Saturday 17 December 2016

उत्तराखण्ड यात्रा:- दुगड्डा से ताड़केश्वर महादेव और थलीसैण

दुगड्डा से ताड़केश्वर महादेव और आगे

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सुबह उजाला होने से पहले ही आँख खुल गई। कमरे की लाइट जलाई तो शशि भाई भी उठ गए। कमल भाई की सुबह तीन बजे तक पार्टी चल रही थी फिर भी उठ गए। रात को होटल वाले से कहा था कि सुबह छह बजे कमरे में चाय भिजवा दे। लेकिन चाय के कोई आसार नजर ही नहीं आ रहे थे। चाय का मोह छोड़ सभी फ्रेश होकर तैयार हो गए और फिर ढून्ढ कर होटल मालिक को जगाया गया। रुकने-खाने का हिसाब चुकता कर आगे बढ़ चले।
दुगड्डा से कुछ आगे निकलते ही एक रास्ता मुख्य हाइवे से कटकर दाहिनी ओर निकलता है, जो लैंसडौन और आगे ताड़केश्वर महादेव के लिए निकल जाता है। जबकि सीधा रास्ता सतपुली-पौड़ी होकर आगे श्रीनगर में बद्रीनाथ राजमार्ग पर मिल जाता है। यहाँ से दाहिनी ओर गाडी मोड़ ली गई। कुछ आगे बढे ही थे कि फतेहपुर में एक चाय की दुकान खुली मिल गई। अब तो चाय पीकर ही आगे बढ़ेंगे।

फतेहपुर छोटी सी जगह है। दो दुकानें और कुछ एक घर ही हैं। हाँ इस क्षेत्र में लैंसडौन का नाम प्रसिद्द होने के कारण होटल और लॉज की बाढ सी आने लगी है। दिल्ली वालों की ये प्रसिद्द वीकेंड डेस्टिनेशन बनती जा रही है। किसी भी सप्ताहांत में लैंसडौन में होटल मिलना दूभर हो जाता है। इसलिए उसके आस पास नए-नए रेसोर्ट और लॉज आये दिन खुलते जा रहे हैं। 

चाय पीकर आगे बढ़ चले, फतेहपुर से चढ़ाई और ठेट पहाडी रास्ता शुरू हो जाता है। सूर्यदेव भी प्रकट होना शुरू हो ही लिए थे। यहाँ से लैंसडौन की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है। चूँकि हमें ताड़केश्वर महादेव जाना था, इसलिए लैंसडौन से चार किलोमीटर पहले दाहिने हाथ की ओर ताड़केश्वर के लिए मुड़ गए। सुबह-सुबह ऊपर धार पर बसे लैंसडौन पर सूर्य की पहली किरणें पड़ रही थी, जो सुनहरी छठा बिखेरे जा रही थी। ताड़केश्वर से लगभग दस किलोमीटर पहले एक जगह नाश्ते के लिए रुक गए। यहाँ पर भी शानदार लॉज बना है। आलू के पराँठे और चाय का आर्डर दे दिया गया। कुछ दिल्ली की गाड़ियाँ यहाँ पर पहले से रुकी हुई थी। ये लोग वापसी की तैयारी कर रहे थे। 

दो कन्याओं को देखकर कमल भाई के चेहरे की चमक चार गुनी बढ़ गई। तुरन्त मेरा कैमरा उठाकर कन्याओं को दिखाने के लिए आस-पास की फ़ोटो खींचने लगे। बाद में जब मैंने उन सब फ़ोटो को देखा तो एक भी काम की नहीं थी। काम की नहीं थी मतलब, बेतुकी इधर उधर की फ़ोटो थी। नाश्ता करने के बाद ताड़केश्वर महादेव की ओर निकल पड़े। यहाँ से पाँच किलोमीटर आगे चखुलियाखाल से बायीं ओर कच्चा रास्ता ताड़केश्वर महादेव के लिए जाता है। 

चखुलियाखाल की एक विशेषता है। गढ़वाली में "चखुल" का मतलब चिडिया होता है। इस जगह में अनेकों प्रकार की चिड़िया एक साथ आपको देखने को मिल जाएंगी। अगर सुबह और शाम के समय यहाँ पर बर्ड वाचिंग करनी है, और साथ ही फोटोग्राफी करनी हो तो ये स्थान स्वर्ग से कम नहीं। विभिन्न प्रकार की चिड़ियाओं के कारण ही इस जगह का नाम चखुलियाखाल पड़ा है। चखुलियाखाल से बांज और देवदार के घने जंगल से होकर रास्ता ताड़केश्वर के लिए जाता है। सड़क भी ठीक-ठाक ही बनी है। आराम से चलते हुए साढ़े नौ बजे ताड़केश्वर महादेव पहुँच गए।

