पंचगंगा से रुद्रनाथ और वापसी पंचगंगा (चलेंगे साथ-साथ, पहुंचेंगे रुद्रनाथ)
बुग्यालों पर
सूर्योदय जल्दी होने की
वजह से सुबह
भी जल्दी हो
जाती है। दीवारों की
छिद्रों से जब सूर्य
की किरणें आँखों
पर पड़ी तो
समझ आ गया
कि रात को
हवा कहाँ से
आ रही थी।
सारा सामान बैग
में ठूंस कर
नीचे उतर गया,
दुबारा रेंगकर यहाँ
घुसने की हिम्मत
नहीं थी। सभी
ने ऐसा ही
किया। मिश्रा जी
का आधा किलो
ग्लूकोज़ का डब्बा ऊपर
ही छूट गया था, जिसका हमको तुरन्त मालूम
भी पड़ गया था,
लेकिन रेंगकर ऊपर
घुसने के डर
से किसी में
हिम्मत नहीं हुई कि उसको ले
आएं।
बाहर निकला तो मौसम काफी
हद तक साफ़
दिखाई दे रहा
था, लेकिन रुद्रनाथ की
पहाड़ियों के ऊपर काले
बादल मंडरा रहे
थे। अनुमान लग
रहा था कि
आज फिर बारिश
होगी। पनार के
बुग्यालों में धूप खिली
थी, बुग्याल सुनहरी
धूप में बेहद
खूबसूरत दिखाई पड़ते हैं।
सुबह चाय पी
और जब नाश्ते
के बारे में
ढाबे वाले से पूछा तो मालूम
पड़ा अभी आधा
घण्टा और इंतज़ार
करना पड़ेगा। कल
की लेट लतीफी
से सबक लेते
हुए इंतज़ार करना
उचित ना समझकर तुरन्तआगे बढ़ने का
निर्णय लिया। नाश्ता
हमको पांच किलोमीटर आगे
पंचगंगा में मिल ही
जाएगा। कुछ बिस्कुट के
पैकेट बचे हुए हैं, तब तक
उनसे काम चला
लेंगे।
आज का
दिन चढ़ाई के
मामले में अपेक्षाकृत आसान
था। जहाँ पनार
की समुद्र तल
से ऊंचाई ३५००
मीटर है, वहीँ
पितृ धार ३८००
मीटर, पंचगंगा ३६२०
मीटर और रुद्रनाथ ३५००
मीटर पर स्थित
हैं। दूरी लगभग
आठ किलोमीटर की
है। पानार से
हल्की चढ़ाई के
साथ बुग्याली पहाड़
की धार-धार
पर चलना होता
है। मौसम खुशनुमा बना
हुआ था, दोनों ओर की घाटी
दूर-दूर तक
साफ़ नजर आ
रही थी।
पनार में
पानी की काफी
किल्लत है, इसलिए
हम बोतलों में
बिना पानी भरे
ही आगे बढ़
गए थे। कुछ
दूर चढ़कर महेश
जी को पानी
की चिंता होने
लगी तो बुग्यालों से
रिसते हुए पानी
को थोडा सा
उनकी बोतल में
भर लिया। आसान
रास्ते के साथ
आगे बढ़ते जा
रहे थे। समुद्र
तल से ३६००
मीटर की ऊंचाई
पर बादल भी
अठखेलियां करना शुरू कर
देते हैं। कभी
हमारे साथ-साथ
चलते, कभी हमसे
नीचे और कभी
मौसम साफ़। बादलों
को खुद से
नीचे देखना भी
गर्व का अनुभव
करवाता है। मिश्रा
जी पहली बार
पहाड़ों पर आए थे, उनसे जब
पुछा कि मिश्रा
जी खुद को
बादलों से भी
ऊपर चलते देखना
कैसा लग रहा
है ? तो वो
निशब्द थे। उनकी
मनोभावना को समझ सकता
था।
करीब एक
घण्टे बाद हम
पितृ धार की चोटी पर थे,
जो इस ट्रैक
का उच्चतम बिंदु
था। पित्रधार से
रुद्रनाथ तक बहुत ही
आसान रास्ता बना
हुआ है। बुग्यालों के
बीच में चलना
वैसे भी बहुत
कमाल के क्षण
होते हैं। पंचगंगा से
कुछ पहले मौसम
ने फिर से
करवट ली और
