Wednesday 25 January 2017

कल्पेश्वर-रुद्रनाथ यात्रा (अन्तिम भाग)- पकड़ कमण्डल, उतर जा मण्डल

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पञ्चगंगा से मण्डल (पकड़ कमण्डल, उतर जा मण्डल)

सुबह सूर्योदय से पूर्व ही उठ गए। मौसम साफ़ लग रहा था, जल्दी से नित्यकर्म से निव्रत होकर बैग बाँध लिए। दूरी के हिसाब से आज भी अच्छी-खासी तय करनी थी। लेकिन आज की ट्रैकिंग की खासियत ये थी कि सिर्फ आधा किलोमीटर चढ़ाई और बाकी पूरी उतराई थी। चढ़ाई पर मुझे कोई ख़ास परेशानी नहीं होती। लेकिन उतराई में मेरी रफ़्तार बहुत कम हो जाती है। ढाबे से मैगी खाकर निकल पड़े। पञ्चगंगा समुद्र तल से ३६२० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ से हमको नौला पास (३७६० मीटर) तक चढ़कर मंडल (१५२० मीटर) उतरना था। दूरी लगभग सोलह किलोमीटर है।
ठीक ऊपर नौला पास साफ़ दिखायी दे रहा था महेश जी से यह कहकर आगे निकल पड़ा कि ऊपर चोटी से कुछ फ़ोटो खींचनी हैं, आप आराम से आइए। मिश्रा जी सबसे पहले निकल पड़े थे। आधे घण्टे में नौला पास की चढ़ाई पूरी कर ली, लेकिन चोटी पर पहुंचकर जब दूसरी ओर की उतराई देखी तो हालत ख़राब हो गई। इधर पञ्चगंगा की ओर देखा तो महेश जी के पीछे-पीछे अमित भाई चल रहे थे, अब तसल्ली से आगे बढ़ सकते हैं। नौला पास से जब उतरने लगे तो करीब दो किलोमीटर नीचे तक बुग्याल के बाद जंगल शुरू होता दिखाई पड़ रहा था। इस ओर बुग्यालों में सुबह की ओस पड़ी थी, धूप भी इधर अभी आई नहीं थी जिससे रास्ता फिसलन वाला हो गया था। और यही मेरी चिन्ता का सबसे बड़ा कारण था। मिश्रा जी पहली बार पहाड़ों पर आए थे, उनको इस जमी पड़ी ओस की भयावहता का अंदाजा नहीं होगा, यही सोचकर स्पष्ट निर्देश दे दिए कि यहाँ पर कैसे नीचे उतरना है। एक भी गल्ती की कोई गुंजाइश नहीं है, एक बार भी पाँव फिसला तो सीधे दो किलोमीटर बिना टिकिट पहुंचे हुए मिलोगे। बुग्यालों में कोई पेड़ भी नहीं होता, जिस पर अटक कर रुक जाओगे। कुल मिलाकर जान हथेली पर रखकर उतरना है। सभी को बार-बार चेतावनी देते हुए आराम-आराम से उतरते रहे।

बुग्याल की खतरनाक ढलान में उतरते हुए डोभाल का स्लोगन भी तैयार हो गया "पकड़ कमण्डल, उतर जा मण्डल" दो घण्टे में ये खतरनाक बुग्यालों वाली उतराई जब समाप्त हुई तो चैन की सांस ली। इसके बाद जंगल शुरू हो जाएंगे, कोई फिसला भी तो एक दो कदम में तो रुक ही जाएगा। नीचे पहुंचे तो ये छोठा सा बुग्याल क्षेत्र था, एक टूटी-फूटी झोपडी यहाँ पर बनी हुई थी, शायद कभी दुकान रही होगी। असल में मण्डल से रुद्रनाथ के रास्ते पर बहुत ही कम आवाजाही है, अधिकतर लोग सग्गर से रुद्रनाथ जाकर वापिस सग्गर ही उतर जाते हैं। इसीलिये ये ढाबा भी बन्द हो गया होगा। कुछ देर आराम करने के बाद जंगल में प्रवेश कर लिया और उतराई जारी रखी। मुझे बचपन से ही जंगल बहुत आकर्षित करते आए हैं। कई लोग घने जंगलों में चलने से डरते हैं, इसके उलट मुझे आनन्द आता है। आराम से बातें करते-करते उतरते चले जा रहे थे। दूर नीचे अनसुईया और उससे आगे मण्डल दिखना शुरू हो गया था। बायें हाथ की ओर हंस बुग्याल दिख रहा था।

