Tuesday 5 January 2016

डोडीताल ट्रेक (भाग ३) - गंगोरी से अगोडा

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गंगोरी से अगोडा

सुबह ठीक 6.30 पर जीप हमें संगमचट्टी तक ले जाने के लिऐ आ गई, तब तक हम दोनो भी नहाकर तैयार हो गये थे। ट्रैक पर जब भी होता हूँ, तो जहाँ गरम पानी नहाने को मिल जाये नहा लेता हूँ, ऊपर मिले ना मिले, और फिर पता नहीं कब नहाना नसीब हो। बाहर मौसम ख़राब ही बना हुआ था, हालांकि बारिश नहीं हो रही थी। जल्दबाजी में होटल से बिना नाश्ता किये ही निकल पडे, सोचा 10 कि.मी. आगे संगमचट्टी में कर लेंगे, गंगोरी से थोडा आगे निकले तो एक दुकान खुली मिली, वहां पर से ग्लूकोज़ का पैकेट और 2-3 बिस्कुट के पैकेट रख लिये, आपातकालीन परिस्थितियों के लिये। ग्लूकोज़ भी ट्रैक पर बहुत काम आता है, पानी में मिलाकर पीते रहो, वैसे भी अब तो कई फ्लेवर में आने लगा है। करीब 1 कि.मी. के बाद सड़क अस्सी गंगा के किनारे किनारे आगे बढ़ती है, अस्सी गंगा का उदगम डोडीताल से ही होता है, ये नदी ज्यादा लंबा सफ़र तय नहीं करती डोडीताल से निकलकर उत्तरकाशी में भागीरथी के साथ इसका संगम हो जाता है।





हमको अगले 3 दिन तक इसी के साथ साथ ही चलना था। आपदा के निशान अस्सी गंगा घाटी में भी साफ़ साफ़ दिखायी पड़ रहे थे। उत्पात मचाने में इस नदी ने भी कमी नहीं की, चाहे छोटी सी नदी है लेकिन है बड़ी चंचल। सड़क का तो बुरा ही हाल था, जीप का निचला हिस्सा कई बार गड्ढों की वजह से जमीन पर लग रहा था, और यहाँ हम कार लाने की सोच रहे थे, वो तो शुक्र हुआ जो जीजा जी ने ऐन वक़्त पर मना कर दिया, नहीं तो निश्चित रूप से यहीं फंस जाते। आगे एक जगह तो पूरा पुल ही अस्सी गंगा बहाकर अपने साथ ले गयी, यहाँ पर काम चलाऊ पुल बना है, और स्थायी पुल का निर्माण कार्य चल रहा है। सड़क को भी दुरस्त करने का काम चल रहा है। बारिश की वजह से कीचड़ सड़क पर बहुत ज्यादा हो रखा था, पहाड़ी ड्राईवर ही ऐसे रास्तों पर जीप चलाने की हिम्मत कर पाते हैं। रास्ते में एक बुजुर्ग ने लिफ्ट मांगी, चूँकि पूरी गाडी हमने बुक की थी तो ड्राईवर रोकना नहीं चाहता था, हमारे कहने पर उसने बुजुर्ग को बिठा लिया, उन्होंने भी आपदा के समय और उसके बाद आज की परेशानियों के बारे में बताया, उनका गांव अस्सी गंगा के दूसरी और बसा है, सिर्फ एक पैदल पुल था जो आपदा में बह गया, स्थानीय निवासियों ने नदी में पत्थरो से आने जाने के लिए एक काम चलाऊ पुल बना रखा है। अगर डोडीताल में बारिश ज्यादा हो जाती है, तो अस्सी गंगा का जलस्तर बढ़ जाता है, जिससे ये काम चलाऊ रास्ता डूब जाता है। कोई बीमार भी हो जाए तो इस तरफ आने का कोई साधन नहीं बचा। 

