चक्रतीर्थ से सतोपन्थ
रात भर नींद नहीं आई, बस इसी इन्तज़ार में रात कटी कि कब सुबह हो। बादल भी लगभग पूरी रात रुक-रुक कर बरसते ही रहे। सुबह उजाला होते ही टेण्ट से बाहर निकल आया। मालूम पड़ा जाट देवता और सुमित भी अच्छे से सो नहीं पाए। अपनी टोइलेट्री किट उठाई और आधा किलोमीटर दूर जहाँ पानी उपलब्ध था फ्रेश होने जाना पड़ा। चार हज़ार मीटर की ऊँचाई पर नित्यकर्म से निवृत होने के लिए सुबह-सुबह आधा किलोमीटर दूर जाना भी अपने आप में एक ट्रैक करने के समान ही होता है। कई साथी तो इस दूरी को देखकर गए ही नहीं। कुछ एक ऐसे थे कि पानी नहीं तो मुझसे टॉयलेट पेपर लेकर नजदीक ही गए, इसी से काम चला लेंगे। चाय पीकर आज की ट्रैकिंग की बात होने लगी। चक्रतीर्थ से सतोपन्थ की दूरी छह किलोमीटर है। चक्रतीर्थ जहाँ समुद्र तल से 4100 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है वहीँ सतोपन्थ 4350 मीटर की ऊँचाई पर।
पोर्टरों ने सुबह नाश्ते के लिए पूछा तो मालूम पड़ा कल रात किसी ने भी अच्छे से भोजन नहीं किया, इसलिए अधिकतर भोजन बचा पड़ा है। अक्सर अधिक ऊँचाई पर यह होता है, खाने का मन नहीं करता। इसी बचे हुए दाल-चावल को खिचड़ी का रूप दे दिया गया, इससे खाने की बर्बादी भी नहीं होगी। मेरा इतनी सुबह कुछ भी खाने का मन नहीं था, सूप बना तो एक गिलास सूप पी लिया। जाट देवता से पूछा तो उन्होंने भी नाश्ते की अनिच्छा जताई। हम दोनों ने बद्रीनाथ से लाए एक-एक बन्द (बन) को जेब में रखा कि अभी आगे बढ़ते हैं, जहाँ भूख लगेगी इसको पानी के साथ खा लेंगे। चक्रतीर्थ के ठीक ऊपर चोटी में एक झंडी लगी दिखाई दे रही थी। वो झंडी कल से ही सबकी आँखों में खटक रही थी। कारण था कि वहीँ चढ़ना था, वो भी आधा किलोमीटर की सीधी खड़ी चढ़ाई को चढ़कर। मैंने भी तय कर लिया कि इस बन को झंडी पर पहुँचकर ही निपटाऊंगा। इस जगह को वैसे चक्रतीर्थ धार कहते हैं।
भूखे पेट ही आज की ट्रैकिंग शुरू कर दी। पानी की बोतल में गर्म पानी भरकर बैग के अन्दर रख ली। सभी साथियों से कह दिया कि ऊपर धार पर इन्तज़ारी करूँगा। जाट देवता और मैं सबसे पहले झंडी फतह करने निकल पड़े। शुरू के दो सौ मीटर हल्की तिरछी चढ़ाई के बाद एक बार झंडी की ओर देखा, फिर चुपचाप सर झुकाकर चढ़ाई शुरू कर दी। चार से पाँच कदम चलते, साँस फूलने लगती, खड़े हो जाती। पूरे चालीस मिनट तक यही क्रम अपनाने के बाद आखिर झंडी फतह हो गई। झंडी पर पहुँचकर जब दूसरी ओर नजर गई तो समझते देर नहीं लगी कि क्यों पाण्डव इस ट्रैक को पूरा नहीं कर पाए। चक्रतीर्थ धार को कुछ इस तरह बयाँ किया जा सकता है कि तलवार की धार रुपी जगह पर झंडी टाँग दी गई। अब हम दोनों की बारी थी नीचे से चल चुके बाकी साथियों की हालात का जायजा लेने का। इसलिए झंडी पर बैठकर आराम से नीचे के नज़ारे देखने लगे।
हमारे पीछे-पीछे योगी भाई और कमल भाई भी चल पड़े थे। दोनों किसी भी ट्रैक पर जीवन में पहली बार आए थे। दोनों नौजवान ट्रेकरों को असली वाली चढ़ाई चढ़ते देखने में बड़ा ही आनन्द आ रहा था। कमल भाई सतोपन्थ ट्रैक के कुछ दिन बाद जब मुझे मिले तो उन्होंने हँसते-हँसते एक बात मुझे बताई कि यार मैं तो ये सोचकर तुम्हारे साथ ट्रैक पर चल पड़ा था कि होगी कोई ऐसी चढ़ाई जैसी नैनीताल में नैना देवी जाते हैं। मुझे क्या मालूम था कि तुम हिमालय पे ही चढ़वा दोगे। और उनको सच में मालूम भी नहीं था कि ये सतोपन्थ कहाँ है, वो गढ़वाल ही पहली बार आए थे। धीरे-धीरे नीचे से बाकी साथी भी अपना ट्रैक शुरू कर चुके थे। झंडी के दूसरी ओर भुरभुरी मिटटी युक्त पचास मीटर की सीधी उतराई थी। उतराई के लक्षण देख कर मुझे लग रहा था कि इस पर कोई ना कोई तो रपटेगा। मैं किसी को रपटते हुए देखने के मोह में इस उतराई को पार करके दूसरी ओर बैठ गया।