अमित भाई और डोभाल हमेशा की तरह हमसे काफी आगे निकल चुके थे। करीब दो घण्टे की लगातार उतराई के बाद कांडी बुग्याल दिखना शुरू हो गया। मिश्रा जी भूख के मारे बैचेन हो रहे थे। मुझसे आराम करने को कहा तो मैंने कांडी बुग्याल में दिख रही दुकान की ओर इशारा कर दिया। साथ ही यह भी कह दिया कि जितनी जल्दी पहुंचोगे उतनी जल्दी भोजन मिलेगा। फिर क्या था मिश्रा जी के पांवों में गजब की ताकत गई। सीधे कांडी बुग्याल उतरकर ही दम लिया। इसको कहते हैं असली भोजन प्रेमी। अमित भाई और डोभाल पहले पहुँच चुके थे तो उन्होंने दाल-भात बनाने को पहले ही बोल दिया था। पहुँचते ही सबसे पहले गर्मागर्म चाय मिल गई। जब जबरदस्त थकान हो रही हो ऐसे में स्टील के गिलास में गर्मागर्म चाय मिल जाए तो ये अमृत से कम नहीं लगता। यहाँ पर आज सुबह से सिर्फ हम ही पहुंचे थे। ना कोई ऊपर आया था ना कोई नीचे की ओर गया था। आधे घण्टे में भोजन तैयार हो गया। डट कर दाल-चावल खाए।

ढाबे में भोजन करते वक़्त एक मजेदार घटना हुई। भोजन करते-करते हम मिश्रा जी की भोजन करने की क्षमता में उनकी शान में कसीदे गढ़े जा रहे थे। एक पाँच लीटर का कुकर भात से भरा हुआ तो था ही, ढाबे वाले को लगा कि कहीं भात कम न पड़ जाए तो उसने एक और कुकर भात बनाने की तैयारी शुरू कर दी। जैसे ही हमें समझ आया हँसते हुए ढाबा मालिक को मना कर दिया कि मत बनाओ मिश्रा जी आधा पेट ही काम चला लेंगे।

खाना खाने के बाद सभी का कुछ देर आराम करने का मन था। लेकिन बाहर मौसम ख़राब होता देख मैंने सबको जल्दी से चलने को कहा। ढाबा मालिक से अत्रि मुनि गुफा का रास्ता पूछ लिया, जो काफी नीचे बह रही अमृतगंगा के किनारे पर स्थित है। कांडी बुग्याल से निकले पांच मिनट भी नहीं हुए थे कि इन्द्र देव ने बारिश शुरू करवा दी। ढाबा मालिक ने बताया था कि दो किलोमीटर नीचे नदी पार करने के बाद एक टिन शेड मिलेगा। उसमें सर छुपाने की जगह मिल जाएगी। हालांकि जंगल से होकर उतराई अभी भी बरकरार थी, लेकिन इस बार मैंने सबको यह कहते हुए दौड़ लगा दी कि दो किलोमीटर आगे टिन शेड पर मिलूंगा।

पंद्रह मिनट में अमृतगंगा उतर गया। अमृतगंगा को पार करने के लिये फिलहाल काम चलाऊ पुल बना रखा है। जिस पर शुरूआती पत्थर फिसलन भरे थे। मुझे तो आदत है, सर्र से पार हो गया और आगे बढ़ गया। अमृतगंगा से कुछ दो-तीन सौ मीटर आगे से बांए हाथ की ओर अत्रि मुनि गुफा की ओर रास्ता जाता है। वहीँ रास्ते में टिन शेड दिखाई दिया। भागकर उसमें शरण ले ली। कुछ देर बाद डोभाल भी यहीं पर गया, डोभाल ने आते ही पूछा कि अमित भाई नहीं पहुंचे क्या ? जबकि अमित भाई तो डोभाल से आगे-आगे चल रहे थे। शायद बारिश की भाग-दौड़ में आगे निकल गए होंगे। करीब पंद्रह मिनट बाद महेश जी और मिश्रा जी भी पहुँच गए। महेश जी पाँव पकडे हुए थे, मालूम पड़ा अमृतगंगा को पार करने के चक्कर में फिसलन भरे पत्थरों में फिसल गये, थोड़ी सी पाँव पर लग गई है।

