Wednesday 12 October 2016

जम्मू-कश्मीर यात्रा:- भदरवाह से कैलाश कुण्ड

भदरवाह से कैलाश कुण्ड

जैसे ही ये मालूम पड़ा कि कोठारी जी का बैग होटल में ही छूठ गया है, जिसमें कि उनका बटुआ, मोबाइल, कैमरे का लेंस आदि सब कुछ है, तो रमेश जी ने संकरी सी सड़क पे गाडी सौ की स्पीड में दौड़ा दी। मुश्किल से दो से तीन मिनट में सीरी बाजार के मुख्य चौक स्थित होटल पर पहुँच गए। देखा तो होटल मालिक ने बैग को सुरक्षित अपने पास रखा हुआ है, और हमारे भोजन को पैक कर रहा है। साँस में साँस आई, दिन का भोजन और रात के लिए पराँठे पैक करवा लिए। कुछ बिस्कुट के पैकेट व टॉफी पहले ही रख लिए थे। कैलाश कुण्ड ट्रैक पर कहीं भी खाने व रहने की व्यवस्था नहीं है, साथ ही छतरगला में भी कुछ मिलने वाला नहीं था। खाना पैक करवाकर छतरगला के लिए प्रस्थान कर दिया, जो कि भदरवाह से लगभग पैंतीस किलोमीटर दूर है।




ऐसे तो इस रास्ते पर बसें भी चलती हैं, लेकिन बसों की संख्या सीमित है। इक्का दुक्का जीप भी भदरवाह से छतरगला के लिए चलती हैं। अच्छे-खासे कच्चे रास्ते से शुरुआत हुई। करीब एक किलोमीटर आगे चलकर जम्मू-कश्मीर यूनिवर्सिटी का भदरवाह कैम्पस नजर आया। इस छोठे से कस्बे में उच्च स्तरीय शिक्षा संस्थान का होना सुखद था। कई बच्चे स्कूल यूनिफार्म में स्कूल जाते हुए भी मिल रहे थे।

शिक्षा किसी भी समस्या का सबसे उत्तम हल है। अशिक्षा एक रूप में सामाजिक बीमारी ही है। एक अशिक्षित इंसान समाज में कई प्रकार के भ्रम खुद भी फैलाता है और सुनी सुनाई बातों में जल्दी विश्वाश भी करता है। दो मिनट रुककर यूनिवर्सिटी कैम्पस की फ़ोटो खींचकर आगे बढ़ चले। घाटी के साथ-साथ शानदार नजारों को देखते हुए आगे बढ़ते चले गए। सड़क हालाँकि कच्ची बनी है लेकिन इसके चौड़ीकरण का काम भी चल रहा है।

जगह-जगह बी.आर.ओ. के कर्मचारी सड़क के चौड़ीकरण में लगे हुए दिखाई दे रहे थे। कई जगह रुककर इस घाटी की खूबसूरती को कैमरे में कैद करते रहे। जितना नाम और प्रचार कश्मीर घाटी का है, समझ में नहीं आता इस क्षेत्र का क्यों नहीं है। शायद ये जम्मू का क्षेत्र है, इसलिए अभी तक उपेक्षा का शिकार ही हुआ है।

भदरवाह से चम्बा के लिए भी एक सड़क निकलती है। काफी समय तक आतंकवाद के चलते इस सड़क को आम आवाजाही के लिए बन्द कर दिया गया था। अब दुबारा से इसको सभी के लिए खोल दिया गया है। हालांकि सर्दियों में बर्फ़बारी के कारण ये सड़क मार्ग बन्द हो जाता है। लेकिन यहाँ से स्थानीय निवासियों के लिए इसके खुलने से बजाय पठानकोट का चक्कर काटकर चम्बा जाने के यहाँ से चम्बा पहुंचना बहुत आसान हो गया है। इस मार्ग पर उच्चतम स्थान "पदरी" बीच में पड़ता है। इधर से पदरी की ओर जाती सड़क और वहां की खूबसूरती भी साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी।

सर्दियों में पदरी के जंगल बर्फ से लदे पड़े रहते हैं। ठीक बर्फ़बारी शुरू होते ही इस ओर से चम्बा निकलना अपने आप में निश्चित रूप से जन्नत की सैर करने जैसा होगा। हालाँकि भारी बर्फबारी के बाद ये मार्ग बन्द हो जाता है। लेकिन सर्दियों की शुरुआत में निश्चित रूप से जाया जा सकता है। भविष्य में भदरवाह आना हुआ तो पदरी की ओर से ही घूमता हुआ चम्बा जाऊँगा।