बूंदा-बांदी शुरू
हो गई। रास्ता
आसान और साफ़
बना हुआ था।
महेश जी के
पास पोंछो था
ही, उनको आराम
से आने को
कहकर मैंने दौड़
लगा दी और
सीधे पंचगंगा के
ढाबे में जाकर
ही शरण ली।
पंचगंगा जैसे
ही पहुंचा बहुत
तेज बारिश शुरू
हो चुकी थी।
ढाबे वाले ने
यहाँ यात्रियों के
लिए अच्छी सुविधा
कर रखी थी।
नीचे फर्श पर
बबूल की घास
के ऊपर स्लीपिंग मैट
करीने से बिछा
रखी थी। साथ
ही रजाई, कम्बल
सब उपलब्ध था।
बारिश से बचने
के चक्कर में
करीब बीस-पच्चीस
लोग इस झोपडी
में शरण लिये
हुए थे। हमारे
सिवाय सभी रुद्रनाथ के
दर्शनोपरान्त लौट रहे थे।
कुछ देर बाद
महेश जी भी
पहुँच गए। अमित
भाई, डोभाल को
पहुंचे काफी समय
हो चूका था,
हमारे पहुँचने तक
वो नाश्ता भी
कर चुके थे।
सबसे पहले तो
चाय मंगवायी, फिर
तीन प्लेट मैगी।
जब तक नाश्ता
समाप्त करते बारिश
रुक चुकी थी।
सभी लोग आगे
बढ़ गए, सिर्फ
हम पांच ही
बचे रह गए जिनको रुद्रनाथ जाना
था।
अभी सुबह
के ग्यारह बज
रहे थे। साढ़े
बारह बजे रुद्रनाथ जी
को भोग लगने
के उपरान्त उनका
विश्राम करने का समय
हो जाता है।
फिर तीन बजे
के बाद ही
कपाट खुलेंगे। हमारे
पास डेढ़ घण्टे
का समय था।
सभी की राय
थी कि अभी
चलते हैं, भोग
लगने से पहले
दर्शन कर वापिस
भी आ जाएंगे। मुझे
महेश जी की
चिन्ता थी कि
तेज चल पाएंगे या
नहीं। महेश जी
ने कहा कि
आप सभी चलो
वो अगर देरी
से भी पहुंचे
तो बाहर से
ही माथा टेक
कर वापिस आ जाएंगे। बैग यहीं पंचगंगा में
छोड़ दिये, क्योंकि वापिस
तो यहीं आना
था। हमको वापसी
में मंडल उतरना
था तो वहां
का रास्ता भी
पंचगंगा से ही अलग
होता है।
पंचगंगा से
रुद्रनाथ की दूरी तीन
किलोमीटर है। रास्ता भी
साफ़ और आसान
ही है। जाते
हुए हल्की सी
उतराई के साथ
रुद्रनाथ तक जाना होता
है। अमित भाई
और डोभाल हमेशा
की तरह आगे
निकल गए। मैं
महेश जी और
मिश्रा जी आराम
से चलते रहे।
बारिश की वजह
से रास्ते में
फिसलन काफी हो
गई थी, जिसकी
वजह से एक
जगह महेश जी
फिसल भी पड़े। रुद्रनाथ जी
के प्रथम दर्शन
लगभग एक किलोमीटर पहले
से होने लगते
हैं। एक लोहे
की सरिया को
टेढ़ा करके गेट
रुपी आकार देकर
उसपर एक घण्टी
टाँग दी गई है। यहाँ पहुँचने पर
तेज हवाओं ने
स्वागत किया। दाहिनी
ओर घाटी में
बादलों का झुण्ड
ऊपर की ओर
आता बहुत ही
मनभावन दृश्य दिखा
रहा था। यहाँ
से महेश जी
को छोड़कर मैं
भी तेज गति
से रुद्रनाथ जी
के दर्शन की
लालसा लिये आगे
बढ़ गया।
रुद्रनाथ जी
के मंदिर परिसर
में सबसे पहले
पवित्र नारद कुण्ड
पड़ता है। इसके
पश्चात गणेश जी
की प्रतिमा रास्ते
से कुछ ऊपर
दिखाई देती है।
परिसर में पहुंचा
तो पुजारी जी
ने पहले ही
हमारे लिए चाय
बनवा रखी थी।
उन्होंने कहा आराम से