कुछ देर पश्चात जाट देवता और सुमित भी मेरे पास आकर बैठ गए। योगी भाई और कमल भाई को मैंने मजाक में कहा कि अभी तो चढ़ाई देखी, अब उतराई झेलो। इतने में हमारा पोर्टर गज्जू भाई इन दोनों को पीछे छोड़कर तेजी से नीचे उतरने लगा और धड़ाम से रपट कर नीचे तक बिना मेहनत किए पहुँच गया। उसके नीचे उतरने के तरीके को देखकर इन दोनों ने अपने पैरों से उतरने में ही भलाई समझी और आराम से नीचे उतर आए। गज्जू भाई यह कहकर आगे निकल गया कि वो जल्दी पहुँचकर टेण्ट लगा देगा, पीछे से काफी बड़ा ग्रुप भी सतोपन्थ पहुँच रहा है, फिर हमको टेण्ट लगाने की जगह नहीं मिलेगी।
चक्रतीर्थ धार के बाद रास्ता बहुत ही खतरनाक रूप धारण कर लेता है। बड़े-बड़े बोल्डर के नीचे दबी ग्लेशियर की बर्फ कई जगहों पर साफ़ दिखाई पड़ती है। कई स्थानों पर हमारे ठीक नीचे से बहते पानी की आवाज को भी साफ़-साफ़ सुना जा सकता है। रास्ता कुछ नहीं मिलता बस एक पत्थर से दूसरे पत्थर पर उछलते कूदते ही आगे बढ़ना होता है। दो सौ मीटर ही आगे बढे थे कि सामने का नजारा देखकर रोंगटे खड़े हो गए। हमारे ठीक नीचे से ग्लेशियर दरक रहा था। और रह रहकर बड़े पत्थर नीचे खाई में गिर रहे थे। यहाँ से तुरन्त पीछे हट लिए और कुछ दूर से खाई में उतरकर इस हिमस्खलित क्षेत्र को एक-एक कर सावधानी से पार करने लगे। एक नजर ऊपर रखनी पड़ती कि कोई पत्थर कब गिर जाए, और एक नजर सामने वाले पत्थर पर। इस पूरे ट्रैक पर धानु ग्लेशियर के बाद यही क्षेत्र मुझे सबसे खतरनाक लगा। इस क्षेत्र को पार करके सुरक्षित जगह पर बैठकर बाकी साथियों की प्रतीक्षा करने लगे।
कुछ साथी पीछे छूठ गए थे मुझे पूरा यकीन था कि ये भी गल्ती से वहीँ पहुंचेंगे ठीक जहाँ से ग्लेशियर हिमस्खलित हो रहा था। और हुआ भी ऐसा ही। जैसे ही ये उस क्षेत्र में पहुँचे इधर से हमने सीटियां बजाकर उनको इशारे से सही रास्ता बताया, और संभलकर इस क्षेत्र को पार करने को कह दिया। धीरे-धीरे सभी साथी सुरक्षित इस ओर पहुँच गए। यहाँ से आगे बढ़ने पर मौसम खुल गया और सभी चोटियों के शानदार नज़ारे देखने को मिलने लगे। यहाँ से नीलकंठ, बानाकुल, पार्वती, चौखम्भा, सतोपन्थ चोटियों के शानदार नज़ारे देखने को मिलते हैं।
कुछ ही आगे पहुँचे थे कि ऊपर से जबरदस्त हिमस्खलन होता हुआ नीचे आया। हम सभी रुककर जीवन में पहली बार हिमस्खलन (Avalanche) को प्रत्यक्ष रूप से देख रहे थे। हालाँकि ये उतने बड़े रूप में नहीं था जैसा अक्सर हम टेलीविजन पर देखते हैं। इस क्षेत्र में कई ऐसी जगहों से गुजरना पड़ा जहाँ पर हमारे कदमों के नीचे पानी बहने की आवाज आ रही थी। मैंने ऐसे ही एक छेद में छोठा सा पत्थर डाला तो लगभग तीस सेकेंड तक उसकी नीचे गिरने की आवाज आती सुनाई दी। इससे अनुमान लग रहा था कि अगर गल्ती से ग्लेशियर दरक जाएगा तो क्या होगा। कई जगहों पर तो ग्लेशियर की बर्फ साफ़-साफ़ ऊपर दिखाई पड़ रही थी। मेरा मकसद ये सब बताने का किसी भी पाठक को डराना नहीं है। सिर्फ यही कहना है कि ग्लेशियर क्षेत्र की ऊपरी बनावट को देखकर झांसे में नहीं आना चाहिए। ना मालूम किस पत्थर के नीचे क्या हो। इसलिए ऐसे क्षेत्र में अति सावधानी नितान्त आवश्यक है।
कुछ आगे बढ़ने पर एक छोठी सी धार पर एक झंडी लहराती दिखाई दी। जो भी वहां पर पहुँचता ख़ुशी के मारे चिल्लाने लगता। मुझे लगा यहाँ से कोई शानदार नजारा सामने दिखाई पड़ रहा होगा। इस धार पर पहुँचने के लिए पचास मीटर की खड़ी चढाई को चढ़ना था। एक जोर लगाकर जब मैं भी ऊपर पहुंचा तो सामने का नजारा देखकर आँखों को उससे हटा नहीं पाया। जिस सतोपन्थ को बचपन से तस्वीरों में देखा था आज साक्षात् मेरी आँखों के सामने था।
क्रमश: ......