7.30 पर संगमचट्टी पहुंचे तो सुबह सुबह एक भी दुकान नहीं खुली थी, चाय तक नसीब नहीं हुई, गंगोरी से जल्दी इसलिए निकले कि आगे संगमचट्टी में नाश्ता मिल ही जाएगा, वहीँ कर लेंगे। असल में यहाँ पर 3-4 चाय की दुकानें हैं, दुकान वाले रात को अपने अपने गांव चले जाते हैं, सुबह आकर फिर दुकान खोलते हैं, इतनी सुबह यहाँ कोई नहीं होता। जीप भी यहीं तक आती हैं, स्थानीय निवासियों का ये एक तरह से बस अड्डा है, यहाँ से आगे या तो पैदल ही जाओ और सामान अगर ज्यादा है तो घोड़ों से ले जाया जाता है। वैसे ये सड़क आगे भी बन रही है, लेकिन अभी निर्माण कार्य चल ही रहा है। अब हमारे पास बिना नाश्ता किये ट्रैक शुरू करने के सिवाय कोई चारा नहीं था। और ये ट्रैक में की जाने वाली सबसे बड़ी भूल होती है, भूखे पेट कभी भी ट्रैकिंग नहीं करनी चाहिये। सचिन की एक आदत है, उसे सुबह उठते ही भूख लग जाती है, आज भी लग गयी, मेरे बैग में बिस्कुट के पैकेट और टाफियां रखी थी, बोला भी कि भाई कुछ खा ले, लेकिन नहीं खाई। ऊपर से भाईसाहब कल से ही ठाने बैठे थे कि आज ही डोडीताल पहुंचना है। वैसे हमको प्लान के हिसाब से तो आज शाम तक डोडीताल में होना चाहिये था, लेकिन कल शाम की बारिश ने प्लान को एक दिन पीछे खिसका दिया। इसीलिये सुबह जल्दी भी निकल पड़े थे, कि अगर जा पाएंगे तो कोशिश करेंगे कि आज ही डोडीताल पहुँच जाएँ।

संगमचट्टी से पुल के पार करके अस्सी गंगा के साथ साथ रास्ता अगोडा के लिये जा रहा है, तुरंत ही जंगल और चढ़ाई शुरू हो जाती है, जैसे ही अगोडा की तरफ बढे, बारिश की वजह से रास्ते में काफी फिसलन हो गयी थी। मेरे को एक डन्डा रास्ते के किनारे दिखा तो उठा लिया, लो जी हो गया अपनी ट्रैकिग स्टिक का जुगाड़, 100 मी. ऊपर ही चढ़े थे कि सचिन भी बोल पडा, भाई मेरे लिऐ भी डन्डा ढूंढ, एक सूखी झाड को तोडकर सचिन की ट्रैकिंग स्टिक तैयार की फिर आगे बढ चले। करीब 500 मीटर खड़ी चढ़ाई के बाद रास्ता ठीक अस्सी गंगा के साथ साथ हो लेता है, करीब 1 कि.मी. आगे पहुंचे ही थे कि सामने से पूरा रास्ता ही गायब, जबरदस्त भूस्खलन से पूरा पहाड़ ही अस्सी गंगा में समाया हुआ, 200 मीटर आगे मोड़ पर तक रास्ता क्या रास्ते के नाम पर 8-10 इंच की लकीर, अगर जरा सा पांव गलत पडा तो सीधे नीचे लुढकते हुऐ अस्सी गंगा की तेज धाराओं में पहुंचेंगे।
हमारे ट्रैक पर जाने से कुछ दिन पहले ही नीरज जाट अपनी पत्नी के साथ ये ट्रैक करके आये थे। हालांकि मौसम ख़राब होने की वजह से वो इस ट्रैक को पूरा नहीं कर पाये थे, और डोडीताल से 5 कि.मी. पहले मांझी से ही लौट गये थे। मेंने उनका यात्रा विर्तान्त पढा था। उनके अनुसार सीधा रास्ता अगोडा तक जाता है, मैं कुछ इसलिए भी निश्चिन्त था। उनके अनुसार अगोडा तक कहीं भी रास्ता पूछने की जरुरत नहीं होनी चाहिए थी, लेकिन यहाँ तो 8-10 इंच की रेखा है, मैंने सोचा हम रास्ता भटक गये हैं वापस हो लो। डोडीताल एक प्रचलित ट्रैक है, अमूमन ऐसे ट्रैक् में रास्ता बढ़िया बना ही होता है, शंका इसलिये और भी बढ़ गयी, वापिस मुड़ गये ये सोचकर कि हम रास्ता भटक गये हैं। 

100 मीटर वापिस आये ही थे कि, पहाड़ी के दूसरी ओर ऊपर से एक स्कूली युवक आता दिखा, सीटी बजाकर उसका ध्यान अपनी और खींचा, उससे पूछा कि अगोडा कौन सा रास्ता जाता है ? उसने उसी तरफ ईशारा कर दिया जहाँ से हम वापिस हो लिए थे, अब फिर से दोनों की हालत खराब, अब तो भाई या तो ये भुस्खलित क्षेत्र को पार करो या वापिस चलो। कुछ छोटे छोटे पत्थर अभी भी ऊपर से गिर रहे थे, इसको जल्दी से पार करना भी जरुरी था। पता नहीं कब और मलवा ऊपर से आकर हमको अपनी चपेट में ले ले। लेकिन 8-10 इंच के फिसलन भरे रास्ते को दौड़कर तो पार नहीं किया जा सकता था। अब वापिस जाने के लिये थोड़े ही यहाँ तक आये थे। 