चाय पियो फिर
दर्शन करना। सभी
आ जाएंगे फिर
भगवान् रुद्रनाथ को
भोग लगाएंगे। तसल्ली
से बैठकर पहले
चाय पी। जब
तक महेश जी
पहुँचते हैं, परिसर का
एक-एक कोना
और हर बात
की जानकारी पुजारी
जी से ले
ली। कुछ देर
बाद महेश जी
भी पहुँच गए।
अमित भाई और
डोभाल पहले ही
दर्शन कर चुके
थे। हम तीनो
को पुजारी जी
ने बहुत अच्छे
से भगवान् रुद्रनाथ के
दर्शन करवाए और
पूजा-अर्चना की।
इसके पश्चात रुद्रनाथ जी
को भोग लगाया
गया। अब भगवान्
का आराम करने
का वक़्त भी
हो चला था।
रुद्रनाथ में
भगवान शिव के
एकानन रूप की
पूजा होती है।
शायद ये विश्व
का एकलौता शिव
मंदिर है, जहाँ
भगवान् शिव इस
रूप में पूजे
जाते हैं। भगवान
शिव के नीलकंठ
की यहाँ प्रतिमा में
साक्षात् दर्शन होते हैं।
मंदिर के अन्दर
ही शिव-परिवार,
विष्णु जी सेशाशन
पर लेटे हुये
आदि कई दुर्लभ
प्रतिमायें रखी हुई हैं।
पुजारी जी ने
इन सबके बारे
में विस्तार से
जानकारी दी। मंदिर परिसर
के बाहर पांडवकालीन निर्मित पाँच
छोठे-छोठे मंदिर
एक बड़ी सी
चट्टान पर बने
हैं। इसी चट्टान
पर केदारनाथ मंदिर
की आकृति स्वयं
ही उभरी हुई देखकर आश्चर्यचकित हो
जाते हैं। मन्दिर
परिसर में कुछ
पक्षी विचरण कर
रहे थे, इनके
बारे में पुजारी
जी ने बताया
कि ये देव
ऋषि हैं। इस
स्थान पर देव
ऋषि बैठक किया
करते हैं। रुद्रनाथ जी
से नंदा देवी,
त्रिशूल, नंदा घूंटी और
कामेट पर्वत के
शानदार दर्शन होते
हैं। कुछ और
देर मंदिर परिसर
में ब्यतीत करने
के बाद भगवान्
रुद्रनाथ से यह कहकर
विदा ली कि
जब भी आप
बुलाएँगे दुबारा फिर से
हाज़िर हो जाऊँगा।
दिन के
एक बज रहे
थे जब हम
रुद्रनाथ दर्शनोपरान्त लौटे। यहाँ से
पंचगंगा तीन किलोमीटर की दूरी पर और
आगे आज ही
बढ़ते हैं तो
नौ किलोमीटर आगे
कांडी बुग्याल में
अगला ठिकाना मिलेगा। चलते-चलते इस विषय
पर चर्चा होने
लगी कि क्या
किया जाए ? मैं
और डोभाल इस
पक्ष में थे
कि आगे बढ़ते
हैं, महेश जी
और मिश्रा बिल्कुल भी
आगे बढ़ने के
पक्ष में नहीं
थे, कुछ देर
बाद अमित भाई
ने भी अपना
कीमती वोट महेश
जी और मिश्रा
जी के पक्ष
में सुना दिया।
कार्यक्रम के अनुसार हमको
आज रुद्रनाथ में
रुकना था लेकिन
समय काफी था
इसलिए हम पंचगंगा तक
वापिस भी आ
रहे थे। कुल
मिलाकर हम अपने
कार्यक्रम से तीन किलोमीटर आगे
ही चल रहे
थे। अब जबकि
पंचगंगा में ही रुकना
है तो क्यों
जल्दबाजी की जाए। एक धार पर बैठकर
तसल्ली से नंदा
देवी, त्रिशूल, कामेट,
नंदा घूंटी पर्वत
श्रंखला को निहारते रहे।
आराम से फ़ोटो
खींची गई और
गप्पें लड़ाते-लड़ाते
पंचगंगा वापिस पहुँच गए।
मिश्रा जी
बिना रुके पंचगंगा पहुँचे
थे, उम्मीद थी
कि उन्होंने ढाबे
वाले को दिन
का भोजन बनाने
को बोल दिया
