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हर की दून और वहां बिताये पल
जैसे ही हर की दून के प्रथम दर्शन हुए बस निःशब्द निहारता गया। अपने ही अन्तर्मन् में ये चलने लगा कि क्या इतनी खूबसूरत जगह भी हो सकती है। अप्रतिम, रमणीक और ना जाने क्या-क्या शब्द चेतना में जागने लगे। शब्दों में लिखकर हर की दून की खूबसूरती को तो बयान किया ही नहीं जा सकता। जो कुछ भी आज तक हर की दून के बारे में पढ़ा या सुना था सब नगण्य लगने लगा। ब्रह्मदेव जब सृष्टि की रचना कर रहे होंगे तो उन्होंने इस घाटी पर विशेष कृपा दिखायी होगी। तभी तो भोलेनाथ ने यहाँ अपना डेरा जमा लिया। कण-कण में सुन्दरता बसी है। जो सुपिन नदी नीचे गंगाड में इतना शोर मचाती है, यहाँ शान्त कल-कल की मधुर ध्वनि से बहती है। आज पूरे हर की दून में सिर्फ हम दोनों थे। मनु भाई ने कहा "यार यहाँ तो एक रात गुजारनी चाहिये"।
और यही मेरे मन में भी चल रहा था। ये भी भूल गये थे कि नीचे ओसला में कह कर आये हैं कि, अगर वापिस पहुँचने में देरी हो जाए, तो हमारी ढूंड में निकल पड़ना। क्या करते, इस अप्रितम सौंदर्य से बाहर निकलने का किसका मन करेगा। बैग को एक पत्थर की ओट में रख कर घाटी के भ्रमण पर निकल पड़े। अभी तक पूरे ट्रैक पर वो बर्फ नहीं मिली थी, जिसके लिए जनवरी माह में यहाँ आया था। लेकिन हर की दून की खूबसूरती ने सारे गिले शिकवे एक ही पल में समाप्त कर दिए। जिस हर की दून को कई बार सपनों में देख चूका था, आज उसी जगह विचर रहा था। कोई कैमरा एंगल नहीं, कोई सलेक्टेड फोटोग्राफी नहीं। जिधर नजर जाती बेख़ौफ़ क्लिक पर क्लिक। आँखों से सुन्दरता का जितना रसपान कर सकता था कर लेना चाहता था। एक नशा सा खुद-ब-खुद हो चला था। समझ नहीं आ रहा था किधर देखूं ?
बिना सोचे समझे फ़ोटो पर फ़ोटो खींची, कि कैसे इस घाटी को कैमरे में समेटूं। कहीं कोई कोना छूट ना जाए। एक लकड़ी का पुल सुपिन पर दूसरी ओर जाने के लिए बना है। उसके ठीक ऊपर गढ़वाल मंडल विकास निगम का गेस्ट हाउस, और कुछ ऊपर वन विभाग का गेस्ट हाउस बना है। सबसे पहले सभी गेस्ट हाउस के कमरे देखे कि कहीं कोई खुला मिल जाए। तब ये भी मन में नहीं आया कि खाएंगे क्या ? बस रात गुजारने के लिए छत मिल जाये तो पूरी रात आग जलाकर काट लूंगा। लेकिन कोई भी कमरा खुला नहीं मिला। मनु भाई भी एक रात यहाँ रुकने के लिए लालायित थे। एक बार बोल भी पड़े, कि एक कमरे का ताला तोड़ देते हैं। कल ओसला में जाकर, ताले के पैसे और कमरे का किराया दे आयेंगे। लेकिन ट्रैकिंग सीजन ख़त्म हो चुका था, पता नहीं यहाँ के ब्यवस्थापक कब ऊपर आयें।
जब कोई भी बात नहीं बनी तो सामने वाली पहाड़ी के ठीक नीचे दो तीन झोपड़ियां नजर आयी। हम ये भी सोचने लगे कि उन्ही झोपड़ियों में आज की रात गुजार लेते हैं। उधर घना जंगल भी था, और जब कैमरा ज़ूम करके देखा तो बर्फ पर किसी बड़े जानवर के ढेर सारे पाऊँ के निशान दिखे। निश्चित रूप से भालू मामा तबियत से घूम रहे होंगे। अब जबकि रात्रि विश्राम के सारे विकल्प बन्द हो गए तो हमारे पास सिर्फ एक घण्टा था, यहाँ के सौंदर्य के साथ लूटपाट करने के लिये। जितना लूट सको लूट लो। वैसे तो हर की दून घाटी २८ किलोमीटर नीचे तालुका से ही शुरू हो जाती है।
