Monday 27 June 2016

सतोपन्थ ट्रैक - (भाग २)- दिल्ली से जोशीमठ


सफ़र में जब पूरी मण्डली साथ हो तो हँसी मजाक और ठहाकों का दौर ना चले ऐसा हो नहीं सकता। सभी मित्र दो-दो की सीट में एक साथ बैठे थे, सिर्फ विकास अकेला बैठा था। विकास के साथ वाली सीट पर एक सुन्दर कन्या उसके साथ आकर बैठ गयी। सभी विकास की किस्मत से जल भुन गए। पूरे रास्ते अपनी भड़ास उसकी टांग खिंचाई करके निकालते रहे। 


सुबह तीन बजे बस ने हरिद्वार उतार दिया। यहाँ पर हमारे दो साथी पिछले दो दिन से डेरा डाले हुए थे। पटियाला से आए सुशील कैलाशी भाई और उधमपुर से वरिष्ठ मित्र रमेश शर्मा। ये दोनों लोग बस अड्डे से चार किलोमीटर आगे परमार्थ आश्रम की धर्मशाला में ठहरे थे, वहीँ से बस में सवार होंगे। सुशील भाई ने बस में की गई बुकिंग की टिकिट पहले ही व्हाट्स एप्प से हमको भेजी हुई थी, इसलिए बस ढूँढने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई। हरिद्वार में एक और मित्र योगी सारस्वत गाज़ियाबाद से चलकर हमसे आधा घण्टा पहले पहुँच चुके थे। योगी भाई को फोन लगाया तो पाँच मिनट में बस के पास ही आ पहुँचे। 

बस अड्डे पर ही हाथ मुहँ धुलकर चाय पी और आगे की यात्रा पर निकलने के लिए बस में बैठ गए। हरिद्वार से हम सबकी दस सीट की पूर्व बुकिंग थी। लेकिन कमल भाई के दो मित्र अन्तिम समय में दिल्ली से साथ हो लिए थे। अब बस में दो सीट कम पड़ रही थी। कंडक्टर से रिक्वेस्ट की लेकिन उसने असमर्थता जता दी, साथ ही यह भी कह दिया कि इसके बाद वाली बस में सीट मिल जाएंगी, दो लोग उससे आ जाओ। किन्ही दो लोगों को उतरकर दूसरी बस से आना पड़ता, जाट देवता और मैंने तय किया कि हम दोनों अगली बस से आ जाएंगे। दोनों बसों में एक घण्टे का अन्तर रहेगा, शाम को बद्रीनाथ में मिल ही लेंगे। अपना बैग इसी बस में छोड़कर जाट देवता और मैं इसके बाद जाने वाली बस में बैठ गए।

जैसे ही हम दोनों दूसरी बस में बैठे उससे पहले एक अन्य बस कर्णप्रयाग के लिए जाती तैयार दिखी। मैंने फ़ौरन जाट देवता को कहा कि यहाँ एक घण्टा रुकने से अच्छा है, कर्णप्रयाग तक निकल लेते हैं। दोनों बसें साथ-साथ ही रहेंगी। देवता ने भी सहमति जताई तो फ़ौरन कर्णप्रयाग वाली बस में जा बैठे। ड्राईवर के केबिन में सीट भी मिल गई। 

यहाँ से हमने श्रीनगर तक की ही टिकिट ली। श्रीनगर से सुमित ने अपनी बाइक से बद्रीनाथ तक आना था। मेरे मन में भी था कि मैं सुमित के साथ बाइक से आगे जाऊंगा। जाट देवता को अपना विचार बताया साथ ही पूछ भी लिया कि आप अकेले बोर तो नहीं हो जाओगे। देवता ठहरे पक्के घुमक्कड, उनको कोई फर्क नहीं पड़ा। हरिद्वार से सुबह साढ़े चार बजे निकल पड़े। बाकी साथियों को लेकर जो बस आगे-आगे जा रही थी उसमें और हमारी बस में सिर्फ कुछ ही किलोमीटर का फासला था। 