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चक्रतीर्थ |
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चक्रतीर्थ |
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झंडी उर्फ़ चक्रतीर्थ धार |
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तलवार की धार |
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बिना रपटे उतरो तो जानूँ |
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मजा आ गया |
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सतोपन्थ नेशनल हाइवे |
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बढ़े चलो |
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हिमस्खलित क्षेत्र |
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हिमस्खलित क्षेत्र |
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पाऊँ के नीचे बर्फ |
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यारों का साथ |
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बर्फ का झरना (Avalanche) |
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नील कंठ |
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सुमित नौडियाल एक जबरदस्त ट्रैकर |
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है ना मस्त हाइवे |
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दूसरी झंडी फतह |
इस यात्रा के सभी वृतान्तो के लिंक इस प्रकार हैं :-
फाइनली सतोपंथ देख ही लिया सबने,पढ़कर अंदाजा आ रहा है कि कितनी ज्यादा सावधानी की जरुरत रही होगी।
ReplyDeleteबिल्कुल हर्षा।
Deleteबहुत ख़ूब।
ReplyDeleteधन्यवाद सोहन
Deleteतुम लोग जाते हो खतरनाक ग्लेशियर पार करके और वापसी भी उसी तरह ही होती है तो वापसी में भी डर लगता होगा । फोटू में मुझे बर्फ की जगह मिटटी और पत्थर दिखाई दे रहे है क्या बर्फ के ऊपर मिटटी और पत्थर पड़े हुए है। वैसे यात्रा शानदार है हर इंसान जाना चाहेगा।
ReplyDeleteबिल्कुल सही समझे हैं बुआ, पत्थरों के नीचे जमी हुई बर्फ होती है।
Deleteबेहतरीन पोस्ट। पढ कर व फोटो देखकर अच्छा लगा। आपने ग्लेशियर के बारे में बताया की हमे सावधानी रखनी चाहिए। यह भी बेस्ट पार्ट था पोस्ट का।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई।
Deleteभोत बदिया
ReplyDeleteधन्यवाद ललित सर।
DeleteVideo भी डालो crevace की। अमित तिवारी बाली
ReplyDeleteजी रमेश भाई जी
Deleteइस रास्ते वो जो गोलाकार पहाड़ आता है , जिसको हम नीचे चलकर पर कर पाए थे , वो और बड़ा वाला क्रेवास जहां से पानी बहने की आवाज़ आ रही थी वो , दो बहुत ही खतरनाक जगह थीं ! उस वक्त जब हम उस पहाड़ को पर कर रहे थे तब विकास ऊपर ही था और उसने गलत रास्ता पकड़ लिया था ! मजेदार यात्रा रही और हाँ , फिसलने की शर्त आप हार गए थे ! आप और जाट देवता को निराशा हाथ लगी ! बढ़िया पिक्चर बीनू भाई !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई।
Deleteबढ़िया लिखा है बीनू भाई ..जानकारी से भरपूर . लेकिन काफ़ी फोटो साफ़ नहीं है .
ReplyDeleteकौन सी फ़ोटो साफ़ नहीं है, नरेश जी ??
Deleteवाह मज़ा आ गया
ReplyDeleteधन्यवाद जावेद भाई।
DeleteThe terrain indeed looks very difficult to traverse.
ReplyDeleteBut the gorgeous views were worth all the hard work. Beautiful photos.
जी चक्रतीर्थ से आगे पूरा बोल्डर जोन है।
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