बैठ बैठ कर पहले मेंने ही पार किया, 10 मिनट लगे होन्गे उस 50 मीटर के हिस्से को पार करने में जो सबसे ज्यादा खतरनाक था, जान जोखिम में ही डालने वाली बात थी, सचिन दुसरे छोर पे खड़ा देख रहा था, अब उसकी ही बारी थी, उसने बीच में एक जगह पर इशारा किया कि यहाँ तक वापिस आ, मरता क्या ना करता फिर वापिस बैग इधर ही रखकर आधे तक वापिस गया और सचिन को साथ लेकर जैसे तैसे पार कर ही लिया। हाँ ये निश्चित था कि अगर कोई दूसरा जो पहली बार पहाड़ों पर हमारे साथ आया होता तो वो यहीं पर से वापिस हो लेता। सचिन भी पहाड़ी है, वो कभी न कभी गांव में ऐसी परिस्तिथि का सामना कर चुका रहा होगा। 
इस भुस्खलित क्षेत्र को पार करते ही बैग पटक कर बैठ गए, साँसों पर काबू पाया, फिर मेरे को सचिन पर बहुत जोर से हंसी आयी, उसकी शक्ल कुछ हुयी ही ऐसी थी, उसको बोला कि भाई ट्रैकिंग का कीड़ा तो तेरे अंदर पक्का है, तभी जान भी जोखिम में डाल दी।

असल में हुआ ये था कि, पिछली रात की भयंकर बारिश से यहाँ पर और भी खूब सारा मलबा ऊपर से आया और उसने जो थोडा बहुत रास्ता था, उसे भी अपने साथ अस्सी गंगा में ले गया और रास्ते का नामोनिशान मिट गया, बस बच गयी हलकी सी रेखा, और हम आज सुबह सबसे पहले प्राणी थे जो यहाँ से गुजर रहे थे, नहीं तो पूरे दिन घोडे वाले इस रास्ते पर चलते हैं, जिससे पगडंडी तो बन ही जाती है, बस यही जगह पूरे ट्रैक की सबसे खतरनाक साबित हुई। फिर इसके बाद तो आगे अच्छा खासा रास्ता बना है, कहीं भी पूछने की जरूरत ही नहीं पडी। अगोडा गाँव तक रास्ता काफी आसान है एक दो जगह में हल्की सी चढ़ाई जरूर है , हाँ सुबह जो भूखे पेट चल पडे थे उसका असर अब होने लगा था, भूख तो लग ही रही थी, बिस्किट बैग में थे फिर भी नहीं खाये जो कि गलती थी, अगोडा गांव सामने दिख रहा था, एक जगह में कुछ महिलाएं खेतों में काम कर रही थी, पानी भी था और आराम करने के लिए सीमेंट का चबूतरा भी बना था। 

हम भी बैठ गए, बोतलें भर ली, दायीं तरफ दयारा बुग्याल के ठीक नीचे से एक बड़ा झरना बहता हुआ बहुत खूबसूरत लग रहा था, गांव के लोग भी मिलने लगे उनसे हल्की बातचीत होती रही, पहला घर आया तो सोचा बस पहुँच ही गए। थोडा आगे चलने पर एक छोटा सा झरना आता है। यहाँ पर फारेस्ट गेस्ट हाउस के बारे में पुछा तो उन्होंने अंगुली से गांव की चोटी की तरफ इशारा कर दिया, सचिन यहाँ तक तो अच्छी हालत में आ गया लेकिन अब वो पस्त होने लगा। 

