Friday 28 April 2017

उत्तराखण्ड बाइक यात्रा (भाग-6) - कालागढ़ डैम व कोटद्वार की ओर



पांचवा दिन (दिनांक: 13-12-2016)

सुबह चाय सीधे बिस्तर पर ही गयी कहाँ तो कल हम सर छुपाने के लिए जगह ढूंढ रहे थे और अब यहाँ पूरी आवाभगत नसीब हो रही है जल्दी से उठ कर आगे की यात्रा की तैयारी कर ली रावत जी ने कल रात को ही बता दिया था कि आजकल डैम पर किसी भी बाहरी व्यक्ति के जाने पर प्रतिबन्ध लगा हुआ है भारतीय सेना के पाकिस्तान में घुस कर सर्जिकल स्ट्राइक करने के बाद से सभी संवेदनशील जगहों की सुरक्षा के चलते ऐसा किया गया है


फिर हमारे पास तो बाइक थी, वैसे भी बाइक ले जाकर कोई भी डैम तक घूमने नहीं जा सकता क्यूंकि यह हाथियों का क्षेत्र है, इसलिए चार पहिया गाडी से ही जा सकते हैं, सरकारी नियम भी यही है अब जो होगा देखा जाएगा तैयार होकर हमने रावत जी का धन्यवाद किया और उनसे विदा लेकर बाजार की ओर चल पड़े चाय-नाश्ता करके टाइम पास करना था क्यूंकि डैम देखने के लिए परमिशन चाहिए थी जो सिंचाई विभाग के दफ्तर से मिलनी थी और वो दस बजे खुलेगा तब तक कालागढ़ की सड़कों का चक्कर काटते हुए इसी को देख लिया जाए

कालागढ़ एक समय में अपने यहाँ स्थित डैम के लिए प्रसिद्द था रामगंगा नदी पर बना यह डैम एशिया का सबसे बड़ा कच्चा मिटटी का डैम है चूँकि अब उत्तराखण्ड में जगह-जगह डैम बन चुके हैं, टेहरी का विश्व प्रसिद्द डैम भी बनकर तैयार हो चुका है तो कालागढ़ डैम का महत्त्व समाप्ति के कागार पर है इसका पानी सिर्फ सिंचाई के लिए काम आता है डैम जब नया बना था तो यहाँ पूरा एक शहर ही बसा दिया गया था। लेकिन अब धीरे-धीरे यह शहर खंडहर बनता जा रहा है। अधिकतर बिल्डिंग खाली पड़ी हैं। सडको पर खूब बड़े-बड़े गड्ढे मुहं फाड़ कर कह रहे हैं कि आओ और कूदो हमारे अन्दर।

कुल मिलाकर सरकारी उदासीनता कहें या कुछ और समझ नहीं आ रहा, अगर डैम के लिए बनी बिल्डिंग उसके काम की नहीं रही तो इनको किसी दुसरे विभाग को स्थानांतरित कर देने में क्या हर्ज है। अच्छा खासा बसा बसाया शहर है, सिर्फ रख रखाव की जरूरत है। लेकिन यही भारतीय सरकारी तंत्र है, इतना आसान होता तो बात ही क्या थी।

खैर, कालागढ़ की सड़कों पर घुमते हुए पूरे शहर को मालूम पड़ चुका था कि यहाँ दो अजनबी आए हुए हैं जिनको डैम देखना है। दस बज चुके तो हम भी सिंचाई विभाग के दफ्तर जा पहुंचे। उन्होंने तुरन्त हमें पहचान लिया कि आप तो कल शाम से यहाँ घूम रहे हो। रात को कहाँ रुके ? सारी बातें बताई फिर उन्होंने लिखित में डैम तक जाने की परमिशन देने से इन्कार कर दिया। अब क्या करते दोनों अपना सा मुहं लेकर वापिस आ गए।

कालागढ़ में आज डैम देखकर हमने अपनी इस यात्रा को विराम देकर घर की ओर वापसी करनी थी। मुझे दिल्ली वापिस जाना था और डोभाल को श्रीनगर। कालागढ़ से कोटद्वार जाने का रास्ता पूछा तो मालूम पड़ा कि एक रास्ता जिम कार्बेट नेशनल पार्क के बीचों बीच से होकर जाता है जो शोर्ट कट पड़ेगा। और दूसरा यहाँ से अफजलगढ़-बिजनोर होकर कोटद्वार निकलता है। जिम कार्बेट वाला रास्ता कुछ दूरी तक उसी रास्ते से होकर जाएगा जिधर से डैम के लिए जाना होता है।