जैसे-जैसे ऊंचाई की ओर बढ़ते जा रहे थे, पूरी भदरवाह घाटी का अदभुत नजारा उतना ही शानदार दिखाई देता। छतरगला से कुछ पहले सड़क चौड़ीकरण का कार्य जोर-शोर से चलता मिला। काफी देर तक हमको रुकना भी पड़ा। ऊपर से मलवा सड़क पर आ जाता जिसको वहां मौजूद जे.सी.बी. मशीन हटा कर दूसरी ओर जाने लायक रास्ता बना देते। तीन जगहों पर इसी वजह से हमको रुकना पड़ा। हमें छतरगला पहुँचने की जल्दी भी थी, आज ही कैलाश कुण्ड पहुँचना था। रास्ता खुलते ही आगे बढ़ लेते। घाटी के शानदार नजारों का आनन्द लेते हुए लगभग एक बजे हम छतरगला पहुँच गए।

छतरगला एक धार जैसा है, डोगरी में "गला" का अर्थ पास, दर्रा या धार होता है। छतरगला इस सड़क मार्ग पर अधिकतम ऊंचाई पर स्थित स्थान है। जिसमें एक घाटी से दूसरी घाटी में प्रवेश किया जाता है। भदरवाह घाटी यहाँ पर समाप्त हो जाती है, और सरथल घाटी यहाँ से शुरू होती है। सर्दियों में भारी बर्फ़बारी के कारण ये रास्ता बन्द हो जाता है। साल के तीन महीने ये क्षेत्र आपस में एक दूसरे से कट जाते हैं।

छतरगला की समुद्र तल से ऊंचाई लगभग २५०० मीटर है। सिर्फ एक फौजी छावनी यहाँ पर स्थित है। एक गुर्जरों का निवास भी है, सर्दियों में वो भी नीचे की ओर रुख कर लेते हैं। हमारे साथ-साथ फौजी भाइयों का भी एक ट्रक राशन लेकर आया था। कुछ जिन्दा मुर्गे भी थे, आज पक्का फौजी भाई लोगों की पार्टी होगी। फौजी भाइयों से गाडी उनके कैम्प के नजदीक खड़ी करने की अनुमति मांगी जो उन्होंने सहर्ष दे दी। ज्यादा समय व्यतीत ना करते हुए तुरन्त ही कैलाश कुण्ड की ओर चढ़ाई चढ़नी आरम्भ कर दी।

कैलाश कुण्ड की समुद्र तल से ऊंचाई लगभग ४००० मीटर है, जबकि छतरगला २५०० मीटर पर स्थित है। अनुमानित दूरी आठ किलोमीटर की है। आठ किलोमीटर में १५०० मीटर चढ़ने का अर्थ है भयंकर दर्जे की चढ़ाई। जो कि छतरगला से दिख भी रही थी।

शुरू में तो नाक की सीध में ऊपर जाता रास्ता साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था। आसमान में काले बादल भी छाने लगे थे। ऊपर ४००० मीटर पर कब मौसम ख़राब हो जाए कहना मुश्किल ही होता है। अभी चार दिन पहले ही कैलाश यात्रा समाप्त हुई है, रास्ते पर आवाजाही के स्पष्ट निशान साफ़-साफ़ दिखाई पड़ते हैं। रास्ता भी अच्छा-खासा बना हुआ है। आराम से चढ़ते हुए छतरगला के ठीक ऊपर पहुँच गए।

जैसे-जैसे ऊपर चढ़ते जाते सम्पूर्ण घाटी का विहंगम नजारा और भी खूबसूरत दिखाई दे रहा था। कुछ और ऊपर चढ़ने के बाद छोठा सा जंगल पड़ता है, जो जल्दी ही एक छोठे से बुग्याली मैदान में जाकर समाप्त हो जाता है। यहीं पर एक गुर्जर भाई मिले, उन्होंने बताया कि आपको पहुँचते-पहुँचते अँधेरा हो जाएगा ये निश्चित है। दिन के दो बजे तक भूख भी लगने लगी। एक जगह पर पानी की उप्लब्धतता देखी तो भदरवाह से पैक कर लाए भोजन को खोल लिया गया।

रोटी, सब्जी, अचार, हरी मिर्च। सोचिये हिमालय की ३००० मीटर ऊंची चोटियों पर आप हरे भरे बुग्यालों में बैठे हैं। पास में ही कल-कल करता पानी बह रहा हो, और भयंकर भूख लगी हो, ऐसे में ये भोजन मिल जाए तो वाकई स्वर्ग में होने का एहसास होना लाज़िमी है। कोठारी जी एक मिठाई का डब्बा जयपुर से साथ लाए थे। मिठाई कौन सी थी नाम तो याद नहीं लेकिन बहुत ही स्वादिष्ट थी। पूरा डिब्बा चट कर गए।