दिल्ली में जब हम ट्रैक में प्रयुक्त होने वाले सामान की चर्चा कर रहे थे तो मालूम पड़ा कि इन दिनों बद्रीनाथ में केरोसिन तेल की तंगी चल रही है। मैंने पाँच लीटर केरोसिन तेल की व्यवस्था सुमित को श्रीनगर से करने को कह दिया था, जो उसने कर भी रखा था। देवप्रयाग से सुमित को फोन कर आगे जा रही बस का नम्बर दे दिया, कि केरोसिन और अपना बैग उस गाडी में किसी भी साथी को पकड़ा दे। बाइक से लेकर जाने में परेशानी होगी। 

सुबह के नौ बजे बस ने श्रीनगर उतार दिया, लेकिन मुझसे एक बड़ी चूक हो गयी। मेरे बैग में सामान के साथ मेरा कैमरा भी आगे चला गया। सोचा था बाइक से जा रहा हूँ, सभी प्रयागों की और रास्ते के नजारों की फ़ोटो खींचूँगा। लेकिन सारा विचार धरा का धरा रह गया। श्रीनगर में बस अड्डे पर सुमित इन्तज़ारी कर ही रहा था। जाट देवता को दो गर्मागर्म समोसे पकड़ाकर विदा ली कि शाम को बद्रीनाथ में मुलाकात होगी।

श्रीनगर में सुमित ने सबसे पहले अपने मित्र का टेण्ट मुझे दिखाया, देखते ही मैंने रिजेक्ट कर दिया। फिर भी कह दिया कि ले चलते हैं क्या मालूम काम आ ही जाए। उसके बाद घर पर गए। सुमित को अपनी माताजी को 20 किलोमीटर दूर ननिहाल से लेकर आना था। वो ये कहकर माताजी को लेने चला गया कि आप फ्रेश होकर नाश्ता करो मैं एक घण्टे में वापिस आता हूँ।

 सुमित के घर पर उसके बड़े भाई अमित नौडियाल और भाभी थी। फ्रेश होकर और शानदार नाश्ता करने के उपरान्त अमित और मैं घुमक्कडी पर बातचीत करने लगे। करीब डेढ़ घण्टे बाद सुमित भी माताजी को लेकर वापिस आ गया। उसके आते ही तुरन्त ही आगे चलने की शुरुआत की गई। यहाँ पर मालूम पड़ा कि सुमित ने केरोसिन तो आगे भिजवा दिया, लेकिन अपना बैग नहीं भिजवाया। अब पूरे रास्ते बैग को मुझे ढोना पड़ेगा। 

करीब बारह बजे घर वालों से विदा लेकर बद्रीनाथ के लिए निकल पड़े। श्रीनगर मुख्य बाजार में पहुँचे ही थे कि डोभाल से मुलाकात हो गई। उससे मिलकर आगे की यात्रा शुरू कर दी। यहाँ से सड़क शानदार बनी है, आधे घण्टे में धारी देवी पहुँचकर, माँ धारी को ऊपर से ही नमन कर आगे बढ़ चले। बीच-बीच में सुन्दर नजारों को देखते हुए खुद पर गुस्सा आ रहा था कि कैमरा क्यों अपने पास नहीं रखा। 

अभी कुछ दिन पहले रुद्रनाथ यात्रा में भी हेलंग तक गया था लेकिन तब भी सफ़र जीप से किया था, इसलिए रास्ते की फ़ोटो नहीं ले पाया था। बाइक में ये अच्छी सुविधा रहती है। जब मन आया रोका और फ़ोटो लेकर आगे बढ़ लो। खैर मस्ती में चले जा रहे थे, बस सुमित का २५ किलो का बैग परेशानी का सबब बना हुआ था। 

मुझे दुपहिए वाहन पर बैठने की आदत नहीं है। पहले खूब बाइक चलाई है। कई बार दिल्ली से बाइक लेकर पहाड़ों पर भी निकला हूँ। लेकिन पिछले दो साल से घर पर दुपहिया वाहन खड़ा-खड़ा स्टार्ट होने के लिए तरस रहा है। अमूमन मैं यात्रायें सार्वजनिक वाहनों से ही करता हूँ, और कभी कभार कार से। मुझे सार्वजानिक वाहनों से ही यात्राएं करना अच्छा लगता है। इसी वजह से घर पर दुपहिया वाहन होते हुए भी चलाने का मन नहीं करता। 