बस फिर सोचना क्या था, निकल पड़े डैम की ओर। कुछ ही आगे बढे थे कि डैम की ओर जाने का पहला गेट और वहां बैठा गेट कीपर नजर आया। बाइक रोककर उनसे बातचीत शुरू कर दी। उन्होंने गेट पर चिपके एक नोटिस की ओर इशारा कर दिया। नोटिस को पढना शुरू किया तो वो चीख-चीख कर कह रहा था कि किसी को भी डैम देखने मत जाने देना। ठीक है जी नहीं जाएंगे लेकिन अब ये बताओ कि डैम देखें कैसें ? कोई तो तरीका होगा, इतनी दूर से आए ही सिर्फ इसीलिये हैं। 

उनके साथ बैठ कर एक बीडी फूंकी तब उन्होंने बताया कि अगले गेट पर चले जाओ वहां कुछ कर्मचारी बैठे मिलेंगे शायद वो कुछ कर सकें। तुरन्त बाइक स्टार्ट कर आगे बढ़ चले। अगला गेट कोई आधा किलोमीटर दूर सड़क पर ही दिख गया। दो तीन लोग धूप सेंकते नजर आये। पहुँचते ही रामा-रूमी की और अपनी परेशानी सुना डाली। यहाँ पर भी एक महाशय कहने लगे कि हाँ तुम तो कल से ही यहाँ आए हुए हो। हाँ जी आये तो हैं लेकिन बिना डैम देखे जाने का मन नहीं है आप ही कुछ करो। खूब गढ़वाली बोलनी पड़ी तब जाकर एक भाई जी को हम पर तरस आ गया, वो यहाँ वन विभाग में ही कार्यरत थे, उन्होंने हमारे कैमरे और सामान वगेरह यहीं चेक पोस्ट पर रखकर हमारे साथ चलने की हामी भर दी।


बस फिर क्या था, तुरन्त बाइक पर बंधा सामान खोल कर वहीँ रख दिया और हम तीनों बाइक से डैम देखने चल पड़े। चलते-चलते उन भाई साहब ने बताया कि अगर कोई पूछे तो डोभाल कहेगा कि वो वन विभाग में ही कार्य करता है और बन्दरों का फारेस्ट ओफिसर है, और मैं बन्दरों का फारेस्ट गार्ड हूँ। ठीक है भाई जी बन जाता हूँ बंदरों का फारेस्ट गार्ड भी, बस डैम दिखा दो तो कालागढ़ आना सफल हो जाएगा।  

यहाँ मुख्य गेट से डैम की दूरी लगभग चार किलोमीटर है। सौ मीटर आगे जाते ही हाथियों के उत्पात के निशान सड़क पर साफ़-साफ़ दिखने लगे। पूरी सड़क हाथियों के ताजा मल व मूत्र से अटी पड़ी मिलने लगी। हाथियों के क्षेत्र में इस तरह जाने का यह मेरा पहला अनुभव था। ऐसे भी जब डैम सभी के लिए खुला था तो यहाँ सिर्फ चार पहिया वाहन से आने की ही अनुमति है। दो पहिया वाहन या पैदल आप डैम देखने नहीं जा सकते।

चूँकि मेरा कैमरा व सामान नीचे गेट पर ही रखवा दिए गए थे तो संकोचवश मैंने भाई जी से पूछ ही लिया कि क्या मैं मोबाइल से दो-चार फोटो खींच सकता हूँ। उन्होंने भी कह दिया कि फिलहाल यहाँ आने पर प्रतिबन्ध कुछ समय पहले ही लगा है, पूर्व में तो यह पिकनिक स्पॉट हुआ करता था। इसलिए कोई दिक्कत नहीं है आराम से खींचो फोटो। बस तरीके से लेना ऐसा न हो कि कोई टोक दे। उनके कहने का आशय मेरी समझ में आ चुका था। मैं ऐसे भी सेल्फी रोग से पीड़ित नहीं हूँ.