सुपिन नदी के साथ-साथ पूरे रास्ते शानदार नजारों से भरा पड़ा है। लेकिन जो अलौकिक सौंदर्य यहाँ इस एक किलोमीटर के क्षेत्र मैं बिखरा पड़ा है, ये अदभुत है। सुपिन नदी के साफ़ पानी में एक-एक पत्थर नीचे तक दिखायी पड़ रहा था। घाटी में बड़े-बड़े पत्थर ऐसे लग रहे थे, जैसे करीने से सजाकर रखे गए हों। इन बड़े-बड़े पत्थरों पर गिरी बर्फ इसकी सुन्दरता में चार चाँद लगा रही थी। पूरी घाटी का चक्कर लगाया, मनु भाई एक बड़े से पत्थर पर बैठे एकटक जौंधार ग्लेशियर की ओर देखे जा रहे थे। जोर से मेरे को आवाज लगाकर उन्होंने अपने पास आने का इशारा किया।
जब उनके पास जाकर देखा तो सामने का विहंगम नजारा देख कर मन और भी प्रफुल्लित हो गया। हर की दून हिमाचल के किन्नौर और तिब्बत से सटा हुआ है। सामने जौंधार ग्लेशियर और बडासु पास को लांघ कर दूसरी ओर हिमाचल के छितकुल निकला जा सकता है। भविष्य में यहीं से होकर छितकुल निकलूँगा। हिमाचल के किन्नौर से सटा होने के कारण यहाँ के स्थानीय निवासियों का पहनावा भी हिमाचली ही है. हिमाचल की प्रसिद्द किन्नौरी टोपी तो बच्चे से लेकर बुजुर्ग के सर पर शोभा बढाती नजर आ जायेगी। जिस गोल टोपी को देख कर हम अनायास ही बोल पड़ते हैं, कि ये तो हिमाचली टोपी है। इस टोपी का भी यहाँ के सामाजिक जीवन से गहरा रिश्ता है।
हिमाचली टोपी को तीन क्षेत्रों के हिसाब से बांटा गया है। कुल्लू टोपी, बुशहरी टोपी और किन्नौरी टोपी। हरे रंग की पट्टी वाली टोपी किन्नौरी टोपी होती है। जबकि अंग्रेजी के "डब्लू (W)" शब्द जिस टोपी पर बना होगा वो कुल्लू टोपी कहलाती है। इस क्षेत्र में बहु पति प्रथा मान्य है। कहते हैं कि अगर एक पति घर पर एकांत में अपनी पत्नी के साथ है तो वो अपनी टोपी को दरवाजे के बहार टांग देता था, ये संकेत होता था जिससे दूसरे पति को मालूम पड़ जाता था। और उनका एकांत भंग नहीं होता था। हालाँकि बोली यहाँ जौंसारी बोली जाती है, जो हिमाचल की भाषा से नहीं मिलती।
हर की दून घाटी को महादेव की घाटी कहा जाता है। इस क्षेत्र के स्थानीय निवासी दुर्योधन की पूजा करते हैं। दुर्योधन भी शिवजी के भक्त थे, कई शिव मंदिरों का निर्माण उन्होंने यहाँ करवाया है। जखोल में सोमेश्वर महादेव का मंदिर भी उनमें से एक है। ओसला में बलबीर जी से मैंने इस बाबत पुछा भी, तो उन्होंने एक मेले का जिक्र किया। जिसमें इस क्षेत्र के २२ गाँवो के लोग इकठ्ठा होकर सोमेश्वर महादेव की पूजा करते हैं। हर की दून के अप्रतिम सौंदर्य को देखकर महसूस भी किया जा सकता है कि जैसे महादेव यहीं विचरण कर रहे हों।
पूरा डेढ़ घण्टा हर की दून में ब्यतीत करने के बाद वापिस जाने का वक्त आ गया था। मन तो बिल्कुल भी नहीं कर रहा था कि वापिस जाऊँ। लेकिन जाना तो था ही, खुद से ये वादा करके कि दुबारा जब भी यहाँ आऊंगा एक रात हर की दून अवश्य रुकुंगा। अपने साथ प्रकृति के इस अदभुत सौंदर्य की सुनहरी यादें लेकर दो बजे ओसला के लिए वापिस चल पड़े।
क्रमशः.....
फोटो पर केप्शन नहीं डाले हैं. क्यूंकि सभी फोटो हर की दून की ही हैं.