कर्णप्रयाग तक तो स्थिति बर्दाश्त करने की सीमा तक रही लेकिन इसके बाद हाल से बेहाल होने लगा। हेलंग पहुँचते-पहुँचते सूर्यदेव अस्त हो चुके थे और मैं पीछे पस्त हो चुका था। कुछ किया भी नहीं जा सकता था, बाकी साथी आगे जा चुके थे। हेलंग से कुछ आगे पहुँचकर पराँठे खाए और आगे बढ़ चले। अभी भी बद्रीनाथ अस्सी किलोमीटर दूर था। 

जोशीमठ से पंद्रह किलोमीटर पहले तो पीछे बैठे रहना दूभर हो गया। मैंने सुमित को परेशानी बतायी तो हमने तय कर लिया कि आज जोशीमठ से आगे नहीं बढ़ेंगे। उधर बाकी साथी बद्रीनाथ पहुँच चुके थे। कमल भाई बार-बार फोन कर बद्रीनाथ पहुँचने को कहते। उनका विशेष सामान मैं श्रीनगर से लेता आ रहा था। वो उसके बिना परेशान थे। 

आखिर रात के आठ बजे जोशीमठ पहुँचे तो खूँटा गाढ़ दिया कि किसी भी कीमत पर अब आगे नहीं जाऊँगा। सुमित ने दो चार जगह होटल में मालूम किया तो चार सौ रुपए में कमरा मिल गया। कुछ देर आराम करने के बाद बाजार में भोजन के लिए गए, दस बजे तक कमरे में आकर बाकी साथियों को सूचना दे दी कि कल सुबह बद्रीनाथ पहुँच जाऊंगा, आज हिम्मत नहीं बची। लाइट बन्द कर एक बार क्या लेटा कि कब नींद आयी मालूम ही नहीं पड़ा।

क्रमशः...



श्रीनगर डैम

धारी देवी मुख्य द्वार

जोशीमठ की चढ़ाई शुरू







जोशीमठ में रात्रि भोजन



इस यात्रा के सभी वृतान्तो के लिंक इस प्रकार हैं :-

14 comments:

  1. कभी चूक भी हो जाती है, काम की चीज ही भूल जाते हैं तो सारी चतुराई धरी रह जाती है।

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  2. मजेदार सफर ---25 किलो वजन उफ़्फ़ तूने उठाया कैसे बीनू ☺

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    1. बाइक पर पीछे लेकर बैठा था बुआ।

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  3. अच्छा आप 12 के बाद चले इसलिए नही आ पाए, जब आप दूसरी बस में जा रहे थे तब मेने बोला था की अपना बैग तो लेते जाओ। चलो कोई नही।
    अगले भाग का इंतजार रहेगा।।

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  4. और ये सिर्फ हमें पता है कि जब आप रात तक नहीं आये तो हम क्या क्या सोच रहे थे और क्या क्या बात कर रहे थे । शंकराचार्य जी का मंदिर पिछली बार देखा था, बहुत ही शानदार और रमणीक जगह है । लेकिन भीड़ भाड ज्यादा नहीं रहती ।

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    1. समझ गया क्या बात कर रहे होंगे

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  5. बीनू भाई आप बाइक से आये और मैं बस में कितनी मुश्किल से पहुँचा आप को भी पता है। उस समय मैं यही सोच रहा था काश बीनू भाई की जगह मैं बाइक पर आ जाता।

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    1. सुशील भाई पहले मालूम होता तो बाइक से आपको ही जाने को बोलता। मेरा भी पीछे बैठे बैठे बुरा ही हाल हुआ। :)

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  6. Delhi se to kaafi lamba travel already ho gaya aapka...aur oopar se pillion riding on a bike...can only imagine the exertion.
    Baaki khaane ki plate to perfect hai..hahaha.

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  7. बस आज के पूरे दिन में सिर्फ खाना ही परफेक्ट था, बाकी तो बुरा हाल था। :)

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