ताड़केश्वर महादेव पहुँचते ही बड़ी चहल-पहल दिखी। पार्किंग में कुछ गाड़ियाँ पहले से मौजूद थी, कुछ लगातार आए जा रही थी, और एक दो दुकानें भी सजी हुई थी। अमूमन ऐसा यहाँ दिखता नहीं है। जरूर आज कोई विशेष दिन है, इसलिए इतनी चहल-पहल है। असल में मेरा ननिहाल यहाँ से नजदीक ही है, और मामा जी लोगों के कुल देवता ताड़केश्वर महादेव ही हैं, तो पहले भी यहाँ आ चुका हूँ। देवदार के वृक्ष मन्दिर परिसर से ही शुरू हो जाते हैं। गेट से मुख्य मन्दिर तक पक्का रास्ता व टिन शेड बना हुआ है। जगह-जगह पर आराम करने व प्राकृतिक सुन्दरता को निहारने के लिए कुर्सियां लगी हुई हैं। कुल मिलाकर ताड़केश्वर मन्दिर के परिसर का सौंदर्यीकरण खूबसूरत तरीके से किया गया है। 

पंद्रह सौ साल पुराने इस स्थान की शिव भक्तों में खास महत्वता है। श्री ताड़केश्वर की महिमा इस रूप में प्रसिद्द है कि ताड़केश्वर एक अजन्म सन्त पुरुष थे। एक हाथ में चिमटा व डमरू लेकर तथा शिव जाप करते हुए इधर-उधर विचरण किया करते थे। अगर उन्हें कोई मनुष्य गलत काम करते हुए दिखाई देता था या जंगलो में पशुओं को कोई बिना वजह मारा पीटा करता था तो उस मनुष्य को फटकारते व दण्ड देते थे। एक मान्यता यह भी है कि भगवान शिव जब ताड़कासुर का वध करके यहाँ पर आराम कर रहे थे तो माता पार्वती ने यहाँ पर छाया के लिए सात ताड़ के वृक्ष लगा दिए थे। जिससे भगवान शिव के आराम में खलल ना पड़े। 

ताड़केश्वर मन्दिर के चारों ओर ताड़ व देवदार के सघन वृक्ष फैले हुए हैं। इस मन्दिर परिसर में आते ही एक अलग ही आत्मीय सुख का अहसास महसूस होता है। अगर आप यहाँ पर रात्रि निवास भी करना चाहते हैं तो मन्दिर परिसर में ही धर्मशाला बनी हुई हैं। जिनमे आराम से रुका जा सकता है। साथ ही भोजन के लिए अगर दाल चावल साथ ले आएं तो मन्दिर समिति से बर्तन लेकर स्वयं ही भोजन भी बना सकते हैं। आज यहां पर शरदकालीन देवपूजा का आयोजन हो रहा था, इसलिए इस क्षेत्र के गाँवों के लोग भण्डारे की व्यवस्था में लगे थे। मंदिर परिसर में चारों और घंटिया टंगी मिली, शायद श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण होने या मांगने के लिए यहाँ घंटियां चढ़ाते हैं। 

दर्शनों के उपरान्त आधा घण्टा आस-पास घूमते रहे व प्रकृति की सुंदरता को निहारते रहे। ताड़केश्वर महादेव के दर्शन के बाद आगे बढ़ने की तैयारी करने लगे। असल में जब हम मेरठ से चले थे तो ताड़केश्वर भ्रमण और उसके उपरान्त रुद्रप्रयाग के नजदीक कार्तिक स्वामी तक जाना तय हुआ था। आज सुबह नाश्ता करते हुए होटल मालिक से रास्ते हेतु जानकारी ली तो उन्होंने ताड़केश्वर से ही आगे निकलकर थलीसैण होते हुए रुद्रप्रयाग निकलने का सुझाव दिया। जबकि दूसरा रास्ता था कि हम वापिस आते और लैंसडौन-सतपुली-पौड़ी होकर रुद्रप्रयाग निकल जाते। चूँकि दूसरे वाले रास्ते पर मैं कई बार यात्रा कर चुका था, इसलिए सभी को इस बात के लिए मना लिया कि थलीसैण होते हुए ही चला जाए। 

ताड़केश्वर से वापिस पाँच किलोमीटर चखुलियाखाल से सीधे आगे सिसल्डी की ओर बढ़ गए। कई छोठे-छोठे पहाड़ी बाजार इस रास्ते पर मिलते रहते हैं। सड़क भी शानदार बनी हुई है और सड़क के दोनों ओर घना जंगल तो है ही। गढ़वाल के इतिहास में इस क्षेत्र का अपना ख़ास महत्व है। विशेषकर इस क्षेत्र को उत्तराखण्ड की झाँसी की रानी कही जाने वाली वीरांगना तीलू रौतेली के क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है। 