इतनी सुंदरता की तारीफ के लिए शब्द ही नहीं हैं।
ReplyDeleteहर्षा... तुमको भी धन्यवाद नहीं बोलूंगा।
Deleteग़ज़ब
ReplyDeleteहे सोहन, अपने बचपन के दोस्तों का कॉमेंट मेरे लिए सही में अत्यधिक उत्साह वर्धक होता है। सकून मिलता है, जब मेरे बचपन के दोस्त कुछ बोलते हैं तो। धन्यवाद बोलूंगा नहीं। बस सुकून मिला मेरे दोस्त।
Deleteati sundar prstuti
ReplyDeleteधन्यवाद अमित भाई।
Deleteजबरदस्त शब्दों का जाल उस पर हर की दून का सौंदर्य जिस में हम भी खो गए। लाजबाब लेख बीनू भाई। कौन नहीं खोना चाहेगा इन वादियों में। हर हर महादेव।
ReplyDeleteजबरदस्त शब्दों का जाल उस पर हर की दून का सौंदर्य जिस में हम भी खो गए। लाजबाब लेख बीनू भाई। कौन नहीं खोना चाहेगा इन वादियों में। हर हर महादेव।
ReplyDeleteधन्यवाद रूपेश भाई।
Deleteबहुत बढ़िया लिखा है बीनू भाई. और तस्वीरों ने तो चार चाँद लगा दिए . घंटे रहो और लिखते रहो .
ReplyDeleteजय भोले नाथ .
धन्यवाद नरेश जी।
Deleteबहुत बढ़िया बीनू जी | यही बैठे घूमा दिए है आप तो हर की दून ....|
ReplyDeleteफोटो बहुत अच्छे
धन्यवाद रितेश भाई।
Deleteबहुत सुन्दर चित्रण हर की दून की खूबसूरती का ....शानदार चित्रों ने मज़ा दुगना कर दिया ।
ReplyDeleteधन्यवाद डॉ साहेब।
Deleteवाकई में तिवारी जी। धन्यवाद।
ReplyDeleteBahut Sunder Yatra Varnan..
ReplyDeleteMere blog ki new post par aapke vichro ka intzaar hai.
धन्यवाद।
Deleteबीनू भाई जबरदस्त फोटो ! हर की दून में एक रात गुजारी होती तो और भी ज्यादा रोमांच महसूस होता ! आपके ब्लॉग से बहुत कुछ इनफार्मेशन मिल जाती है !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई।
Deletephoto gajab ke hain , Kashmir se kam nahi lag raha :-)
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी।
Deleteजबरदस्त फोटो मान गए जी
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी।
Deleteबोले तो "एकदम झकास"
ReplyDeleteधन्यवाद ललित सर।
Deleteअपने ही अन्तर्मन् में ये चलने लगा कि क्या इतनी खूबसूरत जगह भी हो सकती है। अप्रतिम, रमणीक.....हिमाचली टोपी को तीन क्षेत्रों के हिसाब से बांटा गया है। कुल्लू टोपी, बुशहरी टोपी औरकिन्नौरी टोपी।बढ़िया जानकारी ,आपके मंगलमय जीवन की कामना सहित।
ReplyDeleteधन्यवाद।
DeleteBeautiful photos and another great post.
ReplyDeleteधन्यवाद रागिनी जी।
ReplyDeleteअप्रतिम सौंदर्य ...
ReplyDeleteजी बहुत खूबसूरत जगह है।
Deleteबीनू भाई ..... आपने इतना शानदार और ज्ञानवर्धक लेख लिखा है....शब्दों में ढालना बड़ा मुश्किल है..
ReplyDeleteआपसे एक बार तो मिलना बनता है....
धन्यवाद कपिल जी।
Deleteजबरदस्त फ़ोटो ओर उतनी ही सुंदर यात्रा विवरण,,,,,बहुत खूब,,
ReplyDeleteबहुत ही रोचक जानकारी दी है आपन भैजी। मैं टोंस घाटी में ही पिछ्ले साल बाली पास ट्रैक पर गया था , गंगाड़ गांव का ही एक युवक हमारा गाइड था , स्वयं गढ़वाली होते हुए मैंने उससे गढ़वाली में बात करने की पर वो कुछ ख़ास समझ नहीं पाया ,वैसे ही मैं उनकी भाषा समझ नहीं पाया कुछ शब्दों को छोड़कर ,जब मैंने उससे पूछा क्या आप लोग जौनसारी बोलते हैं तो उसने मना कर दिया और कहा जौनसार से गांव हनोल से शुरू होते हैं। बाद में कुछ खोजबीन की तो पता चला उनकी बोली को पर्वती कहते हैं और वह गढ़वाली से काफी भिन्न है, हालाँकि वहाँ गढ़वाली-जनसारी-हिमाचली सारे गाने सुने जाते है ,विशेषकर हिमाचली गानों/नाटी का अधिक प्रभाव दिखा। मैं जानना चाहता था क्या ओसला गांव वाले स्वयं को जौनसारी कहते हैं ?
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