डैम पर पहुंचकर पहले तो लगा ही नहीं कि हम मिटटी के डैम पर खड़े हैं। बाहरी संरचना अन्य डैमों के जैसी ही है। मैं उत्तराखण्ड के लगभग सभी डैम देख चुका हूँ। लेकिन यह हर मायने में अलग है। डैम की झील तक जाने के लिए सीढियों से होकर जाया जा सकता है। वहीँ एक वाच टावर भी था तो हम भी उस पर चढ़ गए। खूब सारी फोटो खींच डाली। पहले इस डैम को एक पर्यटक स्थल के रूप में भी विकसित किया गया था लेकिन अब सब कुछ उजड़ा-उजड़ा सा प्रतीत हो रहा था।

यह डैम दो सरकारी विभागों और दो राज्यों के अंतर्गत आता है एक सिंचाई विभाग और दूसरा वन विभाग। सिंचाई विभाग उत्तर प्रदेश के अधीन है तो वन विभाग उत्तराखण्ड के। दो राजोयों और ऊपर से दो अलग-अलग विभागों की खींचा तानी ने यहाँ का कबाड़ा कर दिया है। सब कुछ अस्त-व्यस्त है साफ़-साफ़ दिखाई देता है। यही हाल पूरे कालागढ़ का भी है।

आधा घंटा डैम पर बिताने के बाद वापसी की तैयारी कर दी, पंद्रह मिनट में वापिस मुख्य गेट पर आ गए। बाइक पर फिर से सारा सामान बांधकर दस रुपये की जिम कार्बेट के अन्दर घुसने की पर्ची कटवा ली। यहाँ से एक मार्ग जिम कार्बेट के अन्दर होकर कोटद्वार को जाता है। दूरी लगभग 50 किलोमीटर की है जिसमे शुरू के 30 किलोमीटर घने जंगल और कच्ची सड़क से होकर गुजरना पड़ता है।

कल जंगल में एक हाथी मर गया है तो आज जिले के एस.डी.एम्. व डाक्टरों की एक टीम हाथी का पोस्टमार्टम करने जा रही है, जिससे उसकी मृत्यु का कारण मालूम पड़ सके व उसके उपरान्त उसे वहीँ दफना दिया जाएगा। इस टीम के कुछ देर बाद हम भी अपनी एंट्री करवाकर जंगल में प्रवेश कर चले। यहाँ पर हमें बता दिया गया था कि बीच जंगल में आप कहीं रुकेंगे नहीं और जहाँ पर भी आपसे पर्ची दिखाने को कहा जाएगा आपको दिखानी होगी।

ऐसे तो आपने किसी भी नेशनल पार्क में जंगल सफारी कभी न कभी की होगी, लेकिन नेशनल पार्क के अन्दर बाइक से जाने का अनुभव निश्चित रूप से रोमांचक होता है। रेतीली सड़क पर हम आराम-आराम से आगे बढ़ने लगे। सड़क बहुत ही ख़राब स्थिति में थी। बरसात में तो यह आम पब्लिक के लिए बन्द ही कर दी जाती है। एक जगह हमारा पीछे बंधा सामान ढीला होकर गिरने के कागार पर आया तो बाइक को रोक कर उसको अच्छी तरह फिर से बांधकर आगे बढ़ चले।

आगे एक गेट पर वही डाक्टरों की टीम और एस.डी.एम्. साहेब भी मिले। हमको हाथ देकर रुकने का इशारा किया व पूछताछ भी हुई। हमारी गाडी नंबर व पर्ची चेक करने के बाद ही आगे जाने दिया गया। मैं पूरे रास्ते कैमरा तैयार लिए बैठा रहा कि कब कोई जानवर दिखे व मैं फोटो खींचूँ। डोभाल मेरी हँसी भी उड़ाता रहा कि हाथी आ जाएगा तो ? लेकिन शायद किस्मत अच्छी नहीं थी हमें तो आम पक्षियों के सिवा पूरे रास्ते कुछ नहीं दिखा। अन्तिम गेट पर जब हमको रोका गया तो हमसे सीधा पूछ लिया गया कि आप जंगल में रुके क्यूँ थे ? भाई मुझे तो याद नहीं कि हम कहीं रुके भी थे ? जी नहीं आप रुके थे, आपकी तलाशी होगी। ठीक है भाई ले लो हमारी तलाशी। थोडा बहुत चेक करने के बाद वन विभाग के कर्मचारियों ने बताया कि आपसे पिछली नंबर की पर्ची वाली गाडी आगे जा चुकी आप कहीं रुके होंगे, तभी वो गाडी आगे निकल गयी।

