बात जनवरी महीने की है, ट्रैकिंग का कीड़ा बहुत जोरों से काट रहा था। सर्दियों में अमूमन हिमालय के निचले पहाड़ भी बर्फ से लद जाते हैं। 2500 मीटर की ऊंचाई पर भी अच्छी खासी बर्फ गिर जाती है। जो ज्यादा ही खुराफाती ट्रेकर होते हैं, वही हिमालय में 4000 मीटर या उससे ऊँची जगहों पर जाने की हिम्मत करते हैं। खूब दिमाग दौड़ाया कि इस भयंकर सर्दी में कहाँ ट्रेक पर जाऊँ क्योंकि ट्रैकिंग सीजन कब का ख़त्म हो चूका था। अभी तो जहाँ देखो वहां 5-6 फ़ीट से ज्यादा बर्फ गिरी पड़ी है। फिर बर्फ में अकेले ट्रैक किया नहीं जा सकता, खाना, पीना, रहना सब खुद करना पड़ता है। कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या किया जाए। आखिरी में अपने बचपन के दोस्त भरत कठैत को अपनी समस्या बताई तो उसने कहा मैं देवरिया ताल चोपता - तुंगनाथ जा रहा हूँ, साथ चलना है तो आ जा। बस सोचना भी क्या था तुरन्त हाँ बोल दिया। भरत टूरिस्ट गाइड है, और वो एक ग्रुप को यहाँ ट्रैकिंग पर ले जा रहा था। तारीख तय हो गई कि 26 तारीख को मैं सीधे देवरिया ताल में मिलूँगा।
अब बेसब्री से इन्तज़ारी होने लगी ट्रैक पर निकलने की। 24 तारीख रात को मैं दिल्ली से निकला, लक्ष्य था अगस्तमुनि से थोडा आगे सोढ़ी गांव। यहाँ मेरी छोटी बहन का ससुराल है। I.S.B.T. से करीब दस बजे ऋषिकेश की बस ली, बस में तीन चार नौजवान लड़के मिले जो मसूरी घूमने जा रहे थे। घूमने क्या सिर्फ बर्फ देखने जा रहे थे। उनसे परिचय हुआ तो मैंने उन्हें धनोल्टी जरूर जाने की सलाह दी। सुबह करीब चार बजे ऋषिकेश पहुँचा, तुरन्त ही जोशीमठ वाली बस मिल गई और श्रीनगर तक का टिकट ले लिया। कारण सुबह जल्दी चलने वाली बस श्रीनगर में काफी देर तक रुकती हैं, श्रीनगर पहुँच कर जो भी बस आगे जाने के लिए तैयार होगी, उससे आगे बढ़ जाऊंगा।
करीब नौ बजे श्रीनगर पहुंचा तो बस ज्यादा देर नहीं रुकी और चल दी। रुद्रप्रयाग का टिकट ले लिया, ग्यारह बजे के आस पास रुद्रप्रयाग पहुँच गया। आज मुझे सिर्फ अगस्तमुनि तक ही जाना था तो मेरे पास समय बहुत था। रुद्रप्रयाग में नाश्ता करने के बाद उसी चाय की दुकान पर बैग रखा और संगम पर घूमने चला गया। रुद्रप्रयाग में अलकनंदा और मन्दाकिनी का संगम होता है। करीब एक घण्टे तक संगम पर बैठकर धूप का आनंद लिया फिर वापिस मार्किट आकर कुछ छोटी मोटी ट्रैक की जरूरत वाली शौपिंग भी कर ली। एक बार तो मन किया कि आज ही उखीमठ चला जाऊँ। भरत कल सुबह दस बजे उखीमठ पहुंचेगा तो वहीँ पर मिल लूँगा। लेकिन मेरी दिलचस्पी उखीमठ और देवरिया ताल में कुछ खास नहीं थी। कारण मैं इन दोनों जगहों को पहले भी खंगाल चुका था।
अपने साले साहब कमल को फ़ोन किया कि मैं रुद्रप्रयाग से निकल रहा हूँ, और तुम्हारे पास पहुँच रहा हूँ। रुद्रप्रयाग से सीधा रास्ता जोशीमठ - बद्रीनाथ चला जाता है और बायीं ओर पुल पार करके दूसरा रास्ता गुप्तकाशी- केदारनाथ की ओर चला जाता है। पुल पार करने के बाद भी दो रास्ते निकलते हैं, बायें मन्दाकिनी के साथ वाला केदारनाथ और दायीं ओर जो रास्ता निकलता है, वो जखोली होते हुए टेहरी डैम के साथ साथ ऋषिकेश निकलता है। पुल पार करके मैं खड़ा हो गया और बस की इंतजारी करने लगा।
