Saturday 24 September 2016

जम्मू-कश्मीर यात्रा:- उधमपुर से भदरवाह


उधमपुर से भदरवाह 

सुबह छह बजे आँख खुल गई। हमारे कूपे में कुछ नौजवानों का एक ग्रुप था, जो वैष्णो देवी की यात्रा पर जा रहे थे। कुछ देर उनसे बातचीत हुई। उनको जम्मू ही उतरना था यहाँ से सड़क मार्ग से आगे जाएंगे। सात बजे हमारी ट्रेन जम्मू पहुँच गई। आधी से ज्यादा ट्रेन यहीं खाली हो चुकी थी। लगता है अधिकतर लोग वैष्णो देवी की यात्रा के लिए ही इस ट्रेन से सफ़र कर रहे थे। कोठारी जी व शशि भाई भी हमारे ही कूपे में आ गए। जम्मू से आगे उधमपुर तक शिवालिक की पहाड़ियों से ट्रेन में गुजरते हुए शानदार नज़ारे देखने को मिलने वाले थे। कुल छोठी बड़ी बाईस सुरंगों से होकर ट्रेन गुजरने वाली थी। जम्मू से उधमपुर की दूरी लगभग पचपन किलोमीटर है। रमेश जी को सूचित कर दिया कि ट्रेन जम्मू से चल पड़ी है। मैंने खिड़की की सीट पर कब्ज़ा कर लिया और बाहर के शानदार नज़ारे देखने लगा।


जम्मू से तवी नदी के साथ-साथ ट्रेन आगे बढ़ती है। यहाँ की समुद्र तल से ऊँचाई साढे तीन सौ मीटर है, जबकि उधमपुर साढ़े सात सौ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। हालाँकि शिवालिक की पहाड़ियों की ऊँचाई इतनी अधिक नहीं होती और ये तो शुरुआती क्षेत्र है, फिर भी पहाड़ी रास्तों पर ट्रेन में सफ़र करने का अनुभव ही अदभुत होता है। ऐसे भी पूरे भारतवर्ष में पहाड़ों पर गिने चुने ही रेलवे ट्रैक हैं। कुछ देर तक सुरंगों को गिनने के बाद गिनती भूल गया। छोड़ो उधमपुर पहुँच कर रमेश भाई जी से पूछ लूँगा कि कुल कितनी सुरंगों से घुस-घुस के यहाँ तक पहुँचे। पहाडों के शानदार नज़ारे देखते हुए ठीक साढ़े आठ बजे निर्धारित समय पर हमारी ट्रेन उधमपुर पहुँच गई। चलती ट्रेन से ही रमेश भाई जी भी हमारी इन्तज़ारी करते हुए नजर आ गए।

उधमपुर शहर जम्मू-कश्मीर राज्य के गिने चुने बड़े शहरों में से एक है। आबादी के हिसाब से चौथा बड़ा शहर है। राजा ऊधम सिंह ने इस शहर की स्थापना की थी। डोगरी भाषा यहाँ मुख्य रूप से बोली जाती है। डोगरी भाषा और पंजाबी भाषा लगभग एक जैसी ही लगती है। बस डोगरी बोलने में कुछ स्थानीय शब्द और इसका मीठा लहजा इसको पंजाबी से अलग कर देता है।

स्टेशन से बाहर निकलते ही रमेश भाई जी से मुलाकात हुई। सबसे पहले तय हुआ कि नाश्ता यहीं से करके आगे बढ़ेंगे, जो कि रमेश जी घर से सभी के लिए पैक कर लाए थे। रेलवे स्टेशन के नजदीक ही एक प्राकृतिक जल का स्रोत है, जिसको डोगरी में चश्मा कहते हैं। चश्मे के साथ ही एक चाय की दुकान पर बैठकर नाश्ते का आनन्द लिया। यहीं चश्मे के ठन्डे पानी से अपनी पानी की बोतलें भी भर ली और भदरवाह के लिए प्रस्थान कर दिया। 

ऐसे तो उधमपुर भी अनछुआ सा ही शहर है, फौजी छावनी और यहाँ होने वाली ही घटनाओं के चलते अक्सर सुर्खियों में रहता है। लेकिन इस शहर की खूबसूरती किसी भी मायने में कम नहीं है। घुमक्कडी के लिए एक बार फिर यहाँ जाकर इस शहर को खंगालना पड़ेगा। इसके आस-पास पांडवकालीन मन्दिर भी हैं। प्रसिद्द शुद्ध महादेव मन्दिर भी इसके नजदीक ही है।