बारिश कुछ हल्की हुई तो अत्रि मुनि गुफा देखने निकल पड़े। मिश्रा जी वहीँ शेड के नीचे बैठे रहे, चलने को कहा तो बोल पड़े थक गया हूँ तुम देख आओ। गुफा मुख्य मार्ग से दो सौ मीटर हटकर अमृतगंगा के किनारे है। जब हम नीचे गुफा तक पहुंचे तो देखा दो पत्थरों के बीच में एक दरवाजे पर ताला लटका हुआ था। सोचा पुजारी जी कहीं गए हैं, इसलिए ताला लगा हुआ है। एक दो फ़ोटो खींची और वापिस लौट पड़े। जैसे ही हम टिन शेड तक वापिस पहुंचे अमित भाई नीचे से किसी दूसरे रास्ते से भटकते फिरते गुफा के पास पहुँच गए। उनको ऊपर मुख्य मार्ग में मिलने का इशारा कर हम वापिस गए। करीब पंद्रह मिनट बाद अमित भाई गुफा से वापिस आए तो मालूम पड़ा जिस दरवाजे पर ताला लटका देख हम वापिस गए वो तो गुफा थी ही नहीं। गुफा उससे कुछ आगे थी जो हमको दिखी ही नहीं। अब क्या कर सकते थे, किस्मत को कोसते हुये अनसुईया की ओर बढ़ चले।

बारिश बन्द हो चुकी थी, अनसुईया भी नजदीक ही था। अत्रि मुनि गुफा से अनसुईया की दूरी एक किलोमीटर है। आराम से चलते हुये अनसुईया पहुँच गए। अनसुईया में महर्षि अत्रि मुनि की धर्म पत्नी सती माता अनसुईया का मन्दिर है। मान्यता है कि इस मन्दिर में पूजा-अर्चना करने वाले विवाहित जोड़े को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब अत्रि मुनि यहाँ गुफा में तप कर रहे थे, तो माता अनसुईया ने पत्नी धर्म का निर्वाहन करते हुए यहाँ पर अपना निवास स्थान बना दिया।

माता अनसुईया की पतिव्रता धर्म की चर्चा सभी लोकों में होने लगी तो माता लक्ष्मी, माता पार्वती और माता सरस्वती ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश से अनसुईया माता के सतीत्व की परीक्षा लेने को कहा। तीनों देव साधु रूप में माता अनसुईया के द्वार पर गये और भोजन माँगा। माता अनसुईया जब तीनों साधुओं को भोजन करवाने लगी तो इन्होंने माता अनसुईया के सामने शर्त रख दी कि अगर आप हमको निर्वस्त्र होकर नग्न अवस्था में भोजन कराएंगी तो ही हम भोजन ग्रहण करेंगे, अन्यथा नहीं। माता अनसुईया ने अपने सतीत्व तप से ये जान लिया कि ये तीनों साधू और कोई नहीं ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। माता ने इन तीनों साधुओं को छह महीने के अबोध बालक में बदल दिया और फिर इन तीनों साधुओं को उनकी इच्छानुरूप भोजन करवाया। जब तीनो देव वापिस देवलोक नहीं पहुंचे तो उनकी पत्नियों को चिन्ता हुई, देवों कि ढून्ढ में जब देवियाँ यहाँ पहुंची तो पाया कि ये तो अबोध बालक बने हुए हैं और यहाँ आराम से पालने में झूला झूल रहे हैं। तीनों देवियों ने माता अनसुइया से छमा प्रार्थना की तो माता अनसुइया ने वापिस उन्हें उसी रूप में ला दिया।

माता अनसुईया के दर्शन के बाद अब मण्डल पहुँचना था। जो हमारा आज रात का ठिकाना था, और वहीँ पर यह यात्रा पूर्ण होनी थी। थोड़ी दूर पर एक चाय की दुकान दिखी, तो सबकी चाय की तलब जाग्रत हो गई। चाय पीने के पश्चात सभी को जल्दी से मण्डल पहुँचने की हिदायत दी, जो यहाँ से पांच किलोमीटर दूर है। चाय की दुकान में मिश्रा जी आराम से ये सोचकर बैठ गए थे कि आज की ट्रैकिंग समाप्त हो गई। लेकिन जब उन्होंने मेरे मुख से सुना कि चलो अभी पाँच किलोमीटर और चलना है तो बुझे मन से, चुपचाप उठे और आगे बढ़ चले। मण्डल को गढ़वाल का चेरापूंजी भी कहा जाता है। यहाँ कब बारिश हो जाए कुछ पता नहीं पड़ता। अनसुईया से आगे मण्डल तक बढ़िया सीमेंट का रास्ता बना है, और रास्ता भी आसान ही है। लगातार उतराई जारी रहती है।