कबलाश पर्वत इस क्षेत्र का सबसे ऊंचा पर्वत है। कुल मिलाकर सात झीलें कैलाश कुण्ड के आस-पास स्थित हैं। कैलाश कुण्ड इन सबमें सबसे बड़ी झील है। दिन के भोजन के पश्चात आगे बढ़ चले। चढ़ाई लगातार जारी रहती है। धीरे-धीरे पेड़-पौधे कम होते चले गए और उनकी जगह पठारी क्षेत्र शुरू हो गया। मौसम भी पल-पल रंग बदलने लगा। कभी बादल पूरी तरह से पूरे क्षेत्र को अपनी आगोश में लेते तो थोड़ी ही देर में गायब भी हो जाते। अक्सर हिमालय में ३५०० मीटर की ऊंचाई पर बादलों के साथ ये लुका-छिपि खेलनी ही पड़ती है। हम क्या खेलते हैं, बादल हमारे साथ खेलते हैं।

कैलाश कुण्ड ट्रैक को मैं "छोठा है लेकिन, खोटा है" तरह का ट्रैक मानता हूँ। ट्रैकिंग की तकनीकी बातों पर नजर डालकर उनसे इस ट्रैक का मिलान किया जाए तो बहुत सी खामियां नजर आएँगी। इन बातों को अगली पोस्ट में विस्तार से लिखूंगा। बादलों की वजह से सूर्यदेव का मालूम ही नहीं पड़ा कब अस्त हो गए। हमने छतरगला से जब चढ़ाई शुरू की थी तो दिन के लगभग एक बज रहे थे। मुझे उम्मीद थी कि कितनी भी भयंकर चढ़ाई होगी, आठ किलोमीटर की दुरी मैं पाँच घण्टे में तय कर ही लूँगा, और अँधेरा होने से पहले कैलाश कुण्ड पहुँच ही जाएंगे।

लेकिन जब आप ग्रुप के साथ चल रहे होते हैं तो आपकी चाल कोई मायने नहीं रखती। सभी साथियों के साथ मिलकर चलना पड़ता है। जैसे ही हमने बोल्डर क्षेत्र में प्रवेश किया हल्का सा अँधेरा छाने लगा था। शशि भाई पहली बार ट्रैक कर रहे थे, अपने बैग के साथ तीन-तीन स्लीपिंग बैग भी ढो रहे थे। फिर भी शानदार तरीके से चढ़े जा रहे थे। रमेश भाई जी की उम्र को देखें तो वो भी अच्छी-खासी चाल से चल रहे थे। अमित भाई को तो मैं पहाड़ी हिरन ही कहता हूँ। वो हमेशा की तरह छलांगे मार-मार के चढ़ते हैं।

कोठारी जी बहुत आराम-आराम से चलते हैं। अगर दिन का समय होता तो मैं कोठारी जी को आराम से चलकर आने को कहकर आगे निकल जाता। लेकिन मैं पहाड़ में ही पैदा हुआ हूँ, बचपन से बड़े बुजुर्गों से हमेशा ही सुनता आया हूँ "गैर वक़्त", जी हाँ जैसे ही अँधेरा छाने लगता है उस वक़्त को गैर वक़्त कहते हैं। यानी ये समय गैरों का है। अक्सर चोट लगने की, गिर कर फिसलने की घटनाएं इसी वक़्त पर होती हैं।

ऊपर ठीक धार पर खड़े होकर शशि भाई आवाज़ें देते जा रहे थे कि यहाँ पर एक झण्डी लगी है उसी रास्ते पर आगे बढ़ना। पहले तो मैं कोठारी जी से कुछ आगे चल रहा था लेकिन जैसे ही अँधेरा घना छाने लगा तो उनको अब आगे चलने को कहकर मैं उनके पीछे-पीछे चलने लगा। थकान भी बहुत ज्यादा हो रही थी। लेकिन इस समय आगे बढ़ते रहने के सिवाय कोई दूसरा चारा भी नहीं था।

मैंने टॉर्च जला ली और मोबाइल में गाने भी चला दिए। अँधेरे में ऐसे तो आवाज़ें निकाल-निकालकर चलना चाहिए लेकिन यहाँ चार हजार मीटर की ऊंचाई पर सांस तक लेने के लिए मेहनत करनी होती है तो कौन आवाज़ें निकाले। धीरे-धीरे कोठारी जी के साथ चोटी पर पहुँच गए और झण्डी वाले रास्ते से आगे बढ़ने लगे। काफी नीचे से शशि भाई टॉर्च की रौशनी से अपनी स्थिति की जानकारी दे रहे थे।