जैसे ही हमने उधमपुर-श्रीनगर हाइवे पर अपनी यात्रा प्रारम्भ की सडक के दोनों ओर फौजी सुरक्षाकर्मीयों को देखकर महसूस होने लगता है कि आप जम्मू-कश्मीर में चल रहे हैं। उधमपुर से आगे सड़क के चौड़ीकरण का कार्य जोर-शोर से हो रहा है। शानदार चार लेन की सड़क अगले एक दो वर्षों में यहाँ तैयार मिलेगी।

उधमपुर से कुछ आगे चलने के बाद कुद पड़ता है। रमेश जी ने यहाँ के पतीशा की बड़ी तारीफ की तो हमने भी एक किलो खाने के लिए ले लिया। जबरदस्त स्वाद था। आप भी इस रास्ते से गुजरें तो कुद से पतीशा लेना ना भूलें। कुद से कुछ पहले से चढ़ाई शुरू हो जाती है, जो लगातार पटनी टॉप (पत्नी टॉप) तक बनी रहती है। हाँ कुद से कुछ पहले चनैनी में साढ़े नौ किलोमीटर लम्बी "चनैनी-नाशरी" सुरंग का निर्माण कार्य जारी है। भविष्य में कश्मीर घाटी को पूरे साल सड़क मार्ग से जोड़े रखने के लिए ये सुरंग वरदान साबित होगी। इसका निर्माण कार्य अन्तिम चरण में चल रहा है, जल्दी ही यह सुरंग आम यात्रियों के लिए खुल जायेगी। यहीं चनैनी से शुद्ध महादेव तथा मानतलई के लिए रास्ता अलग हो जाता है। 

चनैनी से पटनी टॉप की दूरी बीस किलोमीटर के लगभग है। शानदार देवदार के जंगल यहाँ से शुरू हो जाते हैं। हालाँकि चनैनी की समुद्र तल से ऊँचाई इतनी ज्यादा नहीं है, फिर भी यहाँ देवदार के जंगल देखना सुखद था। जंगलों में जगह-जगह सुरक्षाकर्मी हम सबकी सुरक्षा में तैनात दिखे। एक बार तो यकीन नहीं आता कि इस खूबसूरत धरती से हमको आतंकवाद के समाचार भी सुनने को मिलते रहते हैं। देवदार के पेड़ सड़क के दोनों ओर शानदार नजारों के साथ समां बाँध देते हैं। पटनी टॉप से कुछ पहले ही दायें हाथ को एक छोठा सा रास्ता नाग देवता मन्दिर के लिए जाता है। रमेश जी ने गाडी उस ओर मोड़ ली। करीब एक किलोमीटर आगे नाग देवता मन्दिर पहुँचकर मन्दिर को देखने पहुँच गए। छह सौ वर्ष पुराना ये नाग मन्दिर त्रिभुजाकार बना हुआ है। आजकल मक्के पकने शुरू हो गए तो स्थानीय लोग यहाँ पर मक्का चढ़ाते हुए भी दिखे। मन्दिर ज्यादा बड़ा नहीं है, पाँच मिनट में सब कुछ देख डाला और फ़ोटो भी खींच डाली।

मन्दिर से सीधे आगे बढ़ चले यही रास्ता पटनी टॉप से आगे होता हुआ वापिस मुख्य मार्ग पर मिल जाता है। पटनी टॉप का आकर्षण पर्यटकों में काफी दिखता है, कुछ घुड़सवारी का आनन्द लेते नजर भी आए। मुझे ऐसी जगहें ज्यादा आकर्षित नहीं करती, कुछ खास बात यहाँ भी लगी नहीं।

पटनी टॉप से नीचे जैसे ही मुख्य हाई वे पर पहुँचे एक गेट मिला जिसपर ताला लटका मिला। साथ में ही चौकीदार का कमरा भी था। रमेश भाई जी ने गाडी से उतरकर जायजा लिया तो गेट खोलने का कोई तरीका नजर नहीं आया। कोठारी जी ने चौकीदार के कमरे का जायजा लिया तो उन्हें एक चाभी मिल गयी। उन्होंने ताला भी खोल डाला लेकिन गेट की चटकनी नहीं खोल पाए। इतने में एक युवक दौड़ता हुआ आया और कोठारी जी से चाभी लेकर वापिस गेट पर ताला लगाकर चला गया। रमेश भाई जी उसको बुलाते रह गए लेकिन उसने ना तो पलटकर देखा ना ही हमारी कोई बात सुनी। 

वापिस पाँच किलोमीटर का चक्कर काट के आने के सिवा दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा। मैं, कोठारी जी व शशि भाई वहीँ खड़े हो गए। रमेश जी गाडी वापिस जिधर से आए थे वहीँ से लेकर आएंगे। पंद्रह मिनट बात रमेश जी वापिस गाडी लेकर आ पहुँचे यहाँ से बटोत की दूरी लगभग बीस किलोमीटर है। बटोत से मुख्य हाइवे को छोड़कर हमें डोडा की ओर मुड़ जाना है। चेनाप नदी यहाँ से पुल डोडा तक साथ बनी रहेगी। 

