहीं हुआ हो तो बताइयेगा। बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteबीनू तुम सच्चे पहाड़ी लड़के हो क्योकि इतनी बारिश और बर्फबारी में हम मैदानी लोग तो दुबक कर ही सोये रहेगे। इतनी बर्फ में टेंट में सर्दी नहीं लगती क्या ?
ReplyDeleteसर्दी तो लगती है बुआ जी, बुरा हाल था पूरी रात। लेकिन यही आनंद भी है, इसके लिये ही तो वहां जाते हैं।
Deleteबहुत बढ़िया बीनू भाई, लगे रहो।
ReplyDeleteधन्यवाद सुशील भाई।
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