तीलू रौतेली के शौर्य की कहानी कुछ इस तरह है कि, पंद्रह वर्ष की उम्र में जब तीलू की मंगनी हो चुकी थी तो उसी समय तीलू के पिता व मंगेतर की कत्यूरियों के साथ युद्ध में मृत्यु हो गई। तीलू ने कत्यूरियों से अपने पिता व मंगेतर की मृत्यु का बदला लेने की ठान ली व अपनी घोड़ी "बिंदुलि" और दो सहेलियों बेल्लु और देवली के साथ कत्यूरियों से टक्कर लेने निकल पड़ी। सबसे पहले "खैरागढ़" को कत्यूरियों से जीतने के पश्चात तीलू ने "उमटागढ़ी" पर भी धावा बोल दिया। उमटागढ़ी के पश्चात सल्ट महादेव जीतकर तीलू ने कत्यूरियों के छक्के छुड़ा दिए। चौखुटिया तक गढ़ राज्य की सीमा और सराईखेत, बीरोंखाल युद्ध में विजय के पश्चात तीलू ने कांडा गाँव के निकट नयार नदी के किनारे अपना शिविर लगा दिया। एक दिन नयार नदी में स्नान करते समय राजू रजवार नामक कत्यूरी सैनिक ने धोखे से तीलू की जान ले ली। इस प्रकार मात्र पंद्रह से बीस वर्ष की उम्र में तीलू ने सात युद्ध जीतकर अपने शौर्य और साहस का परिचय दिया। आज भी इस क्षेत्र में आयोजित होने वाले पौराणिक मेलों में तीलू रौतेली के रण गीत गाए जाते हैं।

बीरोंखाल में तीलू रौतेली की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। बीरोंखाल से आगे बढ़ते ही नयार नदी के तट के साथ-साथ आगे बढ़ चले। कुछ आगे जाकर एक सड़क रामनगर की ओर निकल जाती है, जबकि दूसरी बैजरों होकर पौड़ी की ओर। हम पौड़ी की ओर मुड़ चले। थलीसैण पहुँचने तक भूख भी लगने लगी, बाजार में घुसते ही जब कमल भाई को मधुशाला भी नजर आ गई तो मजाल क्या बिना कुछ किए आगे बढ़ जाते।
क्रमशः ......
शशि चड्ढा व कमल कुमार सिंह


लैंसडौन










मनु प्रकाश त्यागी


भण्डारे की तैयारी

पार्किंग में चहल-पहल





तीलू रौतेली प्रतिमा



थलीसैण

18 comments:

  1. बहुत बढ़िया विवरण... नई बात पता लगी की ताड़केश्वेर से सीधे भी जाया जा सकता है हम तो वापिस पौड़ी से होकर ही जाते थे... अब उदघाटन करेगे इस रास्ते का भी

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    1. धन्यवाद P.S. Sir, लेकिन ये बहुत लम्बा रास्ता है, हाँ घूमने के लिए शानदार है। यहाँ से गैरसैण और आगे कुमाऊं के लिए भी निकला जा सकता है। पर्यटकों से बिल्कुल अछूता।

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  2. सुन्दर फोटो से सजी एक बहतरीन पोस्ट .

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  3. bahut hi sundar vivaran hai .... or photograph bahut best hai...

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  4. बेहद सुन्दर फोटो हैं।जगह बहुत अच्छी लग रही है

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    1. जी बहुत खूबसूरत जगह है त्यागी जी।

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  5. पंद्रह सौ साल पुराने इस स्थान की शिव भक्तों में खास महत्वता है। श्री ताड़केश्वर की महिमा इस रूप में प्रसिद्द है कि ताड़केश्वर एक अजन्म सन्त पुरुष थे। एक हाथ में चिमटा व डमरू लेकर तथा शिव जाप करते हुए इधर-उधर विचरण किया करते थे। अगर उन्हें कोई मनुष्य गलत काम करते हुए दिखाई देता था या जंगलो में पशुओं को कोई बिना वजह मारा पीटा करता था तो उस मनुष्य को फटकारते व दण्ड देते थे। एक मान्यता यह भी है कि भगवान शिव जब ताड़कासुर का वध करके यहाँ पर आराम कर रहे थे तो माता पार्वती ने यहाँ पर छाया के लिए सात ताड़ के वृक्ष लगा दिए थे। जिससे भगवान शिव के आराम में खलल ना पड़े। बहुत ही शानदार जानकारी शेयर की है आपने बीनू भाई ! जगह बहुत सुन्दर लग रही है

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  6. लाजबाब,फोटो एक से बढ़कर एक |जय ताडकेश्वर धाम|उत्तराखंड की वीरांगना तीलू रौतेली जी को नमन|

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