वैसे 6 कि.मी ही चले थे सुबह से, लेकिन भूखे पेट थे, झरने के बाद गांव के अंदर घुसते ही एक होटल है, शायद जिस किसी ने डोडीताल ट्रैक किया होगा तो इसमें जरूर रुका होगा, क्योंकि अगोडा में एकलौता गेस्ट हाउस है। गेस्ट हाउस वालों से फारेस्ट गेस्ट हाउस का रास्ता पुछा तो उन्होंने भी अंगुली चोटी की तरफ कर दी, सचिन की फिर से हालात और ख़राब, बोल पड़ा भाई इन फारेस्ट वालों को पहाड़ की चोटी पर ही क्यों गेस्ट हाउस बनाने होते हैं ? बात भी सही है, जहाँ भी फारेस्ट गेस्ट हाउस होगा वो चोटी पर ही होगा, अब जाना तो था ही, होटल के ही बगल से सीधी चढ़ाई के साथ रास्ता है, थोडा ऊपर एक घर में शादी थी, वहां पर से एक दो नौजवान हमारे साथ साथ चलने लगे रास्ता दिखाते हुए, हालांकि गांव शुरू होने के बाद गेस्ट हाउस 2 कि.मी. ही होगा लेकिन वाकई चोटी पर ही है और सीधी चढ़ाई गेस्ट हाउस में ही जाकर ख़त्म होती है। मैं आगे आगे चलकर सचिन को हौसला देता हुआ आवाजें लगा रहा था कि आ जा बस पहुँच गए। गेस्ट हाउस में वन विभाग के कर्मचारी हमारी ही इंतजारी कर रहे थे। पहुंचते ही सचिन की तबीयत खराब सी होने लगी, वो जाकर लेट गया, उसको उल्टी भी हुई तो आराम करने को बोल दिया, मैं और बलूनी जी (अगोडा क्षेत्र अधिकारी) बाहर धूप में कुर्सियां लगाकर बातें करने लगे। 


सचिन के लिए नींबू पानी नमक के साथ बनवाकर पीने को कहा जिससे उसको कुछ आराम आ जाए, कुछ देर आराम करने के बाद वो बेहतर भी महसूस करने लगा था। 2 बज चुके थे, खाना तैयार था मैने तो डट कर खाया, सचिन को भूखे पेट चलने का नतीजा भुगतना पड़ रहा था, असल में पहाड़ों पर चढ़ते हुए पसीना आता है, जिससे शरीर की कैलोरी खर्च होती हैं, उनकी भरपाई आवश्यक होती है, तो सबसे अच्छा होता है चलते चलते थोडा थोडा कुछ खाते रहो। मेरा पहाड़ों से हमेशा ही लगाव रहा है, बचपन में गाँव भी इसीलिये खूब जाता था, थोड़ी बहुत पहाड़ों पर होने वाली घास फूस की जानकारी भी है, मैं चलते चलते एक घास को चबाते चबाते आ रहा था, सचिन को बोला भी कि इसमें विटामिन-C होता है, खाना मत बस इसका रस पीते जाना, और खा भी लेगा तो जड़ी बूटी ही है कुछ नुकसान नहीं होगा। लेकिन उसने घास फूस खाने से इंकार कर दिया, मैं तो चूसता भी रहा और खाता भी रहा, परिणाम सामने था। कुछ देर बाद सचिन बेहतर महसूस कर रहा था और उसका आज ही डोडीताल पहुंचने का भूत भी भाग चुका था।

मौसम अप्रैल के आखिरी हफ्ते में भी शानदार बना हुआ था, ठण्ड महसूस हो रही थी, बलूनी जी से काफी बातें हुए, करीब 4 बजे फिर से डोडीताल और दयारा की तरफ काले घने बादल घिरने लगे और कुछ ही देर बाद ओला वर्षा होने लगी, वही कल जैसी मूसलाधार। सचिन बोलने लगा कि भाई अब तो मौसम ख़राब हो गया आगे ट्रैक नहीं कर पाएंगे, मैंने उससे कहा कि अगर रात को 9 बजे तक बारिश नहीं रुकी तो ही मानूँगा कि वाकई में मौसम ख़राब हो गया है, और हुआ भी ठीक यही, रात को 8 बजे के आस पास बारिश पूरी तरह से रुक गयी और आसमान में तारे जगमगाने लगे, पहाड़ों पर तारों से जगमगाता आसमान देखना भी सुखद अहसास है, दिल्ली में तो शायद ही कभी नसीब हो। 

रात को ही कल की प्लानिंग कर ली कि सुबह जितनी जल्दी हो निकल लेना है और 4 बजे से पहले डोडीताल पहुंचना है क्योंकि रोजाना इसी समय बारिश शुरू हो जा रही थी। ठण्ड भी काफी महसूस हो रही थी, बलूनी जी से सलाह ली तो उनका भी यही कहना था कि कल इस ट्रैक का सबसे मुश्किल भाग है, इसलिए जितनी जल्दी चल पड़ोगे उतना ही अच्छा होगा, फिर डोडीताल इस समय तक कोई भी ग्रुप नहीं गया था तो आगे रास्तों के क्या हाल हैं कह नहीं सकते, सुबह जल्दी उठने का प्रण लेकर बिस्तर के अंदर घुसा और थोड़ी ही देर में नींद भी आ गयी। सचिन भी तंदुरस्त हो चुका था, आखिर आपातकाल के लिये जो थोडा सा सोमरस ले गया था उसने अपना असर दिखा ही दिया था।

क्रमश.....