बटोत से ही चेनाब नदी पर बना बगलिहार डैम और उसकी झील दिखनी शुरू हो जाती है। ४५० मेगावाट का ये डैम भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल विवाद का मुख्य कारण रहा है। बटोत से पुलडोडा की दूरी लगभग पचास किलोमीटर है। अभी पुलडोडा से कुछ पहले एक पुल का निर्माण कार्य चल रहा है जिससे डोडा जाने वालों को  पुलडोडा का चक्कर नहीं काटना पड़ेगा, इस पुल से सीधा मार्ग डोडा शहर के लिए निकालने की योजना है।

बटोत से कुछ आगे दिन के भोजन के लिए रुके, रमेश जी ने पहले ही यहाँ के राजमा चावल की काफी तारीफ़ की थी। वाकई में जब खाये तो तृप्ति हो गई। स्थानीय राजमा को धीमी आंच में पका कर उसमें एक बड़ी करछी घी डाल के परोस दिया गया, चटनी के साथ, आनन्द आ गया। इस क्षेत्र में हिन्दू-मुस्लिमवाद काफी देखने को मिला। हिन्दू लोग वैष्णो ढाबा तलाशते नजर आएंगे, और ढाबों के बाहर भी स्पष्ट रूप से लिखा होगा "वैष्णो ढाबा" यही स्थिति मुस्लिम ढाबों की है।

दिन के भोजनोपरांत आगे रुकते रुकाते चेनाब के साथ-साथ पुलडोडा पहुँचे। यहाँ से दाहिने हाथ की ओर भदरवाह के लिए सड़क जाती है और जम्मू-कश्मीर की असली खूबसूरती यहीं से शुरू होती है। जैसे ही इस घाटी में प्रवेश किया लगा ऐसे ही इसे जन्नत नहीं कहते। जगह-जगह रुकते हुए फ़ोटो खींचते जाते। भदरवाह यहाँ से मात्र तीस किलोमीटर की दूरी पर है।

ऐसे तो मैं कई घाटियों में घूमा हूँ लेकिन याद नहीं आ रहा कि इतनी खूबसूरती एक साथ किसी घाटी में मैंने कहीं देखी होगी। सड़क भी पुलडोडा के बाद अच्छी बनी हुई मिली, हालाँकि इस क्षेत्र में जगह-जगह हो रहे सड़क चौड़ीकरण से ये साफ़ प्रतीत होता है कि भविष्य में यहाँ शानदार सड़कों का जाल बिछाये जाने की सरकार की पूरी योजना है। हमारे पास समय भी काफी था इसलिए आराम से चलते हुए शाम के चार बजे वासुकी नाग देवता की भूमि भदरवाह पहुँच गए। 
क्रमशः.....



चनैनी - नाशरी सुरंग

कुद

चश्मा

नाग मन्दिर (पटनी टॉप)



प्रसाद में मक्के चढ़ते हुए

मन्दिर के नजदीक बाजार


बन्द गेट- वापिस जाओ


बटोत से दूरियां

बगलिहार डैम

राजमा-चावल



डोडा
डोडा

पुल डोडा

पुल डोडा से दूरियां








भदरवाह

भदरवाह

भदरवाह

भदरवाह

14 comments:

  1. बढ़िया लिखा भाई,

    ReplyDelete
  2. क्या जानकारी देते हो बीनू भाई बहुत अच्छा लगता है आपकी यात्रा को पढ़कर

    ReplyDelete
  3. बटौत से डोडा की तरफ मुड़ते ही भुदृश्य में मनभावन परिवर्तन आ जाता है। एक तरफ चैना़ब का शांत प्रवाह व दुसरी ओर हरियाली से लद्दे मुक पहाड़, अहसास करा ही देते है कि अब आप वाकई जन्नत में हो।
    राजमा-चावल बहुत ही स्वादिष्ट लगे। यहाँ राजमा को इतना ज्यादा पकाया जाता है, लगता है खाली छिलका ही है। जबकि अंदर का भाग ग्रेवी में मिक्स हो जाता है।

    ReplyDelete
  4. उम्दा लेखन ,मजा ही आ गया ,फोटोए भी बहुत अच्छी हैं।लगे रहो।

    ReplyDelete
  5. मतलब चौकीदार ने फिर से चक्कर लगवा दिया । खैर कोई कोई होता है ऐसा । पत्नी टॉप के मंदिर का प्रसाद यानि चढावा विचित्र लगा ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. पहाड़ों में ऐसी ही विचित्र चित्रों का चित्र बनता है योगी भाई।

      Delete
  6. Engaging read. Issi trek ke baare mein Ramesh ji FB pe details post ki thi shayad.

    ReplyDelete