ऐसे तो दूरी लगभग आधे किलोमीटर की लग रही थी। उतराई खतरनाक तो थी ही रास्ता भी फिसलन भरा था। मैं अकेले होता तो दस मिनट में जा पहुँचता लेकिन कोठारी जी को अँधेरे में अकेला हरगिज नहीं छोड़ सकता था। उनको आराम से मेरे आगे चलने को कहकर करीब साढ़े आठ बजे हम भी कैम्प में पहुँच गए।


भदरवाह यूनिवर्सिटी
खूबसूरत भदरवाह
भदरवाह
छतरगला की ओर
भदरवाह घाटी
बायें से अमित तिवारी, रमेश शर्मा, देवेन्द्र कोठारी और शशि चड्डा
शानदार भदरवाह घाटी


रास्ता बनाते हुए



हमारी लाल परी
छतरगला
ट्रैक शुरू
चढ़े चलो



दिन का भोजन


जयपुरी मिठाई




बादलों के देश में




बोल्डर जोन

बोल्डर के ऊपर से रास्ता



20 comments:

  1. बहुत अच्छी पोस्ट पूरा मजा लेकर आए फोटो भी बहुत अच्छे हैं

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  2. बेसन के लड्डू थे पर घी के फैल जाने के कारण सभी ने गडमड होकर आयताकार रूप ले लिया। 😁
    शांत प्रकृति की गोद में स्वादिस्ट खाना खाने का अनुभव अविस्मरणीय रहा।
    सही लिखा, मेरे से ट्रेकिंग तेज क़दमों से नहीं होती है और फिर ऊपर से इतनी सुन्दर जगह को देखते रहने के लिए कदम बार बार ठहर जा रहे थे।
    अंतिम 1-1.5 किमी बॉल्डर्स के बीच चढाई के बनिस्पत उतराई कठिन लगी। अँधेरा हो जाने के साथ फिसलन भी थी... पर आपके साथ से मनोबल सातवें आसमान पे था।

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    1. आपके हौसले को तभी जान लिया था कोठारी सर जब अँधेरे में उतर रहे थे और एक बार मैंने आपको कहा कि अपना बैग मुझे दे दीजिये मैं ले जाऊंगा लेकिन आपने मना कर दिया।

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  3. बहुत अच्छा विवरण दिया है। रास्ते में सड़क निर्माण और सड़क बेहद खराब होने के कारण जो समय खराब हुआ उसके कारण खराबी हुई

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  4. सुंदर फोटो की भरमार वाह !

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  5. जबरदस्त विवरण व चित्र दोनो

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  6. बहुत ही सुन्दर वृतांत किया है, शानदार फोटोग्राफी। अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा।

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  7. फोटोग्राफी व् यात्रावर्णन बहुत सुन्दर है।

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  8. बीनू भाई बहुत सुंदर यात्रा वर्णन। वाकई यह उतना आसान नहीं लग रहा है जितना सोचा था।

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  9. छतरगला एक धार जैसा है, डोगरी में "गला" का अर्थ पास, दर्रा या धार होता है। छतरगला इस सड़क मार्ग पर अधिकतम ऊंचाई पर स्थित स्थान है। जिसमें एक घाटी से दूसरी घाटी में प्रवेश किया जाता है। भदरवाह घाटी यहाँ पर समाप्त हो जाती है, और सरथल घाटी यहाँ से शुरू होती है। सर्दियों में भारी बर्फ़बारी के कारण ये रास्ता बन्द हो जाता है। साल के तीन महीने ये क्षेत्र आपस में एक दूसरे से कट जाते हैं। सच में बहुत ही खूबसूरत घाटी है , पता नही क्यों इतनी प्रसिद्द नही हुई अभी तक ? गज़ब लग रहा सब कुछ ! बेहतरीन जानकारी दी है आपने आसपास की जगहों की

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  10. जी योगी भाई कश्मीर की तुलना में ऐसा प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र की उपेक्षा की गई है। धन्यवाद भाई।

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  11. Wow photos! Mujhe bhi karna hai ye trek...and Bhadarwah is gorgeous! Acha hai ki zyada log is jagah ke baare mein nahi jaante.

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    1. धन्यवाद। जी बहुत खूबसूरत जगह है
      भदरवाह और आस-पास का क्षेत्र और बिल्कुल अछूता है। जाना बनता है।

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