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संगमचट्टी 

संगमचट्टी 



सचिन
संगमचट्टी 
संगमचट्टी 



दयारा बुग्याल में बर्फ 

दयारा बुग्याल से आता झरना


अस्सी गंगा

अगोडा के नजदीक

अगोडा गांव
अगोडा के नजदीक




फारेस्ट गेस्ट हाउस अगोडा


अगोडा में बारिश



29 comments:

  1. शानदार पोस्ट, बीनू भाई। डोडीताल की फ़ोटोज़ का इंतज़ार है।

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    1. धन्यवाद ओम भाई। जल्दी ही आएँगी डोडीताल की फ़ोटो।

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  2. खतरनाक रास्ते का भी एक फोटु तो होना था ताकि हमको पता तो चले की रास्ता कैसा था । फोटु ज्यादा लगाया करो बीनू ।मज़ेदार यात्रा

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    1. बहूत खतरनाक रस्ता था फोटो खींचने की हिम्मत नई रहि

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    2. बुआ वाकई में उस समय ये ध्यान ही नहीं रहा। अगली पोस्ट में आपको खूब सारी फ़ोटो मिलेंगी।

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  3. 6 बजे सोमरस लिया साथ मै बलूनीजी भी थे. बोतल का पानी ख़त्म हुआ तो वो बाथरूम के वाश वेषण से भर लाये बोले सब साफ पानी है

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    1. तूने ही पिया भाई जो पिया। मैं तो संत आदमी हूँ। :)

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  4. 6:30 खाना खाया 7:30 सो गये 9बजे तक नींद पूरी हो गयी.. बीनू भाई की आवाज़ आयी... सचिन ये रात कट क्यों नहीँ रही.

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  5. बहुत बढिया बिनू भाई ।काफी अच्छा लिखा है ।

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  6. मजा आ गया बीनू भाई ,बार बार यही लग रहा था की ये यात्रा पूरी होगी की नहीं |यहाँ तक पहुँचने तक रोमांच बरकरार रहा |अति उत्तम |

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  7. संगम चट्टी, असी गंगा और उत्तरकाशी- ये शब्द मुझे 2009 में टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की ओर से किये गए ट्रैक की याद दिला गए। धन्यवाद्। उस समय हमने डोडीताल न जाकर सूर्या टॉप गए थे।

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    1. बहुत खूब प्रजापति जी। धन्यवाद।

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  8. बहुत बढ़िया यात्रा वृत्तांत, जिसमे शुरू से लेकर अंत तक रोमाँच बना रहा, और अब तो इस ट्रैक के अगले हिस्से (डोडीताल) के बारे में जानने की उत्सुकता और भी बड़ गई है।

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    1. जी ज्यादा तो नहीं बस वो landslide वाला जरूर था। :)

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  10. बढ़िया यात्रा वृतांत बीनू भाई, पढ़कर मज़ा आया ! एक सुझाव है अगर आपको ठीक लगे तो, फोटो का साइज़ लार्ज रखो और लेख में भी पैराग्राफ बनाओ, ताकि पढ़ने में आसानी हो !

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    1. कुछ परिवतर्न किये हैं शायद ठीक लगें आपको प्रदीप भाई। धन्यवाद।

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  11. बहुत खूब ! एक एक शब्द पढ़ा ! मजा आ रहा है और ऐसा लग रहा है जैसे मैं स्वयं इस यात्रा में आपके साथ चल रहा हूँ ! कई लोगों ने लिखा है कि पैराग्राफ छोटे छोटे बनाइये और संभव हो तो फॉण्ट साइज थोड़ा और बड़ा करिये !!

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  12. बहुत बढ़िया बीनू भाई... अगर हो तो उस जड़ी का एक फोटो दिखाना जिसे आप चबाते हुए जा रहे थे।

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    1. नीरज भाई उसकी स्पेसिफिक फ़ोटो तो नहीं खींची, लेकिन लगभग हर एक आम रास्ते पर वो घास मिल जाती है, पहाड़ों पर जब प्यास लग जाये और पानी पास में नहीं होता है तो उसी को चबाकर काम चला लेते हैं।

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  13. बढ़िया बीनू भाई....बहुत रोमांचक ।

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  14. बहुत ही सुंदर बीनू भाई साहब दुबारा हमें भी कभी सेवा का मोका हमें भी दीजिए।
    मेरा नाम संदीप पँवार है। मैं अगोडा गाँव से हूँ। दुबारा कभी भी आओ
    हमें जरूर फोन करे मैं यही नोयडा मैं रहता हूँ
    मेरा नंबर 8650793859

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