होगा। लेकिन हमारे
पहुँचने तक ऐसा कुछ
नहीं हुआ था।
ढाबे वाले ने
बताया कि कढ़ी
चावल जल्दी से
तैयार कर देता
हूँ, तब तक
आप लोग आराम
करो। धूप अच्छे
से खिली हुयी
थी दो दिन
के भीगे कपडे
धूप में सुखाने
डालकर आराम करने
लगे। पिछले तीन
दिन से आज
पहला मौका था
कि हम इस
समय आराम फरमा
रहे थे। कुछ
देर बाद ही
भोजन तैयार था।
गर्मागर्म कढ़ी-चावल खाकर
आनन्द आ गया।
शाम होते-होते
गोपेश्वर से दो श्रद्धालु और
पंचगंगा आ पहुंचे। आपस
में खूब बातें
की आज हमारे
पास ना तो
जगह की कमी
थी और ना
ही बिस्तरों की।
रात को आठ
बजे तक भोजन
करके खूब फैलकर
सो गए। बाहर
फिर से बूंदा-बांदी शुरू हो
चुकी थी। अच्छा
ही है, कल
दिन में मौसम
साफ़ मिलेगा।
क्रमशः.....
पनार बुग्याल |
यात्रा बहुत ही शानदार रही आपकी क्या वह फोटो है आपके पास जिसमें केदारनाथ मन्दिर की छवि है
ReplyDeleteलगा रखी है वो फोटो भी लोकेन्द्र भाई. पांच पांडव मन्दिर वाली फोटो को ज़ूम करके देखिये, उसके पीछे जो बड़ा पत्थर है उसपर वो आकृति है.
Deleteमस्त लेख!
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी.
Deleteबहुत ही बढ़िया वर्णन
ReplyDeleteजय रुद्रनाथ
धन्यवाद श्याम भाई.
Deleteजय हो बाबा रुद्रनाथ जी की। बीनू भाई वाकई बहुत सुन्दर जगह है।
ReplyDeleteनिश्चित रूप से सचिन भाई.
Deleteपनार बुग्याल की सुबह बहुत खास थी चटख धुप के साथ ठण्ड गायब हो गयी,डुप्लेक्स में रुकना शानदार रहा :) 👍 ।रुद्रनाथ से लौट कर पंचगंगा में मैंने उस ढाबे वाले से खाना बनाने को बोला उसने भी बोला ठीक है बना देता हूं। मैं निश्चिन्त हो के मैगी खाने लगा जब आप सब लोग आये तो वो साफ मुकर गया कि उसे खाना बनाने को बोला गया था। मैं चोर हो गया बिच में डोवाल जी डांटने लगे मुझे खैर खाना बना सबने खाया। दिल तो किया कि उसे वाही पटक के लमलेट कर दूँ :( अब वो मेरी बात नहीं समझ पाया या क्या हुआ जो उसने बनाया नहीं आज तक मेरी समझ में नहीं आया जब की शुद्ध शुद्ध खड़ी हिंदी में 5 जन का खाना बनाने को बोला था
ReplyDeleteबहुत खूब मिश्रा जी.
Deleteबढ़िया यात्रा औऱ शानदार चित्र । भोलेनाथ ने चाहा तो इस साल ये यात्रा करनी है ।
ReplyDeleteजरूर कीजियेगा नरेश जी. आत्मिक शान्ति के साथ साथ प्राकृतिक खूबसूरती कि भरमार है.
DeleteBahut sundar
ReplyDeleteधन्यवाद संतोष भाई.
Deleteदिलकश नजारों से सराबोर उर्गम घाटी व रुद्रनाथ जी ने मंत्रमुग्द कर दिया।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया।
धन्यवाद संदीप जी
Deleteकितनी खूबसूरत जगह है पनार ! मजा आ गया ! जानकारी भरा वृतांत बीनू भाई
ReplyDeleteजी बहुत खूबसूरत बुग्याल शेत्र है. धन्यवाद भाई.
Delete