करीब तीन बजे बस मिली अब मन्दाकिनी के साथ साथ चल पड़े। पिछले वर्ष की आपदा के भयावह लक्षण साफ़ साफ़ दिख रहे थे। पानी के कटाव से साफ़ साफ़ दिख रहा था कि किस किस्म की भयावह तस्वीर रही होगी। निर्माण कार्य जगह जगह चल रहा था, सड़क की तो बुरी हालात हो रखी थी। गौरतलब है कि मन्दाकिनी घाटी में ही सबसे ज्यादा तबाही हुयी थी। मैं पहले भी यहाँ आ चूका था तो अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि एक रात में ऐसी प्रलय भी आ सकती है करीब डेढ घंटे में बस ने सोढ़ी गावँ में उतार दिया साले साहब इंतज़ार कर ही रहे थे, मेरा आज का पड़ाव यहीं पर था जबरदस्त पार्टी जो कि साले साहब ने ब्यवस्था कर रखी थी आज होनी थी, खूब एन्जॉय किया काफी रात तक बातें करने के बाद आराम से सो गए बाहर बारिश भी शुरू हो गई थी।
श्रीनगर में अलकनंदा
अलकनंदा घाटी
आपदा के समय ये पत्थर पूरा पानी मैं डूबा था |
आपदा में बहे खेत |
अलकनंदा |
रुद्रप्रयाग |
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इस यात्रा के सभी वृतान्तो के लिंक इस प्रकार हैं:-
देवरिया ताल, चोपता - तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 1
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 2 - सोढ़ी गांव से देवरिया ताल
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 3 - देवरिया ताल से चोपता
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 4 - चोपता से तुंगनाथ
तुंगनाथ (स्नो ट्रैक) - भाग 5 - तुंगनाथ से वापसी (अन्तिम भाग )
ब्लॉगिंग की दुनिया में बहुत बहुत स्वागत है।एक बेहतरीन लेखन उम्दा फोटोज के साथ
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद हर्षिता जी। आपका मार्गदर्शन मिलता रहे.....
DeleteVery well written post. I too have written a post on it.
ReplyDeletemaheshndivya.blogspot.in
धन्यवाद सेमवाल जी।
Deleteपहली पोस्ट के लिए शुभकामनाएँ, आशा है की आप की आने वाली यात्राएँ जबरदस्त होगा।
ReplyDeletesachin3304.blogspot.in
धन्यवाद सचिन भाई।
Deleteबढ़िया बीनू
ReplyDeleteघुमते रहो, घुमाते रहो
ब्लॉग में फोटोज ज्यादा देखने को मिल रही है
फोटोज पर कैप्शन भी डालोगे तो ज्यादा सूचनाप्रद होगी
शुभकामनाएं
बहुत बहुत धन्यवाद कोठारी सर। कैप्शन जरूर डालूँगा।
Deleteबहुत बढ़िया बीनू....
ReplyDeleteशुरुआत अच्छी है...
www.safarhainsuhana.com
शुक्रिया रितेश भाई।
Deleteजब शुरू अच्छा हो जाये तो सबकुच अच्छा ही होता है बीनू ...
ReplyDeleteब्लॉग जगत में आने पर हार्दिक शुभकामनाएमनाये...
बहुत बहुत धन्यबाद बुआ जी।
DeleteBhaut achi post...
ReplyDeleteधन्यबाद पंकज जी।
Deleteबहुत बढ़िया kukreti साहब ....मेरी यादें taaza हो गयी
ReplyDeleteधन्यवाद पंकज जी.
Deleteरमता जोगी सही चला भई, ब्लॉग के "भंवरकूप" में स्वागत है। :)
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ललित सर। आपका सन्देश मिल गया है, ब्लॉग में तकनीकी सुधार जल्दी ही कर दूंगा। :)
ReplyDeleteवाह ! सुन्दर ! बहुत सुन्दर ! जून में बद्रीनाथ जाते समय रुद्रप्रयाग रुका था और सौभाग्यवश होटल बिलकुल ऐसा था जहां से संगम स्थल बहुत साफ़ दिखाई दे रहा था ! आरती का दृश्य आज भी याद है ! शानदार यात्रा की शानदार शुरुआत !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई।
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट बीनू भाई....
ReplyDeleteधन्यवाद रितेश भाई।
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