करीब एक किलोमीटर आगे एक पौराणिक शिलालेख मिलता है। सात पंक्तियों का यह शिलालेख संस्कृत और ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है। इसके अनुसार महाराज परमेश्वर सर्वरमन ने यहाँ पर एक कुण्ड का निर्माण करवाया था। यह शिलालेख छठी शताब्दी मध्य ईसवी का नियत किया गया है। शिलालेख को संरक्षित करने के लिए इसके ऊपर टिन शेड का निर्माण भी करवाया गया है। शिलालेख देखने के बाद सीधे मण्डल की ओर बढ़ चले। घने जंगल, और कल-कल बहती अमृतगंगा की धारा के साथ-साथ आगे बढ़ना बहुत ही मनमोहक था। पूरा रास्ता अच्छा बना है, कुछ दक्षिण भारतीय श्रधालु रास्ते में मिले, वो कल अनसुईया माता के दर्शन हेतु जाएंगे। उनको पूरे रास्ते की जानकारी देकर आगे बढ चले। मण्डल की सीमा में प्रवेश कर चुके थे। कुछ ही देर बाद उखीमठ-गोपेश्वर मार्ग तक पहुँच गए।

पांच दिन बाद सड़क और गाड़ियों को देखना भी अच्छा लग रहा था। सामने ही अनसुईया होटल का बोर्ड देखकर कमरे की बाबत पूछा तो आसानी से मिल गया। कमरे में जाते ही नहाने का उपक्रम किया गया। तीन दिन से बारिश ही नहला रही थी। कुछ देर पश्चात मिश्रा जी भी गए और आधे घण्टे के उपरान्त महेश जी और अमित भाई भी पहुँच गए। आज की रात नर्म मुलायम गद्दों में सोकर थकान दूर की जाएगी। कल सुबह गोपेश्वर होकर दिल्ली के लिए वापसी।

इस तरह दो केदार धामों की यह यात्रा समाप्त हुई। इस यात्रा में जहाँ उर्गम घाटी के रहन-सहन से रूबरू होने का मौका मिला वहीँ इस क्षेत्र की वन सम्पदा, भूगोलिक परिस्थति को भी करीब से जानने का मौका मिला। कुल मिलाकर उर्गम घाटी में वो सब कुछ देखने लायक है जिसके लिए एक ट्रेकर/घुमक्कड़ पहाड़ों पर जाता है। एक बार फिर से इस क्षेत्र में आने का मन है जिसमे एक और केदार धाम मदमहेश्वर से कल्पनाथ की यात्रा की जाएगी। आपके सुझाव व् प्रश्नों का सदैव स्वागत है। चलेंगे फिर किसी दूसरी यात्रा में यात्रा वृतान्त के साथ। बने रहिएगा.........  


पञ्चगंगा में सुबह 


ओस का असर 
नौला पास से नीचे 

भयंकर उतराई 


संभलकर 


दूर नीचे कांडी बुग्याल 
अमित तिवारी 


जंगल में प्रवेश 


मिश्र जी 


इस ओर से दिखता अनसुइया 


कांडी बुग्याल की उतराई 


कांडी बुग्याल में भोजन की तैयारी 


कांडी बुग्याल 


अत्रि मुनि गुफा के पास 


एक गुफा में ताला लगा हुआ 




माता अनसुइया मन्दिर













दत्रातेय मन्दिर




प्राचीन शिलालेख 
अनसुइया से रास्ता आसान है 


प्राचीन अवशेष 


अमृत गंगा पुल 


अमृत गंगा 


अनसुइया माता मूर्ति 






सिरोली गाँव 




मण्डल 






इस यात्रा के सभी वृतान्त निम्न हैं:-


18 comments:

  1. बीनू भाई आपने बुग्याल की तीखी ढलान की व्याखा बहुत अच्छे से की, डोभाल भाई के चटपटे स्लोगन बहुत अच्छे लगे। यात्रा लेख व फोटो तो बेहतरीन है ही । मिश्रा जी को पूरे पेट खिलाना था आपको । खट्टे मिठ्ठे अनुभवो से भरी आपकी पोस्ट पंसद आई ।

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    1. असल में मिश्रा जी को देर से समझ आया था कि पहाड़ों में प्लेट सिस्टम चलता है. जितना मर्जी खाओ पैसे उतने ही पड़ने हैं. यही बात हम भोजन करते हुए मजाक कर रहे थे. खाया उन्होंने पेट भर के ही . ढाबा वाला डर गया कि कहीं ए भी कम न पड़ जाए.

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  2. शाम को अमित गुरु जी ने बताया कि "वो ऊपर नौला पास है वहाँ से नेटवर्क पकड़ेगा", सुबह उठा और निकल पड़ा उसी तरफ बस पहुँच गया जब पीछे देखा तो डोवाल जी और आप दूसरी तरफ चढ़ रहे थे तब लगा गलत जगह आ गया खैर घर पर बात की और दूसरी तरफ जाने लगा, जरा सा पैर फिसला और नसों में बह रहा खून तक जैसे सुख गया ,दोनों तरफ प्रत्यक्ष मौत 5 मिनट धैर्य से सांस ली फिर एक एक कदम बढ़ा के सुरक्षित जगह पहुच गया।
    ट्रेक ख़त्म हुआ मंडल पहुचे मेरा पहला ट्रेक आपके शानदार निर्देशन में पूर्ण हुआ होटल की छत पर बधाई स्वरुप गले लगाना जीवन पर्यंत याद रहेगा । चरणस्पर्श

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    1. खुश रहो...घुमते रहो और ज्ञान अर्जित करते रहो.

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  3. बहुत बढिया यात्रा

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  4. बीनू भाई , बढ़िया यात्रा वर्णन, शानदार चित्र , डोभाल भाई के मस्त स्लोगन !

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  5. बहुत दिलचस्प लेखनी है आपकी.. सरल पर पूर्ण...मजा आ गया मैने सारे भाग आज ही पढ़ डाले

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  6. Mera sabse tough trek aap logon ke support se pura hua 👍

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    1. शानदार हौसला है आपका महेश जी. निश्चित रूप से जिन परिस्थितियों में ए ट्रेक पूर्ण हुआ उसके बाद आप कोई भी ट्रेक कर सकते हैं.

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  7. बढ़िया यात्रा बीनू भाई ! चले चलो

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  8. सारी पोस्ट तल्लीनता से एक साथ पढ़ी,आपने इतने अच्छे ढंग से इस यात्रा का वर्णन किया जो किसी भी पाठक को बांधे रखती है,वही मोह मैंने भी किया और खो गया |बहुत ही बढ़िया यात्रा कराई बीनू भाई |

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  9. बहुत बढ़िया यात्रा वृत्तांत, पढ़कर बहुत अच्छी जानकारी मिली एक बार में ही पांचों दिन की यात्रा पढ़ डाली, बहुत ही अच्छे तरीके से वर्णन किया है आपने, यात्रा के लिए जरूरी सामान की लिस्ट बता देते तो पाठको को जो इस तरह की यात्रा में जाना चाहते हैं उन्हें आसानी हो जाती, आपकी यात्राएं ऐसी ही सुगमता पूर्वक संपन्न होती रहे और आपकी पोस्ट पढ़कर हम लोगों का मार्ग दर्शन होता रहे।

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  10. भाई जी मैने कई बार आपके इस यात्रा वृत्तांत को पढ़ा है... हर बार वही आनन्द आ रहा है....
    यात्रा का बहुत ही शानदार वर्णन किया है भाई साहब आपने.... आनन्द आ गया.... सारे भाग पढ़ दिए,भावी ट्रैकरों के लिए बहुत ही मदद मिलेगी आपके इस ब्लॉग से.... दूरी और रास्ते का भी अच्छा जिक्र किया है आपने।
    पढ़ कर ऐसा लगता है कि पूरी यात्रा बिना टेंट/ भोजन व्यवस्था के किया जा सकता है। फिर भी जब इस ट्रैक पर जाऊँगा तो आप से सम्पर्क करूँगा.....
    जय कल्पेश्वर, जय रुद्रनाथ

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