अब ध्यान आया कि हम बाइक का सामान बाँधने बीच में रुके थे तभी एक गाडी आगे निकल गयी थी। ओह्ह अब समझ आया, और वन विभाग के कर्मचारियों की सतर्कता की भी मन ही मन प्रशंशा की। इन्ही कर्मचारियों से जानकारी ली तो मालूम पड़ा सुबह सात बजे से शाम के साढे चार बजे तक ही इस रास्ते पर आम लोगों को जाने दिया जाता है, अगर सुबह सबसे पहले इस रास्ते से जाया जाए तो आसानी से जानवरों से भेंट हो सकती है, दिन चढ़ने के साथ ही साथ वाहनों के शोर की वजह से जानवर अन्दर जंगल में चले जाते हैं। हमसे दो मिनट पूर्व ही जो बाइक निकली थी उनके सामने तेंदुआ आ गया था तो वो बेचारे डर के काँप रहे थे।

भविष्य में इस सड़क पर एक बार और यात्रा करने की इच्छा है। दिन के करीब दो बजे कोटद्वार पहुंचकर भोजन किया, डोभाल को घर से लगातार फोन आये जा रहे थे, घर पर किसी का स्वास्थ्य ठीक नहीं था तो वह तुरन्त पौड़ी के लिए निकल गया और मैं यहाँ से दिल्ली की बस लेकर वापिस आ गया। रात के दस बजे घर भी पहुँच गया। इस प्रकार हरिद्वार से शुरू कर कोटद्वार में इस बाइक यात्रा की समाप्ति हुई।   


बिना छत का गेस्ट हाउस


मधुमखियों का छत्ता
वन विभाग के अंतर्गत बिल्डिंग 
जिम कार्बेट चौकी 
जिम कार्बेट व डैम के लिए प्रवेश 
गेट पर चिपकाई गयी सूचना 
डैम
कालागढ़ डैम 
सूचना 
कालागढ़ डैम 
मिटटी का बाँध 
डोभाल
वाच टावर पर 
डैम के आस पास
मिट्टी का बाँध 
जिम कार्बेट के अन्दर से कोटद्वार की ओर 
कोटद्वार की ओर 
कोटद्वार की ओर 
सूर्य प्रकाश डोभाल 






30 किलोमीटर के बाद पक्की सड़क 

12 comments:

  1. कालागढ़ डेम की यात्रा शानदार रही यात्रा विवरण बहुत ही सरल शब्दों में

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    1. धन्यवाद लोकेन्द्र भाई.

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  2. जय हो बंदरों के चौकीदार की😂😂😂

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  3. बंदरों का फारेस्ट गार्ड ! अच्छी पोस्ट पर विराजमान किया :-) ! दो बात हैं - एक ये कि जब किसी को जाने ही नहीं देते तो वो गाडी कैसे चली गई ? दूसरी बात - फिर वहां डैम में बोट क्यों हैं ?

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    1. पहले आप अनुमति लेकर डैम को देखने जा सकते थे, सुरक्षा कारणों से अब आम पब्लिक का जाना बंद कर दिया गया है. फिर किसी भी बाँध तक हमेशा सड़क होती है, यहाँ तक कि बाँध के नीचे सुरंगों तक भी सड़क होती है. जो बाँध के कर्मचारी व उनके अपने वाहनों के लिए होती है. दूसरा वहा बोट इसलिए हैं कि समय-समय पर कर्मचारी बाँध की झील का मुआयना करते रहते हैं.

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  4. Maaf karna iss blog me aapne sirf suchna bhar di hai....thoda sahityik put yani bhasa ka ras or hota to jyada mja aata.....jaise kartik swami wale blogs me buras k phool....phir bhe kaphi achchha h

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  5. Bhai kal ko aane wali pedhiyan bhe padhegi

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  6. बंदरों के फॉरेस्ट गार्ड .....हा हा हा ....पहली बार ही सुना यह पदनाम

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  7. वैसे वीनू भाई आप अपने आप को घास फूस का डॉक्टर भी बता सकते थे।

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